राष्ट्रीय जनता दल (राजद) एमएलसी (विधान पार्षद) सुनील सिंह की सदस्यता खत्म कर दी गई।
बिहार विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने के साथ ही गुरुवार को जदयू के वरिष्ठ सदस्य और उप सभापति डॉ रामवचन राय की अध्यक्षता में बनी आचार समिति ने इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार सदन में पेश की थी। रिपोर्ट में सुनील सिंह पर एक्शन लेने की सिफारिश की गई थी, जिस पर कार्रवाई करते हुए सभापति अवधेश नारायण सिंह ने सुनील कुमार सिंह की सदस्यता रद्द करने का आदेश दिया। वहीं, राजद के ही एक अन्य एमएलसी मोहम्मद कारी सोहैब को आगामी शीतकालीन सत्र में दो दिनों के लिए निलंबन का भी फैसला लिया गया है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि सुनील सिंह विधान पार्षद की सदस्यता के योग्य नहीं हैं। सुनील सिंह 29 जून 2020 को एमएलसी बने थे और उनका कार्यकाल 28 जून 2026 तक था।
इस कार्रवाई को राजद ने अवैध करार दिया है। राजद का कहना है कि इस मामले में ज्यादा से ज्यादा कार्रवाई ये होनी चाहिए थी कि उनकी भर्त्सना की जाती और इस पर चर्चा होती, लेकिन सीधे उनकी सदस्यता खत्म हो गई। हैरानी तो ये है कि इस मामले में सुनील सिंह से कोई सफाई तक नहीं ली गई और न उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया।
राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव, विधान पार्षद मोहम्मद कारी सोहैब और डॉ अजय कुमार ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि दो जदयू नेताओं ने पार्टी में अपना कद बढ़ाने के लिए यह कारर्वाई करवाई है, हालांकि उन्होंने उनका नाम नहीं लिया।
पार्टी ने इसे पक्षपातपूर्ण कार्रवाई करार देते हुए कहा कि इसी सदन में जीतनराम मांझी, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया, लेकिन आचार समिति ने कोई कार्रवाई नहीं की।
क्या है पूरा मामला
मामला इसी साल 13 फरवरी का है जब सदन में बजट सत्र चल रहा था। उक्त दिन राज्यपाल के अभिभाषण पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के धन्यवाद प्रस्ताव के समय सुनील सिंह ने कथित तौर पर नीतीश कुमार की मिमिक्री करते हुए उनका मजाक उड़ाया था।
जदयू एमएलसी ने इसको लेकर शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद ही आचार समिति का गठन किया गया था।
सूत्रों ने बताया कि आचार समिति ने उस दिन की कार्यवाही के वीडियो का अवलोकन किया जिसमें पाया गया कि सुनील सिंह औऱ मोहम्मद कारी सोहैब ने वेल में उतर कर मुख्यमत्री नीतीश कुमार की मिमिक्री की और उनके लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया। सभापति लगातार उनसे वेल से हटने का आदेश देते रहे, लेकिन सुनील सिंह ने कथित तौर पर उन आदेशों की अवहेलना की और लगातार सदन की कार्यवाही में व्यवधान डालते रहे।
बताया जाता है कि उस रोज सुनील सिंह और मोहम्मद कारी सोहैब ने मुख्यमंत्री की कथित तौर पर मिमिक्री करते हुए ये भी कहा था कि वे 18 साल से बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री बने हुए हैं।
आचार समिति ने जांच के क्रम में सुनील सिंह का पक्ष जानने के लिए उन्हें कई बार बुलाया था, लेकिन सुनील सिंह एक बार ही उपस्थित हुए थे।
सुनील सिंह का कहना है कि जब उन्हें समिति ने बुलाया था, तब लोकसभा का चुनाव चल रहा था और वह उस वक्त सारण लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी थे।
आखिरकार 12 मई को वह समिति के समक्ष हाजिर हुए। उनका आरोप है कि समिति ने उन्हें अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया।
कब होती है ऐसी कार्रवाई
निलंबन की कार्रवाइयों के संबंध में भारतीय संविधान और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 191 के अनुसार, यदि किसी राज्य का विधायक या विधान पार्षद, भारत सरकार या राज्य सरकार में ऐसे पद पर है, जो लाभ का पद है तो उसकी सदस्यता रद्द हो सकती है। इसके अलावा अगर कोई सदस्य अदालत द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित किया गया हो; अगर कोई सदस्य दिवालिया घोषित हो गया हो; अगर उक्त सदस्य भारत का नागरिक नहीं है या किसी और देश का नागरिक बन गया है, तो सदस्य की सदस्यता जा सकती है। अगर संसद द्वारा बनाये गये किसी कानून के तहत वह अयोग्य घोषित कर दिया गया हो, तो वैसी स्थिति में भी उसकी सदस्यता जा सकती है। दल-बदल की स्थिति में भी सदस्यता छिन जाने की संभावना रहती है।
भारतीय संविधान के प्रावधानों के अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (1) के अंतर्गत किसी अपराध में दोषी पाये जाने की सूरत में भी सदस्यता रद्द हो सकती है।
हालांकि, जानकारों का कहना है कि सुनील सिंह पर उपरोक्त में कोई भी नियम लागू नहीं होता है क्योंकि ऐसी कोई भी स्थिति उनके साथ घटित नहीं हुई है, तो फिर कैसे हुई उन पर कार्रवाई? दरअसल, सुनील सिंह पर कार्रवाई बिहार विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली के तहत की गई है, जिसके नियम 290 की कंडिका 10(घ) के अंतर्गत समिति गठित करने और समिति की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जा सकती है।
राजद नेता व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया। उन्होंने कहा कि (यह) लोकतंत्र की हत्या है। नारेबाजी सब करते हैं। उनकी (सुनील सिंह) चिट्ठी रिसीव भी नहीं की गई है। तीन-चार महीने पहले जब विपक्ष में बीजेपी वाले थे, तब हमेशा वेल में आकर खड़े रहते थे। सदन चलने नहीं देते थे, वह सब भूल गये हैं।
कौन हैं सुनील सिंह
54 वर्षीय सुनील सिंह, लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं और कहा ये भी जाता है कि लालू परिवार से उनका रिश्ता परिवार जैसा है।
मूल रूप से सारण के रहने वाले सुनील सिंह लम्बे समय तक बिहार की सबसे बड़ी सहकारिता समिति बिस्कोमान के चेयरमैन रहे। लालू परिवार से उनकी करीबी और उनका सारण निवासी होने के चलते ही इस लोकसभा चुनाव में उन्हें रोहिणी आचार्य के चुनावी कैम्पेन की जिम्मेवारी दी गई, जो सारण लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही थीं। इस चुनाव में रोहिणी आचार्य की हार हुई थी और भाजपा नेता राजीव प्रताप रूडी ने जीत दोहराई थी। हालांकि, इस बार रूडी की जीत कर मार्जिन 1,38,429 से घट कर मात्र 13,661 रह गया।
लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चले आईआरसीटीसी केस के सिलसिले में वर्ष 2022 में सीबीआई ने सुनील सिंह के घर पर भी छापेमारी की थी।
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