बिहार के भागलपुर शहर के नया बाजार निवासी 45 वर्षीय निवासी राकेश कुमार ओझा सांस की बीमारी से ग्रसित हैं। उन्हें अस्थमा की शिकायत है। वह अपनी बीमारी को शहर की बढ़ती गंदगी और प्रदूषण से जोड़कर देखते हैं। मैं मीडिया के साथ बातचीत में राकेश कहते हैं, “हाल के दिनों में भागलपुर में अस्थमा के मरीजों की तादाद बढ़ी है।”
आगे उन्होंने बताया कि शहर में फैली गंदगी की वजह से मच्छरों की बहुत समस्या है, लेकिन सिर्फ मच्छरों की बात नहीं हैं, हवा में घुलता प्रदूषण, सड़कों पर बिखरा कचरा और नगर निगम की लापरवाही के कारण उनकी परेशानियां कई गुणा बढ़ गई हैं।
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“कभी-कभी महीनों तक आसपास के नाले ऐसे ही पड़े रहते हैं, बदबू मारते हुए। कचरे का ढेर सड़कों पर लगा रहता है क्योंकि नगर निगम के पास न तो कोई डंपिंग यार्ड है और न ही पर्याप्त कर्मचारी जो रोज कचरा उठा सकें।” वह आगे कहते हैं, “जो थोड़ा-बहुत कचरा उठता भी है, उसे लोग ट्रेलर में ले जाकर जहां खाली जमीन दिखती है, वहीं फेंक देते हैं। कुछ दिन पहले चंपानगर नाले के किनारे ही कचरा डाल रहे थे। रीसाइक्लिंग की बात तो बहुत दूर है।”
खुले में कचरा फेंकना बड़ी समस्या
एसबीएम-यू डैशबोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में कुल 5,690 वार्ड्स हैं, जिनमें से 5,139 वार्ड्स में 100% डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण हो रहा है जिनमें से 4,219 वार्ड्स (74%) में कचरा पृथक्करण होता है। बिहार में प्रतिदिन 6,701.29 टन कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन इसमें से केवल 1,942.52 टन (लगभग 29%) ही प्रोसेस हो पाता है। शेष कचरे का उचित प्रबंधन नहीं होता और उसे खुले में डंप किया जाता है, जो वायु प्रदूषण, विशेष रूप से PM2.5 के बढ़ते स्तर का एक प्रमुख कारण बनता है।
राजगीर की पंडा समिति के सचिव विकास उपाध्याय ने कहा, “बाहर से आने वाले पर्यटकों को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है, क्योंकि वे अपने साथ जो पॉलीथिन लाते हैं, उससे गंदगी बढ़ती है। एक सुनियोजित पिकनिक स्थल होना चाहिए, जो धार्मिक स्थलों से कुछ दूरी पर हो, ताकि लोग वहां आराम से पिकनिक मना सकें और स्वच्छता बनी रहे। वर्तमान में खाने-पीने की जगहें सुव्यवस्थित न होने के कारण लोग कहीं भी भोजन करना शुरू कर देते हैं, जिससे गंदगी फैलती है। माननीय मुख्यमंत्री जी का राजगीर पर विशेष ध्यान है, इसी कारण यहां डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।”
बिहार में बायोमिथेनेशन और वेस्ट-टू-एनर्जी संयंत्रों की संख्या शून्य है, जिससे जैविक और उच्च कैलोरी मान वाले कचरे का उपयोग बायोगैस या बिजली उत्पादन के लिए नहीं हो पा रहा। राज्य में 71 वेस्ट-टू-कंपोस्ट संयंत्र हैं, जिनकी क्षमता 2,008 टन प्रतिदिन है, जो कुल कचरे का केवल 30% ही संभाल पाती है। ऐसा संयंत्र मुजफ्फरपुर में 2018 में शुरू हुआ था, जो 25 टन कंपोस्ट प्रतिदिन बनाता है। इसके अलावा, 16 मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (MRF) संयंत्र (881 TPD) और 13 कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन (C&D) संयंत्र (513 TPD) हैं।
भागलपुर नगर निगम में कुल 51 वार्ड हैं। अस्थमा से जूझ रहे राकेश कहते हैं कि यह निगम सिर्फ नाम का है। “लोगों से टैक्स की वसूली हो रही है, लेकिन बदले में कोई सुविधा नहीं मिलती। न ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव होता है, न ही साफ-सफाई का कोई इंतजाम,” वह आगे कहते हैं, “शहर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं दिखता। बस कुछ रेड लाइट्स लगा दिए गए, सड़कों का चौड़ीकरण हुआ नहीं, और जो सिग्नल लगाए गए, वो भी नियमित रूप से चालू नहीं रहते। स्मार्ट सिटी के नाम पर सिर्फ पैसों की बर्बादी हो रही है।”
वायु प्रदूषण से बढ़ रही सांस की बीमारी
जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (JNMCH) भागलपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर कुमार सौरव, जो एक निजी क्लिनिक भी संचालित करते हैं, बताते हैं कि हाल के दिनों में शहर में प्रदूषण से संबंधित बीमारियों में भारी वृद्धि देखी गई है। मौसम परिवर्तन के दौरान इन बीमारियों के मामले और अधिक बढ़ जाते हैं। वर्तमान में, लगभग 30% मरीज ब्रोंकाइटिस से संबंधित समस्याओं से ग्रस्त हैं।
ब्रोंकाइटिस एक श्वसन रोग है, जिसमें फेफड़ों की ब्रोंकियल ट्यूब में सूजन आ जाती है। ये ट्यूब हवा को फेफड़ों तक पहुंचाने का काम करती हैं, लेकिन सूजन के कारण इनका मार्ग संकुचित हो जाता है, जिससे खांसी, बलगम, सीने में जकड़न और सांस लेने में दिक्कत होती है।
पर्यावरण विशेषज्ञ इश्तियाक अहमद के अनुसार, अस्थमा जैसी बीमारियां तो आसानी से पकड़ में आ जाती हैं, लेकिन प्रदूषण से फैलने वाली कई अन्य बीमारियां डिटेक्ट नहीं होतीं। पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषक हवा में बैक्टीरिया और वायरस के लिए प्लेटफॉर्म का काम करते हैं, जिससे एयर-बोर्न बीमारियां बढ़ रही हैं।
2024 IQAir विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के कई शहरों को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया है। भागलपुर 76.5 µg/m³ PM2.5 स्तर के साथ बिहार में पहले और विश्व में 31वें स्थान पर। इसके बाद आरा (74.7 µg/m³) और पटना (73.7 µg/m³) का नंबर आता है। हाजीपुर, छपरा, सहरसा और मुजफ्फरपुर भी टॉप 10 में हैं।
बिहार में कार्बन उत्सर्जन
बिहार में कार्बन उत्सर्जन का डेटा आखिरी बार 2018 में दर्ज किया गया था। 2005 में कुल उत्सर्जन 38.06 मिलियन टन था, जो 2018 तक बढ़कर 86.59 मिलियन टन हो गया—यानी हर साल औसतन 6.53% की बढ़ोतरी हुई। इस दौरान ऊर्जा क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन 50% से बढ़कर 65% तक पहुंच गया, जबकि खेती, जंगल और जमीन के इस्तेमाल (AFOLU) का योगदान 42% से घटकर 27% रह गया। उद्योगों (IPPU) से उत्सर्जन 0.5% से बढ़कर 3% हो गया, जबकि कचरे से होने वाला उत्सर्जन 8% से कम होकर 5% रह गया।
2022 से 2024 के बीच कई शहरों में प्रदूषण बढ़ा है, जैसे हाजीपुर में PM2.5 स्तर 70.4 से 71.8 µg/m³ हो गया, और सीवान में 58.5 से 61.3 µg/m³। हालांकि, पटना और आरा में प्रदूषण में थोड़ी कमी आई।
1.3 करोड़ वाहनों में से 1.1 करोड़ पेट्रोल से संचालित
बिहार की सड़कों पर दौड़ते वाहन बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण के बड़े कारण होते हैं। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, बिहार में अब तक कुल 1,39,73,224 वाहनों का पंजीकरण हो चुका है, जिनमें से 1,16,69,688 वाहन सक्रिय हैं। इनमें सबसे अधिक 1,14,01,729 वाहन पेट्रोल से चलते हैं, जबकि 47,444 पेट्रोल/इथेनॉल, 39,838 पेट्रोल/सीएनजी, 1,34,502 पेट्रोल/एलपीजी और सिर्फ 21,563 पूरी तरह इलेक्ट्रिक वाहन हैं।
इसके अलावा पटना जैसे शहरों में निर्माण कार्य समय पर पूरा न होने से सड़कें बाधित रहती हैं जिससे धूल बढ़ती है। मॉनिटरिंग स्टेशन भी कंकड़बाग, महेंद्रू, राजेंद्र नगर जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में नहीं, बल्कि ऑफिस क्षेत्रों में हैं, जहां शाम के बाद ट्रैफिक और गतिविधि कम होती है। इसके अलावा, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी बड़ी समस्या है। सड़कों पर एक बस के मुकाबले 10 कारें और 150 मोटरसाइकिलें दिखती हैं। सड़कें भी इसके लिए तैयार नहीं हैं, जिससे प्रदूषण और लगातार बढ़ रहा है।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार, गया के पर्यावरण विज्ञान विभाग प्रमुख प्रो. प्रधान पार्थ सारथी ने कहते हैं, “बिहार के शहरों में वाहनों के लिए ऑड-ईवन नियम अपनाना बेहतर विकल्प हो सकता है। साथ ही, सीएनजी जैसे स्वच्छ ईंधन विकल्पों को अधिक बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि प्रदूषण कम किया जा सके।”
वह मानते हैं बिहार में बढ़ रहे प्रदूषण का कारण उसकी भौगोलिक बनावट भी है। उन्होंने कहा, “बिहार में प्रदूषण केवल बिहार द्वारा उत्पन्न नहीं होता है। उत्तर प्रदेश सहित पूरी पट्टी, जिसे इंडो-गंगेटिक प्लेन कहा जाता है, पंजाब और सिंध से लेकर बिहार होते हुए बंगाल तक फैली हुई है।”
“यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से निम्न है, जिसके उत्तर में हिमालय और दक्षिण में सेंट्रल इंडिया का पठार (प्लेटो) स्थित है। हवा ठंडे प्रदेश से गर्म प्रदेश की ओर बहती है और ऊँचाई से नीचे आती है। भारी होने के कारण, सेंट्रल इंडिया के इंडस्ट्रियल बेल्ट और उत्तर भारत के औद्योगिक क्षेत्रों से प्रदूषित हवा बिहार की ओर प्रवाहित होती है। इसके अलावा, बिहार का अपना स्थानीय प्रदूषण भी इसमें योगदान देता है,” उन्होंने कहा।
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