“एसपी लोकायुक्त विजिलेंस ने मौजूद दस्तावेजों के अध्ययन में प्रथम दृष्ट्या पाया कि पूर्णिया विश्वविद्यालय के वीसी ने वित्तीय शक्तियों का दुरुपयोग किया है। कई खर्चों का हिसाब नहीं है और इसको लेकर कोई दस्तावेज भी मुहैया नहीं करवाया गया।”
ये तीखी टिप्पणी 12 जनवरी 2021 को दी गई लोकायुक्त की रिपोर्ट में पूर्णिया विश्वविद्यालय में वित्तीय लेनदेन को लेकर की गई है, जो बताती है कि विश्वविद्यालय में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ है।
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लोकायुक्त की ये रिपोर्ट (रिपोर्ट की प्रति मैं मीडिया के पास है) गवर्नर के प्रधान सचिव, उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक और पूर्णिया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को भेजी गई थी।
लोकायुक्त ने ये जांच विमल कुमार राय नाम के एक व्यक्ति की शिकायत के बाद की थी। 21 पन्ने की रिपोर्ट पूर्णिया यूनिवर्सिटी के कुलपति रहे डॉ राजेश सिंह के कार्यकाल में हुई कई तरह की वित्तीय गड़बड़ियां उजागर करती हैं।
लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2018 में विश्वविद्यालय से अंगीभूत 12 कॉलेजों से 10-10 लाख रुपए विश्वविद्यालय के बैंक अकाउंट में डलवाया गया, लेकिन इस रुपए को लेकर कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया गया और जांच में मालूम हुआ कि रुपए अकाउंट में पड़े हुए हैं और इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। दस्तावेज से पता चलता है कि ये रुपए बतौर लोन दैनिक खर्च के लिए लिये गये थे। रुपए लेने के लिए जो नियम तय किये गये हैं, उनकी खुलेआम अनदेखी की गई है।
नियमानुसार रुपए लेने के लिए सिंडिकेट की बैठक कर अनुमोदन लिया जाता है। लेकिन, इस मामले में रुपए ट्रांसफर होने के बाद खानापूर्ति करने के लिए सिंडिकेट की बैठक हुई।
दस्तावेज बताते हैं कि सिंडिकेट की बैठक 17 सितंबर 2018 को हुई, जिसमें सभी कॉलेजों से 10-10 लाख रुपए लेने का फैसला लिया गया, लेकिन सभी 12 कॉलेजों से 15 जून 2018 से 30 जुलाई 2018 के बीच ही रुपए यूनिवर्सिटी के अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिये गये थे।

लोकायुक्त की रिपोर्ट कहती है,
“कुलसचिव, पूर्णिया विश्वविद्यालय को 12 महाविद्यालयों से प्राप्त एक करोड़ 20 लाख रुपए के व्यय के संबंध में मूल अभिलेख/संचिकाओं के लिए लगातार अनुरोध किया गया, लेकिन व्यय से संबंधित कोई भी मूल दस्तावेज की छायाप्रति समीक्षा हेतु अवलोकनार्थ उपस्थापित नहीं किया गया।”
इसी तरह विश्वविद्यालय ने शिक्षा विभाग से भी दो करोड़ रुपए निर्गत करवा लिये, लेकिन ये रुपए वापस नहीं किये गये। चूंकि खर्च को लेकर कोई दस्तावेज विश्वविद्यालय द्वारा मुहैया नहीं करवाया गया, तो लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उन्हें नहीं पता कि खर्च किस मद में और कैसे किया गया।
लोकायुक्त की रिपोर्ट में लैपटॉप बैग की खरीद में भी अनियमितता सामने आई है। कहा गया है कि कितने बैग खरीदे गये और कितने वितरित हुए, इसका दस्तावेजों में कोई जिक्र नहीं है। इसके अलावा मुख्यमंत्री परिभ्रमण मद, मेडल मद, सफाई/मिट्टी भराई मद और यात्रा भत्ता के लिए रुपये की निकासी की गई, लेकिन कैश बुक में इसकी कोई जानकारी नहीं है।
लोकायुक्त की रिपोर्ट में जिन वित्तीय अनियमितताओं का जिक्र है, कहानी उतनी भर नहीं है। साल 2018 में 18 मार्च को अस्तित्व में आई इस यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार की कहानी और आगे जाती है।
7 से 10 रुपए की उत्तर पुस्तिका 20 रुपए में खरीदी!
पूर्णिया विश्वविद्यालय प्रबंधन ने साल 2018 में लखनऊ और ग्रेटर नोएडा स्थित प्रिंटिंग प्रेस से 20.27 रुपए की दर से 11 लाख उत्तर पुस्तिका (एक पुस्तिका में 44 पेज) खरीदी, जबकि बाजार में इतने पेज की एक उत्तर पुस्तिका की कीमत मुश्किल से 10 रुपए आती है। जब हमने इंडियामार्ट वेबसाइट पर उत्तर पुस्तिका के बारे में सर्च किया, तो वहां 16 पेज की उत्तर पुस्तिका 3.50 रुपए में उपलब्ध थी।

24 अक्टूबर 2018 को लखनऊ की प्रिंटिंग प्रेस को पूर्णिया यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक द्वारा लिखे गये पत्र में 4 लाख उत्तर पुस्तिका उपलब्ध कराने को कहा गया जिसकी कीमत 81.08 लाख रुपए तय की गई। इस प्रिंटिंग प्रेस से पैड, विजिटिंग कार्ड व 8 पृष्ठों की 2 लाख कॉपियां भी खरीदी गईं, जिनका बिल कुल 103.10 लाख रुपए का बना।
वहीं, इसी तारीख में ग्रेटर नोएडा के प्रिंटिंग प्रेस को लिखे पत्र में 7 लाख उत्तर पुस्तिका की सप्लाई करने का आदेश दिया गया, जिसकी कीमत 141.89 लाख रुपए तय की गई। इस प्रिंटिंग प्रेस से अन्य स्टेशनरी की भी खरीद की गई और कुल 207.47 लाख रुपए का बिल बना।

दिलचस्प ये है कि इस तरह की खरीदारी का ऑर्डर कुलसचिव को देना चाहिए, लेकिन इस मामले में परीक्षा नियंत्रक ने आदेश दिया। इतना ही नहीं, इस खरीदारी में सरकार के नियमों की भी धज्जियां उड़ाई गई हैं।
बिहार के वित्त विभाग की 18 मई 2017 की अधिसूचना में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि 30 लाख रुपये से अधिक की सामग्री की खरीद के लिए अनिवार्य रूप से निविदा द्वारा जेम पोर्टल पर उपलब्ध ऑनलाइन बिडिंग और ऑनलाइन रिवर्स ऑक्शन का उपयोग करते हुए न्यूनतम कीमत रखने वाले आपूर्तिकर्ता से खरीदी जाएगी।

राजभवन के संयुक्त सचिव ने इस आदेश को संलग्न कर सभी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को पत्र लिखा था और सामग्रियों की खरीद-फरोख्त में आदेश का पालन करने को कहा था। लेकिन, विश्वविद्यालय ने इस आदेश का उल्लंघन करते हुए जेम पोर्टल की जगह खुले बाजार से खरीदारी की।
जेम पोर्टल गवर्नमेंट ई-मार्केट पोर्टल है। इसे केंद्र सरकार ने साल 2016 में अगस्त में शुरू किया था। इसका उद्देश्य सरकारी कंपनियों, मंत्रालयों, विभिन्न विभागों व स्वायत्त संस्थाओं की खरीद प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है।
यूनिवर्सिटी की खरीद प्रक्रिया पर तो सवाल है ही, इतनी भारी संख्या में उत्तर पुस्तिका की खरीद से प्रबंधन की मंशा भी संदेह के घेरे में है।
विश्वविद्यालय प्रबंधन ने कुल 11 लाख उत्तर पुस्तिकाओं की एक साथ खरीद कर ली है, जिसके खत्म होने में 8 से 10 साल लग जाएंगे, ऐसे में सवाल है कि इतनी भारी मात्रा में खरीदने की वजह क्या थी?

आरोप ये भी है कि यूनिवर्सिटी ने लाखों रुपए खर्च कर ई-बुक भी खरीदे, लेकिन विश्वविद्यालय के पास ई-लाइब्रेरी है ही नहीं।
बिना मान्यता के ही शुरू हो गये कई कोर्स
वित्तीय अनियमितता के अलावा कोर्स के मामले में भी विश्वविद्यालय सवालों के घेरे में है। आरोप है कि विश्वविद्यालय ने ऐसे कई कोर्स शुरू किये, जिसकी मान्यता नहीं है। इन कोर्सों के लिए छात्रों का नामांकन भी हो गया और अब वे छात्र दर-दर भटकने को विवश हैं।
विश्वविद्यालय बनाओ संघर्ष समिति पूर्णिया के संस्थापक आलोक राज कहते हैं कि पूर्णिया यूनिवर्सिटी अभी 22 स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित कर रही है, जिन्हें मान्यता नहीं मिली है। स्नातकोत्तर के अलावा एमबीए और एलएलएम की भी पढ़ाई कराई जा रही है। यही नहीं, विश्वविद्यालय के पास जिस विषय का एक भी शिक्षक नहीं है, उस विषय में बिना अनुमति के पीएचडी भी कराई जा रही है।
एमयू के वीसी पर छापा, मजहरूल हक के वीसी का इस्तीफा
यूनिवर्सिटी में वित्तीय गड़बड़ियों की ये कोई छिटपुट घटना नहीं है। हाल के समय में इस तरह की गड़बड़ियों के आरोप दूसरे विश्वविद्यालयों में भी लग चुके हैं। स्पेशल विजिलेंस यूनिट ने नवम्बर में मगध यूनिवर्सिटी (एमयू) के वाइस चांसलर (कुलपति) डॉ राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी और उनके ठिकानों पर छापामारी कर 90 लाख रुपए नकद, 15 लाख रुपए के गहने और छह लाख रुपए की विदेशी मुद्रा बरामद किये गये थे। उन पर यूनिवर्सिटी के फंड की हेराफेरी करने का आरोप था। छापेमारी के कुछ दिन बाद ही वे लम्बी छुट्टी पर चले गये।
मामले की छानबीन अब भी जारी है। 21 दिसम्बर को इस मामले में कार्रवाई करते हुए यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार पुष्पेंद्र प्रसाद वर्मा, प्रॉक्टर जयनंदन प्रसाद सिंह, पुस्तकालय प्रभारी विनोद कुमार और कुलपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के निजी सचिव सुबोध कुमार को गिरफ्तार किया गया है।
स्पेशल विजिलेंस यूनिट ने मामले में पूछताछ के लिए कुलपति को 3 जनवरी तक हाजिर होने का फरमान भी जारी किया है।
मगध यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के ठिकानों पर छापेमारी के कुछ दिन बाद ही बिहार सरकार ने राज्यपाल फागू चौधरी को पत्र लिखकर ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सुरेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने को कहा था।
इस महीने 16 दिसम्बर को मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुद्दुस ने ये कहते हुए अपने इस्तीफा दे दिया कि विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक, कुलसचिव और सहायक कुलसचिव का रवैया असहयोगात्मक रहा है, जिससे वे काम नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि उन पर गलत भुगतान करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
उन्होंने पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह पर कॉपी खरीद और सुरक्षा एजेंसी की नियुक्ति के मामलों में वित्तीय गड़बड़ियां करने का आरोप लगाया है।
जिन वीसी के समय गड़बड़ी हुई, वे अभी कहां हैं?
डॉ राजेश सिंह पूर्णिया यूनिवर्सिटी के पहले वाइस चांसलर रहे। वे साल 2018 से 2 सितंबर 2020 तक पूर्णिया यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर थे। इसी अवधि में वे ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के वीसी का कार्यभार भी संभाल रहे थे।
उन्होंने 3 सितंबर 2020 को पूर्णिया यूनिवर्सिटी से इस्तीफा दे दिया था। फिलहाल, वे दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर हैं।
फिलहाल, प्रोफेसर राजनाथ यादव, पूर्णिया विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर हैं। वे 15 मार्च 2019 में इस यूनिवर्सिटी में बतौर प्रो-वीसी जुड़े थे। 5 सितंबर 2020 से वे वाइस चांसलर हैं और प्रो-वीसी का भी अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं।
एमएलसी संजीव कुमार सिंह ने जुलाई 2020 में ही राज्यपाल को पत्र लिखकर वित्तीय और प्रशासनिक गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए जांच की अपील की थी, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा।
मैं मीडिया ने वाइस चांसलर राजेश सिंह को मेल भेजकर भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में पूछा है। उनका जवाब आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी।
आलोक राज कहते हैं,
“हम मगध यूनिवर्सिटी और ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी की बात कर रहे हैं, लेकिन मैं कह रहा हूं कि अगर सरकार ठीक ढंग से जांच करवाये, तो पूर्णिया यूनिवर्सिटी में सबसे बड़ा घोटाला सामने आयेगा।”
“हमने सीएम नीतीश कुमार से इस मामले को लेकर शिकायत की है, ताकि सरकार इसकी गहराई से जांच करवाए,” उन्होंने कहा।
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