पिछले दिनों बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व विधायक तेजस्वी यादव ने अगले बरस होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लोक-लुभावन स्कीम लाने की घोषणा की।
उन्होंने 18 दिसम्बर को कहा कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनती है, तो माई-बहन योजना शुरू की जाएगी और इसके तहत युवतियों व महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये दिये जाएंगे। इस घोषणा के साथ ही राजद नेताओं ने राजधानी पटना में पोस्टर टांगकर इस प्रस्तावित स्कीम को हितकारी बताया और तेजस्वी यादव की तारीफ में कसीदे पढ़े।
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ये घोषणा महिला वोटरों को लक्षित कर की गई है, जिनकी संख्या बिहार में लगभग 3,64,01,903 है और वे चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। सीएम नीतीश कुमार इसी वोटर समूह की एक ठीकठाक आबादी के भरोसे पिछले लगभग दो दशकों से बिहार की सत्ता की धुरी बने हुए हैं। विधानसभा चुनावों में तीसरे पायदान पाने के बावजूद वे जिस भी गठबंधन के साथ हो लेते हैं, वहां मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके लिए आरक्षित रहती है।
महिलाओं को हर महीने आर्थिक मदद देने का फॉर्मूला कई राज्यों में हुए चुनावों में हिट रहा है, संभवतः यही वजह है कि तेजस्वी यादव ने ये दांव खेला है।
एमपी, झारखंड और महाराष्ट्र में बम्पर जीत का सूत्र
सबसे ताजा उदाहरण महाराष्ट्र है, जहां वित्तमंत्री अजीत पवार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जून में अंतरिम बजट के दौरान लाडकी बहिन योजना की घोषणा की थी। इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने का ऐलान किया था और चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले तक कुछ किस्तें महिलाओं के बैंक खाते में पहुंची भी थीं।
जानकार बताते हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस स्कीम ने भाजपा-नीत महायुती (महागठबंधन) को एक तरह से संजीवनी दे दी और गठबंधन ने बम्पर जीत हासिल की।
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले झारखंड की झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-राजद गठबंधन सरकार ने ‘मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना’ शुरू की थी। इस योजना के तहत सीएम हेमंत सोरेन ने 21 से 49 साल तक की महिलाओं के बैंक अकाउंट में हर महीने 1000 रुपये देना शुरू किया। बाद में हेमंत सोरेन ने मदद राशि 1000 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी।
बताया जा है कि इस स्कीम का लाभ झारखंड की 58 लाख महिलाओं को मिल रहा है। झारखंड में ये स्कीम धरातल पर काफी असरदार रही और हेमंत सोरेन ने दमदार जीत दर्ज की। आंकड़े बताते हैं कि इस बार के चुनाव में 10 से 12 लाख अधिक महिलाओं और खास तौर से ग्रामीण महिलाओं ने वोट डाले, जो जाहिर तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा व उसकी गठबंधन पार्टियों की झोली में गये।
महाराष्ट्र, झारखंड से पहले मध्यप्रदेश और उससे भी पहले पश्चिम बंगाल में ऐसी ही योजनाएं लाकर राजनीतिक पार्टियों ने जीत दोहराई।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले लाडली बहना स्कीम की घोषणा की और इसके तहत महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये दिये गये। यह योजना काफी प्रभावी रही। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस योजना को काफी जोरशोर से प्रसारित किया। सिर्फ इस योजना के प्रचार पर मध्यप्रदेश सरकार ने 119.98 करोड़ रुपये बहा दिये गये। एक तरीके से पूरा चुनावी कैम्पेन शिवराज सिंह चौहान ने इसी योजना के इर्द-गिर्द किया। नतीजतन सरकार विरोधी लहर के बावजूद भाजपा ने शानदार वापसी की।
वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस सरकार ने लोक्खीर (लक्ष्मी का) भंडार योजना शुरू की थी, जिसमें महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिये जाते हैं। ये योजना तृणमूल कांग्रेस के लिए कारगर साबित हुई और एंटी इनकम्बेसी के बावजूद तृणमूल कांग्रेस ने शानदार जीत दोहराई।
हालांकि, इस तरह की योजनाओं का चुनावी फायदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को मिला, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए एंटी इनकम्बेंसी की दीवार पाटने के लिए योजना शुरू की। सत्ता में आने पर इस तरह की योजना शुरू करने के वादों पर वोटरों की प्रतिक्रिया बेहद ठंडी रही। मसलन, कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान वादा किया था कि उनकी सरकार बनने पर न्याय (न्यूनतम आय गारंटी) योजना शुरू की जाएगी, जिसके तहत हर साल महिलाओं के बैंक खातों में 72 हजार रुपये ट्रांसफर किये जाएंगे। इस योजना को दुनिया की सबसे बड़ी न्यूनतम आय योजना मानी जा रही थी। मगर, इस चुनावी घोषणा का महिलाओं पर कोई असर नहीं हुआ।
झारखंड में हेमंत सरकार की ‘मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना’ इतनी कारगर साबित हुई कि भाजपा को मजबूर होकर विधानसभा चुनाव में इसी योजना से मिलती-जुलती ‘गोगो (संथाली भाषा में मां के लिए संबोधन) दीदी योजना’ लाने का वादा करना पड़ा। भाजपा ने इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने की बात कही। लेकिन, इस घोषणा के दो दिन के भीतर हेमंत सोरेन ने मदद राशि 1000 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी। ऐसे में महिला वोटरों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा पर ज्यादा भरोसा किया।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महा विकास अघाडी (एमवीए) ने सरकार बनने पर कर्नाटक में चल रही महालक्ष्मी योजना के तर्ज पर महिलाओं को आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए हर महीने उनके बैंक अकाउंट में तीन हजार रुपये देने का वादा किया था। मगर, वहां एमवीए की करारी शिकस्त हुई और भाजपा गठबंधन ने शानदार वापसी की।
चुनावों में महिलाओं की बढ़ती भूमिका
झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों सत्ताधारी पार्टियों की जीत से ये तो साफ है कि महिला केंद्रित आर्थिक मदद वाली योजनाओं का लाभ इन्हें मिला है। लेकिन इससे ये भी पता चलता है कि महिला वोटर अब काफी हद स्वविवेक से वोट करती हैं, जो पहले नहीं था। साथ ये जीत इस बात की तरफ भी एक इशारा है कि महिला वोटर चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर महिलाओं को सरकार से एक योजना का लाभ मिल रहा है, तो जाहिर है कि वे उसी सरकार पर ज्यादा भरोसा करेगी न कि किसी दूसरी राजनीतिक पार्टी पर, जो चुनाव जीतने पर वैसी ही योजना लाने का वादा कर रही है। “महिलाएं इस ऊहापोह में रहती होंगी कि नई सरकार बनेगी, तो अपना वादा पूरा करेगी कि नहीं, इसलिए वह सत्ताधारी पार्टी को ही चुन लेती है क्योंकि उन्हें इस योजना का लाभ मिल रहा होता है,” एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा।
बिहार की समाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार निवेदिता झा कहती हैं, “महिलाओं के लिए अगर कोई योजना है और उसका लाभ महिलाओं को मिल रहा है, तो महिलाओं पर इसका असर निश्चित तौर पर पड़ता है। वे वोटिंग करते हुए ये देखती हैं कि उन्हें किस योजना से फायदा हुआ है।”
बिहार के संदर्भ में वह कहती हैं, “बिहार में नीतीश कुमार की सरकार आई, तो शुरुआत में महिलाओं को आरक्षण का लाभ दिया गया, लड़कियों के लिए साइकिल योजना शुरू की गई, जिसका काफी असर हुआ। इन योजनाओं के चलते नीतीश कुमार ने महिलाओं का एक मजबूत वोट बैंक तैयार कर लिया।”
गौरतलब हो कि साल 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करने के पीछे भी महिलाओं की एक बड़ी भूमिका थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने एनडीए गठबंधन से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन किया था और साल 2015 का चुनाव दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर लड़ा था। चुनाव से ठीक पहले एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। वहां कुछ महिलाओं ने नीतीश कुमार से मुलाकात कर राज्य में शराबबंदी लागू करने की अपील की थी। उस वक्त नीतीश कुमार ने कहा था कि अगर वह जीत गये, तो शराबबंदी लागू कर देंगे। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू गठबंधन की शानदार जीत हुई और इस जीत के महज कुछ महीनों के भीतर नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी कानून लागू कर दिया।
निवेदिता झा महिलाओं के वोटिंग पैटर्न में बदलाव के पीछे एक दूसरी वजह भी बताती हैं। वह कहती हैं, “बिहार में रोजगार के लिए पुरुषों का पलायन अधिक है। महिलाएं घर पर रहती हैं। ऐसे में जब चुनाव होते हैं, तो राजनीतिक पार्टी का चुनाव करने के लिए पुरुष सदस्यों का उन पर कोई दबाव नहीं होता है। महिलाएं अपने राजनीतिक रुझान का चुनाव करने के लिए आजाद होती हैं और वे उन पार्टियों को चुनती हैं, जिनसे उन्हें फायदा हो रहा है। यही वजह है कि इन दिनों कमोबेश सभी राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के लिए लुभावने वादे कर रही हैं।”
राज्यों के खजाने पर बढ़ता बोझ
इस लुभावनी योजना का केंद्रीय मकसद निश्चित तौर पर चुनाव जीतना है, मगर इसी बहाने इससे महिलाओं को आर्थिक मजबूती भी मिल रही है। उनके हाथ में पैसा आ रहा है, जिससे उनका जीवनस्तर सुधर रहा है।
हालांकि, ये स्कीम खर्चीली भी है, जिसके चलते विपक्षी पार्टियों की तरफ से इसकी व्यवहार्यता को लेकर यदाकदा सवाल उठाये जाते रहे हैं।
पड़ोसी राज्य झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन ने इस स्कीम के लिए 6390.55 करोड़ रुपये आवंटित किये थे, जो राज्य के कुल बजट का लगभग 50 प्रतिशत था। महाराष्ट्र सरकार हर साल लाडकी बहिन योजना पर 35 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है। वहीं, मध्य प्रदेश सरकार के खजाने इस स्कीम पर सालाना 18,000 करोड़ रुपये जा रहा है। वहीं, लोक्खीर भंडार योजना पर पश्चिम बंगाल सरकार का वार्षिक खर्च 11,000 करोड़ रुपये है।
इसलिए तेजस्वी यादव ने सरकार बनने पर माई-बहन योजना शुरू करने का वादा किया, तो जदयू नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। जदयू सांसद व केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने पूछा कि इस योजना के लिए पैसा कहां से आएगा। “क्या लालू यादव के राज में चलने वाले ‘अपहरण उद्योग’ से इसकी फंडिंग करेंगे,” जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन में ललन सिंह ने पूछा। उन्होंने आगे कहा, “याद कर लीजिए 2005 से पहले की बिहार की दशा क्या थी। यहां अपहरण का उद्योग था, गुंडों का राज कायम था। लालू प्रसाद के राज में मुख्यमंत्री आवास से मोटी रकम लेकर अपहरण का कारोबार और ट्रांसफर-पोस्टिंग का काम होता था।”
डिप्टी सीएम व भाजपा नेता सम्राट चौधरी ने इस योजना को लेकर कहा, “राजद के 15 साल के शासन को बिहार की जनता ने देखा है कि किसी तरह जनता को लूटने का काम किया गया। 950 करोड़ रुपये का चारा घोटाला हुआ। गरीबों से नौकरी के बदले जमीन लिखवाने का काम लालू प्रसाद का परिवार करता है। बिहार की जनता ये जानती है। बिहार के लोग किसी भी हालत में लालू परिवार को सत्ता नहीं देंगे।”
जदयू नेताओं के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए तेजस्वी यादव ने कहा, “पहले मुख्यमंत्री बताएं कि 15 दिनों की बिहार यात्रा में जो दो अरब 25 करोड़ 78 लाख रुपये खर्च किया जा रहा है, वो पैसा कहां से आ रहा है।”
उन्होंने आगे कहा कि अगर खर्च बचाने की बात है, तो पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा पिछले 11 सालों में अब तक विज्ञापन पर कितना खर्च किया गया है, इसका हिसाब उन्हें देना चाहिए।
क्या राजद को होगा फायदा?
बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है। कयास है कि सीएम नीतीश कुमार समय से पूर्व चुनाव कराना चाहते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही तेजस्वी यादव ने ये घोषणा की है। लेकिन क्या इस घोषणा का फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा? इस सवाल पर विश्लेषकों की राय अलग है।
पटना के वरिष्ठ पत्रकार दीपक मिश्रा कहते हैं, “जब नकदी रुपये सीधे खाते में जाते हैं, तो सत्ताधारी पार्टी को इसका फायदा होता है। चाहे वो महिलाओं के बैंक अकाउंट में सीधे कैश ट्रांसफर हो, किसान सम्मान निधि योजना हो। इस तरह की योजना में उन्हें ठोस मदद मिलती दिखती है, इसलिए उनका रुझान सत्ताधारी पार्टी की तरफ होता है।”
“मुझे नहीं लगता है कि इस घोषणा से तेजस्वी यादव को कुछ खास चुनावी फायदा मिलेगा क्योंकि तेजस्वी ये मदद देंगे या नहीं, यह अनिश्चित है, लेकिन नीतीश कुमार ने महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण के लिए लगातार काम किया है,” उन्होंने कहा।
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