32 साल की जूली परवीन की शादी सात साल पहले कुरेश आलम के साथ हुई थी। शादी के समय दहेज के रूप में जूली के परिजनों ने कुरेश आलम को चार भर सोना और मोटरसाइकिल खरीदने के लिए 80 हजार रुपये दिये थे। लेकिन, शादी के कुछ समय बाद ही उसकी ससुराल के लोगों ने मोटरसाइकिल के लिए उसे परेशान करना शुरू कर दिया।
स्थिति इस हद तक पहुंच गई कि जूली को अपनी ससुराल छोड़कर मायके लौट आना पड़ा। उसके मायका लौटते ही कुरेश आलम ने दूसरी शादी कर ली।
बिहार के किशनगंज जिले के कोचाधामन थाना क्षेत्र के चरैया गांव की रहने वाली जूली के मुताबिक, कुरेश की शादी के बाद पंचायत हुई, जिसमें यह तय हुआ कि कुरेश, उसे भरण-पोषण के लिए हर महीने 4 हजार रुपये देगा और जमीन का एक टुकड़ा जूली के नाम कर देगा। लेकिन, उसे न हर महीने पैसा दिये जाते हैं और न ही जमीन उसके नाम की गई।
वह फिलहाल दो बच्चों के साथ ससुराल में अकेली रही हैं।
इस मामले में उन्होंने कोचाधामन थाने में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई।
लेकिन, इस पर ठोस कार्रवाई होनी अभी बाकी है।
जूली कहती हैं, “वह अपनी दूसरी पत्नी के साथ लुधियाना में रह रहा है और घर पर कोई पैसा नहीं भेजता है।”
“मैं टेलरिंग कर दोनों बच्चों को किसी तरह पाल रही हूं। अभी खाना पीना घट जाता है, तो मायके से अनाज ले आती हूं,” वह कहती हैं।
उन्होंने बताया कि थाने में शिकायत करने के बाद एक बार कुरेशी को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया। इसके बाद से कोई कार्रवाई नहीं हुई। वह दोबारा थाने जाने का मन बना रही हैं ताकि पुलिस पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाया जा सके।
जूली अकेली महिला नहीं हैं, जो दहेज के लिए ससुराल से प्रताड़ित होकर मायके में रहने को मजबूर हैं। बिहार में ऐसे सैकड़ों मामले हैं। जूली इस लिहाज से खुशकिस्मत हैं कि वे अब तक जीवित हैं, वरना राज्य में दहेज के लिए कितनी ही हत्याएं हो चुकी हैं और ऐसा तब हो रहा है, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में दहेज के खिलाफ प्रखर जागरूकता अभियान चलाया और जनप्रतिनिधियों को इस अभियान से जोड़ा।
क्या कहते हैं एनसीआरबी के आंकड़े
हाल ही में जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, दहेज को लेकर हत्या के मामले में बिहार दूसरे स्थान पर है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में बिहार में दहेज को लेकर 1057 महिलाओं की हत्या कर दी गई। 2142 महिलाओं की हत्या के साथ उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। वहीं, 518 हत्याओं के साथ मध्य प्रदेश तीसरे पायदान पर है।
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2022 में दहेज निषेध अधिनियम के तहत बिहार में कुल 3580 मामले दर्ज किये गये, जो उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश में इस एक्ट के तहत 4807 मामले दर्ज किये गये।
पूरे देश (केंद्र शासित राज्यों को मिलाकर) में साल 2022 में दहेज उत्पीड़न के 13479 मामले दर्ज किये गये और 6485 महिलाओं की दहेज के लिए हत्या कर दी गई।
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आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि बिहार में साल दर साल दहेज के लिए उत्पीड़न और हत्या बढ़ रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में बिहार दहेज से लिए 1000 महिलाओं की जान ले ली गई थी, वहीं, दहेज निषेध अधिनियम के तहत 3362 मामले दर्ज किये गये थे, जो साल 2022 के मुकाबले कम थे।
2017-18 में बिहार सरकार ने चलाया था अभियान
गौरतलब हो कि बिहार में दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए बिहार सरकार साल 2017 से ही अभियान चला रही है। 2 अक्टूबर 2017 को सीएम नीतीश कुमार ने लोगों से ऐसी शादी में शिरकत नहीं करने की अपील की थी, जिसमें दहेज लिया जा रहा हो।
उसी साल उन्होंने सरकारी सेवाओं में आने-वाले नौजवान कर्मचारियों से शपथ पत्र लेने का ऐलान किया था, जिसमें वे अपनी शादी में दहेज नहीं लेने की कसम लेंगे। हालांकि, यह नियम पहले से है, लेकिन उन्होंने सख्ती से इसे पालन करने का निर्देश देते हुए कहा था कि अगर कोई कर्मचारी दहेज लेता हुआ पाया जाता है, तो उसे नौकरी बर्खास्त किया जाएगा।
साल 2018 में दहेज के खिलाफ सरकार ने एक वृहद मानव श्रृंखला बनाई थी। इतना ही नहीं, दहेज पर रोक लगाने के लिए सरकार ने जनप्रतिनिधियों की जिम्मेवारी भी तय कर दी थी। सभी पंचायतों के मुखियाओं को बिहार सरकार ने निर्देश दिया था कि अगर उनकी पंचायत में किसी विवाह में दहेज लिया जा रहा है, तो वे इसकी सूचना जिला कल्याण पदाधिकारी को देंगे।
बिहार में अलग दहेज निषेध कानून था। इस कानून को बिहार सरकार ने 2018 में निरस्त कर दिया था, जिसके बाद राज्य में केंद्र का दहेज निषेध कानून लागू हुआ। राज्य सरकार का तर्क था कि केंद्रीय कानून राज्य के मुकाबले ज्यादा सख्त है।
गौरतलब हो कि दहेज निषेध कानून में दहेज लेना और दहेज देना, दोनों अपराध की श्रेणी में आता है। दहेज लेने पर कम से कम 5 साल की सजा और 15 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। वहीं, अगर कोई व्यक्ति दहेज की मांग करता है, तो इसके लिए 6 माह से 2 साल तक की सजा का प्रावधान कानून में है।
वहीं, अगर दहेज के लिए हत्या कर दी जाती है तो दोषियों को कम से कम 7 साल और अधिक से अधिक आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
लेकिन, एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार सरकार की कोशिशों का असर जमीन पर नहीं हो रहा है।
क्यों नहीं रुक पा रही यह कुप्रथा
जानकारों का कहना है कि दहेज प्रथा सदियों से चली आ रही है और इसे न तो लड़के वाले गलत मानते हैं और न ही लड़की वाले। नतीजतन तमाम कानून और जागरूकता के बावजूद यह कुप्रथा फूल-फल रही है।
एक पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “दहेज से जुड़े मामले थाने तक तभी पहुंचते हैं, जब और अधिक दहेज के लिए विवाहिता पर अत्याचार किया जाता है या फिर उसकी हत्या कर दी जाती है। शादी के दौरान दहेज लेने से जुड़ा मामला थाने तक नहीं पहुंचता क्योंकि दहेज देने के लिए लड़की के परिजन आसानी से तैयार हो जाते हैं।”
महिलाओं को लेकर काम कर रही वंदना शर्मा कहती हैं, “दहेज देना और लेना दोनों सामाजिक हैसियत से जुड़ा हुआ है, इसलिए अब भी यह कुप्रथा चल रही है।”
जनप्रतिनिधियों पर दहेज रोकने की जिम्मेदारी देने के बावजूद यह कैसे फूल-फल रही है, इसकी भी वजह वह बताती हैं। “जनप्रतिनिधि भी समाज का हिस्सा हैं। अगर वे अपने समाज में दहेज लेने और देने वालों के खिलाफ जाकर पुलिस में या प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत करेंगे, तो लोग उनके खिलाफ हो जाएंगे और उनके वोट बैंक पर नकारात्मक असर पड़ेगा, इसलिए जनप्रतिनिधि भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करते हैं,” वंदना शर्मा कहती हैं।
दहेज पर रोक नहीं लग पाने की एक वजह यह भी है कि इस तरह के मामलों में पुलिस से लेकर अदालत तक कार्रवाई करने की जगह आपसी सुलह पर जोर देते हैं।
अररिया जिले के फारबिसगंज थाना क्षेत्र की रहने वाली चंदा देवी के मामले में कुछ ऐसा ही हुआ है।
चंदा देवी के पिता सत्यनारायण चौधरी ने इस साल मई में भरत चौधरी के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला फारबिसगंज थाने में दर्ज कराया था। पुलिस ने दहेज निषेध एक्ट की धारा 498ए के साथ ही दूसरी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की, जिसमें दोष साबित होने पर तीन साल की सजा हो सकती है। लेकिन, कार्रवाई के नाम पर एक बार गिरफ्तारी हुई और फिर अदालत ने सुलह का रास्ता चुना।
पेशे से दैनिक मजदूर सत्यनारायण चौधरी कहते हैं, “चार साल पहले बेटी की शादी कराई थी। उस वक्त दहेज में 1.5 लाख रुपये दिये थे। लेकिन शादी के बाद भारत मोटरसाइकिल के लिए एक लाख रुपये मागंने लगा और पैसा नहीं देने पर प्रताड़ित करने लगा।”
“हमलोग मजदूर आदमी हैं, इतना पैसा कहां से लाएंगे,” उन्होंने कहा।
इस मामले में भरत की गिरफ्तारी हुई और मामला कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने सुलह करने को कहा। “कोर्ट ने चंदा से पूछा कि क्या वह ससुराल में रहना चाहती है? तो उसने कहा कि अच्छा से रखा जाएगा तो वह जरूर रहेगी,” सत्यनारायण चौधरी कहते हैं। इस पर भरत उसे अपने साथ रखने पर राजी हो गया, लेकिन कोर्ट से बाहर आते ही वह अपने वादे से मुकर गया। “पिछले ढाई महीने से मेरी बेटी मेरे साथ है। अदालत में हामी भरने के बावजूद वह चंदा को लेकर नहीं जा रहा है। भरत की बहन की ससुराल बगल में है। वह बहन के यहां आता है लेकिन अपनी पत्नी और अपनी एकमात्र बेटी से मुलाकात नहीं करता है,” उन्होंने कहा।
वंदना शर्मा कहती हैं, “कार्रवाई करने की जगह सुलह करा देने से भी दहेज को बढ़ावा मिलता है। अगर दहेज के मामलों में कार्रवाई होगी, तो लोग दहेज लेने से डरेंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हो रहा है। सुलह हो जाने से दहेज लेने वालों के हौसले बुलंद हो जाते हैं।”
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