अगर यह कहा जाए कि किशनगंज स्थित ऐतिहासिक खगड़ा मेला किशनगंज ज़िले से भी ज़्यादा प्रसिद्ध है तो ग़लत नहीं होगा। खगड़ा मेला बिहार के सबसे पुराने और सबसे विख्यात मेलों में से एक है। आखिरी बार खगड़ा मेले का आयोजन 2019-20 में किया गया था। आज इस ऐतिहासिक मेले का अस्तित्व इतिहास के किताबों में बंद होने के खतरे से गुज़र रहा है। खगड़ा मेले की पहचान के तौर पर खगड़ा चौक पर खगड़ा मेला गेट के नाम से मशहूर एक मुख्य द्वार हुआ करता था जिसे कुछ महीने पहले तोड़वा दिया गया। जर्जर हो चुके खगड़ा मेला गेट का सौन्दर्यकरण कराने की बात कही गई थी हालांकि अब तक इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया गया है।
खगड़ा मेला एक विशाल मैदान नुमा परिसर में आयोजित होता रहा है। आज हालत यह है कि चंद दुकानों और सब्ज़ी बाज़ार को छोड़कर बाकी खाली पड़े मैदान में मवेशी चरते हुए दिखते हैं। मैदान ने पिछले कुछ सालों में झुग्गियों की शक्ल ले ली है। कई परिवार झोपड़ी या खैमा नुमा घर बनाकर मैदान में रहते हैं। इन्हीं झुग्गियों के सामने कूड़ा करकट का एक अम्बार खड़ा हो रहा है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि पिछले 4-5 महीनो से म्युनिसिपैलिटी की गाड़ी मैदान में प्रत्येक दिन कूड़ा करकट डाल जाती है। स्थानीय वीरेन कुमार खुद कूड़ा चुनते हैं और उसे बेचकर गुजारा करते हैं। उनका कहना है कि कूड़े की वजह से यहाँ रहने वाले परिवारों के बच्चे लगातार बीमार पड़ रहे हैं। उनके अनुसार, गाड़ी वाले को मना करने पर उन्हें नगरपालिका जाकर शिकायत करने की हिदायत दी गई।
टोटो चालक खुर्शीद आलम ने बताया कि ज़मीन न होने के कारण उन जैसे दर्जनों परिवार मैदान में तम्बू गाड़कर या झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। घरों के सामने कूड़ा फेंका जाता है जिससे आये दिन बच्चे बीमार पड़ते हैं और कई बार बच्चों को अस्पताल ले जाने की नौबत आ जाती है।
स्थानीय मोहम्मद ज़ुबैर आलम की मानें तो पिछले 5 महीनो से रोज़ 6-7 कूड़े की गाड़ियों से कूड़ा मैदान में फेंका जाता है। उनके अनुसार शनिवार को इलाके में हाट लगता है, इसलिए शनिवार को कूड़े की गाड़ियां नहीं आतीं।
कैसे हुई खगड़ा मेले की शुरुआत
खगड़ा मेले की शुरुआत सन 1883 में की गई थी। उस समय के खगड़ा एस्टेट के नवाब सैय्यद अता हुसैन खान ने इस मेले को शुरू किया था। सन 1911 में प्रकाशित हुए पूर्णिया के ओल्ड गज़ेटियर में खगड़ा मेले का ज़िक्र मिलता है। गज़ेटियर में लिखा गया है कि एक सूफी फ़क़ीर बाबा कमली शाह ने खगड़ा एस्टेट के नवाब सैय्यद अता हुसैन खान को एक मेले की शुरुआत करने की सलाह दी थी, ताकि दुकानदारों की आमदनी में इज़ाफ़ा हो और किशनगंज और आस=पास के लोगों को रोज़गार के अवसर मिल सकें। खगड़ा के नवाब ने पूर्णिया के डीएम ए वीक्स और किशनगंज के अनुमंडल पदाधिकारी राय बहादुर दास दत्ता के समक्ष मेला आयोजित करने का विचार रखा जो उन्हें पसंद आया और इस तरह वर्ष 1883 की सर्दियों में खगड़ा मेले की शुरुआत हुई। खगड़ा के नवाब सईद अता हुसैन खान ने मेले को प्रायोजित किया। उन्होंने पुराना खगड़ा ड्योढ़ी से एक पक्की सड़क गंगा-दार्जिलिंग सड़क तक मिला दी। खगड़ा एस्टेट के प्रबंधक टॉल्ट्स ने मेले तक आने वाली सड़कों को पुख्ता करवाया, जगह-जगह पर कुएं खुदवाए और मेले के परिसर में वृक्ष लगवाए।
खगड़ा के इस विशाल मेले में शुरुआती दशकों में राज्य से बाहर के दुकानदारों की लम्बी कतार रहती थी। उत्तर प्रदेश, ढाका, मुर्शिदाबाद और बंगाल के दूसरे शहरों से व्यापारी आते थे। खगड़ा मेले में तरह तरह के जानवरों को लाया जाता था जो मेले के आकर्षण को दुगना कर देते थे। पुराने गज़ेटियर में खगड़ा मेले से जुड़े कुछ काले तत्वों को भी जगह दी गई है जैसे उसमें खगड़ा मेला में महिलाओं की तस्करी और वैश्यावृति का ज़िक्र मिलता है। वैश्यावृति की ख़बरों से खगड़ा मेले का नाम धीरे-धीरे खराब होता गया। इस समस्या के समाधान के लिए अनैतिक अधिनियम लाया गया।
सन 1953 में भूमि सुधार अधिनियम के तहत खगड़ा मेले को राजस्व विभाग के प्रबंधन में दे दिया गया। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, सन 1953-54 में खगड़ा मेले से होने वाली कुल आमदनी 91,527 रुपए थी। साल 1954-55 में 89,690 रुपए, 1955-56 में 96,455 और 1956-57 में आमदनी 1,27,618 रुपए पहुंच गई थी। साल 1957 में खगड़ा के नवाब ने खगड़ा मेला स्थल के कुछ हिस्सों पर निजी ज़मीन होने का दावा किया, जिसके बाद यह कानूनी लड़ाई तीन साल तक चली। उस दौरान खगड़ा मेला तीन अलग अलग दलों के द्वारा संचालित किया जा रहा था- राज्य सरकार, खगड़ा के नवाब और रैय्यत। 1959-60 में बिहार भूमि सुधार अधिनियम में संशोधन के तहत राज्य सरकार को मेले का पूर्ण अधिकार मिल गया। उस समय बिहार सरकार ने खगड़ा नवाब को 25,212 रुपए देकर समझौता किया था।
मेला परिसर खस्ताहाल
ऐतिहासिक खगड़ा मेला पिछले कुछ सालों से अपनी चमक खोने लगा है। मेला आयोजित होने वाले मैदान में गन्दगी के साथ साथ काफी गड्ढे देखे जा सकते हैं। कोरोना माहमारी के बाद से अब तक खगड़ा मेले का आयोजन नहीं हो सका है। आखिरी बार 2019-2020 में लगे मेले में पहले के मुक़ाबले कम भीड़ दिखी थी।
बीते वर्षों में किशनगंज निवासी धनन्जय कुमार सूरी खगड़ा मेले का टेंडर लेते रहे हैं। ‘मैं मीडिया’ से बातचीत में उन्होंने बताया कि आखिरी बार 2020 में मेले का आयोजन किया गया था, तब मेले का टेंडर उनके भाई अजय कुमार साहा ने लिया था जिसमें अजय साहा को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था।
धनन्जय कुमार ने आगे बताया कि खगड़ा मेले के आकर्षण में कमी आई है। उनके अनुसार इसके कई कारण हैं। उन्होंने आगे बताया, “मेले का जो परिसर है, वहां आये दिन नशेड़ियों को पकड़ा जाता है। इसके अलावा मैदान में कूड़ा करकट भी डंप किया जा रहा है, जिसके लिए हम लोगो ने विभाग को एक शिकायत पत्र भेजा था, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई। मेले के परिसर में नशा और चोरी की घटनाएं बढ़ गयी हैं, ऐसे में बाहर से आने वाले दुकानदारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कौन लेगा।”
Also Read Story
उनके अनुसार खगड़ा मेले के आयोजन में अब पहले से दोगुना खर्च आता है लेकिन वैसी रिकवरी नहीं हो पाती है। यही कारण है कि 3 साल से खगड़ा मेले का आयोजन नहीं हो पाया है। धनन्जय कुमार की मानें, तो इस बार पिंटू नामक एक व्यक्ति ने खगड़ा मेले के टेंडर के लिए आवेदन दिया है। टेंडर पास होता है या नहीं यह देखने योग्य बात होगी।
साल 2019-20 में खगड़ा मेले का टेंडर लेने वाले अजय साहा से हमने फ़ोन कॉल के माध्यम से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने फ़ोन पर कुछ भी बताने से मना कर दिया।
खगड़ा मेला इस बार लग पाता है या नहीं, यह तो अगले कुछ हफ़्तों में पता चल जायेगा लेकिन फिलहाल मेले के परिसर की दयनीय हालत देख कर यह अंदाज़ा लगाना बहुत कठिन नहीं कि अगर टेंडर पास भी हो जाये तो इतनी जल्दी मुख्य द्वार बनाना और मैदान में तैयार हो रहे डंपिंग ग्राउंड को वहां से हटाना कतई आसान कार्य नहीं होगा। ऐसे में यह सवाल भी लाज़मी है कि क्या यह बदहाली इस डेढ़ सौ साल पुराने ऐतिहासिक मेले के अध्याय का अंत है?
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।
