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बिहार सबसे गरीब राज्य, अररिया सबसे गरीब जिला – नीति आयोग की रिपोर्ट

नीति आयोग की एक ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार देश का सबसे ज्यादा गरीब राज्य है और राज्य के 33.76 प्रतिशत लोग अब भी गरीबी में जीवन बसर कर रहे हैं।

Nawazish Purnea Reported By Nawazish Alam |
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नीति आयोग की एक ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार देश का सबसे ज्यादा गरीब राज्य है और राज्य के 33.76 प्रतिशत लोग अब भी गरीबी में जीवन बसर कर रहे हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, राज्य में 2015-16 से 2019-21 के बीच 18.3 प्रतिशत लोग गरीबी से बाहर निकले। एनएचएफएस 2015-16 के अनुसार, बिहार में 51.89 प्रतिशत लोग गरीब थे।

रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के सभी जिलों में सबसे ज्यादा गरीब जिला अररिया है। अररिया के बाद पूर्णिया राज्य का सबसे अधिक गरीब जिला है।


नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी, सीईओ बी.वी.आर. सुब्रमण्यम तथा आयोग के सदस्यों डॉ. वी.के.पॉल और डॉ. अरविंद विरमानी की उपस्थिति में सोमवार को यह रिपोर्ट जारी की गई।

नीति आयोग के “राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांकः एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023” के मुताबिक, वर्ष 2015-16 से 2019-21 के दौरान पूरे देश में रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। आयोग द्वारा जारी गरीबी सूचकांक में पूर्णिया और कोसी प्रमंडल के सभी सातों जिले पहले से सातवें पायदान पर काबिज़ हैं। अररिया और पूर्णिया के बाद क्रमशः सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, किशनगंज और कटिहार का नंबर आता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार अररिया में बहुआयामी गरीबी आबादी का प्रतिशत 52.07 और पूर्णिया में 50.70 है। ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(NFHS_2019-21) के हैं। एनएचएफएस 2015-16 के अनुसार, अररिया में गरीबी सूचकांक का प्रतिशत 64.65 और पूर्णिया का प्रतिशत 63.31 था।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS_2019-21) के मुताबिक, किशनगंज में 45.55 प्रतिशत और कटिहार में 44.21 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अन्तर्गत आती है। एनएचएफएस 2015-16 के अनुसार, किशनगंज और कटिहार के गरीबी सूचकांक का प्रतिशत क्रमशः 64.75 और 62.38 था।

राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के तीन समान रूप से भारित आयामों में एक साथ अभावों को मापता है, जो 12 एसडीजी-संरेखित संकेतकों द्वारा दर्शाया गया है। इनमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई गैस, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, परिसंपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं।

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रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बहुआयामी गरीबों की संख्या वर्ष 2015-16 में 24.85% थी, जो वर्ष 2019-2021 में गिरकर 14.96% पर आ गई। यानी कि बहुआयामी गरीबों की संख्या में 9.89% की उल्लेखनीय गिरावट आई। इस अवधि के दौरान शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से गिरकर 5.27 प्रतिशत पर आ गई।

इसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी तेज़ गति से 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई। उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां से 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। यह पूरे देश के गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट है। देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के 707 प्रशासनिक जिलों के लिए बहुआयामी गरीबी संबंधी अनुमान प्रदान करने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि बहुआयामी गरीबों के अनुपात में सबसे तेज़ कमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में हुई है।

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नवाजिश आलम को बिहार की राजनीति, शिक्षा जगत और इतिहास से संबधित खबरों में गहरी रूचि है। वह बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास कम्यूनिकेशन तथा रिसर्च सेंटर से मास्टर्स इन कंवर्ज़ेन्ट जर्नलिज़्म और जामिया मिल्लिया से ही बैचलर इन मास मीडिया की पढ़ाई की है।

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