पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में हाल ही में लागू हुए 75 फीसदी आरक्षण के खिलाफ सुनवाई करते हुए सरकार को 4 हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। फिलहाल, हाईकोर्ट ने 75 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. चंद्रन ने आरक्षण के खिलाफ दायर की गयी सभी जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश ने राज्य के एडवोकेट जेनरल पीके शाही को 4 हफ्ते के अंदर सरकार का पक्ष रखने का निर्देश दिया।
पटना उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में बिहार में लागू 75 फीसदी आरक्षण पर याचिकाकर्ता रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि बिहार सरकार का यह कदम गैर-संवैधानिक और समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बिहार सरकार ने जाति के आधार पर आरक्षण को बढ़ाया है। उनका मानना है कि राज्य जाति के आधार पर आरक्षण को नहीं बढ़ा सकते हैं, राज्य सिर्फ सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण का दायर बढ़ा सकते हैं।
बताते चलें कि बिहार विधानसभा में 75 फीसदी आरक्षण संबंधी संशोधन विधेयक 9 नवंबर को पास हुआ था।
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उल्लेखनीय है कि सदन में विधेयक बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से पास हुआ था।
बिहार के राज्यपाल ने बिहार पदों व सेवाओं में नियुक्ति तथा बिहार के शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन की रिक्तियों में आरक्षण संबंधी संशोधन अधिनियम को 21 नवंबर को स्वीकृति दे दी थी।
संशोधित अधिनियम के तहत अब राज्य सरकार की सेवाओं और पदों की सभी नियुक्तियों तथा बिहार के शैक्षणिक संस्थानों के नामांकन में 75 फीसद सीटें आरक्षित होंगी।
पिछड़ा वर्गों के लिये 18 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्गों के लिये 25 प्रतिशत, अनुसूचित जातियों के लिये 20 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिये 2 प्रतिशत सीटें आरक्षित रहेंगी। इसके अलावा 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के अभ्यर्थियों को मिलेगा।
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