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बिहार सरकार ने दो राजहंसों की क्यों करवाई जीपीएस ट्रांसमीटर टैगिंग?

जीपीएस ट्रांसमीटर लेकर निकले दो राजहंस, बताएंगे अपना असली ठिकाना

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
why did the bihar government get gps transmitter tagging done on two geese

बिहार में राजहंस की आबादी वैसे तो काफी कम है। इन्हें कुछेक जलाशयों में ही देखा जा सकता है। मगर, ये अब तक अज्ञात है कि ये राजहंस बिहार में आखिरकार आते कहां से हैं।


यही पता लगाने के लिए पहली बार बिहार से दो राजहंसों – ‘वायु’ व ‘गगन’ के शरीर पर जीपीएस ट्रांसमीटर लगाकर खुले आसमान में छोड़ा गया है। इस जीपीएस ट्रांसमीटर के जरिए पता चलेगा कि वे किस रास्ते से अपने ठिकाने पर लौट रहे हैं और रास्ते में कहां-कहां वे ठहरते हैं। इन उपकरणों के जरिए ये भी पता चलेगा कि वे प्रजनन कहां करते हैं।

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बिहार के पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग ने पिछले साल ही ये फैसला लिया था कि बिहार आने वाले कुछ प्रवासी पक्षियों के स्थाई निवास स्थल और उनके यात्रा रूटों का पता लगाने के लिए जीपीएस ट्रांसमीटर तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। ट्रांसमीटर टैगिंग प्रक्रिया से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “काफी सोच-विचार और विमर्श के बाद सबसे पहले राजहंसों पर ये प्रयोग करने का निर्णय लिया गया और इसके लिए जमूई में सर्वे शुरू हुआ।” आखिरकार जमुई जिले में स्थित नागी पक्षी आश्रयणी में टैगिंग करना तय हुआ।


इसी साल 22 फरवरी को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के सहयोग से नागी पक्षी आश्रयणी में राजहंसों में ट्रांसमीटर लगाकर उन्हें खुले आसमान में छोड़ा गया। ये जीपीएस ट्रांसमीटर बैटरी चालित है और बैटरी चार्ज करने के लिए सोलर पैनल भी लगाया गया है। बैटरी का जीवन दो से चार साल है।

बीएनएचएस की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य अरविंद मिश्रा ने कहा, “प्रवासी पक्षी कहां से आते हैं, उनका रूट क्या है, वे कहां प्रजनन करते हैं, ये सब पता लगाने के लिए वैश्विक स्तर पर इस तरह के प्रयास हो रहे हैं। इसी कड़ी में पहली बार बिहार में भी ये प्रयास शुरू हुआ है।”

“राजहंस हमारे देश में तिब्बत, चीन और मंगोलिया तक से आते हैं। जीपीएस ट्रांसमीटर की मदद से अब हम जान सकेंगे कि बिहार में इनकी आबादी किस देश से आती है,” उन्होंने कहा।

वायु व गगन की अब तक की यात्रा

22 फरवरी को उड़ान भरने वाले राजहंस ‘वायु’ व ‘गगन’ की अब तक की यात्रा सुरक्षित रही है और उनमें किसी तरह का व्यवधान नहीं आया है। ट्रांसमीटर पर ठीक ढंग से काम कर रहे हैं और पल पल की जानकारी दे रहा है।

जीपीएस ट्रांसमीटर से मिली सूचनाओं के मुताबिक, राजहंस ‘वायु’ नागी से उड़ते हुए अगले ही रोज नकटी पहुंचा और वहां से भीमबांध के आसपास आसमान में चक्कर लगाता रहा। फिर वह नौकाडीह पहुंचा। इस दौरान उसकी रफ्तार 13 से 16 किलोमीटर प्रतिघंटा रही। संभवतः वह भोजन तलाश रहा था और लम्बी उड़ान पर जाने से पहले खुद को इसके लिए अभ्यस्त बना रहा था। मिली सूचनाओं के अनुसार, 6 मार्च को उसने भूटान और सिक्किम के बीच यात्रा की और फिर तिब्बत के पठार पर पहुंचा। इस दौरान उसकी रफ्तार 59 से 74 किलोमीटर प्रति घंटा रही। 9 मार्च को उसने गोल चक्कर लगाया, संभवतः वह वहां ठहरने के लिए अनुकूल जगह तलाश रहा था।

वहीं, राजहंस ‘गगन’ करीब दो हफ्तों तक नागी बांध के आसपास ही मंडराता रहा और 7 मार्च को भागलपुर में गंगा नदी के तराई में पहुंचा, जो 80 किलोमीटर दूर है। यहां गगन ने दो ठिकानों पर डेढ़ दिन बिताये और फिर नेपाल की तरफ रवाना हो गया। वायु ने ऊंची उड़ान ली थी, लेकिन इसके उलट गगन ने ऊंची उड़ान नहीं ली और थोड़ा नीचे ही उड़ते हुए नेपाल के तराई क्षेत्र में पहुंचा। इस दौरान उसकी रफ्तार 56-57 किलोमीटर प्रतिघंटा रही।

जमुई के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) तेजस जायसवाल ने बताया, “गगन नाम का राजहंस फिलहाल तिब्बत के लहासा को पार करके उत्तर दिशा में तिब्बत के नामुकुओ झील में प्रवास कर रहा है। वहीं, राजहंस वायु अभी भुटान की सीमा में दक्षिण तिब्बत में है। दोनों राजहंस अपनी मंजिल की ओर हैं।”

Bihar GPS tracking Geese

आनेवाले समय में और पक्षियों की होगी टैगिंग

उन्होंने इस प्रयास को बिहार में प्रवासी पक्षी संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर करार देते हुए कहा कि दोनों राजहंसों के उड़ान स्वरूप से आर्द्रभूमि, नदी गलियारों और उच्च ऊंचाई वाले पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा के महत्व का पता चलेगा। “निकट भविष्य में इन दोनों पक्षियों के वापसी प्रवास मार्ग का भी पता चलेगा, जो हमें ये समझने में मदद करेगा कि उनके आवासीय क्षेत्रों में क्या जरूरतें हैं। ये पता चलने पर हमलोग ये भी जान सकेंगें कि उनके मार्गों को संरक्षित रखने के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए,” डीएफओ तेजस जायसवाल ने कहा।

गौरतलब हो कि बिहार में प्रवासी पक्षी मुख्य तौर पर यहां के आद्रभूमि क्षेत्रों में आते हैं। बिहार स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी के मुताबिक, बिहार में कुल 21998 आर्द्रभूमि हैं, जो 403209 हेक्टेयर में फैली हुई है। इनमें से काबर लेक, बरैला लेक, कुशेश्वर स्थान जलाशय, गोगाबिल जलाशय और नागी/नकटी जलाशय बड़े आकार के हैं और इनमें भारी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सर्दियों के मौसम में राज्य में दो दर्जन देशों से लगभग 350 प्रकार के प्रवासी पक्षी आते हैं। इन पक्षियों पर नजर रखने के लिए बिहार सरकार ने वर्ष 2021 में इनकी टैगिंग शुरू की थी और अब इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए पहली बार यहां प्रवासी पक्षी के शरीर के ऊपरी हिस्से पर जीपीएस ट्रांसमीटर लगाया गया है।

उन्होंने कहा, “प्रायोगिक तौर पर राजहंसों की टैगिंग की गई है और अब तक के परिणाम उत्साह बढ़ाने वाले हैं। आने वाले वर्षों में हमलोग अन्य प्रवासी पक्षियों में भी जीपीएस ट्रांसमीटर लगाएंगे ताकि उनकी ट्रैकिंग कर उनके रूट का अध्ययन किया जा सके।”

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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