30 अप्रैल को जब हम काराकाट लोकसभा क्षेत्र में एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भोजपुरी स्टार पवन सिंह की गतिविधियों को बेहद करीब से देख रहे थे, तो दोनों की कार्यशैली काफी अलग थी।
उस झुलसाती हुई दोपहर को पवन सिंह राजपूत बहुल गांवों में जनसंपर्क साध रहे थे और वह जहां भी जाते, उनके साथ एक हुजूम जुड़ जाता था। लेकिन, उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियां काफी शांत तरीके से चल रही थीं। शायद इसकी वजह ये भी थी कि दोनों बिल्कुल अलग-अलग क्षेत्रों से ताल्लुक रखते हैं। पवन सिंह भोजपुरी गायक हैं और उनके लाखों प्रशंसक हैं, जो उन्हें देखने के लिए दीवाने बन जाते हैं, जबकि उपेंद्र कुशवाहा विशुद्ध राजनेता हैं और उनका एक लम्बा करियर राजनीति करते हुए बीता है।
उपेंद्र कुशवाहा जिस रास्ते से गुजरते, वहां अपेक्षाकृत कम हलचल होती थी, लेकिन पवन सिंह जहां जाते, वहां एक उच्छृंखल भीड़ जुट जाती।
पवन सिंह के लिए उमड़ने वाली भीड़ केवल भीड़ भर नहीं थी, हमारी बातचीत में भीड़ में शामिल कई लोगों ने ये इच्छा जाहिर की कि वे पवन सिंह को वोट देने का मन बना रहे हैं।
उस दोपहर पवन सिंह अपने काफिले के साथ धर्मपुरा गांव के मुखिया के घर पहुंचे, जहां उन्हें दोपहर का भोजन करना था। मुखिया के आवास पर पहुंचते ही भीड़ मकान के सामने जुट गई थी, जो लगातार शोर मचाते हुए पवन सिंह से एक बार चेहरा दिखाने की गुजारिश कर रही थी। सभी के मोबाइल कैमरे मकान की तरफ थे। वे पवन सिंह को अपने मोबाइल फोन में कैद कर लेना चाहते थे।
तकरीबन 40 मिनट के लम्बे इंतजार के बाद पवन सिंह बालकनी में आते हैं और एक मिनट तक हाथ हिलाने के बाद वापस चले जाते हैं। कुछ देर बाद उनका काफिला वहां से निकल जाता है।
इसी भीड़ में शामिल एक युवक राहुल कुमार सिंह कहते हैं कि वह इस बार पवन सिंह को वोट देंगे क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा ने सांसद रहते इलाके में कोई काम नहीं किया। वह राजपूत जाति से ताल्लुक रखते हैं और उनकी पवन सिंह को वोट देने के पीछे एक दूसरी वजह ये भी है कि पवन सिंह भी उनकी ही जाति के यानी राजपूत हैं। राहुल यह भी बताते हैं कि उनके कई मुसलमान दोस्त हैं, जो पवन सिंह को वोट डालने का मन बना चुके हैं।
हालांकि, एक अन्य युवक, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते हैं, कहते हैं कि पवन सिंह के लिए जुटी भीड़ से वोट का आकलन नहीं किया जाना चाहिए। “आप देखिए, इस भीड़ में तो आधे से ज्यादा तो बच्चे हैं, जिनकी वोट करने की अभी उम्र भी नहीं हुई है। ये सिर्फ पवन सिंह को देखने आये हैं,” वह कहते हैं।
काराकाट सीट का इतिहास
काराकाट लोकसभा सीट में रोहतास और औरंगाबाद जिलों के इलाके आते हैं। ये सीट वर्ष 2009 में अस्तित्व में आई है और यहां से पहला सांसद जदयू के टिकट पर महाबली कुशवाहा बने थे। वर्ष 2014 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने यहां से जीत दर्ज की थी, लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में महाबली कुशवाहा ने दोबारा जीत हासिल की। इस बार एनडीए में यह सीट राष्ट्रीय लोक मोर्चा के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा को मिली है।
पवन सिंह, भाजपा से जुड़े हुए थे और पार्टी ने उन्हें पहले आसनसोल लोकसभा सीट से टिकट दिया था, लेकिन उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। भाजपा ने हाल ही में उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया है।
उपेन्द्र कुशवाहा कोइरी जाति से आते हैं और कहा जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा को हराने के लिए भाजपा ने ही पवन सिंह को चुनाव में उतारा है। लेकिन, उपेंद्र कुशवाहा इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वह कहते हैं कि किसी को भी चुनाव लड़ने की आजादी है और वह ऐसा नहीं मानते हैं कि उनके खिलाफ कोई साजिश हुई है। वहीं, उनके एक समर्थक का कहना है कि जब तक भाजपा उन्हें पार्टी से बाहर नहीं करती है तब तक वह मानेंगे कि उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ साजिश के तहत उन्हें उतारा गया है।
वहीं, इंडिया गठबंधन की तरफ से इस सीट से भाकपा (माले) – लिबरेशन के नेता राजाराम सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। राजा राम सिंह, कुशवाहा (कोइरी) जाति से आते हैं और उनका राजनीतिक करियर काफी लम्बा है। वह पूर्व में विधायक रह चुके हैं। वह पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी हैं।
काराकाट सीट पर राजपूत, यादव व कुशवाहा जातियों के करीब 2-2 लाख वोटर हैं। ऐसे में पवन सिंह का चुनावी मैदान में उतरना उपेंद्र कुशवाहा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है क्योंकि पवन सिंह राजपूतों का वोट काट सकते हैं, जो हाल के वर्षों में भाजपा के कैडर वोट बन चुके हैं।
उम्मीदवारों के सामने चुनौतियां
हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा के प्रचार से जुड़े लोग पवन सिंह को चुनौती के रूप में नहीं देखते हैं।
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उपेन्द्र कुशवाहा के काफिले के साथ चल रहे उनके एक करीबी नेता कहते हैं, “हम लोग ये मानकर चल रहे हैं कि पवन सिंह के चलते राजपूतों का वोट हम लोगों को नहीं मिलेगा।” “दो लाख यादव वोट और मुस्लिम वोट भी हम नहीं जोड़ रहे हैं। इसके बावजूद हम लोग जीतने की स्थिति में हैं, क्योंकि हम लोगों को कुशवाहा का वोट मिलेगा और इसके अलावा अति पिछड़ा वर्ग, जो 5-6 लाख है, उनका वोट भी हमको मिलेगा।”
हालांकि, बनिया समुदाय से आने वाले काराकाट लोकसभा के एक वोटर का मानना है कि इंडिया गठबंधन उम्मीदवार राजाराम सिंह कुशवाहा भी इस चुनावी लड़ाई में मजबूत स्थिति में हैं।
“उपेन्द्र कुशवाहा के खिलाफ नाराजगी है क्योंकि सांसद रहते हुए उन्होंने इलाके में कोई काम नहीं किया था और इसके अलावा नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी भी जोरदार है, जिसके चलते उपेंद्र कुशवाहा को कम वोट मिलेंगे,” उन्होंने कहा।
“वहीं राजाराम सिंह के पास अपना कैडर वोटर तो है ही, साथ ही नीतीश से नाराज लोग राजाराम सिंह को विकल्प के तौर पर देखेंगे।”
काराकाट लोकसभा में लगभग 18.5 लाख वोटर हैं, लेकिन चुनावों में लगभग 50 प्रतिशत वोट ही पड़ते हैं। इसमें राजद के अपने वोटर लगभग दो लाख हैं, ऐसे में अगर ये वोटर राजाराम सिंह को वोट डालते हैं, तो उपेंद्र कुशवाहा के लिए ये चुनावी लड़ाई मुश्किल भरी हो सकती है।
उक्त बनिया वोटर ने उपेंद्र कुशवाहा के साथ एक और दिक्कत की तरफ भी इशारा करते हैं, जो काफी हद तक सही भी लगती है।
उनका कहना है कि जहां सीधे बीजेपी उम्मीदवार के साथ मुकाबला है, वहां भाजपा के मतदाता भाजपा सांसद से नाराजगी के बावजूद भाजपा को वोट करेंगे, लेकिन जहां एनडीए में शामिल दूसरी पार्टियों के नेता सीधे मुकाबले में हैं, वहां के भाजपा वोटर दूसरे विकल्प की तरफ देख रहे हैं, इसलिए लड़ाई इस बार किसी के लिए भी आसान नहीं होगी।
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