योगेन्द्र राम(काल्पनिक नाम) ने अपनी मेहनत की कमाई से पूर्णिया शहरी क्षेत्र में 2 कट्ठा जमीन खरीदी। अब तक किराये के मकान में रह रहे योगेन्द्र 2018-19 में भूखंड के निबंधन के बाद बेहद खुश थे। वर्षों की मेहनत के बाद अपने घर का उनका सपना साकार होने वाला था।
निबंधन के दूसरे दिन ही वो अंचल कार्यालय नामांतरण के लिए आवेदन देने पहुंच गए। वहां पर किसी ने उन्हें बताया कि बाहर कम्प्यूटर दुकान में नामांतरण का आनलाइन आवेदन होगा। सभी दस्तावेजों को अपने थैले में संभाले वह कम्प्यूटर दुकान पर पहुंचे। कंप्यूटर वाले ने नामांतरण के लिए जरूरी दस्तावेजों की चेक लिस्ट बताई। योगेन्द्र ने सभी दस्तावेज अपने पास होने की बात कही। सकारात्मक जवाब मिलने के बाद कंप्यूटर पर बैठे व्यक्ति ने नामांतरण की ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी। उसने करीब 5 मिनट बाद कंप्यूटर स्क्रीन से नजर हटाई और योगेन्द्र से मुखातिब होते हुए कहा कि नहीं हो रहा चचा। आवेदन न कर पाने का कारण पूछने पर उसने बस इतनी ही कहा कि अंचल से ही होगा।
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योगेन्द्र थोड़े मायूस होकर अंचल कार्यालय पहुंचे और अपने काम से जुड़े व्यक्ति को चिन्हित कर सारी बात बताई। अंचल कर्मी ने उनसे कहा कि आपके खरीदे हुए प्लॉट का लगान-निर्धारण होने के बाद ही नामांतरण के लिए आवेदन समर्पित कर पाएंगे। आगे, योगेन्द्र ने पूछा कि इसके लिए क्या करना होगा? कर्मी ने जवाब दिया कि भरा हुआ फॉर्म 37 वह उसमें वर्णित दस्तावेजों के साथ जमा करना होगा। यह कहते हुए उन्होंने एक सांस में योगेन्द्र को सारे दस्तावेजों के नाम बता दिए। योगेंद्र ने प्राप्त जानकारी अनुसार, जरूरी दस्तावेज सहित फॉर्म 37 भर कर निम्न श्रेणी लिपिक के पास जमा कर दिया।
उस दिन से आज तक योगेन्द्र अंचल अभिलेखागार के कर्मी, कर्मचारी, अंचल अधिकारी, राजस्व अधिकारी, डीसीएलआर से मिल कर सैकड़ों बार मौखिक मिन्नतें कर चुके हैं, लेकिन उनका आवेदन ज्यों का त्यों अंचल अभिलेखागार में धूल फांक रहा है। 48 महीने से ज्यादा का समय बीत जाने के बावजूद निर्धारित लगान की आदेश-प्रति के बजाय योगेन्द्र के हिस्से अंचल के निम्न श्रेणी लिपिक और उनके गैर-सरकारी सहायक की तिरस्कार से भरी बोली, अंचल अधिकारी, अंचल कार्यालय और डीसीएलआर कार्यालय का एक-दूसरे के ऊपर तेजी से काम न करने का आरोप-प्रत्यारोप ही आया।
पूर्णिया शहरी क्षेत्र में योगेंद्र राम जैसे करीब 10000 आवेदक अपने-अपने भूखंड के लगान-निर्धारण की प्रतीक्षा में रोज परेशान होने को विवश हैं। ये सभी आवेदन सत्र 2018-19, 2019-20, 2020-21, 2021-22, 2022-23 के हैं। 11 माह से रिक्त स्थायी भूमि सुधार उप-समाहर्ता(डीसीएलआर) के पद पर परमानंद साह के योगदान दिये 90 दिन से ज्यादा का समय बीत चुका है। अंचलाधिकारियों के साथ उनकी बैठक हो चुकी है। इसके बावजूद, अब तक डीसीएलआर या जिला प्रशासन के अधिकारियों की तरफ से शहरी क्षेत्रों में लगान-निर्धारण की समस्या के ठोस निदान पर कोई आधिकारिक कार्ययोजना या जानकारी सार्वजनिक नहीं की गयी।
बेहतर कनेक्टिविटी के अलावा कई कारणों से पूर्णिया में जमीन खरीदने की चाहत बढ़ी है। अपनी चाहत को पूरा कर सकने वाले शहरी क्षेत्र में भूखंड खरीद रहे हैं। चिन्हित जमीन के अपने नाम पर निबंधन के बावजूद अंचल के अभिलेखों में अपने नाम से जमाबंदी कायम नहीं करा पा रहे हैं।
भूमि की डीलर/भू-माफिया जन्य समस्याएं
मूल खतियान धारी की जमीन को हड़प लेना, दूसरों की भूमि पर जोर-जबरदस्ती अस्थायी व स्थायी निर्माण, फर्जी दस्तावेजों के सहारे किसी की भूमि को एक बार या कई बार बेच देना, खरीदार की अज्ञानता अथवा भू संबंधी मामलों में अपर्याप्त जानकारी का लाभ उठाते हुए खतियान में वर्णित रकबे से कम बेचना, अमीन की मिलीभगत से भूखंड की लम्बाई-चौड़ाई के गुणनफल और उसके रक़बे की माप में अंतर करके कम भूखंड बेचना इत्यादि। ये सभी तरीके पूर्णिया के शहरी-क्षेत्रों में भूमि के डीलर या एजेंट या माफिया, भूखंड बेचने, बिकवाने के दौरान अपनाते हैं।
इसके अलावा अन्य समस्याओं से भी लोगों को दो-चार होना पड़ता है। मसलन, ऑनलाइन नामांतरण कराने के बाद भी रजिस्टर में जानबूझ कर प्रविष्टि में देरी, परिमार्जन पोर्टल से प्राप्त आवेदनों में “प्रोसेस्ड” या “पेंडिंग” अभ्युक्ति के जरिये वांछित सुधार से वंचित रखना या देरी करना, लगान-निर्धारण के लिए प्राप्त आवेदनों पर ससमय वाद संख्या दर्ज न करना, खरीद के जरिये प्राप्त जमीन से जुड़े रैयत की वंशावली को प्रस्तुत करने का दबाव बनाना जबकि वर्तमान ख़रीददार का दूर-दूर तक वास्ता नहीं, कर्मी की कमी का ठीकरा आवेदकों पर फोड़ना, ससमय व बिना मान-मनौव्वल के अभिलेख की प्रतिलिपि मुहैया न कराना, मापी के लिए प्राप्त आवेदनों के निपटान के लिए सरकारी अमीन ससमय मुहैया न कराना, अमीनों द्वारा भूमि डीलरों के साथ मिलकर चौहद्दी की माप व रकबे की माप में तिकड़म, अमीनों द्वारा सरकारी भूमि की मापी के समय पक्षकार-विशेष को अवैध तरीके से अनुचित लाभ पहुंचाना इत्यादि।
क्यों विकराल रूप ले चुकी है लगान-निर्धारण की समस्या?
ऊपर बताई गई भू-समस्याएं जमीन खरीदने वालों के लिए आम लेकिन व्यापक हैं। पिछले 5 वर्षों में पूर्णिया के शहरी क्षेत्र में लगान-निर्धारण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। मतलब, यह कि पूर्णिया शहरी क्षेत्र के कुछ मौज़ों में जमीन खरीदने के बाद जमाबंदी के लिए तब तक रुकना होगा, जब तक कि आपके भूखंड का लगान निर्धारित न कर दिया जाए।
पूर्णिया में रैयती बेलगान या काबिल लगान भू-खंड के लगान-निर्धारण के सम्बन्ध में संयुक्त निदेशक के स्तर से बिहार के सभी समाहर्ताओं को वर्ष 2018 में पत्र जारी किया गया था। इस पत्र में अनुमंडल के भूमि सुधार उप-समाहर्ता को लगान निर्धारण के लिए सक्षम प्राधिकार और जिले के अपर समाहर्ता को अपीलीय प्राधिकार घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त, लगान-निर्धारण के लिए बिहार काश्तकारी (संशोधन) नियमावली, 2018 का संदर्भ देते हुए उसमें वर्णित प्रक्रिया का पालन करते हुए लगान-निर्धारण का आदेश जारी किया गया।
पूर्णिया पूर्व अंचल का मामला
पूर्णिया शहरी क्षेत्र में खरीदारों को हो रही लगान-निर्धारण की समस्या की जड़ में एक प्रावधान है। वास्तव में, बिहार काश्तकारी (संशोधन) नियमावली, 2018 अधिसूचित की जा चुकी है, जिसके तहत बिहार काश्तकारी अधिनियम, 1885 के नियम-53 में आवश्यक संशोधन करते हुए उप-नियम-2 और उप-नियम-3 जोड़ते हुए रैयती बेलगान/काबिल जमीन का लगान निर्धारण से संबंधित प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
पूर्व सदर डीसीएलआर के कार्यकाल में लंबित लगान-निर्धारण के मामलों के त्वरित निष्पादन के लिए पूर्णिया पूर्व अंचल के सभागार में सप्ताह के प्रत्येक बृहस्पतिवार को लगान-निर्धारण शिविर आयोजित करने का आदेश हुआ। इस आदेश के अनुसार 2018-19 के सभी अनिष्पादित अभिलेख का निष्पादन 11 फरवरी 2021 तक और लगान निर्धारण के सभी लंबित मामलों का निष्पादन पंद्रह जुलाई तक किया जाना था। लगान निर्धारण शिविर में भूमि सुधार उप-समाहर्ता, अंचल अधिकारी, हल्का कर्मचारी से लेकर अंचल अधिकारी कार्यालय के नाम-निर्देशित कर्मचारियों को एक जगह बैठकर ऑन द स्पॉट मामलों का निपटारा करना था।
एक शिविर में तकरीबन 300 मामले का निस्तारण निर्धारित किया गया। इसके बाद हर बृहस्पतिवार को तय आवेदकों का तांता पूर्णिया अंचल सभागार में लगने लगा। इनके दस्तावेज एक भवन से दूसरे भवन लाए ले जाए जाने लगे। कार्यालय कर्मचारी से लेकर वरीय अधिकारी ने अपने व आवेदकों के समय, धन व ऊर्जा लगान-निर्धारण शिविर में झोंक दिया, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
इतनी कवायद के बावजूद ‘शिविर’ आवेदकों के भूखंड के लगान-निर्धारण के उद्देश्यों को पूरा करने के स्थान पर मात्र दस्तावेज़ों के मिलान और जाँच तक ही सीमित रहा। कोविड-19 से पूर्व तक लगाए गए किसी भी शिविरों में निर्धारित 300 आवेदकों के भूखंड के लगान का ऑन द स्पॉट निर्धारण नहीं किया गया। कालांतर में कोविड-19 से उपजी स्थिति का हवाला देकर शिविर का आयोजन बंद कर दिया गया। उस दौरान लगान-निर्धारण के मामलों के निष्पादन अथवा यथास्थिति रखने की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गयी। उसी दौरान अंचल कार्यालय में आवेदकों की बढ़ती भीड़ के सवालों से बचने के उद्देश्य से अंचल कार्यालयों की दीवारों पर अखबार की कटिंग लगायी गयी, जिसमें जिला व प्रमंडल स्तरीय अधिकारियों की एक समिति द्वारा शहरी क्षेत्रों की जमीन का लगान 5 रुपए प्रति डिसमिल निर्धारित करने का प्रस्ताव विभाग व राज्य के आला अधिकारियों के पास भेजने का ज़िक्र था।
हालांकि, इस प्रस्ताव की स्वीकृति, अस्वीकृति या अद्यतन स्थिति की जानकारी आवेदकों से सार्वजनिक तौर पर कभी साझा नहीं की गयी।
स्थिति सामान्य होने तक तत्कालीन डीसीएलआर के स्थानांतरण के कारण सदर अनुमंडल पदाधिकारी(एसडीओ) को डीसीएलआर का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया। एसडीओ, पूर्णिया सदर के प्रभार में रहते लगान-निर्धारण के मामलों के निष्पादन संबंधी ब्यौरे को सार्वजनिक नहीं किया गया। चुनिंदा फाइलों का अंचल कार्यालय से डीसीएलआर कार्यालय आवागमन जारी रहा।
लगान-निर्धारण में देरी से कानून-तोड़ने की विवशता बढ़ी
विभागीय अधिकारियों की लापरवाही, सही व ठोस निर्णय लेने की अक्षमता, चुनिंदा आवेदन-निष्पादन, वरीय अधिकारियों की निष्क्रियता, बैकलॉग खत्म करने के लिए युक्तियुक्त सटीक कदम उठाने में विफलता, पद का दुरुपयोग और निजी स्वार्थों के पोषण के कारण लगान-निर्धारण की वर्षों से बाट जोह रहे आम व कानून-पसंद आवेदक अपने ही भूखंड पर अपना घर नहीं बना पा रहे हैं। कई आवेदकों ने लगान-निर्धारण की निर्धारित समय-सीमा के अभाव, विभागीय पक्षपात और अकर्मण्यता से तंग आकर अपने भूखंड पर बिना नगर निगम से नक्शा पास कराये रहने के लिए घर बना लिया है। ऋण लेकर घर बनाने के इच्छुक आवेदकों का कई महीना व साल यूँ ही जाया हो रहा है जिसका प्रतिकूल प्रभाव उनके ऋण लेने की क्षमता पर पड़ना निश्चित है।
शिविर, 5 रुपए प्रति डिसमिल का प्रस्ताव, डीसीएलआर का स्थानांतरण, चुनाव में व्यस्तता जैसे बहानों को ढाल बनाकर आम आवेदकों को टहलाने में अंचल व डीसीएलआर के कर्मी से लेकर अधिकारी तक शामिल हैं। वर्तमान डीसीएलआर की नियुक्ति के बाद भी अंचल कार्यालय और डीसीएलआर कार्यालय के बीच लगान-निर्धारण से जुड़ी चुनिंदा फाइलों का आवागमन पहले की तरह होता रहा। 2018-19 से लेकर 2021-22 तक के बैकलॉग आवेदनों के त्वरित निष्पादन की उचित व्यवस्था किए बिना ही 2022-23 तक के चुनिंदा आवेदनों का निष्पादन किया जा रहा है। आवेदन निष्पादन करा पाने वालों में मुख्यमंत्री के जनता-दरबार की व्यवस्था में लगे कर्मचारी व अधिकारी, उच्च पदस्थ अधिकारी व मंत्री से अनुशंसित आवेदक, बैंककर्मी, अंचलकर्मियों व अधिकारियों के नजदीक व दूर के रिश्तेदार जैसे आवेदक शामिल हैं।
आवेदकों के चयन में मनमानी की हदें लांघी जा चुकी हैं। इसमें कोई क्रमबद्धता है न कोई वाजिब तर्क। लंबित लगान-निर्धारण के आवेदनों के सिलसिलेवार समाधान की समय-सीमा निर्धारित कर द्रुत गति से काम करने की इच्छाशक्ति जिला पदाधिकारी, प्रमंडलीय आयुक्त, राज्य सरकार के राजस्व व भूमि सुधार विभाग के स्तर पर भी नहीं दिखती।
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Very commendable work by main media members 😍