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किशनगंज में हाईवे बना मुसीबत, MP MLA के पास भी हल नहीं

कम मजदूरी, भुगतान में देरी – मजदूरों के काम नहीं आ रही मनरेगा स्कीम, कर रहे पलायन

शराब की गंध से सराबोर बिहार का भूत मेला: “आदमी गेल चांद पर, आ गांव में डायन है”

Ground Report की अन्य ख़बरें

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

बिहार में मखाना का सबसे ज़्यादा उत्पादन आज सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया में हो रहा है। इसी को देखते हुए अगस्त 2020 में भारत सरकार ने 'मिथिला मखाना' को GI टैग दिया है।

बिहार रेल हादसे में मरा अबू ज़ैद घर का एकलौता बेटा था, घर पर अब सिर्फ मां-बहन हैं

दिल्ली से किशनगंज लौटने के लिए वह बुधवार को नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन पर सवार हो गया, लेकिन अपनी मंज़िल से करीब 460 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन हादसे का शिकार हो गया।

कटिहार: 2017 की बाढ़ में टूटी सड़क, रोज़ नांव से रेलवे स्टेशन जाते हैं सैकड़ों लोग

बलरामपुर अनुमंडल अंतर्गत अझरैल रेलवे स्टेशन को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली सड़क 2017 के सैलाब में बह गई थी लेकिन अब तक सड़क नहीं बनायी गयी। जहां सड़क हुआ करती थी, वह बरसात के मौसम में तालाब में तब्दील हो जाती है। ग्रामीण नांव पर बैठकर स्टेशन और दूसरे स्थानों तक पहुंचते हैं।

पटना में महादलित महिला को निर्वस्त्र करने की पूरी घटना क्या है?

40 वर्षीय सोमा देवी, चमार समुदाय से आती हैं, जो बिहार में महादलित समूह में शामिल है। 23 सितंबर की रात गांव के ही यादव समुदाय के प्रमोद सिंह यादव व उसके पुत्र ने सोमा को निर्वस्त्र कर बेरहमी से पिटाई की और मुंह पर कथित तौर पर पेशाब कर दिया।

दुर्घटना में मरने वाले प्रवासी मज़दूरों के परिवारों को सरकारी मदद का इंतज़ार

बिहार के सीमांचल में प्रवासी मज़दूरों की संख्या काफी अधिक है। दुर्घटना का शिकार होने वाले इस क्षेत्र के मज़दूरों के परिवार किस हाल में हैं, यह जानने के लिए हम कटिहार जिले के अलग अलग गांव गए।

डालमियानगर औद्योगिक कस्बा के बनने बिगड़ने की पूरी कहानी

रामकृष्ण डालमिया का जन्म 7 अप्रैल 1893 में राजस्थान के एक छोटे से गांव में हुआ। उन दिनों कलकत्ता देश की औद्योगिक राजधानी हुआ करती थी। हर राज्य के लोगों के लिए रोजगार का अल्टीमेट डेस्टिनेशन कलकत्ता हुआ करता था। राजस्थान के बहुत सारे व्यापारी उत्तर कलकत्ता में अपना धंधा चला रहे थे।

डालमियानगर के क्वार्टर्स खाली करने के आदेश से लोग चिंतित – “बरसात में घोंसले भी नहीं उजाड़े जाते”

1930-1933 के आसपास विकसित हुआ डालमियानगर अगले पांच दशकों तक औद्योगिक कस्बों का सिरमौर रहा। लेकिन, साल 1970 के बाद डालमियानगर के दुर्दिन शुरू हो गये। एक के बाद एक इकाइयां बंद होने लगीं। 9 सितम्बर 1984 को वह निर्णायक तारीख भी आ गई, जब सारी फैक्टरियों की चिमनियों से धुआं निकलना बंद हो गया। 8 जुलाई 1984 तक इन इकाइयों में अफसरों से लेकर वर्करों को मिलाकर कुल 12629 लोग काम करते थे, जो एक झटके में बेरोगार हो गये और उनके घरों के चूल्हे भी ठंडे पड़ गये।

अररिया पत्रकार हत्याकांड: वृद्ध माँ-बाप, दो विधवा, तीन बच्चों की देखभाल कौन करेगा?

दोनों बेटों पत्रकार विमल और सरपंच गब्बू की हत्या के बाद घर में वृद्ध माता-पिता, दो विधवा और तीन छोटे-छोटे बच्चे बचे हैं। विमल यादव का बेटा अभिनव आनंद रानीगंज के ही एक निजी स्कूल में नौवीं कक्षा का छात्र है और बेटी रोमा कुमारी आठवीं में पढ़ती है। वहीं सरपंच गब्बू यादव का बेटा ज्ञान प्रकाश गाँव के ही एक स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता है। लेकिन हाल के दिनों में परिवार को ज़्यादा धमकियां मिलने लगीं, इसलिए माँ ने स्कूल जाने और बाहर खेलने से मना कर दिया।

कटिहार: ड्रेनेज सिस्टम के अधूरे काम से लोगों के घर कटने की कगार पर, नेशनल हाइवे का पुल भी धंसा

रोजितपुर निवासी सईद अंसारी ने कहा कि ड्रेनेज सिस्टम के निर्माण में तकनीकी चूक और लापरवाही से मोहल्ले में रहने वाले लोगों के घरों पर खतरा मंडरा रहा है। गड्ढों में न मिट्टी भरी जा रही है न ही अधूरे पड़े निर्माण कार्य को दोबारा शुरू किया जा रहा है। गड्ढे और जलजमाव से बच्चों के गिरने का भी खतरा बढ़ गया है।

किशनगंज के टेढ़ागाछ प्रखंड में बिजली का बुरा हाल; डिबिया, मोमबत्ती और टॉर्च पर निर्भर ग्रामीण

गाँव के बुज़ुर्ग रुकसाना और पूरनलाल शर्मा अपना-अपना मोबाइल फ़ोन लिए पड़ोस के गाँव जा रहे हैं। रुकसाना का मोबाइल स्विच ऑफ होने को है। वह बताती हैं कि पास के फुलवरिया गाँव में कोई 10 रुपए लेकर मोबाइल फुल चार्ज कर देता है, वहीं जाकर वह मोबाइल चार्ज करवाएंगी।

“व्यापरियों में अब उमंग नहीं बचा”, नेपाल द्वारा भंसार नियम सख्त करने पर जोगबनी के दुकानदार चिंतित

फुटपाथ पर कपड़ा बेच रहे अमर यादव ने कहा कि जब से नेपाल सरकार ने भंसार नियम लागू किया है तब से छोटे व्यापारियों की स्थिति बेहद खराब है। घर में एक आदमी कमाने वाला है और खाने वाले पांच हैं ऐसे में गुज़ारा करना बहुत मुश्किल हो गया है।

2017 के सैलाब में उजड़े, अब तक नहीं हो पाये आबाद, बांध पर रहने को मजबूर

सैलाब के समय बशीर का घर गांव में ही था। सैलाब के बाद जब उन्होंने उसी स्थान पर घर बनाना शुरू किया तो दूसरे लोगों ने मना कर दिया। उनकी जमीन को घेर कर गांव के ही दूसरे लोगों ने सब्जी लगा दी। उनलोगों ने बशीर के घर का सारा सामान लाकर बांध पर फेंक दिया। मजबूरी में उनको बांध पर ही घर बना कर रहना पड़ रहा है।

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