पिछले कुछ दिनों में जदयू के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से जिस तरह के बयान आए हैं, उन्हें देखते हुए उनकी आगे की राजनीति को लेकर कई तरह के कयास उठने लगे हैं।
उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल जदयू एमएलसी और पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं और अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से जदयू को लेकर तीखी टिप्पणियां की हैं।
उन्होंने कहा कि जदयू कमजोर हो रहा है और हाल के दिनों में नीतीश कुमार भी राजनीतिक तौर पर कमजोर हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जदयू से अलग करने की भी साजिश चल रही है।
इससे पहले उन्होंने कहा था कि जदयू के जो भी बड़े नेता हैं, वे भाजपा के संपर्क में हैं। दरअसल, पिछले दिनों वह दिल्ली में इलाज कराने गए थे, जहां भाजपा के कुछ नेताओं ने उनसे मुलाकात की थी। इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया के जरिए बाहर आईं, तो यह कहा जाने लगा कि उपेंद्र कुशवाहा भाजपा में शामिल हो सकते हैं। मीडिया ने जब उनसे भाजपा में उनके जाने की संभावनाओं पर सवाल पूछा, तो कुशवाहा ने उल्टे कहा कि जदयू के बड़े नेता भाजपा के संपर्क में हैं। इससे पहले उन्होंने इस बात को लेकर नाराजगी जताई थी कि उन जैसे सक्रिय नेता को दो साल से पवेलियन में बिठाकर रखा गया है।
इतना ही नहीं, राजद के विधायक व पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह द्वारा नीतीश कुमार पर की गई टिप्पणियों को लेकर तीखा विरोध दर्ज कराने वाले उपेंद्र कुशवाहा ही थे।
उपेंद्र कुशवाहा के इन तीखे वक्तव्यों से साफ है कि जदयू से उनका मोहभंग हो गया है और अनुमान लगाया जा रहा है कि वह जदयू को अलविदा भी कह सकते हैं। मगर सवाल यह उठता है कि दो साल में ऐसा क्या हो गया कि वह पार्टी को अलविदा कहना चाहते हैं और अगर वह जदयू छोड़ते हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य क्या होगा?
नीतीश कुमार के साथ कुशवाहा के रिश्ते
उपेंद्र कुशवाहा करीब तीन दशक से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं और नीतीश कुमार के साथ उनका रिश्ता कुछ अजीब तरह का है। कई दफे नीतीश कुमार पर गंभीर आरोप लगाकर उन्होंने उनका साथ छोड़ा, मगर बाद में फिर नीतीश कुमार के साथ जा मिले।
कुशवाहा ने छात्र जीवन से ही राजनीति की शुरुआत की और समता पार्टी से जुड़े।
साल 2009 में उन्होंने नीतीश कुमार पर कोइरी जाति को हाशिए पर धकेलने का आरोप लगाकर समता पार्टी छोड़ दी और अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन किया। हालांकि, आठ महीने बाद ही उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर लिया। लेकिन, तीन साल में ही जदयू से उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी नाम से नई पार्टी का गठन कर लिया।
इस बीच, वह कुछ वक्त के लिए एनडीए का हिस्सा रहे और इस दौरान केंद्र में मंत्री भी बने। फिर बाद में कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियों को लेकर एक अलग ही मोर्चा बनाया, लेकिन राजनीति के मैदान में वह बहुत सफल नहीं हो सके।
Also Read Story
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर लिया। अब फिर एक बार नीतीश कुमार से अलगाव की पृष्ठभूमि तैयार होती दिख रही है।
आखिर क्या चाहते हैं उपेंद्र कुशवाहा
दरअसल, जब उपेंद्र कुशवाहा ने जदयू ज्वाइन किया, तो उनके भीतर यह महत्वाकांक्षा थी कि शायद नीतीश कुमार अपने रिटायरमेंट से पहले अपनी जगह उपेंद्र कुशवाहा को स्थापित कर देंगे। सीधे शब्दों में कहें, तो उपेंद्र कुशवाहा को लगा था कि नीतीश कुमार अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी उन्हें ही बनाएंगे। इसी उम्मीद में वह जदयू में शामिल हो गए।
नीतीश कुमार की नजरों में बने रहने के लिए उन्होंने कई दफे नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार भी बता दिया था। शुरुआती दौर में वह जदयू को मजबूत करने के लिए लगातार जिलों की यात्राएं भी कर रहे थे। मगर, उन्हें महागठबंधन सरकार में कोई ओहदा नहीं मिला। फिलहाल भी वह सिर्फ जदयू कोटे से एमएलसी हैं।
एक सूत्र के मुताबिक, जदयू के राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होकर नई सरकार बनाने के बाद उपेंद्र कुशवाहा चाहते थे कि उन्हें कम से कम डिप्टी सीएम का पद मिल जाए, लेकिन सरकार में उन्हें कोई पद नहीं मिला। “इतना ही नहीं, वह कैबिनेट का हिस्सा भी नहीं बन सके। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए पार्टी का विलय करने देने के बावजूद वह सरकार का हिस्सा नहीं हैं, यह बात उन्हें कचोट रही है,” उक्त सूत्र ने कहा।
कुशवाहा ने तो सार्वजनिक तौर पर अपना दुख सुना दिया था। सोमवार को उन्होंने कहा, “जदयू लगातार कमजोर हो रहा है, लेकिन उन्हें खेलने नहीं दिया जा रहा है। पवेलियन में बिठा रखा है। बात व्यक्तिगत सम्मान की नहीं है। हम बड़े मिशन पर हैं। नीतीश कुमार को पीएम बनाना है। इस हिसाब से पार्टी की मजबूती चाहिए।”
इसके अलावा हाल के दिनों में जदयू के राजद में विलय की खबरें भी खूब चलीं और नीतीश कुमार मौके बेमौके यह कहते हुए नजर आए कि वह तेजस्वी यादव को आगे बढ़ाना चाहते हैं। ये बात भी उपेंद्र कुशवाहा को नागवार गुजरी है। कुशवाहा ने जदयू का राजद में विलय को जदयू के लिए आत्मघाती कदम बताया और इसकी मुखालिफत की।
जदयू के एक नेता ने कहा, “जदयू में नेताओं की कमी नहीं है, इसलिए किसी एक नेता को पूरी पार्टी की कमान सौंप देना संभव नहीं है। वह भी तब जब उस नेता का बहुत जनाधार न हो।”
शायद यही वजह है कि खुद नीतीश कुमार, उपेंद्र कुशवाहा की बातों को बहुत तवज्जो नहीं दे रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा के बयानों को लेकर जब नीतीश कुमार से पूछा गया, तो उन्होंने मीडिया से कहा, “उपेंद्र जी को कह दीजिए मुझसे बात कर लें।” नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम शिरकत करने के बाद मीडिया के सवालों पर नीतीश कुमार ने कहा, “हम लोग इन सब चीजों पर कुछ देखते नहीं हैं। उन्हीं से पूछिए और उन्हीं का कहा छाप दीजिए।”
कुशवाहा के जदयू छोड़ने के कयासों पर नीतीश कुमार ने कहा, “वह दो-तीन बार पार्टी छोड़ चुके हैं और फिर बाद में वापस शामिल हो चुके हैं। अभी वह क्या चाहते हैं, मुझे नहीं पता।”
कुशवाहा के पास विकल्प क्या है
उपेंद्र कुशवाहा बिहार की राजनीति में अपना बड़ा कद चाहते हैं। जदयू में शामिल होने के पीछे भी वजह यही थी क्योंकि नीतीश कुमार के अलावा और कोई पिछड़ी जाति का नेता नहीं था पार्टी में जो नीतीश की जगह ले सके।
अब जब जदयू के भीतर वह खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं, तो उनके पास बहुत विकल्प नहीं है।
एक विकल्प यह हो सकता है कि वह भाजपा में शामिल हो जाएं। लेकिन बिहार भाजपा में आधा दर्जन से ज्यादा नेता अपने लिए बैटिंग कर रहे हैं, तो ऐसे में भाजपा में भी उन्हें बहुत अहम जिम्मेवारी मिलेगी, यह मुश्किल लग रहा है।
दूसरा विकल्प उनके लिए यह हो सकता है कि वह जदयू से अलग होकर फिर अपनी नई पार्टी बना लें। लेकिन, नई पार्टी बनाने पर जदयू के कितने नेता उनके साथ जाएंगे, यह कहना मुश्किल है। फिर सवाल यह भी है कि नई पार्टी बना लेने के बाद उनके पास यही विकल्प होगा कि वह एनडीए का हिस्सा बन जाएं जैसा कि वह पूर्व में कर चुके हैं।
उपेंद्र कुशवाहा, कोइरी समाज से आते हैं और उनकी राजनीति भी इसी समाज के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन कोइरी समाज में उनकी एकछत्र पैठ नहीं है। कोइरी वोट भाजपा, जदयू में बंटता रहा है।
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने एआईएमआईएम और बहुजन समाज पार्टी के साथ मिलकर एक नया गठबंधन बनाया था। उनकी खुद की पार्टी ने 99 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाए। उनकी पार्टी को सिर्फ 1.77 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन वोट शेयर में पिछले चुनाव के मुकाबले 0.82 प्रतिशत की गिरावट आई।
इससे पहले 2015 के विधानसभा चुनाव में वह एनडीए के साथ थे। उन्होंने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से दो सीट पर जीत हासिल की थी और कुल 2.6 प्रतिशत वोट मिले थे।
इसी तरह लोकसभा चुनाव की बात करें, तो 2014 के आम चुनाव में कुशवाहा एनडीए का हिस्सा थे, तब तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। साल 2019 का आम चुनाव उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ा, मगर अपनी तीनों ही जीती हुई सीटें बचा नहीं पाए।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।