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सीटों के बंटवारे पर बात नहीं बनी तो महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ेंगे वामदल — दीपांकर

बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीति गर्म है। राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के बीच वाक युद्ध तो छिड़ा ही है, लेकिन दोनों ओर के गठबंधन में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। बात महागठबंधन की करें तो इसमें भी अब सहयोगी दलों के बीच खटपट शुरू हो गई है।

Reported By Sahul Pandey |
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[vc_row][vc_column][vc_column_text]बिहार में विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीति गर्म है। राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के बीच वाक युद्ध तो छिड़ा ही है, लेकिन दोनों ओर के गठबंधन में भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। बात महागठबंधन की करें तो इसमें भी अब सहयोगी दलों के बीच खटपट शुरू हो गई है। इस बार महागठबंधन में लेफ्ट पार्टियां शामिल हुईं थी और इन्हीं के सहारे संगठन की मजबूती का दावा ​भी किया जा रहा था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि लेफ्ट पार्टियां ज्यादा समय तक महागठबंधन में शायद ही बनें रहें।

दरअसल सीट शेयरिंग के मामले को लेकर लेफ्ट पार्टियां की बात गठबंधन में बन नहीं रही है। भाकपा माले ने महागठबंधन में रहकर चुनाव लड़ने की बात कही थी लेकिन साथ ही 53 सीटों पर जीत का दावा भी ठोका था। लेकिन राजद ने उसके इस दावे को खारिज कर दिया है। इस बारे में भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने खुद जानकारी दी थी। दीपांकर भट्टाचार्य ने बताया कि राजद 2015 के चुनावों के वक्त हुए सीट शेयरिंग के अधार पर इसबार भी सीटों का बंटवारा करना चाहती है। जो हमे मंजूर नहीं है।

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दीपांकर ने कहा कि हम चाहते हैं कि सीटों का बंटवारा 2019 लोकसभा चुनाव की तर्ज पर हो। उन्होंने कहा कि अगर गठबंधन में बात नहीं बनेगी तो वो और उनकी पा​र्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी। दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि हमारी बस यही मांग है कि लोकसभा चुनाव में हुए तालमेल को आधार माना जाए, तो हमें भी गठबंधन में रहना मंजूर होगा। वरना, हम भी अकेले चुनाव लड़ेंगे। वहीं उन्होंने यह भी साफ कर दिया की तीनों वामदल एक साथ आपसी सहयोग से चुनाव लड़ेंगे।

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कुल मिलाकर कहें तो भाकपा माले के इस रुख ने साफ कर दिया है कि महागठबंधन में भी एनडीए की तरह ही सीटों को लेकर बात बनती हुई नज़र नही आ रही है। न्यूज 24 की एक खबर के अनुसार अभी सीटों के बंटवारे का मामला कांग्रेस और राजद के बीच ही फंसा हुआ है। छोटे दलों को कितनी सीटें दी जाएं, इसके बारे में अभी कोई चर्चा ही नहीं हुई है। ऐसे में सिर्फ भाकपा ही नहीं उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी भी खुद को महागठबंधन में ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

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