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पटना का ऐतिहासिक गाँधी मैदान जिसे एक मुख्यमंत्री ने रखा था गिरवी

गाँधी मैदान जो कभी देश के मशहूर राजनीतिक शख्सियतों महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, मोहम्मद अली जिन्ना,राम मनोहर लोहिया इत्यादि के राजनीतिक पहचान की गवाह रही

Seemanchal Library Foundation founder Saquib Ahmed Reported By Saquib Ahmed |
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[vc_row][vc_column][vc_column_text]गाँधी मैदान जो कभी देश के मशहूर राजनीतिक शख्सियतों महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, मोहम्मद अली जिन्ना,राम मनोहर लोहिया इत्यादि के राजनीतिक पहचान की गवाह रही या फिर कांग्रेस के भ्रष्‍टाचार और तानाशाही के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा संपूर्ण क्रांति की शुरूआत जब उनके एक आवाज पर पांच लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ ने पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था।

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आज भी आंदोलन,नारे,जुलुस, क्रांति, भूख हड़ताल, अनशन यही वह शब्द है जो पटना के गाँधी मैदान का नाम आते है हमारे दिमाग में आता है। लेकिन आज हम बात करेंगे कि कभी अंग्रेजों के सैर-सपाटे की जगह रही ‘बांकीपुर मैदान’ या ‘पटना लॉन’ का नामकरण आखिर गाँधी मैदान कैसे हुआ? और कैसे बिहार के एक मुख्यमंत्री ने गाँधी मैदान को गिरवी रख दिया था।


 

गाँधी मैदान का नामकरण

बिहार राज्य अभिलेखागार के अनुसार गाँधी जी की 30 जनवरी, 1948 को हत्या के बाद मुजफ्फरपुर जिले के एक शिक्षक ने राज्य सरकार को एक पत्र लिखकर गांधी जी के सम्मान में बांकीपुर मैदान का नाम बदलने का अनुरोध किया गया था। उन्होंने गांधी लॉन, गांधी पार्क या महात्मा गांधी मैदान सहित विभिन्न नामों के उपयोग करने का सुझाव दिया था। राज्य सरकार ने उनकी बात को गंभीरता से लेते हुए स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगांठ के समारोह से पहले ‘बांकीपुर मैदान’ का नाम बदलकर “गाँधी मैदान” कर दिया गया।

 

गाँधी मैदान गिरवी

जगन्नाथ मिश्रा 1975 में बिहार के मुख्यमंत्री बनते है और अप्रैल 1977 तक इस पद पर बने रहते है। उसके बाद 1980 में फिर से तीन साल के लिए मुख्यमंत्री की कमान संभाली और आखिर में 1989 में तीन महीने के लिए मुख्यमंत्री बनते है। कहा जाता है कि जब जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री बने तो बिहार का सरकारी खजाना खाली हो चुका था। इसलिए जगन्नाथ मिश्रा अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान बिहार के सरकारी खजाने को भरने के लिए बिहार के ऐतिहासिक धरोहर गाँधी मैदान को गिरवी रख दिया था।

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स्वभाव से घुमंतू और कला का समाज के प्रति प्रतिबद्धता पर यकीन। कुछ दिनों तक मैं मीडिया में काम। अभी वर्तमान में सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से किताबों को गांव-गांव में सक्रिय भूमिका।

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