देश में इन दिनों पकड़ौआ विवाह फिर चर्चा में है। वजह है बिहार के वैशाली जिले का वह मामला जिसमें एक सरकारी शिक्षक पकड़ौआ विवाह का शिकार हुआ। पीड़ित गौतम कुमार ने कुछ दिनों पहले ही बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा कराई गई बिहार शिक्षक परीक्षा में सफलता हासिल कर सरकारी नौकरी हासिल की थी।
बिहार में पकड़ौआ विवाह का चलन कोई आज की बात नहीं है, बल्कि इसका इतिहास कई वर्षों पुराना है।
बता दें कि राज्य में इस विवाह के बाद कई ऐसे जोड़े हैं जो सफल वैवाहिक जीवन गुजार रहे हैं, वहीं, दूसरी तरफ़ कई पकड़ौआ विवाह टूट भी चुके हैं।
पकड़ौआ विवाह ऐसे विवाह को कहते हैं, जिसमें लड़के और लड़की की सहमति के बिना दोनों की शादी करा दी जाती है। ऐसे विवाह में लड़कों को बंधक बना कर दूल्हा बना दिया जाता है और रीति-रिवाज के साथ लड़की से विवाह करवा दिया जाता है।
पकड़ौआ विवाह के विरोध में पटना उच्च न्यायालय ने एक निर्णय सुनाया था, लेकिन धरातल पर अब तक इस कुप्रथा का अंत नहीं हो सका है ।
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1970 और 80 के दौर में बिहार में इस तरह की जबरन शादियां काफ़ी होती थीं। बेगूसराय, लखीसराय, मुंगेर, जहानाबाद, और नवादा जैसे शहरों में पकड़ौआ विवाह सबसे अधिक प्रचलन में रहा है ।
आंकड़ों के अनुसार, पुलिस ने पिछले एक साल में पकड़ौआ विवाह से जुड़े दो से तीन हज़ार मामले दर्ज किए हैं । इनमें से कुछ प्रेम प्रसंग के भी मामले देखने को मिले ।
माना जाता है कि घर वालों के लिए दहेज नहीं दे पाना पकड़ौआ विवाह का मुख्य कारण होता है। दहेज देने में असक्षम लोग नौकरीपेशा लड़कों से अपनी बेटियों की शादी नहीं करा पाते थे। ऐसे में पकड़ौआ विवाह जैसे चलन की शुरूआत हो गई । समाज के बुज़ुर्गों की मानें, तो कुछ वर्षों पहले पकड़ौआ विवाह सामाजिक पहल से किए जाते थे। धीरे धीरे बाहुबली और अपराधी गिरोह के लोग इस तरह की जबरन शादियां कराने लगे। बताया जाता है कि 1990 आते आते पकड़ौआ विवाह का प्रचलन पूरी तरह अपराधियों के चंगुल में आ गया।
अन्नू कुमारी बिहार के गोपालगंज जिले की रहने वाली हैं और वह बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की शोधार्थी हैं। उन्होंने कहा कि पकड़ौआ विवाह का सबसे बड़ी वजह दहेज की मांग है और अधिकतर लडकियां, जो अशिक्षित रहती हैं, उनका विवाह इस प्रचलन से कराया जाता है।
अन्नू कुमारी मानती हैं कि अब इस जबरन शादियों के मामले बहुत कम सामने आते हैं, क्योंकि आज कई लड़कियां शिक्षा हासिल कर रही हैं और अपने जीवन के फैसले खुद ले रही हैं।
आईटीआई बिहटा कॉलेज की मनोविज्ञान की प्रोफेसर कुमारी शालिनी ने कहा कि पकड़ौआ विवाह सामंती विचारधारा की उपज रहा है। बिहार में इसका असर देखा जाता है। वह मानती हैं कि इस तरह की कुप्रथा समाज की बुराई की तरफ इशारा करती है। कई लोग लड़की को बोझ समझते हैं और किसी तरह अपनी बेटियों का विवाह कर उस बोझ को उतारना चाहते हैं।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पकड़ौआ विवाह के मामले जब सामने आते हैं तो इस अपराध पर कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि अब ऐसे मामले शादियों के मौसम में आते हैं हालांकि पहले के मुकाबले ये मामले कम हुए हैं।
(आईएएनएस इनपुट के साथ)
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