ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और केंद्र सरकार के बीच विवादों का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पहले चुनाव परिणामों के बाद बंगाल में हुई हिंसा को लेकर आरोप-प्रत्यारोप, फिर सीबीआई (CBI) के द्वारा नारदा केस में मंत्रियों की गिरफ्तारियां, ताजा मामला पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव रहे अलापन बंद्धोपाध्याय (Alapan Bandyopadhay) को लेकर शुरु हुआ जिसको ममता ने अपने एक दांव से खत्म कर दिया। केंद्र सरकार ने 29 मई को अलापन बंद्धोपाध्याय से दिल्ली आकर रिपोर्ट करने को कहा लेकिन सोमवार 31 मई को वो रिटायरमेंट लेकर ममता के मुख्य सलाहकार बन गए। इस मामले पर ममता पहले से ही अडिग थी कि वो बंद्धोपाध्याय को दिल्ली नहीं भेज रही है।
ममता के रिव्यू मीटिंग में शामिल न होने के बाद से शुरु हुआ विवाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा चक्रवात यास (Cyclone Yaas) से हुए नुकसान का आकलन करने को लेकर 28 मई को एक रिव्यू मीटिंग बुलाई थी। लेकिन ममता ने प्रधानमंत्री मोदी से अलग से मुलाकात करके उनको नुकसान की रिपोर्ट देकर मुख्य सचिव अलापन बंद्धोपाध्याय के साथ दीघा के लिए निकल गई। ममता की इस व्यवहार पर बीजेपी नेताओं ने उनकी खूब आलोचना भी करी और इस पर बहुत विवाद भी हुआ। लेकिन ममता ने अपने बचाव में कहा कि मैंने मोदी जी से जाने के लिए परमिशन ले ली थी। ‘इस मामले पर एक तरफा खबर फैला कर मुझे अपमानित किया जा रहा है। बंगाल मेरी प्राथमिकता है और मैं इसको कभी खतरे में नहीं डालूंगी। अगर प्रधानमंत्री कहे तो मैं उनके पैर भी छूने को तैयार हूं लेकिन मुझे इस तरह से बेइज्जत नहीं किया जाना चाहिए’।
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अलापन बंद्धोपाध्याय कैसे बन गए विवाद का हिस्सा
असल में अलापन बंद्धोपाध्याय को 60 साल पूरे होने पर 31 मई को रिटायर होना था। लेकिन ममता ने 10 मई को केंद्र से मांग की बंद्धोपाध्याय की सर्विस को बढ़ा दिया जाए क्योंकि राज्य में किए काम के अनुभव की उन्हें जरुरत है। जिसके बाद केंद्र की ओर से ममता की मांग पर बंद्धोपाध्याय को 24 मई को कहा गया कि उनकी सर्विस को 31 मई के बाद से तीन महीनें के लिए बढ़ा दिया गया। जिस पर ममता ने खुशी भी जताई थी।
लेकिन विवाद ‘यास’ को लेकर 28 मई को रखी गई रिव्यू मीटिंग के बाद तब बढ़ गया जब ममता मीटिंग में शामिल न होकर केवल मोदी जी को रिपोर्ट देकर बंद्धोपाध्याय के साथ दीघा के लिए निकल गई। जिसके बाद 28 मई की रात को ही केंद्र ने अलापन बंद्धोपाध्याय को ऑर्डर दिया कि वो दिल्ली आकर 31 मई सुबह 10 बजे रिपोर्ट करे। ऑर्डर में इस निर्णय का कोई कारण नहीं बताया गया और चौकने वाली बात ये भी है क्योंकि ये ऑर्डर रिव्यू मीटिंग के बाद आया।
अब समझिए कि 31 मई को ममता ने क्या दांव चला
ऑर्डर के मुताबिक ममता सरकार से अलापन बंद्धोपाध्याय को पद मुक्त करने को कहा गया था और उन्हें 31 मई को दिल्ली में रिपोर्ट करना था। जिसको लेकर ममता ने पत्र लिखकर पीएम मोदी से आग्रह किया कि बंद्धोपाध्याय को दिल्ली बुलाए जाने के ऑर्डर पर दोबारा विचार करे। ममता ने केंद्र सरकार के ऑर्डर को असंवैधानिक और अवैध बताते हुए कहा कि बंगाल की सरकार बंद्धोपाध्याय को COVID-19 के सकंटपूर्ण समय में पदमुक्त नहीं कर सकती है।
मामले को देखकर लगता है कि ममता के पास कोई रास्ता नहीं था। लेकिन बाद में खबर आई कि अलापन बंद्धोपाध्याय ने रिटायर होने का निर्णय ले लिया है और उन्हें मुख्मंत्री ममता बनर्जी के सलाहकार के रुप में तीन साल के लिए नियुक्त कर दिया गया है। ममता ने इस पर कहा कि पद विस्तार तो केवल तीन महीने के लिए ही दिया गया था लेकिन अब वो तीन साल तक के सलाहकार रहेंगे। ममता ने केंद्र को भेजे पत्र पर कहा कि पीएम ने उनके पत्र का जवाब नहीं दिया और न कोई कारण बताया कि बंद्धोपाध्याय की जरुरत केंद्र को क्यों है।
मामले पर 1 जून का अपडेट
खबर ये है कि केंद्र ने अलापन बंद्धोपाध्याय को Under section 51 of the Disaster Management Act 2005 के तहत कारण बताओं नोटिस जारी कर दिया है। जिसमें बंद्धोपाध्याय को तीन दिनों के अंदर लिखित में बताना है कि under section 51 के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। इस सेक्शन के तहत केंद्र के ऑर्डर को न मानने को लेइस मामले पर हम आपको 1 जून का अपडेट दे, खबर ये है कि केंद्र ने अलापन बंद्धोपाध्याय को Under section 51 of the Disaster Management Act 2005 के तहत कारण बताओं नोटिस जारी कर दिया है। जिसमें बंद्धोपाध्याय को तीन दिनों के अंदर लिखित में बताना है कि under section 51 के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। इस सेक्शन के तहत केंद्र के ऑर्डर को न मानने को लेकर उनको दो साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों जेल काटने के साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
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