अररिया के फारबिसगंज स्थित प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज मोती बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MBIT) नीलाम हो गया है। बैंक लोन व बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार (बियाडा) का भाड़ा नहीं चुकाने के कारण ई नीलामी प्रक्रिया के तहत अब इसका स्वामित्व आरके रुंगटा चैरिटेबल ट्रस्ट ने हासिल किया है। यह जानकारी ट्रस्ट के सीईओ निशिकांत दास गुरु ने दी।
निशिकांत ने बताया कि एमबीआईटी की नीलामी प्रक्रिया पहले भी दो बार हो चुकी थी। लेकिन, इस नीलामी प्रक्रिया में किसी ने भाग नहीं लिया। तीसरी नीलामी में आर के रुंगटा चैरिटेबल ट्रस्ट ने भाग लिया। सरकार द्वारा निर्धारित राशि के साथ सारी प्रक्रिया पूरी करते हुए 15 करोड़ 50 हजार रुपये में ट्रस्ट ने इस नीलामी को अपने नाम कर लिया।
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किसको मिला कॉलेज का मालिकाना हक
कॉलेज की नीलामी में अब इसका मालिकाना हक आरके रुंगटा चैरिटेबल ट्रस्ट के पास है। नीलामी की विभागीय कार्यवाही 24 मार्च 2023 को पूरी कर ली गई थी। लेकिन कॉलेज ने सरकार से बकाया राशि का भुगतान करने की मोहलत मांगी थी। 3 महीने बाद कॉलेज की ओर से राशि का भुगतान नहीं करने के कारण 24 जुलाई को आरके रुंगटा चैरिटेबल ट्रस्ट को इंजीनियरिंग कॉलेज का स्वामित्व सौंप दिया गया।
ट्रस्ट के सीईओ निशिकांत ने कहा “चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से 15 करोड़ 510 रुपये जमा कर दिए गए हैं, लेकिन इसका कब्जा मिलना अभी बाकी है। कब्जा के लिए सरकार की ओर से हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप कुमार को प्रतिनियुक्त किया गया है। इसकी जानकारी अररिया डीएम तथा एसपी, फारबिसगंज एसडीओ, सीईओ, थाना अध्यक्ष और बियाडा के अधिकारी को दे दी गई है। एमबीआईटी का नया नाम अब इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी होगा”।
कब बना था एमबीआईटी कॉलेज
2012 में एमबीआईटी, फारबिसगंज स्थित बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार (बियाडा) की 13.73 एकड़ भूमि पर खुला था। इस कॉलेज का निर्माण सिडनी स्थित टेक्नोलोजी कंपनी आईसाॅफ्ट के मालिक अमित कुमार दास ने किया था। अमित मूल रूप से अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड के मिरदौल गांव के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम मोती लाल था। अपने पिता के नाम पर ही अमित ने इस कॉलेज का नाम मोती बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रखा था। अमित ने 120 करोड़ रुपये की लागत से इस कॉलेज का निर्माण कराया था। कॉलेज में बीटेक की पांच ब्रांचों में पढ़ाई भी चल रही थी।
क्यों हुई कॉलेज की नीलामी
यह कॉलेज बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार (बियाडा) की जमीन पर था। कॉलेज शुरू होने के दस सालों के बाद भी संस्थान द्वारा बियाडा को उनका किराया भुगतान नहीं किया गया। कॉलेज ने निर्माण के लिए बैंक से लिए कर्ज का ब्याज चुकाना तो दूर उनका एक रुपया भी नहीं लौटाया। इन सभी के बकाया राशि और ब्याज मिलाकर 18 करोड़ 46 लाख रुपये से भी अधिक हो गए। इस राशि को जमा करने के लिए कॉलेज प्रशासन को कई बार नोटिस भी दिया गया। लेकिन, उनके द्वारा राशि का भुगतान नहीं किया गया। राशि भुगतान नहीं करने के कारण सरकार ने इस नीलामी प्रक्रिया को अपनाया।
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