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एडीएम कोर्ट पूर्णिया में फाइलिंग के एक साल बाद भी केस नम्बर के लिए भटक रहा आवेदक

वर्तमान मामले में फरियादी की ओर से जमाबन्दी रद्दीकरण का आवेदन एडीएम कोर्ट पूर्णिया में फाइल करने के एक साल दो माह बीत जाने के बाद भी फरियादी को केस नम्बर न मिल पाना बिहार दाखिल-खारिज अधिनियम और उसके अनुपालन के लिए जारी नियमावली को ठेंगा दिखाने जैसा है।

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अपनी खरीदगी जमीन पर किसी दूसरे का अवैध तरीके से दखल-कब्जा होते देखना दुख भरा हो सकता है। किसी की जमीन पर अवैध दखल-कब्ज़ा करने वाले बाहुबल, कानूनी पेचीदगियों, कानूनी प्रक्रिया के अनुपालन में ढिलाई का बेजा फायदा उठाते हैं। इसके लिए बिहार में सरकार द्वारा भूमि सुधार के कुछ प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन निचले स्तर पर उनके क्रियान्वयन में दिक्कतें आती हैं।

इन मामलों का ससमय निपटारा न होने के कारण फरियादियों को नुकसान उठाना पड़ता है। एडीएम कोर्ट जैसी अर्द्धन्यायिक मान्यता वाले संस्थानों से न्याय की उम्मीद होती है, लेकिन फाइलिंग के बाद फरियादी को मात्र केस नम्बर के लिए चौदह महीने का इंतजार उसके और उसके परिवार के दिल और दिमाग पर प्रताड़ना जैसा असर पैदा करता है।

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पूर्णिया जिले के महेश कुमार उन फरियादियों की कतार में हैं जिन्होंने साल 2022 के नवम्बर माह में अपर समाहर्ता कोर्ट (एडीएम कोर्ट) पूर्णिया में जमाबंदी रद्दीकरण का केस दायर किया और उसके लगभग एक साल दो माह बीतने के बाद भी उन्हें केस नम्बर नहीं दिया जा रहा।


मामला पूर्णिया जिले के के. नगर थाना क्षेत्र के पोठिया मौज़ा की 8 डिसमल जमीन का है। यह जमीन फरियादी महेश कुमार ने खतियानी रैयत से निबंधित केबाला के जरिये साल 2019 में खरीदी। जमीन खरीदने के बाद महेश कुमार ने के. नगर अंचल कार्यालय में खारिज-दाखिल का आवेदन दिया, जिसे अंचलाधिकारी द्वारा स्वीकृत किया गया। फरियादी महेश कुमार के नाम से जमाबन्दी सृजित कर दी गई। के. नगर के अंचलाधिकारी ने महेश कुमार के नाम से नामांतरण शुद्धि-पत्र जारी कर दिया। तब से फरियादी बिहार सरकार को साल-दर-साल लगान देकर लगान की रसीद प्राप्त करते रहे। कालांतर में फरियादी को जानकारी मिली कि अंचल कार्यालय के द्वारा उनके जमीन की जमाबन्दी एक अन्य व्यक्ति के नाम पर भी सृजित कर दी गई है। महेश कुमार का कहना है, “कानून द्वारा स्थापित संस्थाओं, प्रक्रियाओं में उनकी गहरी आस्था होने की वजह से उन्होंने न्यायोचित रास्ता अपनाया लेकिन एक साल से ऊपर बीत जाने के बाद भी एडीएम कोर्ट पूर्णिया के द्वारा फाइलिंग के बावज़ूद केस संख्या नहीं दिए जाने से उनके व उनके परिवार की जान व सम्पत्ति को नुकसान का खतरा बढ़ गया है।‘’

एक जमीन की दो जमाबंदी सृजन में के.नगर अंचल कार्यालय की भूमिका संदिग्ध

अंचल कार्यालय के. नगर ने फरियादी के खारिज-दाखिल आवेदन पर कार्रवाई करते हुए खेसरा संख्या 1814 में उनकी खरीदगी आठ डिसमल जमीन का नामांतरण साल 2019 में कर दिया जिसके बाद साल 2021 के दिसम्बर, साल 2022 के अप्रैल और साल 2023 के सितम्बर माह में बिहार सरकार को लगान देकर उन्होंने लगान की रसीद प्राप्त की। उनके नाम से सृजित जमाबंदी पंजी की वेब प्रति में पृष्ठ संख्या 28 दर्ज़ है जबकि जमाबन्दी संख्या के सामने के स्थान को खाली रखा गया है। दूसरी ओर खेसरा संख्या 1814 में 06 डिसमल जमीन किसी अन्य व्यक्ति के नाम से दर्ज़ कर उनके नाम से भी पृष्ठ संख्या 68 पर जमाबन्दी का सृजन कर दिया गया है। लेकिन, अन्य व्यक्ति के नाम से सृजित जमाबन्दी पंजी की वेब प्रति पर जमाबन्दी संख्या के सामने के स्थान को खाली रखा गया है। विगत सर्वे के खतियान में दर्ज़ जानकारी के अनुसार खेसरा संख्या 1814 का रकबा मात्र 12 डिसमल दर्ज़ है। दोनों जमाबन्दीदार को कम्प्यूटरीकृत जमाबन्दी संख्या मुहैया कराई गई है।

नामांतरण और जमाबन्दी सृजन की प्रक्रिया मूल रूप से अंचल स्तरीय प्रक्रिया है जिसमें अंचलाधिकारी, राजस्व अधिकारी, अंचल निरीक्षक, राजस्व कर्मचारी की प्रत्यक्ष और नाज़िर, क्लर्क आदि की अप्रत्यक्ष भूमिका है। इस मामले में किसी मशीन की तरह काम करते हुए अंचलाधिकारी, राजस्व अधिकारी, अंचल निरीक्षक, राजस्व कर्मचारी ने नामांतरण आवेदन के साथ सूचीबद्ध दस्तावेज़ों की जाँच नहीं की और न ही स्थल निरीक्षण किया।

परिणामस्वरूप अंचल कार्यालय के. नगर के नामांतरण और जमाबन्दी सृजन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों ने एक जमीन की दो जमाबन्दी सृजित कर दी। मामले की अधिक जानकारी के लिए के. नगर अंचल के अंचलाधिकारी से सम्पर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन फोन स्विच ऑफ रहने के कारण उनसे सम्पर्क नहीं हो सका।

क्या कहते हैं जमाबन्दी से जुड़े कानूनी प्रावधान

अंचल कार्यालय द्वारा सृजित सही या गलत जमाबन्दी को रद्द या उसमें सुधार करने का अधिकार अंचल कार्यालय के क्षेत्राधिकार से निकल जमीन की अवस्थिति वाले जिले के अपर समाहर्ता यानी एडीएम के पास चला जाता है। जमाबंदी को रद्द करने का मतलब है अविधिक रूप से सृजित यानी किसी वर्तमान कानून के उल्लंघन या इस आशय के किसी कार्यपालक निर्देश को दरकिनार कर सृजित जमाबंदी को निरस्त करना। किसी जिले के एडीएम द्वारा जमाबंदी रद्दीकरण की कार्रवाई स्वत: संज्ञान अथवा जमीन में हित रखने वाले व्यक्तियों के आवेदन पर शुरू की जा सकती है।

जमाबन्दी सुधार या रद्दीकरण की कार्रवाई के मामले में एडीएम कोर्ट में केस एडमिट होने के बाद विपक्षियों को नोटिस जारी कर आगे की कार्रवाई की जाती है। ऐसे मामलों में सभी पक्षों को सुनने, उपलब्ध दस्तावेजों को देखने के बाद मेरिट के आधार पर फैसला सुनाए जाने का प्रावधान है। लेकिन पीड़ित का केस नम्बर ही नहीं मिल पाने के कारण एडीएम कोर्ट में केस एडमिट नहीं हुआ और केस एडमिट न होने के कारण मामले में किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो पा रही है। इस तरह से फाइलिंग के करीब चौदह माह बीत जाने के बाद भी फरियादी महेश कुमार मात्र केस नम्बर पाने के लिए एडीएम कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं।

इस संबंध में पूर्णिया जिले के वर्तमान प्रभारी एडीएम से से संपर्क किया गया, तो उन्होंने मामले से अनभिज्ञता जताई लेकिन मामले को गम्भीरता से देखने का आश्वासन दिया।

वर्तमान मामले में फरियादी की ओर से जमाबन्दी रद्दीकरण का आवेदन एडीएम कोर्ट पूर्णिया में फाइल करने के एक साल दो माह बीत जाने के बाद भी फरियादी को केस नम्बर न मिल पाना बिहार दाखिल-खारिज अधिनियम और उसके अनुपालन के लिए जारी नियमावली को ठेंगा दिखाने जैसा है।

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