ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख़्तरूल ईमान ने कहा कि भले ही बिहार में शराबबंदी लागू हो, लेकिन हर घर शराबख़ाना बना हुआ है। उन्होंने कहा कि जब बिहार में शराबबंदी लागू नहीं थी तो इसका रेवेन्यू सरकार को जाता था, लेकिन अब इसका रेवेन्यू प्रमुख पार्टियों को जाता है।
मीडिया से बातचीत के दौरान अख़्तरूल ईमान ने बिहार में शराबबंदी को ठीक तरह से लागू ना करने को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने बिहार सरकार से सवाल पूछते हुए कहा कि यह कैसी शराबबंदी है, जिसमें शराब सिर्फ दुकान में ना मिले, लेकिन घरों में पहुंच जाये?
“बिहार के बाज़ारों में भले शराबख़ाना बंद है, लेकिन हर घर मयख़ाना (शराबख़ाना) बना हुआ है। पहले शराब बिकती थी तो उसका टैक्स रेवेन्यू बिहार सरकार के खाते में जाता था। अब प्रमुख पार्टियों के खाते में जाता है। बिहार में शराबबंदी हो तो सही तरीक़े से शराबबंदी हो,” उन्होंने कहा।
पूर्णिया के अमौर से विधायक ईमान ने आगे कहा, “मैं पूर्ण तौर से शराबबंदी का समर्थन करता हूं। यह लुका-छिपी नहीं कि बाहर ना मिले लेकिन घरों में पहुंचा दिया जाये। यह कैसी शराबबंदी है? शराब पीकर लोग मर रहे हैं, शराब पीकर लोग नशे में रह रहे हैं। आप नौ बजे के बाद ठेकेदारों, इंजीनियरों और अफसरों को देख लीजिये क्या-क्या तमाशा हो रहा है यहां पर।”
अख़्तरूल ईमान अविश्वास प्रस्ताव में किस तरफ वोट देंगे, इसके जवाब में ईमान ने कहा कि वह जनता के हित तथा सौहार्द्रपूर्ण वातावारण की राजनीति करते हैं और जो पार्टी उनके विचार से नज़दीक होगी वह उधर ही जायेंगे।
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“अख़्तरूल ईमान लोभ की राजनीति नहीं करता है, स्वार्थ की राजनीति नहीं करता है। अख़्तरूल ईमान जनता के हित, समाजवाद और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण की राजनीति करता है। इसलिये मेरे विचारों से जो जितना क़रीब है वो मुझसे उतना क़रीब है। मेरे विचारों से जो जितना दूर है वो उतना दूर है,” उन्होंने कहा।
अमौर से विधायक ईमान ने आगे कहा, “मैं तो जानता हूं कि पिछले तीन साल से बिहार में खेला हो रहा है। जोड़-तोड़ की सियासत हो रही है। लोग कहते हैं मर जायेंगे मिट जायेंगे फिस से उसके साथ ना जायेंगे। कोई कहता है दरवाज़ा बंद है फिर किसी को आने नहीं देंगे। कोई पलट जाता है तो कोई सलट जाता है। पलटू और सलटू का खेल चल रहा है बिहार में और यह तीन साल से चल रहा है।”
अख़्तरूल ईमान ने कहा कि इसका सबसे अधिक नुक़सान बिहार की जनता को हो रहा है, कमज़ोर सरकार होने के नतीजे में अफसरशाही चरम पर है और बिहार में विकास रुक गया है।
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