बिहार में होली मनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं।अलग-अलग हिस्सों में अलग तरीके से होली काफी प्रसिद्ध है। समस्तीपुर में छाता पटोरी होली और सहरसा के बनगांव कुर्ता फाड़ होली के बारे में तो आपने सुना होगा। आज हम आपको बताएंगे सुपौल में खेली जाने वाली फूलों की होली के बारे में, जहां बुजुर्गों की टोली ढोल के थाप पर होली के गीत गाते हुए एक दूसरे पर फूल फेंककर कर होली मनाते है।
“पिछले 12 साल यानी 2012 से ही हेल्पेज इंडिया संगठन से जुड़े बुजुर्गों द्वारा फूलों की होली खेली जाती है। कोरोना के वक्त दो साल नहीं खेली गई थी। संगठन से जुड़े सभी बुजुर्ग इस आयोजन के लिए रुपये देते है। आप जैसा देख रहे हैं कि इसमें अधिकांश बुजुर्ग हैं, इसके अलावा हेल्पेज इंडिया से जुड़े लोग और कुछ बच्चे और जवान भी है। इसमें सभी जाति व धर्म के लोग शामिल होते हैं। हमारी पूरी संस्था में 4000 बुजुर्ग शामिल हैं। हालांकि इस समारोह में सभी लोग नहीं आ पाते हैं। किसी को कोई इमरजेंसी रहता है या फिर कोई काम इस वजह से। कुछ लोग दूरी होने की वजह से भी नहीं आ पाते है,” अक्षय वट बुजुर्ग संघ के अध्यक्ष सीताराम मंडल बताते हैं।
हर साल की तरह इस साल भी सुपौल के बसंतपुर प्रखंड अंतर्गत संस्कृत निर्मली स्थित बुजुर्ग संसाधन केन्द्र में बुजुर्गों द्वारा 14 मार्च को सामूहिक होली का आयोजन किया गया था। बस फर्क इतना था कि इस होली में रंगों की वजह फूलों का उपयोग किया जाता है। होली के साथ सामूहिक भोज का भी आयोजन किया जाता है।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर डीपीएम जीविका श्री विजय कुमार साहनी सेवानिवृत्त जिला कृषि पदाधिकारी, डॉ पीके झा, पिरामल फाउंडेशन की डॉ मनु कुमार व हेल्पेज इंडिया संस्था के राज्य प्रमुख श्री आलोक कुमार वर्मा शामिल थे।
रमजान के पाक महीने में सभी धर्म के बुजुर्गों ने खेली होली
हेल्पेज इंडिया के प्रोजेक्ट ऑफिसर ज्योतिष झा बताते हैं, “इस संगठन में शामिल होने वाले सभी बुजुर्ग, चाहे वे किसी भी जाति और धर्म के हों, होली समारोह में शामिल होते हैं। मुसलमान समाज के कई बुजुर्ग इस समारोह में शामिल हुए थे। एक साथ होली खेलकर और एक साथ खाना खाकर जाति-पाति व धर्म से ऊपर उठकर बुजुर्ग सामाजिक समरसता का उदाहरण पेश करते है।”
इस समारोह में शामिल मंटू मंडल कहते हैं, “अभी के समय में तरह-तरह के केमिकलों से बने रंगों से शरीर के साथ-साथ पर्यावरण को होनेवाले नुकसान से बचने के लिए भी इस तरह की होली का आयोजन होता है। साथ ही इस तरह के कार्यक्रम से समाज में बुजुर्ग जो अपने आप को अकेला महसूस करते हैं उनमें नया उमंग जगता है।”
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हेल्पेज इंडिया
हेल्पेज इंडिया एक भारतीय गैर-सरकारी संगठन है जो बुजुर्गों की चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करता है और वृद्धावस्था संबंधी पहलों का समर्थन करता है। बिहार के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक पुष्यमित्र के “कोशी के वट वृक्ष” पुस्तक के मुताबिक, 2008 की भीषण बाढ़ के बाद भीषण पलायन हुआ और लोग सपरिवार पलायन करने लगे लेकिन बुजुर्गों को वहीं गांव में छोड़ दिया गया। ऐसी परिस्थिति में हेल्पेज इंडिया ने बाढ़ में फंसे बुजुर्गों की मदद कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया और जीने का तरीका सिखाया। उनकी स्थिति इतनी बेहतर हो गई कि 2013 में इन्ही बुजुर्गों ने उत्तराखंड में जो बाढ़ आई थी उसमें 5 लाख का चेक देते हुए कहा था कि हमलोग वो कर्ज अदा कर रहे हैं, जो विभिन्न इलाकों से हमें 2007 के बाढ़ के समय मिली थी।
अक्षय वट वृक्ष बुजुर्ग संघ के बांके मंडल कहते हैं, “हर साल हमारे इलाके में बाढ़ आती है, जिससे हमारा पूरा इलाका प्रभावित होता है। ऐसे वक्त में हेल्पेज इंडिया रिलीफ के साथ हमलोगों को जीविका का भी उपाय बताता है। सेल्फ हेल्प समूह की स्थापना करके हम लोग रुपये भी कमा रहे हैं और सामाजिक कामों में भी भाग लेते हैं।”
अभी बुजुर्गों के 400 समूह इस संस्था से जुड़कर आत्मनिर्भर बने हुए हैं। सिर्फ सुपौल जिले से इस संस्था में 4000 से अधिक बुजुर्ग जुड़े हुए हैं।
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