विगत 14 जून को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख थी। उस दिन तक सिर्फ एक ही व्यक्ति ने इस पद के लिए नामांकन दाखिल किया था। चूंकि इस पद के लिए चुनाव में एक ही उम्मीदवार मैदान में था, तो उन्हें 19 जून को होने वाली वोटिंग से पहले ही निर्विरोध विजयी घोषित कर दिया गया। वो व्यक्ति कोई और नहीं 77 साल के मंगनी लाल मंडल थे।
मंगनी लाल मंडल का राजनीतिक करियर लगभग 50 साल से भी लम्बा है, इतने लम्बे करियर के बावजूद बिहार की राजनीति में वह लगभग गुमनाम ही रहे। अब राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनते ही सुर्खियों में आ गये। मंगनी लाल मंडल संभवतः राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनने वाले पहले अतिपिछड़ा नेता हैं। इससे पहले जगदानंद सिंह प्रदेश अध्यक्ष थे। वह राजपूत जाति से आते हैं।
Also Read Story
राजद विधायक व नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट फेसबुक पर मंगनी लाल मंडल की इस पहचान को खास तौर पर चिन्हित करते हुए लिखा – बिहार में किसी भी पार्टी द्वारा प्रथम बार ‘अतिपिछड़ा वर्ग’ से प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है।
तेजस्वी यादव ने आगे लिखा, “राजद से अनुसूचित जाति वर्ग, मुस्लिम वर्ग, पिछड़ा वर्ग व अगड़ा वर्ग से पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। अब अतिपिछड़ा वर्ग से संबंध रखने वाले वरिष्ठ व अनुभवी समाजवादी नेता आदरणीय मंगनी लाल मंडल जी को अध्यक्ष बनाया गया है। सर्वप्रथम किसी अतिपिछड़ा को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का गौरव राजद को हासिल हुआ है।”
मंगनी लाल मंडल धानुक जाति से आते हैं, जिसकी आबादी बिहार में 2.21 प्रतिशत है। धानुक जाति, अतिपिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में आती है, जो 112 जातियों का समूह है।
कौन हैं मंगनी लाल मंडल
बिहार के मधुबनी जिले के फुलपरास प्रखंड अंतर्गत गोरमारा गांव में जन्मे मंगनी लाल मंडल बिहार की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर से समकालीन रहे हैं। दोनों ने लगभग एक ही समय राजनीति की शुरुआत की। कर्पूरी ठाकुर के विचारों से वे इतना प्रभावित हैं कि उनके निधन के बाद उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के विचारों को फैलाने के लिए वर्ष 1991 में जननायक कर्पूरी ठाकुर रचना चक्र की स्थापना की थी।
सामाजिक आंदोलनों में मंगनी लाल मंडल ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वह ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए आंदोलन में सक्रिय रहे। साल 1967-68 में बोकारा स्टील प्लांट से विस्थापित लोगों के लिए आंदोलन किया। वह छात्र राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे। 1966 में मंगनीलाल मधुबनी के रामकृष्ण कॉलेज के छात्र यूनियन के सचिव रहे। साल 1967 में समाजवादी युवजन के स्टेट ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे और साल 1975 में इसी संगठन के राज्य सचिव बने। साल 1977 में वह बिहार स्टेट युवा जनता दल के अध्यक्ष रहे और साल 1980 में बिहार यूनिवर्सिटी छात्र संघर्ष समिति की स्टीरिंग कमेटी में सदस्य बने। साल 1985-89 तक वह बिहार लोकदल में महासचिव बने।
मंडल 1986 में लोकदल की तरफ से पहली बार विधानसभा परिषद के सदस्य बने। लोकदल के रास्ते वह राष्ट्रीय जनता दल में आए तथा वर्ष 1997-2000 और फिर वर्ष 2004-2008 में वह राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव रहे। राष्ट्रीय जनता दल की सरकार में वह मंत्री भी बने। लेकिन, वर्ष 2004 में उनका राष्ट्रीय जनता दल से मोहभंग हो गया और वह जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गये। उसी वर्ष जनता दल यूनाइटेड ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर ही उन्होंने झंझारपुर लोकसभा सीट से साल 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
हालांकि, बाद में वह लगातार जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के बीच झूलते रहे। वर्ष 2019 में उन्होंने फिर एक बार जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा। उस वक्त ऐसा कहा जा रहा था कि लोकसभा चुनाव के टिकट के लिए वह जदयू में शामिल हुए थे। मगर उस चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला। अलबत्ता पार्टी में उन्हें अहम पद जरूर मिला। इसी साल जनवरी में वह वापस राजद में शामिल हुए।
मंगनी लाल मंडल हालांकि कर्पूरी ठाकुर, लालू यादव व नीतीश कुमार के समकालीन रहे, लेकिन उन्हें वो लोकप्रियता नहीं मिली, जो इन नेताओं को मिली। उन्हें कमोबेश क्षेत्रीय नेता के तौर पर ही देखा गया और खास तौर से अतिपिछड़े वर्ग के नेता के तौर पर। मंगनी लाल मंडल की इसी पहचान ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया।
अतिपिछड़ा वर्ग की मुखरता
वर्ष 2022-23 में जारी हुई जाति गणना रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 प्रतिशत है, जो किसी भी जाति समूह से अधिक है। इस जाति समूह में 112 जातियां शामिल हैं, लेकिन इस जाति वर्ग की बिहार की राजनीति में भागीदारी अपेक्षाकृत कम है।
जाति गणना के आंकड़े आने के बाद अतिपिछड़ा वर्ग मुख्यधारा की पार्टियों से समुचित भागीदारी की मांग करने लगा है। हाल के एक डेढ़ महीनों में ये देखा गया है कि अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों के संगठनों की ओर से पटना में जनसभाएं कर आसन्न विधानसभा चुनावों में जातियों की आबादी के हिसाब से टिकटों की मांग की। विगत 17 जून को कानू विकास संघ ने भी ऐसी ही एक जनसभा कर अतिपिछड़ा वर्ग में आने वाली कानू जाति की आबादी के अनुपात में 9 सीटों की मांग की थी। कानू विकास संघ के प्रदेश अध्यक्ष अजय कानू हैं, जो पूर्व में नक्सली कमांडर रह चुके हैं। उन्हें दुनिया के सबसे बड़े जेल ब्रेक कांड जहानाबाद जेल ब्रेक का मास्टरमाइंड बताया जाता है।
राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, “जाति गणना के आंकड़े आने के बाद अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों में हलचल शुरू हो गई है। और आप देखिए कि अभी ये वर्ग काफी चंचल है और लगातार राजनीति में प्रतिनिधित्व की मांग कर रहा है। कोई भी पार्टी इसकी अनदेखी नहीं कर सकती है।”
यहां ये भी बता दें कि बिहार की राजनीति में अतिपिछड़ा वर्ग एक महत्वपूर्ण फैक्टर रहा है। ये जानते हुए ही वर्ष 2006 में नीतीश कमार ने पंचायतों में अतिपिछड़ा वर्ग के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की थी। इसका फायदा जदयू को मिला।
अब राजद इस वर्ग को लुभाना चाहता है। यही वजह है कि राजद का शीर्ष नेतृत्व पार्टी संगठन में अहम पदों पर अन्य वर्गों के साथ ही अतिपिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रख रहा है। जिला इकाइयों में ये सुनिश्चित किया गया है कि अहम पदों पर अनुसूचित जाति, जनजाति और अतिपिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व मिले।
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मंगनी लाल मंडल ने कहा, “मुझे अध्यक्ष चुना गया, उसके लिए राजद के संगठन और नेताओं को धन्यवाद और बधाई देता हूं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को आभार व्यक्त करता हूं कि इतना बड़ा दायित्व मुझे दिया गया है।”
उन्होंने नीतीश कुमार पर अतिपिछड़ा वर्ग को बरगलाने का आरोप लगाया और कहा कि नीतीश कुमार ने अतिपिछड़ा वर्ग के साथ छल किया है और उन्हें उनका अधिकार नहीं मिला है। मंडल ने कहा कि 36 प्रतिशत अतिपिछड़ा वोट बैंक का उपयोग नीतीश कुमार ने अपने फायदे के लिए किया है, लेकिन उन्हें उनका हक नहीं दिया है। उन्होंने आगे कहा कि वोट हमारा, राज तुम्हारा नहीं चलेगा और महागठबंधन की सरकार बनने पर अतिपिछड़ा वर्ग को उनका अधिकार मिलेगा।
मंगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का उद्देश्य न सिर्फ अतिपिछड़ा वर्ग को लुभाना है बल्कि उत्तर बिहार में भी पार्टी को मजबूत करना है क्योंकि उत्तर बिहार राजद की कमजोर कड़ी है। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का प्रदर्शन काफी खराब था। इस चुनाव में सीतामढ़ी जिले की 8 सीटों में से महागठबंधन सिर्फ दो सीटें, मधुबनी की 10 सीटों में से सिर्फ दो सीट, पूर्णिया की कुल 7 सीटों और सहरसा की 4 सीटों में से सिर्फ एक-एक सीट पर ही महागठबंधन जीत पाई थी। इसी तरह दरभंगा की 10 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर महागठबंधन को जीत मिली थी। वहीं, पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण की कुल 21 सीटों में से सिर्फ 4 सीटों पर महागठबंधन को बढ़त मिली थी।
मंगनी लाल मंडल खुद उत्तर बिहार के मधुबनी जिले से आते हैं और वह जिस धानुक जाति से ताल्लुक रखते हैं, उनकी आबादी उत्तर बिहार में ठीक ठाक है।
राजद विधायक भारत मंडल बताते हैं, “मंगनीलाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाना पार्टी का ऐतिहासिक निर्णय है और इसका फायदा राजद और इंडिया गठबंधन को मिलेगा क्योंकि कोसी व मिथिलांचल क्षेत्र में धानुकों की अच्छी आबादी है।” “इस बार टिकट बंटवारे में भी राजद अतिपिछड़ा वर्ग का खास खयाल रखेगा,” उन्होंने कहा।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।