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JNU में सीमांचल के मुस्लिम दिव्यांग स्कॉलर से ABVP छात्रों द्वारा मारपीट की पूरी सच्चाई

फारूक, विश्वविद्यालय के शुरुआती दिनों से ही छात्र राजनीति में सक्रिय हैं और कांग्रेस का छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के सदस्य भी रह चुके हैं। फिलहाल फ़ारूक़ पार्टी की युथ विंग भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) से जुड़े हैं। वह मूल रूप से बिहार के कटिहार जिला स्थित कोढ़ा प्रखंड के रहने वाले हैं। उन्होंने 2017 के जेएनयू छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव भी लड़ा था।

Nawazish Purnea Reported By Nawazish Alam |
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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर फारूक आलम ने आरोप लगाया है कि बुधवार को हॉस्टल वार्डन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्यों ने विश्वविद्यालय कैंपस के कावेरी हॉस्टल में उनके साथ धक्का-मुक्की और मारपीट की।

रिसर्च स्कॉलर फारूक ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि उनकी अनुपस्थति में विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मी और हॉस्टल वार्डन ने उनके हॉस्टल के कमरे के ताले को तोड़कर लैपटॉप, पर्स, ऑरिजिनल डॉक्यूमेंट्स और किताबें बाहर फेंक दीं। जब फारूक को इसकी सूचना मिली तो वह दौड़-दौड़े हॉस्टल पहुंचे। अपने सभी सामान को इस तरह बिखरा हुआ देखकर फारूक ने रोना शुरू कर दिया। उनके रोने-धोने का भी हॉस्टल प्रशासन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। फारूक के मुताबिक, हॉस्टल प्रशासन और एबीवीपी के सदस्यों ने उनको रोते देखकर कहा कि रोने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा और हॉस्टल खाली होकर रहेगा।

फारूक ने जब इसको लेकर वार्डन से सवाल करना चाहा तो एबीवीपी के एक सदस्य ने पीछे से कॉलर पकड़ कर खींचा और मारपीट की। इससे फारूक अनियंत्रित होकर गिर पड़े और बेहोश हो गए। यह घटना कैंपस में बुधवार को करीब दोपहर 12.30 बजे हुई। उनको इलाज के लिए सफदरजंग अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया। फिलहाल, फारूक को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।


छात्र संगठन नेश्नल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) ने ट्वीट कर घटना की निंदा की है। संगठन ने हमले में शामिल एबीवीपी संगठन के सदस्यों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

एनएसयूआई ने ट्वीट में लिखा, “यह है ABVP का असली चेहरा। आज कावेरी छात्रावास में छात्रावास के वरिष्ठ वार्डन और उनके पालतू एबीवीपी गुंडों ने शारीरिक रूप से विकलांग रिसर्च स्कॉलर और हमारे संगठन एनएसयूआई जेएनयू के वरिष्ठ कार्यकर्ता फारूक आलम पर हमला किया। हम जेएनयू के प्रगतिशील छात्रों से आग्रह करते हैं कि वे इन गुंडों के प्रतिरोध में आगे आएं और उन्हें बेनकाब करें। ये गुंडे जेएनयू प्रशासन की कठपुतली हैं और उनकी ओर से छात्रों से हिंसक तरीके से निपट रहे हैं। हम जेएनयू प्रशासन से वार्डन और इसमें शामिल एबीवीपी गुंडों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का अनुरोध करते हैं।”

आपको बता दें कि फारूक आलम शारीरिक रूप से एक विकलांग छात्र हैं। वह जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रसियन व सेंट्रल एशियन स्टडीज़ सेंटर से पीएचडी कर रहे हैं, और अपने पीएचडी के अंतिम वर्ष में हैं। वह 2013 में जेएनयू के स्नातक की प्रवेश परीक्षा में सफल हुए थे। बाद में उन्होंने जेएनयू ज्वाइन किया था। स्नातक के बाद फारूक ने जेएनयू से ही मास्टर्स भी किया।

फारूक, विश्वविद्यालय के शुरुआती दिनों से ही छात्र राजनीति में सक्रिय हैं और कांग्रेस का छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के सदस्य भी रह चुके हैं। फिलहाल फ़ारूक़ पार्टी की युथ विंग भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) से जुड़े हैं। वह मूल रूप से बिहार के कटिहार जिला स्थित कोढ़ा प्रखंड के रहने वाले हैं। उन्होंने 2017 के जेएनयू छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव भी लड़ा था।

फारूक को हॉस्टल से क्यों निकाला जा रहा है?

दसअसल, मामला अक्टूबर 2019 का है, जब विश्वविद्यालय के छात्र फीस में हुई बढ़ोतरी को लेकर आन्दोलन कर रहे थे। आन्दोलन में फारूक भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। इसी दौरान फारूक ने आन्दोलन से संबंधित एक पोस्ट किया था, और इसमें जेएनयू प्रशासन के एक अधिकारी की आलोचना की थी। फारूक ने बताया कि इस पोस्ट पर आकर उस अधिकारी की पत्नी गालियां और भद्दे-भद्दे कमेंट करने लगीं।

फारूक ने बताया कि पोस्ट पर उसने अधिकारी की पत्नी को कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि, दूसरे छात्रों ने कमेंट सेक्शन में अधिकारी की पत्नी से बहस की थी। इस घटना के दो दिन बाद प्रदर्शन में स्पीकर के तौर पर फारूक ने इस पोस्ट पर हुई बहस के बारे में विस्तार से बात की। इसी को आधार बना कर उनके खिलाफ प्रॉक्टर ऑफिस में शिकायत की गई। उस वक्त प्रॉक्टर ऑफिस फारूक को एक नोटिस जारी किया। लेकिन इस बीच कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति उत्पन्न हो जाने से केस पेंडिंग स्थिति में चला गया।

लॉकडाउन खत्म होने के बाद दोबारा विश्विविद्यालय खुला। 2022 में फारूक के खिलाफ हुए केस को दोबारा खोला गया। प्रॉक्टर ऑफिस द्वारा उनको समन जारी किया गया। फारूक उसमें हाजिर हुए और सुनवाई चलती रही। मार्च 2023 में भी एक सुनवाई हुई। फारूक ने बताया कि उन्होंने सुनवाई में प्रॉक्टर ऑफिस का पूरा सहयोग किया।

10 मई 2023 को फारूक के पास प्रॉक्टर ऑफिस से एक आदेश आया, जिसमें सज़ा के तौर पर उनको एक साल के लिए यूनिवर्सिटी से निष्कासन और दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया। इस आदेश को फारूक ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। वहां पर जेएनयू प्रशासन के वकील ने बिना बहस किये कहा कि जेएनयू प्रशासन फारूक पर लगे आरोपों को वापस लेने के लिए तैयार है।

फारूक के मुताबिक, हाईकोर्ट ने जेएनयू के वकील से कहा कि फारूक को सफाई देने का मौका मिलना चाहिए। इसके बाद जेएनयू प्रॉक्टर ऑफिस ने फिर से फारूक को समन जारी किया जिसमें फारूक शामिल हुए और सफाई में अपना पक्ष रखा। फारूक ने बताया कि सुनवाई के बाद 25 अगस्त को फिर से उन्हें वही सजा (एक साल के लिए यूनिवर्सिटी से निष्कासन और दस हजार रुपये का जुर्माना) दी गई, जो पहले दी गई थी और वही आदेश जारी किया गया।

जेएनयू प्रॉक्टर ऑफिस के इस आदेश के खिलाफ फारूक फिर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गये। उनके केस की सुनवाई पांच सितंबर को होनी थी। लेकिन इस बीच 28 अगस्त को उनके पास हॉस्टल खाली करने का आदेश आ गया। फारूक के मुताबिक, वह दस साल से हॉस्टल के उसी कमरे में रहते आ रहे थे, जहां अभी रह रहे हैं, जिस वजह से उनके पास काफी किताब और दूसरा सामान जमा हो गया था।

फारूक चाहते थे कि उनको हाईकोर्ट के फैसले तक हॉस्टल में रहने की इजाज़त दी जाए। विकलांग होने की वजह से फारूक के लिए सभी सामान को यहां से लेकर जाना और अगर हाईकोर्ट उनके पक्ष में फैसला देती है तो उनको फिर वापस हॉस्टल लाना बहुत मुश्किल हो जाता। इसलिए फारूक ने प्रॉक्टर और हॉस्टल वार्डन से मिलकर इस संबंध में बात करने की कोशिश की, लेकिन उनलोगों ने बात करने से इनकार कर दिया।

jnu research scholar farooq infront of kaveri hostel

28 अगस्त के आदेश को ही आधार बना कर हॉस्टल प्रशासन फारूक से कमरा खाली करवाना चाहतेशा था। फारूक कहते हैं कि हॉस्टल प्रशासन दावा करता है कि उनको कई बार हास्टल खाली करने की नोटिस जारी की गयी है। लेकिन फारूक ने बताया कि हॉस्टल प्रशासन का दावा झूठा और बेबुनियाद है। वह प्रशासन को चुनौती देते हुए कहते हैं कि अगर प्रशासन के पास कोई सुबूत है, तो उसको सार्वजनिक करें।

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क्या कहते हैं फारूक के वकील?

दिल्ली हाईकोर्ट में फारूक के वकील विवेक मिश्रा ने बुधवार को फारूक के साथ हुई घटना की निंदा की है। उन्होंने बताया कि मामला अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन (sub judice) है, और 21 सितंबर को इस पर सुनवाई होनी है।

विवेक मिश्रा ने कहा, “हाईकोर्ट ने फारूक की तरफ से हॉस्टल निष्कासन पर अंतरिम राहत देने हेतु दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए 21 सितंबर की तिथि को चुना है। जब मामला सब जुडिस है, तो जेएनयू प्रशासन को 21 सितंबर तक इंतजार करना चाहिए था। जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन को फारूक के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। उन्होंने इंतजार नहीं किया तो हाईकोर्ट इसको अपने तरीके से देखेगा। बुधवार को फारूक के साथ जो कुछ भी हुआ हम उसको हाईकोर्ट के समक्ष रखेंगे।”

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और जेएनयू के पूर्व छात्र तौकीर आलम ने घटना की कड़ी निंदा की और इसे शर्मनाक बताया है। उन्होंने ट्वीट कर छात्र संगठन एबीवीपी पर निशाना साधा और कहा कि सभी यूनिवर्सिटी कैंपस को एबीवीपी के हवाले कर देना चाहिए।

छात्र संगठन ABVP ने दी सफाई

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने प्रेस रिलीज़ जारी कर अपने ऊपर लगे आरोपों पर सफाई पेश की है। एबीवीपी ने प्रेस रिलीज़ में कहा है कि यह “कम्यूनिस्ट गिरोह द्वारा यौन उत्पीड़नकर्ता को बचाने का प्रयास” है, और एबीवीपी कम्यूनिस्ट गिरोह के इस प्रयास की कड़ी निंदा करती है।

जेएनयू एबीवीपी के अध्यक्ष उमेश चंद्र अजमीरा ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि जब हॉस्टल प्रशासन फारूक से कमरा खाली करवा रहा था, उस वक्त एबीवीपी का कोई भी सदस्य वहां मौजूद नहीं था। उन्होंने कहा कि वहां पर एनएसयूआई संगठन के सदस्यों द्वारा ही गुंडागर्दी की गई है और कावेरी हॉस्टल के छात्रों को धमकाया गया है।

उमेश ने कहा, “एबीवीपी पर फारूक के साथ जो मारपीट का आरोप लगा है, वो सरासर गलत है। अगर मारा है तो मेडिकल रिपोर्ट भी होनी चाहिए, लेकिन फारूक ने कोई मेडिकल रिपोर्ट पेश नहीं की है। अगर मारपीट होती है तो तुरंत पुलिस कंप्लेन या एफआईआर दर्ज की जाती है। कोई एफआईआर दर्ज हुई है क्या? न मेडिकल रिपोर्ट है न एफआईआर है। उन्होंने किसी एबीवीपी एक्टिविस्ट का नाम भी नहीं बताया है कि किसने उनको मारा है। दो दिन हो गया है इस घटना को। उसके बाद भी कोई मेडिकल रिपोर्ट है, न कोई एफआईआर है। यह तो फिर ड्रामा ही है।”

उमेश ने बताया कि फारूक को जिस केस की बुनियाद पर हॉस्टल से निष्कासित किया जा रहा है, उसमें उन्होंने एक दलित छात्रा के खिलाफ नफरत भरी और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया था। उन्होंने बताया कि इससे पता चलता है कि फारूक आलम दलितों के खिलाफ है और वह सिर्फ विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश कर रहे हैं।

“फारूक बहुत अच्छे से पॉलिटिकल गेम जानता है। उसको हॉस्टल से निष्कासित न किया जाये इसलिए जानबूझ कर ड्रामा कर रहा है। वह दिव्यांग और मुस्लिम होने का फायदा उठाना चाहता है और विक्टिम कार्ड खेल रहा है। हॉस्टल एविक्शन के दौरान न तो एबीवीपी का कोई सदस्य वहां मौजूद था और न ही वहां पर कोई हिंसा हुई है। हॉस्टल एविक्शन के दौरान सबको तकलीफ होती है। वीडियो में आप देख सकते हैं वह खुद रोते-रोते आता है और बेहोश हो जाता है। हालांकि जो बेहोशी का वीडियो है उसमें भी ड्रामा ही है,” उन्होंने बताया।

पूरा प्रोसिजर फॉलो किया गया है: हॉस्टल वार्डन

जेएनयू के कावेरी हॉस्टल के मेस वार्डन डॉ. गोपाल राम ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि फारूक के हॉस्टल एविक्शन के दौरान पूरा प्रोसिजर फॉलो किया गया है। उन्होंने कहा कि उनके साथ मारपीट की कोई घटना पेश नहीं आई है और यूनिवर्सिटी के नियमानुसार ही उनसे हॉस्टल खाली करवाया गया है।

“जेएनयू प्रशासन द्वारा फारूक को हॉस्टल खाली करवाने संबंधी कुल 6 नोटिस जारी की गई हैं। जहां तक मामला के विचाराधीन होने का सवाल है तो फारूक ने हाईकोर्ट द्वारा जारी किसी भी कागजात को प्रशासन के सामने पेश नहीं किया है। हमने प्रॉक्टर ऑफिस में भी इस संबंध में पता लगाया, इस तरह का कोई डॉक्यूमेंट था ही नहीं। जब मैटर सब जुडिस था तो उस वक्त हमने इसका ध्यान रखा था और उससे हॉस्टल खाली नहीं करवाया था,” उन्होंने कहा।

डॉ. गोपाल राम जेएनयू के सेंटर ऑफ लिंगुइस्टिक में प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा कि वह खुद शारीरिक रूप से विकलांग हैं, और इस घटना के संबंध में मीडिया में जो बातें उनके खिलाफ लिखी जा रही है, वो सरासर गलत है। डॉ. गोपाल ने बताया कि प्रॉक्टर ऑफिस द्वारा जारी नोटिस के आधार पर फारूक के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की गई है।

उन्होंने कहा “प्रॉक्टर ऑफिस की तरफ से 25 अगस्त को हॉस्टल एविक्शन संबंधी लेटर जारी हुआ था। जिसके बाद 28 अगस्त को हॉस्टल वार्डन की तरफ से फारूक को नोटिस दिया गया था, जिसको फारूक आलम ने एक्सेप्ट भी किया है। उसके बाद 1 सितंबर को हमने नोटिस दिया था, जिसको फारूक ने लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन हॉस्टल के केयरटेकर द्वारा कमरे के दरवाजे के नीचे से नोटिस उनके कमरे में पहुंचा दी गयी थी। तीसरी नोटिस 4 सितंबर को और चौथी नोटिस 5 सितंबर को ई-मेल के जरिये दी गयी है। और उसके बाद हॉस्टल एविक्शन की पूरी प्रक्रिया को मेंशन करते हुए छठी नोटिस भेजी गयी।”

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नवाजिश आलम को बिहार की राजनीति, शिक्षा जगत और इतिहास से संबधित खबरों में गहरी रूचि है। वह बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास कम्यूनिकेशन तथा रिसर्च सेंटर से मास्टर्स इन कंवर्ज़ेन्ट जर्नलिज़्म और जामिया मिल्लिया से ही बैचलर इन मास मीडिया की पढ़ाई की है।

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