अभियान किताब दान। बिहार के सीमांचल के पूर्णिया जिले के डीएम राहुल कुमार की पहल पर शुरू हुए इस अभियान के बारे में आपने हाल के समय में बहुत सारी अच्छी खबरें पढ़ी होंगी। आईए, पहले ऐसी ही कुछ खबरों के शीर्षक आपको बताते हैं।
एनडीटीवी इंडिया की वेबसाइट पर 21 सितंबर, 2021 को एक लेख लिखा गया, शीर्षक है – “पूर्णिया में किताब दान अभियान और गांव-गांव में लाइब्रेरी की बात“. इस लेख में इस अभियान की प्रशंसा करते हुए इसे सफल बताया गया है। लेख के मुताबिक, जिले के सभी 230 ग्राम पंचायतों में लाइब्रेरी चल रही है।
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26 सितंबर 2021 को द प्रिंट में छपी खबर का शीर्षक है – “बिहार के कम शिक्षित जिले का बदलता चेहरा- अब हर गांव में है लाइब्रेरी।” इस खबर में भी इस अभियान को सफल बताया गया है।
द प्रिंट में ही 3 अक्टूबर 2021 को डीएम राहुल कुमार ने इस पर एक लेख लिखा था, शीर्षक है – अभियान किताब दान की अब तक की यात्रा उम्मीद जगाने वाली, लोगों के सहयोग से पूर्णिया में कैसे खड़ा हुआ जन आंदोलन।
इसी साल 12 मार्च को ‘जिला मजिस्ट्रेट ने दान कि किताबों से 230 लाइब्रेरी बनाने में मदद की’ शीर्षक से न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर प्रकाशित की गई। इस अखबार ने पिछले साल 23 सितंबर को भी इस अभियान को लेकर एक खबर प्रकाशित की थी।
गल्फ न्यूज ने इस साल 15 मार्च को अभियान किताब दान पर एक स्टोरी प्रकाशित की। शीर्षक है – “किताब दान अभियान ने बिहार के पूर्णिया के 230 गांवों का जीवन बदला।”
इन वेबसाइट्स के अलावा बिहार केंद्रित वेबसाइट्स और स्थानीय अखबारों में भी इस अभियान और इसकी सफलता के कसीदे पढ़े गये।
यहां तक कि इस अभियान की सराहना नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने भी की।
इस योजना की सफलता की कहानियां बताती तमाम खबरों को पढ़ने के बाद ‘मैं मीडिया’ ने खुद जमीन पर उतर कर इस अभियान की हकीकत जानने की कोशिश की।
‘मैं मीडिया’ ने 30 मार्च और 1 अप्रैल को ज़िले के कुल 14 प्रखंडों में से 9 प्रखंडों की 14 पंचायतों में चल रही लाइब्रेरियों का जायज़ा लिया। सभी लाइब्रेरियों में हम दोपहर 12 बजे से शाम 6 बजे के बीच गये।
कैसे किया लाइब्रेरियों का चयन
हमने पूर्णिया जिले की आधिकारिक वेबसाइट से सभी 230 लाइब्रेरियों की सूची निकाली। इस सूची के आधार पर हमने रैंडमली प्रखंडों और लाइब्रेरियों को चुना। लाइब्रेरियों तक पहुंचने से पहले हमने किसी स्थानीय व्यक्ति से संपर्क कर ये जानने की कोशिश नहीं की कि उनके यहां की लाइब्रेरी की क्या स्थिति है। ऐसा करना पक्षपातपूर्ण होता, इसलिए हम सीधे लाइब्रेरी में ही पहुंचे.
दो दिनों में हमें जो ज़मीन पर नज़र आया, वो मेनस्ट्रीम मीडिया में दिखाई जा रही हकीकत से कोसों दूर है। लाइब्रेरी के नाम पर सरकारी कमरे ज़रूर हैं, लेकिन उन्हें महीनों से खोला नहीं गया है। भवन के सामने लोग खुले में शौच और पिशाब करते हैं। बरामदे का इस्तेमाल नशे के लिए हो रहा है, अलमारियों में किताबों की गठरियां धूल फांक रही हैं, तो कहीं लाख कोशिशों के बावजूद लाइब्रेरी खुलवा पाना तक मुश्किल रहा।
लाइब्रेरी के सामने खुले में शौच, गंदगी
30 मार्च को हमारे सफर की शुरुआत पूर्णिया पूर्वी प्रखंड की हरदा पंचायत से हुई। यहां बाजार में ही लाइब्रेरी का भवन है। लेकिन यहाँ सिवाय नाम के लाइब्रेरी जैसा कुछ भी नहीं है। प्रांगण में घुसते ही खुले में किये गए शौच की बदबू आने लगी, लाइब्रेरी के सामने पिशाब करते लोग नज़र आये। किसी तरह से हम लाइब्रेरी तक पहुंचे। यहाँ लोहे के किवाड़ पर लगे मकड़ी के जाले और जंग पड़े ताले ये बताने के लिए काफी हैं कि 16 अगस्त 2021 को पुस्तकालय के शुभारंभ के बाद शायद ही कोई इस भवन की खबर लेने आया हो। दरवाज़े के नीचे से कैमरे के ज़रिये हमने अंदर की तस्वीरें लीं, अंदर भी गन्दगी, मकड़ियों के जाल और धूल जमे बेंच डेस्क ही नज़र आये। इतना ही नहीं, लाइब्रेरी के बरामदे और आसपास हमें स्मैक पीने में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें और शराब की बोतलें तक नज़र आईं।
लाइब्रेरी को खोल कर देखने के लिए हमने संचालक अमर कुमार को फ़ोन किया तो उन्हें बताया लाइब्रेरी की चाबी पास के ही मदन मध्य विद्यालय हरदा के शिक्षकों के पास है। हम जब वहां गए तो चाबी उनके पास भी नहीं मिली। हरदा निवासी स्थानीय एक्टिविस्ट विकास आदित्य ने हमें कुछ दिन पहले का एक वीडियो दिखाया जिसमें लोग लाइब्रेरी के बरामदे पर स्मैक पीते नज़र आ रहे हैं। विकास बताते हैं, उन्होंने लाइब्रेरी कभी खुली नहीं देखी है, इसका इस्तेमाल सिर्फ खुले में शौच, पिशाब और नशा के लिए हो रहा है।
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हरदा से करीब एक घंटे की दूरी तय कर डेढ़ बजे दोपहर हम के. नगर प्रखंड की रहुआ पंचायत पहुंचे, जहाँ साफ़ सुथरी पेंट की हुई लाइब्रेरी की एक बिल्डिंग हमें मिली। हालाँकि, कागज़ों में इस पुस्तकालय का शुभारंभ एक साल पहले 5 मार्च, 2021 को ही कर दिया गया है, लेकिन भवन पर लाइब्रेरी जैसा कुछ लिखा तक नहीं मिला। लेकिन मौके पर मौजूद स्थानीय लोगों और शिक्षक ने लाइब्रेरी के बिल्डिंग होने की पुष्टि की और ये भी बताया की लाइब्रेरी रोज़ाना 1 बजे से 3 बजे तक खोली जाती है। लेकिन, इसी 1 से 3 के बजे करीब आधे घंटे हम यहाँ मौजूद रहे, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद लाइब्रेरी की चाबी नहीं मिली। ड्यूटी पर तैनात दूसरे शिक्षक अब्दुल कुद्दुस बताते हैं कि चाबी ज़मीन दाता के पास है, वो शायद कहीं गए हुए हैं।
रहुआ के बाद हमारा अगला पड़ाव था धमदाहा प्रखंड की विशनपुर पंचायत। यहाँ आलीशान पंचायत सरकार भवन के प्रांगण में ही पुस्तकालय का कमरा है। दोपहर 2:53 बजे हम यहाँ पहुंचे और पंचायत भवन में मौजूद लोगों से पुस्तकालय के बारे में पूछा। सूची के आधार पर संचालक से संपर्क करने की कोशिश की। फिर स्थानीय मुखिया के पति को कॉल किया, लेकिन लाइब्रेरी नहीं खुल सकी। कैमरे के ज़रिये हमने खिड़की से पुस्तकालय के अंदर देखने की कोशिश की, तो अंदर प्लास्टिक की कुछ कुर्सियां नज़र आयीं। हालाँकि, जब हम विशनपुर से आगे निकल गए तो संचालक ने हमें फोन कर बताया कि लाइब्रेरी 12 से 1 बजे तक खुलती है, लेकिन अभी वापस आने पर वो खोल कर लाइब्रेरी दिखा सकते हैं।
आगे हम धमदाहा के ही निरपुर पंचायत पहुंचे, जहाँ ग्राम कचहरी के एक छोटे से भवन में ही लाइब्रेरी है। हमने पीछे की खिड़की से अंदर देखने की कोशिश की, तो प्लास्टिक की कुछ कुर्सियां दिखीं। एक स्थानीय जनप्रतिनिधि से जब हमने फोन पर भवन के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि यहाँ बस कुछ किताबें रखीं हुईं हैं, पुस्तकालय जैसा कुछ इस्तेमाल नहीं होता। जब हमने संचालक अंकित कुमार सिंह को कॉल किया, उन्होंने नंबर ही गलत बता दिया। हालांकि सूची के अनुसार हमने सही नंबर पर संपर्क किया था।
इसके बाद हम धमदाहा की ही ठाड़ी राजो पंचायत पहुंचे। सूची के हिसाब से यहाँ के पंचायत भवन में ही पुस्तकालय है। लेकिन यहाँ पंचायत भवन में पुस्तकालय का नामोनिशान नहीं है। जानकारी के लिए हमने लाइब्रेरी संचालक व पूर्व सरपंच चंदन भगत को फ़ोन किया। उन्होंने बताया कि पुस्तकालय इसी पंचायत भवन में है। बैनर लगा कर उद्घाटन किया गया था, दीवार पर इस बारे में कुछ नहीं लिखा है। पास के स्कूल के शिक्षकों ने भी इस बात की पुष्टि की।
नहीं खुलती लाइब्रेरी, मुखिया आते हैं, तो खुलता है भवन
धमदाहा प्रखंड से आगे हम भवानीपुर प्रखंड पहुंचे। भवानीपुर की सुपौली पंचायत में वैसे तो 2 मार्च, 2021 को ही लाइब्रेरी का उद्घाटन हो गया है। लेकिन, स्थानीय जय कृष्ण कुमार मंडल बताते हैं कि पुस्तकालय कभी खुलता नहीं है, बस, स्थानीय मुखिया-सरपंच को कुछ काम होता है, तब ताला खुलता है।
भवानीपुर प्रखंड के बाद हम रुपौली प्रखंड की डोभा मिलिक पंचायत पहुंचे। यहाँ एक ही कैंपस में कई सरकारी भवन और एक मंदिर हैं। लाइब्रेरी भवन के पास ही स्थानीय लोग ताश खेल रहे थे। आस-पास पूछने पर मंदिर के पुजारी लाइब्रेरी के कमरे की चाबी लेकर आये और लाइब्रेरी खोल कर दिखाया। अंदर दो अलमीरा, कुछ टेबल-कुर्सी और किताबों की कुछ गठरियां नज़र आईं। स्थानीय मुखिया पवनी देवी के पति देवन राम बताते हैं कि सार्वजनिक स्थान होने की वजह से लोग यहाँ ताश खेलते रहते हैं।
रुपौली प्रखंड की लक्ष्मीपुर छर्रापट्टी पंचायत में मध्य विद्यालय छर्रापट्टी में ही एक भवन में पुस्तकालय है और इसकी हालत बाकी पंचायतों के पुस्तकालयों से बेहतर नज़र आई। लेकिन स्थानीय शम्भू मंडल व्यस्था से संतुष्ट नहीं हैं। वह बताते हैं कि यहां न बिजली है और न बैठने का सही इंतज़ाम, ऐसे में कौन पुस्तकालय में आएगा?
लाइब्रेरी के दरवाजे पर कूड़ा, अलमारियों कुर्सियों पर धूल
एक दिन के बाद यानी 1 अप्रैल को ‘मैं मीडिया’ दोपहर करीब 12.15 बजे बायसी प्रखडं की हरिनतोड़ पंचायत पहुंची। यहाँ स्थानीय मुखिया, पूर्व सरपंच और कई स्थानीय लोग पंचायत भवन में पहले से ही मौजूद थे। उन्होंने बताया कि यहां लाइब्रेरी सुचारू रूप से चलती है। हमारे आग्रह में उन्होंने संचालक को बुलवा कर लाइब्रेरी खुलवाया। पुस्तकालय के दरवाज़े पर बिखरा पड़ा कचड़ा, अलमीरा व कुर्सियों पर जमी धुल और किताबों की गठरी बता रही थी कि शायद ही कोई इस पुस्तकालय का इस्तेमाल करता है। स्थानीय पूर्व सरपंच सचदर पांडेय कहते हैं कि जहाँ वर्तमान में पुस्तकालय है, वहां का वातावरण शिक्षा से जुड़ा नहीं है, इसलिए इसे पास के विद्यालय में शिफ्ट कर दिया जाना चाहिए।
हरिनतोड़ के बाद हम करीब 1 बजे बायसी की खपड़ा पंचायत पहुंचे, जहाँ एक साफ़-सुथरे भवन में पुस्तकालय है और दरवाज़े पर एक नोटिस लगा है जिसमें लिखा है- पुस्तकालय 2-4 बजे तक खुलता है। आस-पास मौजूद लोगों ने बताया कि अक्सर यहाँ बच्चे और संचालक- शिक्षक नज़र भी आते हैं।
लोगों को नहीं पता, यहां लाइब्रेरी भी है
दोपहर लगभग 2 बजे हम बायसी की ही मलहरिया पंचायत पहुंचे। यहाँ भी पंचायत भवन में ही पुस्तकालय है, लेकिन आस पड़ोस के लोग इससे अनजान हैं। स्थानीय बीबी शहनाज़ कहतीं हैं कि भवन में हर शनिवार मुखिया और वार्ड सदस्य मीटिंग करते हैं, पंचायत होती है, लेकिन कभी यहाँ किसी को पढ़ते नहीं देखा। स्थानीय युवा मो. अनीस ने भी इस बात की पुष्टि की।
पूर्णिया ज़िले की वेबसाइट पर मौजूद लाइब्रेरी की सूची के मुताबिक अमौर प्रखंड अंतर्गत आमगाछी के पंचायत भवन में पुस्तकालय होना चाहिए। लेकिन, इस टूटे-फूटे पंचायत भवन में ऐसा कुछ नहीं मिला। इस भवन में पंचायत का भी काम होता है, इसमें भी संदेह है। हमने जब संचालक इजहारुल हक़ को फ़ोन किया, तो उन्होने बताया कि पुस्तकालय मध्य विद्यालय में है और शुक्रवार होने की वजह से स्कूल में छुट्टी है। जब हम स्कूल पहुंचे, तो पास ही रह रहे स्कूल प्रबंधन के लोगों ने स्कूल खोल कर हमें लाइब्रेरी दिखायी। लाइब्रेरी के नाम वहां दो डेस्क पर कुछ किताबें, कुछ बेंच नजर आये, लेकिन कमरे में बिजली तक नहीं है।
इसके बाद हम अमौर प्रखंड के ही बाड़ा ईदगाह पंचायत पहुंचे। यहां पंचायत भवन में 20 फरवरी, 2021 को पुस्तकालय खोला गया था। लेकिन, हमें यहाँ दरवाज़ा अंदर से बंद नज़र आया। दरवाज़ा खटखटाने पर मालूम हुआ, कमरे में प्रशासन के कुछ लोग रहते हैं और वहां लाइब्रेरी जैसा कुछ नहीं है। स्थानीय मुखिया को फ़ोन करने पर पता चला कुछ महीने पहले लाइब्रेरी को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है। उस नई जगह पर हम पहुंचे तो स्थानीय लोगों ने बताया कि यहाँ सामान रख कर ताला बंद कर दिया गया है, कभी ताला खुलता नहीं है।
हमारा आखिरी पड़ाव कसबा प्रखंड की लखना पंचायत रहा। यहाँ भी पंचायत भवन में ही पुस्तकालय बनाया गया है। हमें लाइब्रेरी खुली मिली। लाइब्रेरी के भीतर कुछ कुर्सियां और अलमारियों में कुछ किताबें दिखीं। लेकिन यहां की लाइब्रेरी के खुले होने की वजह किताब नहीं थी, बल्कि राजनीतिक कारणों से ये लाइब्रेरी खुली हुई थी। पंचायत भवन के सामने ही दर्ज़ी आबिद हुसैन अपनी दुकान चलाते हैं। उन्होंने बताया कि थोड़ी देर पहले यहाँ MLC चुनाव के प्रचार के लिए एक प्रत्याशी आये थे, इसलिए कमरा खुला है। लेकिन, इस भवन लाइब्रेरी की तरह इस्तेमाल कभी नहीं होता है।
डीएम राहुल कुमार ने क्या कहा
इस संबंध में हमने डीएम राहुल कुमार से बात की, तो उन्होंने कहा कि ये पहल जन सहयोग से हुई है, तो ये जनता की जिम्मेदारी है कि वे नियमित लाइब्रेरी खोलें। उन्होंने ये भी कहा कि कुछ जगहों पर लाइब्रेरी अच्छे तरीके से चल रही है, लेकिन कुछ में दिक्कत हैं।
“ये सभी सामुदायिक पुस्तकालय हैं जो जनसहयोग से प्राप्त पुस्तकों से खोले गए हैं। इनके संचालन हेतु संचालन समितियां बनायी गयी हैं, जिनमें स्वेच्छा से शामिल स्वयंसेवकों तथा समुदाय में काम करने वाले लोगों को रखा गया है। इन समितियों का दो बार प्रशिक्षण कराया गया है। यह प्रशिक्षण उन पेशेवरों के द्वारा बाहर से आकर नि:शुल्क दिया गया है जो अभियान किताब दान की संकल्पना से प्रभावित थे। कई स्थलों पर ये पुस्तकालय बेहतर स्थिति में संचालित हो रहे हैं। कई स्थानों पर काफी सुधार की गुंजाइश है जिसके लिए स्थानीय समुदाय से लगातार अपील की जा रही है और उनका उन्मुखीकरण भी किया जा रहा है। अंततः इन पुस्तकालयों का संचालन ग्राम पंचायती राज की शिक्षा समिति के अधीन होना है।” डीएम राहुल कुमार ने ‘मैं मीडिया’ से कहा।
डीएम ने आगे कहा कि 4 करोड़ रुपए मिले हैं, जिनमें से 2.2 करोड़ रुपए लाइब्रेरियों के लिए टेबल, कुर्सी व अन्य सामान पर खर्च किए जाएंगे। इसके लिए आर्डर जारी हो गया है। इसी रुपये से लाइब्रेरी का रंग रोगन भी किया जाएगा।
“अभियान किताब दान में किसी विभाग की कोई भी राशि खर्च नहीं हुई है। नीति आयोग से जिले में हुए बेहतर कार्य के लिए पुरस्कार में प्राप्त राशि से 2.2 करोड़ की लागत से सभी पुस्तकालयों में टेबल/कुर्सी/बुक सेल्फ लगाने एवं आवश्यकतानुसार मरम्मत कार्य का हमारा प्रस्ताव मार्च, 2022 में स्वीकृत हुआ है। निविदा की प्रक्रिया पूर्ण कर कार्य किया जाएगा।”
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