असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन यानी AIMIM के बिहार में पांच विधायकों में से चार विधायक बुधवार को राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद में शामिल हो गए। इन चार विधायकों में जोकीहाट विधायक शाहनवाज़, बहादुरगंज विधायक अंजार नईमी, कोचाधामन विधायक इजहार अस्फ़ी और बायसी विधायक सय्यद रुकनुद्दीन अहमद शामिल हैं। AIMIM के पास अब बिहार में एक सिर्फ विधायक बचा है – अमौर विधायक सह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान।
लेकिन, सीमांचल की राजनीति में इस उलटफेर के साथ ही एक सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि क्या यह सीमांचल में AIMIM की सियासत का अंत है?
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2014 लोकसभा चुनाव
शुरुआत शुरू से करते हैं। साल 2014 तक अख्तरुल ईमान कोचाधामन विधानसभा से राजद के विधायक थे। उधर 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भाजपा से अलग हो गई थी। जदयू ने इस लोकसभा चुनाव में किशनगंज से अख्तरुल ईमान को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन, वोटिंग नज़दीक आते ही ईमान ने कांग्रेस के उम्मीदवार मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी को समर्थन दे दिया। इस तरह से अख्तरुल ईमान कुछ साल के अंदर ही बिहार की दोनों बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों राजद और जदयू से दूर हो गए।
AIMIM और ईमान
दूसरी तरफ सामने 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव था और असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल में एंट्री के लिए एक चेहरे की तलाश में थे। अख्तरुल ईमान पहले तीन बार विधायक रह चुके थे और 2014 में लोकसभा चुनाव में अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के बाद भी उन्हें उस चुनाव में लगभग 56,000 वोट आए थे। इसलिए ओवैसी ने अख्तरुल ईमान को बिहार में यूं कह लें कि सीमांचल में पार्टी का चेहरा बना कर 2015 के विधानसभा चुनाव में उतरे। हालांकि, उस चुनाव में पार्टी को कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई और खुद अख्तरुल ईमान कोचाधामन विधानसभा से चुनाव हार गए।
2019 लोकसभा चुनाव
इस हार के बाद AIMIM अख्तरुल ईमान को किशनगंज से प्रत्याशी बना कर 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई। और इसका असर चुनाव परिणाम में साफ़ नज़र आया। हालांकि पार्टी इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही, लेकिन अख्तरुल ईमान को करीब 3 लाख या 27 प्रतिशत वोट मिले।
उन्होंने प्रतिद्वंद्वी पार्टियों को कड़ी टक्कर दी थी। साथ ही इस चुनाव में AIMIM ने किशनगंज ज़िले के कोचाधामन और बहादुरगंज विधानसभाओं में सबसे ज़्यदा वोट हासिल किया। पार्टी को कोचाधामन में 68,242 और बहादुरगंज में 67,625 वोट मिले। वहीं अमौर में 51,384 वोट लाकर पार्टी ने दूसरा स्थान हासिल किया। किशनगंज विधानसभा में पार्टी को 40,000 से ज़्यादा वोट मिले।
इससे हुआ यह कि आने वाला विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए आसान हो गया। 2019 में किशनगंज विधानसभा पर उपचुनाव हुआ और AIMIM के कमरुल होदा ने इस चुनाव में जीत दर्ज की और इस तरह बिहार में AIMIM का खाता खुला। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM कोचाधामन और बहादुरगंज आराम से जीत गई। वहीं अख्तरुल ईमान ने खुद अमौर से चुनाव लड़ कर 51,384 वोट को 94,459 तक पहुंचा दिया।
बायसी में रुकनुद्दीन
अगर बात बायसी की करें, तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को यहाँ सिर्फ 29,286 हज़ार ही वोट आए थे। ऐसे में 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने क्षेत्र के ही एक पूर्व विधायक सय्यद रुकनुद्दीन अहमद को टिकट देकर पार्टी की जीत की संभावनाएं बढ़ा दीं।
जोकिहाट और एक परिवार
वहीं, जोकीहाट विधानसभा की लड़ाई पार्टी से ज़्यादा एक परिवार की सियासत के इर्द गिर्द घूमती है। यह सीट राजद के वरिष्ठ नेता मरहूम तस्लीमुद्दीन का गृह विधानसभा है। साल 2005 का चुनाव छोड़ दिया जाए तो बाकी चुनावों में तस्लीमुद्दीन या उनके बेटे सरफ़राज़ आलम और शाहनवाज़ आलम अलग-अलग पार्टियों से यहाँ चुनाव जीतते रहे हैं। इसलिए इस सीट को AIMIM से तभी तक जोड़ा जा सकता है, जब तक इन दोनों भाइयों में से कोई एक पार्टी के साथ हो।
2024 लोकसभा चुनाव
इस पूरी कहानी को समझने के बाद, ये कहा जा सकता है कि राजद ने AIMIM के विधायकों को भले ही अपनी पार्टी में शामिल कर लिया हो, लेकिन राजद या उसके सहयोगी दलों के लिए आने वाले दिनों में कोचाधामन, बहादुरगंज या अमौर जैसी विधानसभा सीटों को जीतना आसान नहीं होगा। बल्कि इन विधानसभा क्षेत्रों में AIMIM की मजबूती 2024 के लोकसभा चुनाव में अख्तरुल ईमान को एक मजबूत उम्मीदवार बना सकती है।
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