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क्या विश्वविद्यालयों की लचर शिक्षा व्यवस्था सुधारेंगे नए राज्यपाल

29 नवम्बर 2022 को सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने तो यह तक कह दिया था कि जब तक सत्र नियमित नहीं हो जाते हैं, तब तक विश्वविद्यालय का प्रशासन बिहार सरकार को अपने हाथ में ले लेना चाहिए।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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पिछले साल की बात है। विवेक राज नाम के एक वकील ने बिहार के विश्वविद्यालयों में सत्रों (सेशंस) के लेट चलने को लेकर पटना हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।

याचिका में विवेक राज ने विश्वविद्यालयों में सत्र लेट चलने को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि इससे बिहार के युवाओं का भविष्य बर्बाद हो रहा है। विवेक राज ने यह भी कहा था कि सत्र नियमित करने के लिए विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों से मुलाकात तक की गई, लेकिन नतीजा सिफर रहा।

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इस याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने 4 नवम्बर 2022 को सभी विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर से व्यक्तिगत शपथ पत्र मांगा। कोर्ट ने कहा कि तीन हफ्ते के भीतर शपथ पत्र जमा नहीं करने पर वाइस चांसलरों से 5-5 हजार रुपए जुर्माना वसूला जाएगा। तीन हफ्ते बाद पटना हाईकोर्ट ने फिर इस मामले पर सुनवाई की। जिन विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों से व्यक्तिगत शपथ पत्र मांगा था, उनमें से तीन यूनिवर्सिटी – मगध विश्वविद्यालय, वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी और ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलरों ने शपथ पत्र जमा नहीं किया। इन विश्वविद्यालयो के वाइस चांसलरों को अपनी तनख्वाह से 5000-5000 रुपए जमा करने को कहा था और पूर्णिया यूनवर्सिटी समेत अन्य विश्वविद्यालयों से तुरंत शपथ पत्र जमा करने को कहा था और नहीं जमा करने की सूरत में 5000 रुपए जुर्माना ठोकने की बात कही थी।


29 नवम्बर 2022 को सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने तो यह तक कह दिया था कि जब तक सत्र नियमित नहीं हो जाते हैं, तब तक विश्वविद्यालय का प्रशासन बिहार सरकार को अपने हाथ में ले लेना चाहिए। अदालत ने कहा था, “अगर राज्य सरकार को लगता है कि वाइस चांसलर या अकेडमिशियनों से विश्वविद्यालय का प्रशासन नहीं संभल रहा है तो परीक्षाएं व नामांकन नियमित होने तक ऐसे विश्वविद्यालयों का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।”

पटना हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों से समझा जा सकता है कि बिहार के विश्वविद्यालयों में सत्रों के विलम्ब से चलने का मामला कितना गंभीर है।

पूर्व के राज्यपालों ने क्या किया

साल 2018 में जब सत्यपाल मलिक बिहार के गवर्नर थे, तो उन्होंने ओडिशा के भुवनेश्वर में एक कार्यक्रम में एक बयान दिया था, जो कई दिनों तक बिहार में सुर्खियां बना रहा।

सामान्यत तौर पर राज्य का राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलपति भी होता है। इस लिहाज से वह उस वक्त बिहार के राज्यपाल के साथ साथ बिहार के यूनिवर्सिटीज के कुलपति भी थे।

उन्होंने कहा था, “ओडिशा के विश्वविद्यालय सभी क्षेत्रों में बिहार के विश्वविद्यालयों के मुकाबले बेहतर काम कर रहे हैं।” “मैं बिहार के विश्वविद्यालयों का कुलपति भी हूं, मुझे यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ओडिशा के विश्वविद्यालय, बिहार के विश्वविद्यालयों के मुकाबले काफी बेहतर काम कर रहे हैं। बिहार की शिक्षा व्यवस्था में माफिया का राज है, परीक्षाएं समय पर नहीं होती हैं और अकादमिक कलेंडर जैसी कोई चीज नहीं है। लेकिन, ओडिशा के विश्वविद्यालयों के साथ इस तरह की समस्याएं नहीं हैं।”

मलिक बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर चिंतित जरूर थे, लेकिन वह बहुत कुछ कर नहीं पाए। उनके बाद लालजी टंडन आए। उनका कार्यकाल करीब 11 महीनों का था, लेकिन वह भी बेपटरी हुए विश्वविद्यालयों के अकादमिक सत्रों को ठीक नहीं कर सके। उनके बाद फागू चौहान आए। वह तीन वर्षों से अधिक समय तक राज्यपाल और विश्वविद्यालयों के चांसलर रहे, लेकिन उनके कार्यकाल में भी सुधार न हुआ। बल्कि कई विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए। मगध यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ राजेंद्र प्रसाद पर भ्रष्टाचार को लेकर एफआईआर तक दर्ज हुई। उन पर विजिलेंस का छापा पड़ा और 90 लाख रुपए बरामद हुए। काफी दिनों तक वह फरार रहे। बाद में उन्होंने सरेंडर किया।

वाइस चांसलर के अलावा मगध यूनिवर्सिटी के कई कर्मचारी भी जांच के दायरे में आए। ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी, मौलाना मजहरूल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय और पूर्णिया यूनिवर्सिटी में भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आए। पूर्णिया यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बाद में यूपी के एक विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर बने।

छात्रों का भविष्य दांव पर

अब बिहार को फिर एक नया राज्यपाल मिला है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को बिहार का राज्यपाल बनाया गया है।

बतौर राज्यपाल उन पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है बिहार के विश्वविद्यालयों की शिक्षा को पटरी पर लाना, क्योंकि बिहार के अधिकांश विश्वविद्यालयों के अकादमिक व परीक्षा कलेंडर काफी लेट चल रहे हैं जिससे लाखों छात्रों का भविष्य दांव पर है।

सैयद मुजम्मिल जमाल पूर्णिया यूनिवर्सिटी से संबद्ध अररिया कॉलेज में अंग्रेजी में एमए (मास्टर्स इन आर्ट) कर रहे हैं। उनका अकादमिक सत्र 2020-22 है यानी कि 2022 तक उनका एमए पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन वह तीसरे सेमेस्टर की ही परीक्षा दे रहे हैं।

“साल 2021 के मध्य में तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा होनी चाहिए थी, लेकिन तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा अभी चल रही है। इसके बाद चौथे सेमेस्टर की परीक्षा होगी और इसके बाद रिजल्ट आएगा। अभी तो दिख रहा है कि मेरा एक साल बर्बाद हो गया है। अगर चौथे सेमेस्टर की परीक्षा लेट हो गई थी और वक्त जाया होगा,” 25 वर्षीय मुजम्मिल कहते हैं।

वह आगे पीएचडी करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “अगर समय पर परीक्षाएं हो जातीं, तो मैं पिछले साल ही नेट (नेशनल एलिजिब्लिटी टेस्ट) की परीक्षा दे देता, लेकिन सत्र लेट होने के कारण मैं यह परीक्षा नहीं दे पा रहा हूं. मैंने अपने करियर के बारे में जो लक्ष्य लेकर चल रहा था, उसमें एक साल का विलम्ब हो गया।”
मुजम्मिल बताते हैं कि साल 2020 में एमए में नामांकन कराने के बाद से अब तक विश्वविद्यालय प्रशासन में परीक्षाएं समय पर लेने में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं दिख रही है। उनकी शिकायत सिर्फ विलंबित परीक्षा ही नहीं है। उनका यह भी कहना है कि कॉपियां भी सही नहीं जांची जाती है। “छात्रों को औसत नंबर दे दिया जा रहा है, जिससे साफ पता चलता है कि कॉपियां भी ढंग से नहीं जांची जा रही हैं।”

मुजम्मिल की शिकायतें सिर्फ उनकी शिकायतें नहीं हैं। बिहार के कॉलेजों में लगभग 23.55 लाख छात्र पढ़ रहे हैं और सभी छात्रों की शिकायतें मुजम्मिल जैसी ही हैं। सत्र लेट होने से वे कई तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं में देर से बैठ पाते हैं। कई बार कुछ प्रतियोगी परीक्षाएं छात्र निकाल भी लेते हैं, तो वहां यूनिवर्सिटी का सर्टिफिकेट देने में सालों का इंतजार करना पड़ता है क्योंकि परीक्षाएं लेट चल रह होती हैं।

किशनगंज के बहादुरगंज के रहने वाले धीरज कुमार सिन्हा पूर्णिया यूनिवर्सिटी से संबद्ध नेहरू कॉलेज में स्नातक में पढ़ते हैं। अगर सत्र नियमित होते, तो वह अब तक स्नातक की डिग्री ले चुके होते, लेकिन उनका सत्र 6 महीने देर है। हालांकि पहले सत्र और भी ज्यादा लेट था।

उन्होंने कहा कि पार्ट-2 की परीक्षा लेने के बाद रिजल्ट आया और रिजल्ट आने के महज तीन महीने के भीतर पार्ट-3 की परीक्षा ले ली गई। “हमलोगों ने तैयारी नहीं की थी। हमें पता भी नहीं था कि इतनी जल्दी पार्ट-3 की परीक्षा हो जाएगी।”

धीरज बताते हैं। उन्होंने आगे कहा, “दो पार्ट्स के बीच एक साल का अंतराल होना चाहिए, लेकिन हमलोगों को केवल तीन महीने दिए गए और उसमें भी एक महीना फार्म भरने वगैरह में ही निकल गया। जैसे तैसे हमलोगों ने परीक्षा दे दी। रिजल्ट कैसा होगा पता नहीं।”

धीरज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा, “फागू चौहान का कार्यकाल बिहार के विश्वविद्यालयों के लिए बुरा रहा। वह विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं नियमित कराने में न केवल विफल रहे, बल्कि उनके राज्यपाल रहते खूब भ्रष्टाचार की खबरें सामने आईं।”

6 माह से दो साल तक सत्र लेट

बिहार में 12 सरकारी विश्वविद्यालय हैं। इनमें से लगभग सभी विश्वविद्यालयों में अकादमिक सत्र लेट चल रहे हैं।

अकादमिक सत्र की लेटलतीफी किसी यूनिवर्सिटी में 6 महीने तो किसी में दो साल तक की है। मगध विश्वविद्यालय, तिलका मांझी विश्वविद्यालय, पूर्णिया यूनिवर्सिटी, बीआरए बिहार यूनिवर्सिटी और जेपी यूनिवर्सिटी में सत्र डेढ़ से दो साल तक लेट है। यानी कि इन विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र तीन साल का ग्रेजुएशन पांच साल में और दो साल का एमए चार साल में पूरा करते हैं। वहीं, पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी, पटना यूनवर्सिटी में सत्र करीब 6 महीने लेट से चल रहे हैं।

सत्रों का लेट चलना एक बड़ी समस्या तो है ही, साथ ही कॉलेजों में शिक्षकों की भी काफी किल्लत है। इससे पढ़ाई भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। केवल पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों में शिक्षकों के लगभग 500 पद खाली हैं। साल 2021 की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पटना यूनिवर्सिटी में 60 प्रतिशत विषयों में शिक्षकों की कमी है। यही हाल महिला मगध कॉलेज का है।

उक्त रिपोर्ट बताती है कि बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 603 पद, ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के 856 पद, जेपी यूनिवर्सिटी में 319 पद, बीएन मंडल यूनिवर्सिटी में 377 पद, वीर कुंवर विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 428 पद, पूर्णिया विश्वविद्यालय में 213 पद और मगध यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के 381 पद खाली हैं। नये राज्यपाल को कॉलेज में शिक्षकों की नियुक्ति पर भी ध्यान देना होगा।

“तय हो राज्यपाल की जवाबदेही”

विश्वविद्यालयों में सत्रों में लेटलतीफी को लेकर पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका डालने वाले वकील विवेक राज कहते हैं, “विश्वविद्यालयों को सुधारने में राज्यपाल की बड़ी भूमिका है क्योंकि वे ही वाइस चांसलरों की नियुक्ति करते हैं। लेकिन, राज्यपाल की कोई जवाबदेही नहीं होती है, यही वजह है कि विश्वविद्यालयों में अकादमिक सत्रों की दयनीय स्थिति के बावजूद कोई जिम्मेवारी तय नहीं हो पाती है। अगर राज्यपाल की जबावदेही तय होती है, तो हालात जरूर सुधर सकते हैं।”

उन्होंने कहा, “पटना हाईकोर्ट की सख्ती के बाद विश्वविद्यालयों में अकादमिक व परीक्षा सत्रों में सुधार होता दिख रहा है, लेकिन बहुत सारी समस्याएं अब भी बरकरार हैं। विश्वविद्यालयों से संबद्ध कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है, बुनियांदी ढांचे का टोटा है। इन सबको दुरुस्त करने की जरूरत है। इसके अलावा बहुत सारे निजी विश्वविद्यालय खुल गए हैं, जो एक दो कमरे में संचालित हो रहे हैं। उन्हें किसी तरह की कोई मान्यता नहीं मिली है, लेकिन छात्र इनके चंगुल में फंस रहे हैं।”

नये राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने शुक्रवार को शपथ ले ली है। अब लाखों कॉलेज छात्रों की नजर उन पर है। अब देखने वाली बात होगी कि वह इस ओर कितना ध्यान देते हैं।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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