पूर्णिया जिला बिहार के सबसे पुराने जिलों में से एक है। पूर्णिया, 1770 में ब्रिटिश साम्राज्य के दौर में ही जिला बना था। पूर्णिया ज़िले का इतिहास गौरवशाली रहा है। हालांकि एक वक्त ऐसा भी था कि पूर्णिया से लेकर नेपाल तक डकैतों का आतंक फैला हुआ था।
पी. सी. रॉय चौधरी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ पूर्णिया में लिखते हैं कि पूर्णिया इलाके में डकैत गैंग्स बहुत सक्रिय थे और यहां की जलवायु भी बहुत खराब थी। यह डकैत गैंग्स नेपाल के मोरंग से पूर्णिया के बीच डकैती को अंजाम देते थे। इस वजह से इस इलाके का नाम बहुत ही खराब हो गया था।
Also Read Story
‘ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाए’
सरकारी अफसर इन इलाकों में पोस्टिंग नहीं लेना चाहते थे। पी. सी. रॉय चौधरी लिखते हैं कि जिन अधिकारियों की यहां पोस्टिंग होती थी वो अपने आप को बदकिस्मत मानते थे और अपनी पोस्टिंग या तबादले को सज़ा के तौर पर लेते थे। यही वजह थी कि पूर्णिया को लेकर एक कहावत मशहूर थी – “ज़हर ना खाए, महर ना खाए, मरेके होए ता पूर्णिया जाए” अर्थात अगर आप मरना चाहते हैं तो पूर्णिया चले जाइए, आपको ज़हर खाने की जरूरत नहीं।
लेकिन अब पूर्णिया बिहार के एक बड़े शहर के रूप में उभर रहा है। यह सीमांचल के साथ-साथ उत्तर बिहार के सबसे बड़े शहरों में से एक है। यहां गुलाबबाग मंडी है जो कोसी और सीमांचल इलाके की सबसे बड़ी अनाज मंडी है। पूर्णिया पटना के बाद दूसरा सबसे बड़ा मेडिकल हब माना जाता है।
पूर्णिया ज़िले के उत्तर में अररिया, दक्षिण में कटिहार, पूरब में किशनगंज और पश्चिम में मधेपुरा जिला स्थित हैं। पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें पूर्णिया, बनमनखी, धमदाहा, रुपौली, कसबा और कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। कोढ़ा विधानसभा कटिहार ज़िले में आता है। इसी तरह पूर्णिया जिले के दो विधानसभा क्षेत्र अमौर और बाइसी को किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में जोड़ दिया गया है।
अगर बात पूर्णिया लोकसभा सीट की करें तो यहां से कई राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेताओं ने चुनाव लड़ा है। स्वतंत्रता सेनानी फणी गोपाल सेन गुप्ता, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद ताहिर, बाहुबली नेता पप्पू यादव और पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और सीमांचल के कद्दावर नेता मो. तस्लीमुद्दीन भी इस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और कामयाबी हासिल की।
पूर्णिया के सांसद स्वतंत्रता सेनानी फनी गोपाल सेन गुप्ता
आजादी के बाद 1951 में देश में पहली बार चुनाव हुआ था। तभी पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का नाम ‘पूर्णिया सेंट्रल’ हुआ करता था। इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर स्वतंत्रता सेनानी फणी गोपाल सेन गुप्ता चुनाव जीते। चुनाव में उनको 78,720 वोट प्राप्त हुए और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी दुर्गा प्रसाद को 53,359 वोटों से शिकस्त दी। 1952 से 1967 तक फणी गोपाल सेन गुप्ता ने ही पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
1957 में देश में दूसरा आम चुनाव का आयोजन हुआ। इस चुनाव में भी फणी गोपाल सेन गुप्ता कांग्रेस के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे। 89,369 वोट लाकर उन्होंने बालकृष्ण गुप्ता को हराया था।
दूसरे चुनाव के नतीजे ने फणी गुप्ता को कांग्रेस में एक मज़बूत नेता के तौर पर पहचान दिलाई। फणी का जन्म 1905 में पूर्णिया सिटी में हुआ था और उनके पिता का नाम ललित मोहन सेन था। फणी की शिक्षा ज़िला स्कूल पूर्णिया, टीएनबी कॉलेज भागलपुर और बीएन कॉलेज पटना से हुई थी। वह आजादी के पूर्व (1929) से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे। आज़ादी की लड़ाई में फणी गुप्ता 1929, 1932 और 1940 में जेल भी गए।
1962 में तीसरे लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भी फणी गोपाल सेन गुप्ता ने जीत का सिलसिला जारी रखा। फणी गुप्ता को इस चुनाव में 1,17,705 वोट प्राप्त हुआ और उन्होंने विशेश्वर नारायण शर्मा को 69,791 वोटों से हराया। 1967 के आम चुनाव में भी फणी गुप्ता का जलवा बरकरार रहा। हालांकि इस चुनाव में जीत का अंतर बहुत कम हो गया था। इस चुनाव में फणी गुप्ता को 73,842 मत प्राप्त हुए और उन्होंने बालकृष्ण गुप्ता को मात्र 4,620 मतों के अंतर से हराया।
पूर्णिया के पहले मुस्लिम सांसद मो. ताहिर
1971 में पांचवीं लोकसभा के लिए आम चुनाव हुआ। इस बार पूर्णिया से फणी गोपाल सेन गुप्ता को हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने फणी गुप्ता का टिकट काट कर मोहम्मद ताहिर को दिया। चुनाव में मोहम्मद ताहिर को 56,977 मत हासिल हुए और उन्होंने भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे ज़ेड. ए. अहमद को 20,164 मतों से शिकस्त दी। फणी गुप्ता को 33,846 वोट प्राप्त हुए और वह तीसरे स्थान पर रहे।
मोहम्मद ताहिर इससे पहले किशनगंज क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ते थे। उन्होंने किशनगंज से लोकसभा का प्रतिनिधित्व भी किया था। वह 1903 में पूर्णिया ज़िले के कसबा प्रखंड स्थित मजगवां गांव में मोहम्मद ताहा के घर पैदा हुए। वह पूर्णिया के ज़िला स्कूल से पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए। ताहिर पेशे से वकील और मुस्लिम लीग से जुड़ हुए थे। वह सांसद बनने से पहले बिहार विधानसभा में विधायक भी रह चुके थे।
मोहम्मद ताहिर पूर्णिया के पहले मुस्लिम सांसद थे। वह 1946-50 तक संविधान सभा के सदस्य भी रहे। संविधान निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। संविधान सभा में उस वक्त बिहार से 36 लोग शामिल थे। इन लोगों ने संविधान सभा के हर मसले में जोरदार बहस की थी।
पूर्णिया के पहले गैर-कांग्रेसी सांसद लखन लाल कपूर
1977 के लोकसभा चुनाव में जेपी लहर के कारण कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल घोषित कर दिया था, जिससे कांग्रेस के प्रति लोगों में काफी नाराज़गी थी। 1977 का लोकसभा चुनाव आपातकाल के इर्द-गिर्द ही लड़ा गया था। राजनीतिक पार्टी भारतीय लोक दल को इस चुनाव में शानदार कामयाबी मिली थी। पार्टी पूरे देश से 295 सीट जीतने में सफल रहे थे। पूर्णिया में भी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की थी। भारतीय लोकदल के टिकट पर लखन लाल कपूर ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं माधुरी सिंह को 92,037 वोटों से मात दी थी। लखन लाल कपूर किशनगंज लोकसभा क्षेत्र से भी सांसद रहे हैं।
माधुरी सिंह ने अगले चुनाव में ही पूर्णिया की सांसद बनने में कामयाबी हासिल कर ली। वह इस चुनाव में भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थी। 1980 में हुए इस चुनाव में माधुरी सिंह को 1,63,022 मत मिले और उन्होंने नियानंद आर्य को 61,956 वोटों से हराया। इस चुनाव में लखन लाल कपूर तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें सिर्फ 53,233 मत ही प्राप्त हुए।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही अंगरक्षकों द्वारा कर दी गई। इस हत्या के बाद लोगों की हमदर्दी कांग्रेस के तरफ चली गई। लोगों ने दिल खोल कर कांग्रेस को वोट दिये। राजीव गांधी के नेतृत्व में 1984 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने 404 लोकसभा सीटें जीत कर इतिहास रच दिया था। आज़ादी से लेकर अब तक किसी राजनीतिक पार्टी इतनी सीट नहीं ला सकी है। पूर्णिया से इस चुनाव में भी माधुरी सिंह ने जीत का सिलसिला जारी रखा। वह इस बार भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही थी। माधुरी सिंह को 2,94,076 मत हासिल हुए और उन्होंने कमल नाथ झा को 1,90,400 वोटों से शिकस्त दी। इस चुनाव में भी लखन लाल कपूर तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें मात्र 11,755 वोट मिले।
लेकिन 1989 में हुए आम चुनाव में पिछले दो बार से सांसद रही माधुरी सिंह को हार का सामना करना पड़ा। सिर्फ हार ही नहीं बल्कि 1,14,231 वोटों के साथ वह चौथे स्थान पर रहीं। इस चुनाव में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मो. तस्लीमुद्दीन ने बाज़ी मार ली। उन्होंने 1,77,159 वोट हासिल किए और सीपीएम के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अजीत सरकार को 54,557 मतों से शिकस्त दी।
चार साल तक बिना सांसद के रहा पूर्णिया
दसवीं लोकसभा के लिए 1991 में मतदान हुआ। लेकिन इस चुनाव में पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के चुनाव नतीजे पर चुनाव आयोग द्वारा रोक लगा दी गई। यह मामला कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने चार साल बाद पुनर्मतदान का आदेश दिया। इस बीच पूर्णिया 1991-95 यानि चार साल तक बिना सांसद के ही रहा।
दरअसल, इस चुनाव के मतदान के दिन सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशियों ने चुनाव आयोग से चुनाव के दौरान बूथों को लूटने और बड़े पैमाने पर धांधली की शिकायत की। इस शिकायत पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने पूर्णिया के नतीजे पर रोक लगा दी थी।
उस चुनाव के वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन शेषन थे। वह बहुत सख्त चुनाव अधिकारी थे, और उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण सुधार किये।
चार साल बाद मार्च 1995 में चुनाव आयोग ने निर्दलीय प्रत्याशी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को विजेता घोषित किया। रोचक बात ये है की इस परिणाम से कुछ दिन पहले ही 1995 बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आए थे, जिसमें पप्पू यादव पूर्णिया विधानसभा और मधेपुरा ज़िले के सिंहेश्वर विधानसभा से हार गए थे। वहीं उनकी पत्नी रंजीत रंजन कटिहार ज़िले के बरारी विधानसभा से चुनाव हारी थी।
पूर्णिया लोकसभा सीट में पप्पू यादव की एंट्री
पुनर्मतदान के दो साल बाद ही 1996 में 11वीं लोकसभा के लिए चुनाव का आयोजन हुआ। पूर्णिया से पप्पू यादव इस बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता को 3,16,155 वोटों के बहुत बड़े अंतर से पटखनी दी। इस जीत ने सीमांचल के इलाके में पप्पू यादव को एक बड़े नेता के तौर पर पहचान दिलाई।
लेकिन 1998 में हुए अगले लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव को भाजपा उम्मीदवार जय कृष्ण मंडल से मुंह की खानी पड़ी। हालांकि इस जीत का अंतर बहुत कम था। कृष्ण मंडल पप्पू यादव को मात्र 35,817 वोटों से हराने में सफल रहे। जय कृष्ण मंडल पूर्णिया से भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाले पहले सांसद बने। कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्णिया की पूर्व सांसद माधुरी सिंह के बेटे उदय सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें 1,02,297 मत प्राप्त हुए थे।
पप्पू यादव बनाम पप्पू सिंह
1998 में हुए इस आम चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था। भाजपा को 182 सीटें प्राप्त हुईं जो कि बहुमत से काफी दूर था। किसी तरह दूसरी कई पार्टियों के समर्थन से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए।
जोड़-तोड़ की यह सरकार बहुत दिनों तक नहीं चली। 13 महीनों के बाद ही संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा। एनडीए गठबंधन में शामिल जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके द्वारा समर्थन वापस लेने से सरकार अल्पमत में आ गई थी।
अटल बिहारी वाजपेयी के इस्तीफे के बाद कोई भी दल सरकार बनाने में सफल नहीं हो सका, जिसके बाद लोकसभा को भंग कर दिया गया। नतीजतन 1999 में लोकसभा चुनाव हुए।
पूर्णिया से पिछली बार के सांसद जय कृष्ण मंडल को पप्पू यादव के हाथों शिकस्त मिली। इस बार पप्पू यादव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे। पप्पू यादव ने जय कृष्ण मंडल को 2,52,566 वोटों के बड़े अंतर से हराया।
लेकिन पप्पू यादव को 2004 में हुए अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार उदय सिंह से शिकस्त का सामना करना पड़ा। हालांकि दोनों के बीच जीत का अंतर बहुत मामूली था। उदय सिंह पप्पू यादव को मात्र 12,883 वोटों से हराने में कामयाब रहे। उदय सिंह की जीत का सिलसिला 2009 में हुए 15वीं लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रहा। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव की मां शांति प्रिया को 1,86,185 मतों से हराया।
जदयू सांसद संतोष कुशवाहा
पिछले दो लोकसभा चुनावों से पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संतोष कुमार कुशवाहा कर रहे हैं। संतोष कुशवाहा दोनों बार जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतने में कामयाब रहे।
संतोष कुशवाहा पहली बार 2010 में भाजपा के टिकट पर बायसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। लेकिन, 2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया। जब लोकसभा चुनाव हुआ तो जदयू ने पूर्णिया से संतोष कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया। चुनाव में कुशवाहा ने भाजपा के उम्मीदवार उदय सिंह को 1,16,669 वोटों से हराया। इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अमरनाथ तिवारी को 1,24,344 वोट मिले। इनके अतिरिक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार मो. शमशेर आलम 50,446 वोट लाकर चौथे स्थान पर रहे।
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा। पूर्णिया सीट जदयू के खाते में गई। उधर उदय सिंह उर्फ़ पप्पू सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन चुनाव में संतोष कुशवाहा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उदय सिंह को 2,63,461 मतों से हराया। इस चुनाव में संतोष कुशवाहा को 6,32,924 वोट और उदय सिंह को 3,69,463 वोट मिले।
पूर्णिया लोकसभा सीट से किस उम्मीदवार ने कब जीता-हारा चुनाव
वर्ष | विजेता | पार्टी | वोट | दूसरा स्थान | पार्टी | वोट |
1951 | फणी गोपाल सेन गुप्ता | कांग्रेस | 78,720 | दुर्गा प्रसाद | निर्दलीय | 25,361 |
1957 | फणी गोपाल सेन गुप्ता | कांग्रेस | 89,369 | बालकृष्ण गुप्ता | निर्दलीय | 45,832 |
1962 | फणी गोपाल सेन गुप्ता | कांग्रेस | 1,17,705 | विशेश्वर नारायण शर्मा | स्वतंत्रता | 47,914 |
1967 | फणी गोपाल सेन गुप्ता | कांग्रेस | 73,842 | बालकृष्ण गुप्ता | संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी | 69,222 |
1971 | मोहम्मद ताहिर | कांग्रेस | 56,977 | ज़ेड. ए. अहमद | CPI | 36,813 |
1977 | लखन लाल कपूर | भारतीय लोक दल | 1,99,034 | माधुरी सिंह | कांग्रेस | 1,06,997 |
1980 | माधुरी सिंह | कांग्रेस (I) | 1,63,022 | नियानंद आर्य | जनता पार्टी (S) | 1,01,066 |
1984 | माधुरी सिंह | कांग्रेस | 2,94,076 | कमल नाथ झा | लोक दल | 1,03,676 |
1989 | तस्लीमुद्दीन | जनता दल | 1,77,159 | अजित सरकार | CPM | 1,22,602 |
1991 | चुनाव आयोग द्वारा | परिणाम पर रोक | ||||
1995 | पप्पू यादव (राजेश रंजन) | निर्दलीय | 1991 का परिणाम घोषित | उपलब्ध नहीं | उपलब्ध नहीं | उपलब्ध नहीं |
1996 | पप्पू यादव (राजेश रंजन) | समाजवादी पार्टी | 4,43,111 | राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता | भाजपा | 1,26,956 |
1998 | जय कृष्ण मंडल | भाजपा | 2,65,096 | पप्पू यादव (राजेश रंजन) | समाजवादी पार्टी | 2,29,279 |
1999 | पप्पू यादव (राजेश रंजन) | निर्दलीय | 4,38,193 | जय कृष्ण मंडल | भाजपा | 1,85,627 |
2004 | उदय सिंह (पप्पू सिंह) | भाजपा | 2,44,426 | पप्पू यादव (राजेश रंजन) | लोक जनशक्ति पार्टी | 2,31,543 |
2009 | उदय सिंह (पप्पू सिंह) | भाजपा | 3,62,952 | शांति प्रिया (पप्पू यादव की माँ) | निर्दलीय | 1,76,725 |
2014 | संतोष कुशवाहा | जदयू | 4,18,826 | उदय सिंह (पप्पू सिंह) | भाजपा | 3,02,157 |
2019 | संतोष कुशवाहा | जदयू | 6,32,924 | उदय सिंह (पप्पू सिंह) | कांग्रेस | 3,69,463 |
2024 लोकसभा चुनाव
आने वाले लोकसभा चुनाव की बात करें तो अभी पूर्णिया सीट पर परिस्थिति काफी बदल गई है। महागठबंधन की सरकार में जदयू और कांग्रेस दोनों शामिल है। वहीं विपक्ष के INDIA गठबंधन में भी जदयू और कांग्रेस दोनों है। ऐसे में संतोष कुशवाहा और उनके विरोधी उदय सिंह, दोनों ही INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं।
पूर्णिया लोकसभा सीट जदयू विषम परिस्थितियों में 2014 में जीती थी और 2019 में भी इसे बचाने में कामयाब रही, ऐसे में उम्मीद कम ही है की जदयू यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ेगी। इसलिए माना जा रहा है कि 2024 में पूर्णिया में मुक़ाबला जदयू बनाम भाजपा ही होगा। लेकिन, भाजपा का उम्मीदवार कौन होगा, यह अभी तय नहीं है।
पूर्णिया लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों की बात करें तो तीन (पूर्णिया, बनमनखी और कोढ़ा) भाजपा के पास है, दो (धमदाहा और रुपौली) जदयू के पास और एक कसबा, कांग्रेस के पास है।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।