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किशनगंज: ठिठुरती रातों में खुले में सोने वाले बेघर लोग क्यों नहीं जा रहे सरकारी रैन बसेरा

स्टेशन पर सर्द रातों के अलावा चोरी की घटनाओं से बेगम और मोहम्मद वारिस जैसे कई बेघर लोग परेशान हैं जबकि किशनगंज के आश्रय स्थल में अधिकतर बेड खाली पड़े हैं।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
Published On :
62 year old homeless mohammad waris has been living at kishanganj railway station for 15 days
कटिहार निवासी 62 वर्षीय मोहम्मद वारिस कई दिनों से किशनगंज रेलवे स्टेशन पर रह रहे हैं

62 वर्षीय मोहम्मद वारिस कटिहार जिले के रहने वाले हैं। वह पिछले 15 दिनों से किशनगंज रेलवे स्टेशन स्थित फुटओवर ब्रिज पर रह रहे हैं। वारिस खुद को तेलता रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर स्थित सबनपुर गांव का निवासी बताते हैं। वह तेलता से ट्रेन से किशनगंज आए और पिछले दो हफ़्तों से रेलवे स्टेशन पर ही रह रहे हैं।


उनकी मानें तो उन्होंने अपनी कई बीघा जमीन अपनी पांच बेटियों और एक बेटे में बाँट दी थी। कुछ समय पहले उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। बढ़ती उम्र के कारण वह खेत में काम नहीं कर पा रहे थे जिसके बाद उनके बेटे ने उनका खर्च उठाने से इनकार कर दिया।

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“मेरा एक बेटा है। वह कमाता है और अपने परिवार के साथ रहता है। मेरी पत्नी का इंतेक़ाल हो चुका है। 5 बेटियां हैं, उन सबको शादी करा दिए हैं। मेरा इकलौता बेटा है वो हमको रखा नहीं, रखता तो हम यहां नहीं आते। हमको कोई नहीं देखता है। घर से एक दो कंबल बोरा में लेकर आए हैं,” मोहम्मद वारिस रोते हुए बोले।


वारिस इकलौते व्यक्ति नहीं हैं जो इस हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में इस तरह रात गुजार रहे हैं। उनकी तरह बहुत सारे बेघर लोगों के लिए ये जगहें ही ठिकाना हैं।

शहर के आश्रय स्थल में अधिकतर बेड खाली

किशनगंज रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर वीर कुंवर सिंह बस स्टैंड के पास किशनगंज आश्रय स्थल मौजूद है। वहां पहुंचने पर हमें मंजू शर्मा मिलीं जो वर्तमान में इस रैन बसेरा की प्रबंधक हैं। उनके अलावा 2 केयरटेकर और एक सुरक्षा गार्ड वहां कार्यरत हैं। यह आश्रय स्थल किशनगंज नगर परिषद के अंतर्गत चलता है। यहां अधिकतर बेड खाली पड़े हैं।

प्रबंधक मंजू शर्मा ने हमें आश्रय स्थल दिखाया। तीन मंज़िली इमारत में कुल 54 बेड लगे थे। आधिकारिक तौर पर 50 बेड वाले इस रैन बसेरा में महिलाओं के लिए एक अलग फ़्लोर है जहां उनकी सुरक्षा के लिए लोहे का दरवाज़ा लगाया गया है। बेड के साथ शेल्टर में ठहरने वाले लोगों के लिए कंबल भी दिखे।

मंजू शर्मा पिछले वर्ष जून से इस आश्रय स्थल में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि रोज़ाना औसतन 15 से 20 लोग आश्रय स्थल में आकर सोते हैं। “कभी 20-25 लोग आते हैं, कभी 5, कभी एक भी नहीं। यह निःशुल्क है, अभी ठंड बढ़ गई है तो अभी 10-15 लोग रोज़ आ रहे हैं। जो लोग असहाय हैं, गरीब बेघर हैं और जो मुसाफिर हैं कोर्ट वगैरा में काम के लिए आए, डॉक्टर दिखाने आए, हर किस्म के लोग यहां रुक सकते हैं। यहां कंबल, मच्छरदानी जैसी हर सुविधा है रहने के लिए,” मंजू शर्मा ने कहा।

आश्रय स्थल में रिहाइश लेने वालों से आधार कार्ड, मोबाइल नंबर और वे किस काम से आए हैं ये जानकारियां पूछी जाती हैं। मंजू शर्मा ने बताया कि अगर कोई गरीब, बेसहारा बिना आधार कार्ड के भी आता है तो उसको रख लिया जाता है। हालांकि, उनकी बाकी जानकारी रजिस्टर में ताकीद के साथ लिखी जाती है। आश्रय स्थल का रजिस्टर पूरी तरह से ऑफलाइन है और हर दिन नगर परिषद इसके आंकड़े विभाग को भेजता है।

रेलवे स्टेशन पर जद्दोजेहद

रेलवे स्टेशन पर रह रहे मोहम्मद वारिस को हमने किशनगंज नगर परिषद् अंतर्गत सक्रिय आश्रय स्थल के बारे में बताया जिसके बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी। हमारे बताने पर कि वह निःशुल्क किशनगंज आश्रय स्थल में रह सकते हैं, वह कहते हैं, “हमको रखेगा तो रह जाएंगे बाबू, हमको कोई नहीं बताया कि वहां (आश्रय स्थल) है। आप बताएं हैं तो मालूम हुआ है।”

वारिस आश्रय स्थल जाने को तैयार हुए और जाने लगे तो उन्होंने वहां भोजन के बारे में पूछा। हमने उन्हें बताया कि वर्तमान में आश्रय स्थल में भोजन की कोई व्यवस्था नहीं है तो उन्होंने कहा, “यहां रहने से एक वक़्त का तो खाना मिलेगा। खाना नहीं मिलने से वहां नहीं जाएंगे, यहीं रहेंगे।”

मोहम्मद वारिस को चलने में दिक्कत होती है, वह लाठी के सहारे चलकर शौचालय या अन्य किसी जगह जाते हैं। उन्होंने कहा, “खाना खाते ही नहीं तो दो दिन बाद (बाथरूम) जाते हैं, पेट भरा रहेगा तब न जाएंगे। जो बूढ़ा लोग सोया रहता है उसको दिन में एक वक़्त एक आदमी खाना लाकर देता है। वही खाकर रह जाते हैं।”

मोहम्मद वारिस स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर एक पतले कंबल और प्लास्टिक बिछाकर जमीन पर सोते हैं और चलने के लिए लाठी का सहारा लेते हैं। उनके साथ कई और बेघर लोग स्टेशन पर सोते हैं जिनमें से अधिकतर पैसे मांगने गए हुए थे।

“वो लोग मांगता है, घूमता है। हमलोग बूढ़े आदमी हैं स्टेशन पर सो जाते हैं, मांगते नहीं हैं। खाना मिले तो ख़ुश, नहीं मिले तो भी ख़ुश। ऐसे ही सो जाते हैं, अल्लाह देगा तो कभी खाना मिलेगा,” मोहम्मद वारिस ये कहकर रोने लगे।

ठंड के चलते उनकी तबीयत खराब है लेकिन दवा लाने के लिए अस्पताल कौन ले जाए, यह उनके लिए बड़ी समस्या है। “हमको बुखार है, कपनी (कंपकंपी) आता है। कल हमको एक आदमी पैसा देकर गया था, एक लड़की यहां मांगने वाली है, उसको 150 रुपये दिए हैं दवा लाने के लिए, देखते हैं लाती है या खा जाती है,” हलकी धूप में कंबल से बाहर पैर पसारते हुए वह बोले।

लगातार हो रही चोरियों ने बढ़ाई मुसीबत

फुटओवर ब्रिज पर पास में एक और बूढ़ी महिला दिखी। उन्होंने अपना नाम बेगम बताया और घर का पूछने पर बारसोई के पास किसी खुराधार गांव का नाम लिया। बेगम रोज़ दिन के समय भीख मांगने जाती हैं लेकिन उस दिन तबीयत खराब होने के कारण नहीं जा सकीं और ब्रिज पर सो रही थीं। उन्होंने अपने बाएं हाथ में दर्द और खांसी बुखार की शिकायत बताई।

“मांग चांग कर खाते हैं बेटा। पैसा जमा हो जाता है तो फिर घर जाते हैं, नहीं होता है तो कई दिन तक स्टेशन पर ही सो जाते हैं। मेरा एक बेटा है वह मेरे लिए कुछ नहीं करता है। कल से हमको बुखार है, आज मांगने नहीं गए इसलिए सुबह से कुछ नहीं खाए हैं,” बेगम ने कहा।

स्टेशन पर सर्द रातों के अलावा चोरी की घटनाओं से बेगम और मोहम्मद वारिस जैसे कई बेघर लोग परेशान हैं। बेगम के अनुसार कई बार उनके कपड़े, कंबल चोरी हो गए। चोरों ने बिस्किट और पानी की बोतलों को भी नहीं छोड़ा।

हमने बुज़ुर्ग महिला से चंद फासले पर मौजूद आश्रय स्थल जाने के बारे में कहा तो उन्होंने कहा कि उनके साथ और भी कई महिलाएं हैं, शाम को जब वे भीख मांग कर वापस लौटेंगी तो उनसे पूछेंगी। वह अकेले आश्रय स्थल जाना नहीं चाहतीं। उनकी संतुष्टि के लिए हमने उन्हें बिल्डिंग की तस्वीरें भी दिखाईं।

किशनगंज के आश्रय स्थल में महिलाओं के लिए भी अलग से व्यवस्था है। परिसर के अंदर रहने वाली तीनों कर्मचारी महिलाएं हैं। हालांकि रात में पहरेदारी करने वाले सुरक्षा गार्ड पुरुष हैं।

why are kishanganj's homeless avoiding government night shelters on cold nights
वीर कुंवर सिंह बस स्टैंड के पास स्थित किशनगंज आश्रय स्थल में अधिकतर बेड खाली पड़े हैं।

“जबतक चाहे रह सकते हैं बेघर लोग”

बिहार सरकार का नगर विकास व आवास विभाग, राज्य के हर जिले में आश्रय स्थल बनाकर उनका रखरखाव नगर परिषद द्वारा करवाता है। आश्रय स्थल की प्रबंधक मंजू शर्मा से हमने सड़क पर सो रहे बेसहारा लोगों की बात की तो उन्होंने कहा कि इस तरह के लोगों के लिए ही आश्रय स्थल है खासकर ठंड के दिनों में। वे अगर आएंगे तो बिना किसी दिक्कत के यहां रह सकेंगे।

मंजू शर्मा कहती हैं, “वे जब तक इच्छा है रह सकते हैं, किसी को भगाने का नहीं है। जिनका घर नहीं है, वे यहाँ रह सकते हैं उन्हें भगाना नहीं है। बहुत से रह भी रहे हैं, भीख मांगने वाले भी कुछ रह रहे हैं। हम आपलोग से कहेंगे कि इसका प्रचार प्रसार कीजिए, अच्छा है गरीब लोगों के लिए, ठंड में आराम रहता है।”

50 बेड वाले इस आश्रय स्थल में अधिकतर बेड अक्सर खाली रहते हैं। इसका कारण जागरूकता की कमी है या कुछ और कहना कठिन है। केयरटेकर अंजू देवी के अनुसार, शौचालय और स्नानघर की रोज़ाना सफाई की जाती है।

“हम यहां साफ सफाई करते हैं। जैसे कंबल, चादर धोना और साफ सफाई करना ये सब मेरा काम है। कभी 20 लोग आते हैं, कभी 40 तो कभी बहुत कम। यहां लोग आकर रह सकते हैं, पूरा अंदर से पैक है कोई दिक्कत नहीं है,” अंजू देवी ने कहा।

जल्द होगा वृद्धाश्रम का उद्घाटन: नगर परिषद

हमने इस पूरे मामले में किशनगंज नगर परिषद अध्यक्ष इंद्रदेव पासवान से बात की। उन्होंने कहा कि किशनगंज के आश्रय स्थल में लॉकडाउन से पूर्व भोजन की भी व्यवस्था थी। फिलहाल बजट की कमी के कारण भोजन नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने आश्वासन दिया कि बहुत जल्द इस कमी को पूरी करने का प्रयास है।

“इसमें कंटिन्यू कोई नहीं रह सकता है। आश्रय यानी कहीं से आए, आश्रय नहीं है तो रह गए। एक दो दिन रहे फिर अपना काम किए और चले गए। जो बेसहारा हैं उनको तो मानवता के तौर पर रखा जाता है। पहले आश्रय स्थल में खाना था लेकिन फंड की दिक्कत है इसलिए अभी बंद है लेकिन रहना निःशुल्क है। हमलोग जाते रहते हैं आश्रय स्थल की व्यवस्था देखने ताकि साफ सफाई मुकम्मल रहे,” इंद्रदेव पासवान बोले।

किशनगंज नगर परिषद अध्यक्ष ने आगे बताया कि शहर के खगड़ा इलाके में 40 बेड का वृद्धाश्रम जल्द चालु किया जाएगा। उन्होंने कहा, “इसमें हर धर्म, जाति, लिंग के वृद्ध लोग रह सकेंगे। यहां खाने पीने, सोने के साथ साथ चिकित्सा और मनोरंजन की भी व्यवस्था की जाएगी। इसी महीने की 30 तारीख तक हम उसका उद्घाटन कर देंगे।”

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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