निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ को लेकर कुछ निर्देश जारी किये है, जिसको लेकर विवाद गहराने लगा।
इन निर्देशों पर राजनीतिक दलों और खास तौर पर बिहार की विपक्षी पार्टियों ने घोर आपत्ति जताते हुए इसे एनआरसी की प्रक्रिया का शुरुआती चरण करार दिया है और ये भी कहा है कि इस प्रक्रिया से बहुत सारे मतदाता वोटिंग से वंचित रह जाएंगे।
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इस निर्देश के मद्देनजर बिहार के निर्वाचन विभाग ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि इस गहन पुनरीक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी पात्र नागरिकों के नाम मतदाता सूची में सम्मिलित हों ताकि वे अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें और कोई भी अपात्र व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल न हो तथा मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रहे।
इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए मतदान केंद्र पदाधिकारी (बीएलओ) घर घर जाकर सत्यापन करेंगे और सत्यापन के दौरान आयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 में उल्लिखित मतदाता के रूप में पंजीकरण की पात्रता और अयोग्यता संबंधी प्रावधानों का पालन करेगा।
आयोग ने 30 सितम्बर यानी कि महज तीन महीने के भीतर इस कठिन और पेंचीदा प्रक्रिया को पूरा कर मतदाताओं की अंतिम सूची प्रकाशित करने का लक्ष्य रखा है।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत बीएलओ हर घर में जाएगा और एन्युमरेशन फॉर्म भरने में मतदाताओं की मदद करेगा। बीएलओ को आदेश दिया गया है कि भरा हुआ फॉर्म संग्रह करने के लिए वह कम से कम तीन बार मतदाता के घर जाएगा। हालांकि, मतदाता अपनी सहूलियत के हिसाब से एन्युमरेशन फॉर्म भरकर ऑनलाइन भी जमा कर सकते हैं।
अगर कोई मतदाता निर्धारित अवधि के भीतर फॉर्म जमा नहीं कर पाता है तो वह दावा-आपत्ति अवधि के दौरान फॉर्म-6 और घोषणा पत्र देकर अपना नाम जोड़ने के लिए आवेदन कर सकता है। दावा-आपत्ति अवधि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक रखी गई है।
क्या है निर्देश
निर्वाचन आयोग के निर्देश के मुताबिक, अगर किसी मतदाता का जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ है, तो उसे जन्म तिथि या जन्म स्थान की सत्यता स्थापित करने से संबंधित दस्तावेज देना होगा।
वहीं, अगर किसी मतदाता का जन्म 1 जुलाई 1987 के बाद व 2 दिसम्बर 2004 से पहले हुआ है, तो उसे मतदाता सूची में अपना नाम कटने से बचाने के लिए अपना और अपने माता-पिता में से किसी एक का वांछित दस्तावेज देना होगा। इसी तरह अगर किसी वोटर का जन्म 2 दिसम्बर 2004 के बाद हुआ है, तो उसे अपना, अपने पिता और अपनी माता से संबंधित वांछित दस्तावेज देना होगा।
निर्वाचन आयोग ने वांछित दस्तावेजों में 1 जुलाई 1987 से पहले का कोई भी पहचान पत्र/प्रमाण पत्र/सरकार/स्थानीय प्रशासन/बैंक/पोस्ट ऑफिस/एलआईसी/पीएसयू की तरफ से जारी दस्तावेज, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, माध्यमिक/शैक्षणिक प्रमाण पत्र, स्थायी निवास का प्रमाण पत्र, वनाधिकार प्रमाण पत्र, ओबीसी/एससी/एसटी सर्टिफिकेट, एनआरसी, फैमिली रजिस्टर व सरकार की तरफ से जारी कोई लैंड/हाउस आवंटन सर्टिफिकेट को शामिल किया है।
राजनीतिक पार्टियों की आपत्तियां
विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक तीन-चार महीने पहले ये गहन प्रक्रिया क्यों शुरू की जा रही है, जिसमें बड़े स्तर पर लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कटने की आशंका है।
इस पूरी प्रक्रिया को एक से डेढ़ महीने के भीतर पूरा कर लेने और संशोधित मतदाता सूची जारी करने का जो लक्ष्य रखा गया है, वह काफी कम लग रहा है क्योंकि बिहार में वोटरों की संख्या 7.89 करोड़ है। ऐसे में हर वोटर तक पहुंचना आसान नहीं होगा।
हालांकि, निर्वाचन आयोग का कहना है कि उसके पास पहले से ही लगभग 78 हजार बीएलओ हैं और नये पोलिंग स्टेशनों के लिए 20,603 बीएलओ को नियुक्त किया जा रहा है। इसके अलावा एक लाख वोलेंटियर भी इस कार्य में लगाये जा रहे हैं, जो आवेदन भरने व अन्य कार्यों में वोटरों की मदद करेंगे।
निर्वाचन आयोग ने ये भी बताया है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता हो, इसके लिए सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों ने 1,54,977 बूथ स्तरीय एजेंट नियुक्त कर दिये हैं और वे और भी एजेंट नियुक्त कर सकते हैं।
प्रेस विज्ञप्ति जारी होने के तुरंत बाद भाकपा (माले)-लिबरेशन ने निर्वाचन आयोग को चिट्ठी लिखकर इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई।
पार्टी ने कहा, “इस गहन पुनरीक्षण का पैमाना और तरीका असम में हुए एनआरसी (नागरिक रजिस्टर) अभियान जैसा है। असम में इस प्रक्रिया को पूरा करने में छह साल लगे, फिर भी वहां की सरकार ने एनआरसी को अंतिम सूची के रूप में स्वीकार नहीं किया। असम में 3.3 करोड़ लोग शामिल थे जबकि बिहार में लगभग 8 करोड़ मतदाताओं को एक ही महीने में कवर करने की बात हो रही है, वह भी जुलाई के महीने में जब बिहार में मॉनसून और खेतीबारी का व्यस्त समय होता है। यह भी सभी जानते हैं कि बिहार के लाखों मतदाता राज्य से बाहर काम करते हैं।”
गौरतलब हो कि बिहार में इससे पहले विशेष गहन पुनरीक्षण वर्ष 2003 में हुआ था, लेकिन उस वक्त बिहार में कोई चुनाव नहीं था। उस समय बिहार में मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ थी। यानी कि निर्वाचन आयोग साल 2003 की निर्वाचन सूची को आधार बनाना चाहता है और इसके बाद जो भी लोग मतदाता सूची में शामिल हुए हैं, उनको दस्तावेज देने होंगे।
भाकपा (माले)-लिबरेशन ने कहा कि जो मतदाता किसी कारणवश समय पर वांछित दस्तावेज नहीं दे पाएंगे, उनका नाम मतदाता सूची से काटा जा सकता है, जिससे वे अपने वोट के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।
“हमारी पार्टी लंबे समय से बिहार में भूमिहीन गरीबों के वोट के अधिकार के आंदोलन से जुड़ी रही है और हमें चिंता है कि चुनाव से ठीक पहले इतने कम समय में यह विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान अव्यवस्था, बड़े पैमाने पर गलतियों व नाम काटे जाने का कारण बनेगा,” पार्टी ने कहा।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी पुनरीक्षण को लेकर असहमति दर्ज कराते हुए इस निर्देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्देश करार दिया है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक पर लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्वाचन आयोग को बिहार की समस्त मतदाता सूची को निरस्त कर केवल 25 दिन में 1987 से पूर्व के कागजी सबूतों के साथ नई मतदाता सूची बनाने का निर्देश दिया है। चुनावी हार की बौखलाहट में ये लोग बिहार और बिहारियों से मतदान का अधिकार छीनने का षड्यंत कर रहे हैं।”
“विशेष गहन पुनरीक्षण के नाम पर ये आपका वोट काटेंगे ताकि मतदाता पहचान पत्र ना बन सके। फिर ये आपको राशन, पेंशन, आरक्षण, छात्रवृत्ति सहित अन्य योजनाओं से वंचित कर देंगे,” तेजस्वी यादव ने आगे लिखा।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी निर्वाचन आयोग के फैसले को एनआरसी लागू करने का तरीका बताया और अपने सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक पर लिखा, “निर्वाचन आयोग बिहार में गुप्त तरीके से एनआरसी लागू कर रहा है। वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए अब हर नागरिक को दस्तावेजों के जरिए ये साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुए थे और साथ ही यह भी कि उनके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए थे।”
उन्होंने ये भी लिखा कि विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार भी केवल तीन-चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं। ज्यादातर सरकारी कागजों में भारी गलतियां होती हैं। बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे गरीब हैं, वे मुश्किल से दिन में दो बार खाना खा पाते हैं। ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज होंगे, एक क्रूर मजाक है।
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