नीति आयोग की Sustainable Development Goals पर 3 जून को जारी हुई रिपोर्ट में बिहार विकास के मामले में सभी राज्यों में सबसे नीचे रहा जिसकी वजह से उसकी काफी आलोचना हुई। लेकिन इस मामले पर एक मांग उठने लगी है कि बिहार Bihar को विशेष राज्य का दर्जा मिले क्योंकि बिहार के पिछड़ने के पीछे इसी को कारण माना जा रहा है। अब ये मांग कोई और नहीं बल्कि खुद सत्ता पक्ष जेडीयू के नेता उपेन्द्र कुश्वाहा समेत कई नेता उठा रहे है। लेकिन विपक्ष विशेष राज्य के दर्जे की मांग को सरकार की विफलता से ध्यान हटाने का हथकंडा मान रहा है।
सत्ता पक्ष और विपक्ष की क्या है दलील
सत्ता पक्ष की ओर से उपेन्द्र कुश्वाहा का मानना है कि नीतिश कुमार लगातार विकास की गति को इसके बवाजूद भी बरकरार रखे हुए जब बिहार के बंटवारे के बाद काफी बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संपदा झारखंड को मिल गई और बिहार के लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना भी करना पड़ता है। नीति आयोग की रिपोर्ट इस स्थिति का एक उदाहरण है कि बिहार का प्रदर्शन दूसरे राज्यों के बराबर नहीं है।
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साथ ही जीतन राम मांझी ने भी ट्वीट करके नीतिश कुमार के काम की तारीफ और बोला अब आधारभूत सरंचना को ठीक करने के लिए विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत है। उन्होंने ये भी लिखा कि अगर डबल इंजन की सरकार में बिहार को विशेष दर्जा नहीं मिला तो कभी नहीं मिलेगा।
विपक्ष में कांग्रेस की ओर से कहा गया कि नीतिश कुमार जी कब केंद्र को विशेष राज्य के दर्जे को लेकर अल्टिमेटम दे रहे है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) तो तीन जून, गुरुवार को जब SDG रिपोर्ट जारी हुई तभी से सरकार की आलोचना करते आ रहे है। तेजस्वी ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर लिखा कि 16 वर्षों की NDA सरकार बेरोजगारी बढ़ाने के एक सूत्रीय कार्यक्रम पर ही कार्य कर रही है। बिहार में 78 प्रतिशत बेराजगार ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट वाले है। इन्होंने युवाओं को ठग लिया।
वहीं बीजेपी नेता ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू के तो अलग ही शुर है वो न विपक्ष में नजर आ रहे और न पक्ष में। उन्होंने तो नीति आयोग की रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद बिहार के विकास के लिए तत्पर रहते है। नीति आयोग को बिहार का विकास नहीं दिखता है, जिसने बिहार का रिपोर्ट तैयार किया है उसने बड़ी गलती की है।
क्या होता है विशेष राज्य के दर्जे का मतलब
किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से उसे केंद्र कि ओर से कई सारे फायदे मिलते है। जैसे राज्य को उत्पादन कर, सीमा कर, निगम कर और आयकर के साथ अन्य करों में भी छूट दी जाती है। इसके अलावा केंद्र द्वारा स्पॉन्सर स्कीम में 90 प्रतिशत राज्य का खर्च केंद्र देता है और बाकी का 10 प्रतिशत केंद्र राज्य को जीरो प्रतिशत ब्याज पर देता है। जबकि बाकी राज्यों के लिए केंद्र केवल 30 प्रतिशत देता और बाकी 70 प्रतिशत हिस्से पर उनको प्याज देना पड़ता है, जिससे विशेष दर्जे वाले राज्य को काफी राहत मिलती है।
ये तो कुछ बड़े फायदे थे लेकिन विशेष राज्य का दर्जा पाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इसके लिए किसी राज्य कई मापदंडों पर खरा उतरना चाहिए। इनमें जो राज्य शामिल हो सकते है वो कुछ इस प्रकार है।
- जिस प्रदेश में संसाधनों की कमी हो
- जहां प्रति व्यक्ति आय कम हो और राज्य की आय भी कम हो
- जहां पर जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा हो या कम जनसंख्या घनत्व हो
- राज्य में पहाड़ी और दुर्गम इलाके काफी हो
- आर्थिक रूप से और इंफ्रास्ट्रक्चर के हिसाब से पिछड़ा हो
- और प्रतिकूल स्थान हो
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