बिहार विधानसभा में राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड संशोधन विधेयक-2024 ध्वनिमत से पास हो गया। शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मदरसा शिक्षा बोर्ड विधेयक-2024 विधानसभा में पेश किया। बिल को पेश करते हुए कहा कि इससे बिहार मदरसा बोर्ड का स्टेटस बढ़ेगा और मदरसों में शिक्षा का स्तर बेहतर होगा।
चौधरी ने इस अवसर पर कहा कि बिहार के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि नीतीश कुमार सरकार ने उनके विकास के लिये बहुत काम किया है और यह काम आगे भी जारी रहेगा। विपक्षी विधायकों की आपत्तियों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह संशोधन विधेयक संविधान की किसी भी धारा के खिलाफ नहीं है।
“इस संशोधन में कहीं कोई जिक्र नहीं है इदारे में इंटरफियर करने का। और ये (विपक्षी विधायक) संविधान का हवाला दिये जा रहे हैं। मैं इतना साफ कर देना चाहता हूं कि हमारी सरकार जो नीतीश कुमार के नेतृत्व में हुकूमत में है वो किसी भी सियासी दल से अधिक कानून के मुताबिक काम करने पर आमादा है। यह हम आपको बता देना चाहते हैं,” उन्होंने कहा।
शिक्षा मंत्री ने आगे कहा, “हम सूबे के अल्पसंख्यकों को इत्मीनान दिलाना चाहते हैं कि आप बेफिक्र रहें। यह नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की हुकूमत है। हम आपकी हिफाजत के अलावा आपकी फलाह-ओ-बहबूद (विकास और कल्याण) के लिये सारे इंतजमात मुस्तहकम रखेंगे। सूबे के अल्पसंख्यक जमात के लोग जानते हैं कि उनके फलाह-ओ-बहबूद के लिये हम ही ने किया है, हम ही करेंगे, यह हम बता देना चाहते हैं।”
मदरसों के सिलेबस में कोई तब्दीली नहीं होगी
विपक्षी विधायकों को संबोधित करते हुए शिक्षा मंत्री ने कहा कि वह आश्वस्त कर देना चाहते हैं कि इस संशोधन बिल से बिहार के मदरसों में चल रहे सिलेबस में कोई तब्दीली नहीं आयेगी। उन्होंने कहा कि सरकार का उद्देश्य है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे दीनी तालीम के साथ-साथ व्यवसायिक शिक्षा (प्रोफेशनल एजुकेशन) भी प्राप्त करें, ताकि वो किसी भी फील्ड में पीछे ना रहें।
“मदरसों में जो सिलेबस और करिकूलम है, उसमें कहीं तब्दीली की बात है? क्यों ये (विपक्षी विधायक) खामखाह मुश्तबाह माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। क्यों ये संदेह का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जिस प्रणाली और जिस पद्धति से पढ़ाई चल रही है उसमें कहीं भी किसी किस्म के परिवर्तन की कोई बात नहीं है,” उन्होंने कहा।
विजय चौधरी ने आगे कहा, ”अगर छात्र जो मदरसों में पढ़ते हैं वो दीनी तालीम के अलावा विज्ञान पढ़ लें, मानिविकी यानी ह्यूमिनिटीज पढ़ लें, कोई व्यावसायिक पाठ्यक्रम है जो कमर्शियल सिलेबस हैं… अगर बच्चे दीनी तालीम के अलावा यह पढ़ लें तो उनको ये अलग से मददगार साबित होगा, इसमें क्या एतराज है? इसका मतलब है कि ये अपने अक्लियत समाज के बच्चों को आगे आने वाले समय में जो सही तालीम है उससे महरूम रखना चाहते हैं।”
Also Read Story
सचिव स्तर के अधिकारी होंगे बोर्ड के प्रशासक
शिक्षा मंत्री ने कहा कि अब मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष पद पर अधिक योग्य लोग बहाल होंगे। साथ ही एक प्रशासक की भी नियुक्ति होगी, जो सचिव स्तर के अधिकारी होंगे। शिक्षा मंत्री ने आगे कहा कि अगर तीन महीने तक मदरसा बोर्ड विघटित रहता है तो सरकार खुद बोर्ड का गठन कर देगी।
“मदरसा बोर्ड में अध्यक्ष का क्वालीफिकेशन फिक्स कर अधिक से अधिक योग्य व्यक्ति अध्यक्ष पद पर आयेंगे, इसमें क्या एतराज है? प्रशासक की नियुक्ति कोई आज नहीं हो रही है। बीच में कभी मदरसा बोर्ड का विघटन होता था तो शिक्षा विभाग का कोई स्पेशल डायरेक्टर रैंक का अधिकारी उसका प्रशासक का काम करता था। अब सरकार ने विधिवत प्रशासक पद का सृजन कर यह प्रावधान किया है कि उसपर सचिव स्तर से कम के कोई अधिकारी नहीं जा सकते हैं,” शिक्षा मंत्री ने कहा।
विजय कुमार चौधरी ने आगे कहा, “अब बोलिये ये मदरसा शिक्षा का स्तर हम लोग ऊंचा उठा रहे हैं या नीचे ला रहे हैं। हम आर्टिकिल 31 जिसकी चर्चा सब लोग करते हैं उसको मानते हुए हम कोई छेड़छाड़ नहीं कर रहे हैं। आप से ज्यादा आईन के हिमायत करने वाले हमलोग हैं। बोर्ड में विशेषज्ञों की समिति बनायेंगे। अगर तीन महीने तक मदरसा बोर्ड विघटित रहता है तो सरकार खुद बोर्ड का गठन कर देगी।”
एजुकेशनल स्ट्रक्चर को बर्बाद करना चाहती है सरकार: ईमान
बताते चलें कि बिल के पास होने से पहले हुई चर्चा में ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन के विधायक अख्तरूल ईमान, कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान और सीपीआई (एमएल) के विधायक महबूब आलम ने संशोधन विधयेक के कई बिन्दुओं को लेकर आपत्ति जताई।
अख्तरूल ईमान ने सदन में कहा कि सरकार इस संशोधन बिल को लाने में जल्दी कर रही है। उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 30 (1) के तहत अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक इदारे कायम करने की इजाजत है, और कोई भी सरकार इस अधिकार के साथ छेड़ छाड़ नहीं कर सकती है।
बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड संशोधन विधेयक की धारा 29 पर बोलते हुए ईमान ने कहा कि बोर्ड को विघटित करने के बाद उसमें प्रशासक बहाल करना आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण की जिम्मेदारी हुकूमत की होती है।
“सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्य वाले संवैधानिक बेंच ने परमावती कल्चरल एजुकेशनल ट्रस्ट वर्सेज़ यूनियन ऑफ इंडिया केस में एक फैसला दिया है। फैसले में कहा गया है कि राइट टू एजुकेशन एक्ट-2009 के तहत नई शिक्षा पॉलिसी को हमारे (अल्पसंख्यक) इदारे में लागू नहीं कर सकते हैं। हम मदरसों को अपग्रेड करने के मुखालिफ नहीं हैं, मदरसों के एजुकेशन सिस्टम को अपग्रेड कीजिये,” उन्होंने कहा।
अमौर से विधायक ईमान ने आगे कहा, “अब तक सरकारों ने कभी भी मदरसों में साइंस एजुकेशन के लिये ना तो टीचर बहाल किये, ना ही टीचरों के लिये जगह बनाई। हम आपकी नीयत पर शक नहीं करना चाहते हैं। लेकिन पिछले दिनों में हमारी समस्याओं का समाधान सरकार ने नहीं किया है। हमारे एजुकेशनल स्ट्रक्चर को आप बर्बाद करना चाहते हैं। आर्टिकल 30 (1) के तहत कंपल्शन नहीं है कि नई एजुकेशन पॉलिसी आप हम पर लागू करें।”
उन्होंने कहा कि विभाग जो पांच सदस्य समिति बनायेगा, उसमें सिर्फ एक उर्दू जानने वाला होगा जिससे बोर्ड की अहमियत कम होगी। उन्होंने कहा कि अगर सरकार मदरसा बोर्ड अधिनियम की धारा 19 में कोई तब्दीली लाती है, तो वो संविधान के खिलाफ होगी।
ईमान ने इस बिल को विधानसभा के प्रवर समिति में भेजने की मांग की और कहा कि सरकार को इस बिल को पास करने में जल्दी नहीं करना चाहिये और बिल को समझने का मौका दिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि बिल पास कराने से पहले अल्पसंख्यक विधायकों, संस्थानों और अन्य विशेषज्ञों से इस पर राय ली जानी चाहिये।
मदरसा बोर्ड के बजट को बढ़ायें: शकील अहमद
सदन में संशोधन विधेयक के बिन्दुओं पर अपनी आपत्ति जताते हुए कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान ने कहा कि उनको सरकार की नीयत पर बिल्कुल भी शक नहीं है, लेकिन वह जानना चाहते हैं कि विभाग मदरसा बोर्ड के बजट को बढ़ाएगा या नहीं।
“क्या आप मदरसा बोर्ड के बजट को बढ़ायेंगे? क्या आप मदरसा बोर्ड को यह अख्तियार देंगे कि उसमें बेहतर से बेहतर लोग आ सकें? नये सब्जेक्ट के साथ नए टीचर बढ़ायेंगे? अगर ये सब प्रावधान हैं तो हम आपका स्वागत करेंगे। अगर ये प्रावधान इसमें नहीं है तो इसका वेलकम कैसे करेंगे?,” उन्होंने कहा।
अख्तरूल ईमान की बात को दोहराते हुए शकील अहमद खान ने कहा कि सरकार को पहले इस बिल पर बहस करानी चाहिए थी, तब ही इसको लेकर सदन में आना चाहिए था।
वहीं, सीपीआई (एमएल) विधायक महबूब आलम ने संविधान की धारा 30 (1) को सदन में पढ़ा। उन्होंने भी संशोधन बिल को विधानसभा की प्रवर समिति में भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकारों को दबा रही है, जो कि असंवैधानिक है।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।