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Fact Check: BPSC शिक्षक बहाली को लेकर News18 ने किशनगंज के इस गाँव के बारे में किया झूठा दावा

'मैं मीडिया' ने समाचार वेबसाइट News 18 के दावे की पड़ताल की। 'मैं मीडिया' की पड़ताल में News 18 का दावा पूरी तरह से भ्रामक और झूठा निकला। मैं मीडिया ने पाया कि हारिभिट्टा गांव में पहले से ही कई व्यक्ति सरकारी नौकरी में हैं।

Nawazish Purnea Reported By Nawazish Alam |
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fact check about manoj kumar gov job by main media

बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की तरफ से शिक्षक बहाली परीक्षा का परिणाम षोषित कर दिया गया है। परीक्षा में 1,22,324 हजार से अधिक अभ्यर्थी सफल हुए हैं। इनमेें प्राथमिक में 72,419, माध्यमिक में 26,204 और उच्च माध्यमिक में 23,701 अभ्यर्थी सफल हुए हैं।


बिहार के किशनगंज स्थित दिघलबैंक प्रखंड की सतकौआ पंचायत अन्तर्गत हारिभिट्टा गांव के काश टोला के रहने वाले मनोज कुमार सिंह भी BPSC शिक्षक परीक्षा में सफल हुए। मनोज कुमार सिंह के परिणाम को लेकर समाचार वेबसाइट ‘News 18’ ने दावा किया कि वह अपने गांव हारिभिट्टा के पहले व्यक्ति हैं, जो सरकारी नौकरी में बहाल हुए हैं।

News 18 के खबर का शीर्षक है – ‘आजादी के बाद इस गांव में पहली बार किसी को मिली सरकारी नौकरी, हर कोई मना रहा जश्न।’ खबर में लिखा गया है, “मनोज कुमार सिंह ने बीपीएससी टीआरई एग्जाम पास कर पहली सरकारी नौकरी लेने जा रहे हैं। बतौर शिक्षक मनोज पहले ऐसे नौजवान हैं जो अपने गांव में सरकारी नौकरी ज्वखइन करेंगे। मनोज बताते हैं कि उनके गांव में पढ़ाई का कोई माहौल नहीं है।”


अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या वाकई मनोज कुमार सिंह सरकारी नौकरी में आने वाले अपने गांव के पहले व्यक्ति हैं या मनोज से पहले भी हारिभिट्टा गांव के रहने वाले लोग सरकारी नौकरी में हैं?

‘मैं मीडिया’ ने समाचार वेबसाइट News 18 के दावे की पड़ताल की। ‘मैं मीडिया’ की पड़ताल में News 18 का दावा पूरी तरह से भ्रामक और झूठा निकला। मैं मीडिया ने पाया कि हारिभिट्टा गांव में पहले से ही कई व्यक्ति सरकारी नौकरी में हैं।

पहले से ही कई लोग सरकारी नौकरी में

हारीभिट्ठा वार्ड संख्या 6 के रहने वाले अजमल आलम ने हमें बताया कि गाँव में पहले से ही कई लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं।

“हारिभिट्टा में पहले से ही 5 शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें 3 पुरुष और 2 महिला शिक्षिका शामिल हैं। इसके अलावा गांव में 2 चौकीदार भी हैं, और आशा के रूप में भी 3 महिलाएं कार्यरत हैं। वार्ड संख्या 5 और 6 में दो आंगनबाड़ी केंद्र हैं जिसमें दो सेविकाएं भी है। इसके अलावा हारिभिट्टा में एक वकील भी हैं। गांव की आबादी दो से तीन हजार की है,” उन्होंने कहा।

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हारिभिट्टा के अशोक कुमार ने बताया कि गांव में पहले से ही लगभग दस से पंद्रह लोग सरकारी नौकरी में हैं, बल्कि उनके घर में ही कई सरकारी नौकरी वाले हैं। उन्होंंने कहा कि किसी भी समाचार वेबसाइट को इस तरह के दावे को छापने से पहले गांव आकर सच्चाई की जांच कर लेनी चाहिए।

“मेरे बड़े भाई हाई स्कूल में शिक्षक हैं। हारिभिट्टा गांव के ही रहने वाले मेरे भांजे और उनकी पत्नी भी सरकारी नौकरी में हैं। इसके अलावा मेरे दूसरे भाई भी शिक्षा सेवक के तौर पर कार्यरत हैं। बीपीएससी द्वारा आयोजित शिक्षक भर्ती परीक्षा में मेरी भतीजी अंजू कुमारी भी सफल हुई है, जिसका 23 अक्टूबर को काउंसिलिंग है। इसके अलावा भी गांव के कई लोग सरकारी नौकरी में हैं। मुझे समझ नहीं आता है कि इतने बड़े मीडिया संस्थान ने बिना सच्चाई की जांच किए ही इस खबर को कैसे चला दिया,” उन्होंने कहा।

गाँव में 25-30 ग्रेजुएट हैं

News 18 ने मनोज के हवाले से यह भी लिखा कि उनके गांव हारिभिट्टा में पढ़ाई-लिखाई का बिल्कुल भी माहौल नहीं है और गांव में पढ़े-लिखे व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है।

वेबसाइट ने लिखा, “वह (मनोज) बताते हैं कि शिक्षक बनने का एकमात्र उद्देश्य गांव की शैक्षणिक व्यवस्था को सुधारना है, क्योंकि गांव की साक्षरता दर बमुश्किल 10% है। गांव में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या बहुत कम है। पूरे गांव में मात्र 7 बच्चे ही ग्रेजुएशन कर पाए हैं। इसीलिए गांव के नौजवानों को अब प्रोत्साहित करेंगे, ताकि हमारे गांव में शिक्षा का माहौल पैदा हो व और भी नौजवान आगे आएं।”

News 18 के इस दावे को भी अशोक कुमार ने भ्रामक और झूठा बताया। उन्होंने कहा कि गांव में लगभग 25-30 लोग ग्रेजुएट हैं।

“मेरे घर में ही पांच ग्रेजुएट हैं। एक भाई पोस्ट-ग्रेजुएट भी हैं। ऐसा नहीं है कि गांव में पढ़ने-लिखने का बिल्कुल भी माहौल नहीं है। मैं खुद एक निजी स्कूल का संचालन करता हूं, जिसमें हारिभिट्टा गांव के 20 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। इसके अलावा गांव में एक उत्क्रमित मध्य विद्यालय भी है, जहां सैकड़ों बच्चे पढ़ने जाते हैं,” उन्होंने कहा।

‘मैं मीडिया’ की पड़ताल से एक बात तो साफ हो गई कि हारिभिट्टा गांव में सरकारी नौकरी में लोग पहले से ही मौजूद हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि अगर वाकई गांव में पढ़ने-लिखने का माहौल नहीं है तो फिर गांव में इतने सरकारी नौकरी वाले कहां से आ गए। किसी भी पिछड़े या सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वालों की कामयाबी के बारे में लोगों को बताना एक प्रेरणादायक बात है। लेकिन क्या इस प्रेरणा की आड़ में भ्रामक दावे करना सही है?

मनोज ने क्या कहा?

‘मैं मीडिया’ ने BPSC शिक्षक परीक्षा में सफल मनोज कुमार सिंह से भी बात की। मनोज ने बताया कि उसने समाचार वेबसाइट को कहा था कि वह हारिभिट्टा गांव के काश टोला के पहले व्यक्ति हैं, जो सरकारी नौकरी में आये हैं, न कि पूरे हारिभिट्टा के। उसने आगे कहा कि समाचार वेबसाइट से ही लिखने में गलती हुई है।

स्थानीय लोग बताते हैं हारिभिट्टा काश टोला में 20-30 परिवार रहते हैं।

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नवाजिश आलम को बिहार की राजनीति, शिक्षा जगत और इतिहास से संबधित खबरों में गहरी रूचि है। वह बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास कम्यूनिकेशन तथा रिसर्च सेंटर से मास्टर्स इन कंवर्ज़ेन्ट जर्नलिज़्म और जामिया मिल्लिया से ही बैचलर इन मास मीडिया की पढ़ाई की है।

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