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आंदोलनों की आलोचना करने वाले प्रशांत किशोर आंदोलन में क्यों कूदे?

प्रशांत किशोर के नजरिए में आये बदलाव को राजनीतिक विश्लेषक जमीनी हकीकत से रूबरू होने पर मिलने वाली सीख का परिणाम बताते हैं।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
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जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर इन दिनों खासी चर्चा में हैं। उन्होंने पहले बीपीएससी की 70वीं प्रारंभिक परीक्षा रद्द कर दोबारा परीक्षा लेने की मांग पर आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों को लेकर एक मार्च निकाला और फिर अभ्यर्थियों पर पुलिस के लाठीचार्ज के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गये, जिस पर कार्रवाई करते हुए पिछले दिनों पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। बाद में कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी।


2 अक्टूबर 2022 को जनसुराज अभियान शुरू होने से लेकर अब तक बिहार मे कई धरना प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन प्रशांत किशोर ने इन प्रदर्शनों में शामिल होना तो दूर, उन्हें खुलकर समर्थन तक नहीं दिया। इसके पीछे प्रशांत किशोर के अपने तर्क थे। दरअसल, प्रशांत किशोर किसी भी तरह के जन आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। वह शुरू से ही कहते रहे हैं कि ज्यादातर आंदोलनों से सिर्फ सत्ता परिवर्तन हुआ है, व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। उनका कहना है कि आंदोलन से समाज में कोई बदलाव नहीं आता है और इससे लोग ठगा हुआ महसूस करते हैं।

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लेकिन, बीपीएससी अभ्यर्थियों के आंदोलन में न केवल वह शामिल हुए बल्कि अभ्यर्थियों के मार्च को नेतृत्व भी दिया और अब भी वह अभ्यर्थियों के आंदोलन के साथ हैं।


ऐसे में सवाल उठता है कि आंदोलनों की मुखालिफत करने वाले प्रशांत किशोर अचानक बीपीएससी अभ्यर्थियों के आंदोलन में क्यों कूद गये? इस सवाल पर जन सुराज पार्टी से जुड़े एक छात्र नेता कहते हैं, “दरअसल बीपीएससी अभ्यर्थियों पर पूर्व में दो बार पुलिस लाठीचार्ज कर चुकी थी। लाठीचार्ज से वह नाराज थे। उनका कहना था कि अभ्यर्थियों की मांग सरकार को माननी है, तो माने या न माने, लेकिन प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करना सरासर गलत है। इसलिए अभ्यर्थियों से मिलने के लिए गर्दनीबाग धरनास्थल पर गये। लेकिन, वहां अभ्यर्थियों ने उनसे कहा कि उनकी बात सरकार सुन नहीं रही है और प्रशांत किशोर से आंदोलन को लीड करने की अपील की।”

“प्रशांत किशोर ने पहले तो अभ्यर्थियों से कहा कि जब उनकी सरकार आएगी, तब हल निकाला जाएगा। इस पर अभ्यर्थियों ने कहा कि यह तात्कालिक मुद्दा है और इसका तुरंत हल निकलना चाहिए। तब प्रशांत किशोर ने छात्र संसद बुलाने को कहा,” उक्त छात्र नेता ने कहा।

गांधी मैदान में गांधी मूर्ति के सामने अभ्यर्थी इकट्ठा हुए, वहां 11 अभ्यर्थियों को लेकर एक कोर कमेटी बनाई गई और वहां से अभ्यर्थियों व जन सुराज पार्टी के वर्करों के साथ प्रशांत किशोर, मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने निकल पड़े। अभ्यर्थी बिस्कोमान भवन के पास गोलम्बर पर पहुंचे, तो पुलिस ने ये संदेश उन तक पहुंचाया कि पांच अभ्यर्थियों की कमेटी के साथ मुख्य सचिव मिलने को तैयार हो गये हैं। मौके पर मौजूद रहे एक अभ्यर्थी ने बताया कि पुलिस के संदेश के बाद प्रशांत किशोर ने कहा कि यह मार्च यहीं खत्म किया जाए और वह निकल गये। लेकिन अभ्यर्थी वहीं अड़े रहे। प्रशांत किशोर के जाने के लगभग आधे घंटे के बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया।

उक्त अभ्यर्थी ने कहा कि इस लाठीचार्ज में जख्मी अभ्यर्थियों से प्रशांत किशोर ने मुलाकात की और अगले दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लाठीचार्ज करने वाले पुलिस कर्मचारियों पर कार्रवाई की मांग की और 2 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठ गये।

जन सुराज पार्टी से जुड़े अमित विक्रम कहते हैं, “आमरण अनशन का फैसला प्रशांत किशोर ने अचानक लिया था क्योंकि अनशन से पहले जब उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, तो उसमें उन्होंने आमरण अनशन के बारे में कुछ नहीं कहा था। जन सुराज में किसी को नहीं पता था कि वह अनशन करने वाले हैं। आमरण अशनन के पोस्टर भी हड़बड़ी में बनवाये गये थे।”

प्रशांत किशोर के नजरिए में आये बदलाव को राजनीतिक विश्लेषक जमीनी हकीकत से रूबरू होने पर मिलने वाली सीख का परिणाम बताते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक रमाकांत चंदन कहते हैं, “वह आंकड़ों में माहिर हैं। लोकप्रिय नारे गढ़ सकते हैं, उसे पॉपुलर बना सकते हैं। आकर्षक लोकलुभावन योजनाओं की प्लानिंग कर सकते हैं, लेकिन राजनीति के मैदान में वह नैसिखिया ही हैं। वह अब जब मैदान में उतरे हैं, तो उन्हें आंदोलनों के साथ खड़े होने का फायदा समझ आ रहा है। यही वजह है कि वह बीपीएससी अभ्यर्थियों के साथ खड़े हुए।”

वह सीएम आवास घेराव रैली को बीच में छोड़ देने और उसके बाद लाठीचार्ज को आमरण अनशन का ट्रिगर प्वाइंट मानते हैं। “रैली से उनके निकल जाने के बाद जब अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज हुआ, तो लोग कहने लगे कि प्रशांत किशोर लाठी खाने के डर से रैली छोड़कर भाग गये। इस वजह से सोशल मीडिया पर उन्हें ‘रणछोड़दास’ कहा जाने लगा। इस आरोपों को झूठा साबित करने के लिए उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया और गिरफ्तार कर लिये गये। इसका बहुत असर हुआ। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ जो नैरेटिव गढ़ा गया था, उसमें बदलाव आया और प्रशांत किशोर को भी अहसास हुआ कि इस तरह के आंदोलनों के साथ खड़े होने के फायदे हैं,” वह कहते हैं।

“आप समझिए, कुल चार लाख अभ्यर्थियों ने बीपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा दी थी। हर अभ्यर्थी के परिवार में औसतन पांच सदस्य हैं, तो 20 लाख लोग हो गये। इन 20 लाख लोगों की नजर में तो प्रशांत किशोर की सकारात्मक छवि बन गई, इसका तो उन्हें फायदा ही होगा।”

हालांकि, प्रशांत किशोर ने आमरण अनशन के दौरान भी आंदोलनों को लेकर अपने नजरिये में किसी तरह के बदलाव से इनकार किया और कहा कि वह अपने स्टैंड पर कायम हैं। उन्होंने पांच मांगों को लेकर आमरण अनशन करने की बात कही थी, जिनमें 70वीं बीपीएससी परीक्षा में हुई अनियमितता और भ्रष्टाचार की उच्चस्तरीय जांच और पुनर्परीक्षा, 2015 में 7 निश्चय के तहत किए वादे के अनुसार 18 से 35 साल के बेरोजगार युवा को बेरोजगारी भत्ता, पिछले 10 वर्षों में प्रतियोगी परीक्षाओं में हुई अनियमितता और पेपर लीक की जांच व दोषियों पर कार्रवाई आदि शामिल हैं।

राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, “प्रशांत किशोर राजनीतिक तौर पर इवॉल्व हो रहे हैं और इसी का परिणाम है उनका बीपीएससी अभ्यर्थियों के समर्थन में खड़ा होना। प्रशांत किशोर को लग रहा होगा कि एक बड़ा वर्ग आंदोलन कर रहा है तो उनके साथ खड़ा होना चाहिए, भले वह आंदोलनों को बहुत सकारात्मक तरीके से नहीं ले रहे हों।”

“इस आंदोलन के साथ खड़े होने के पीछे निश्चित तौर पर प्रशांत किशोर का अपना राजनीतिक स्वार्थ होगा, लेकिन उनके चलते बीपीएससी अभ्यर्थियों का आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां तो जरूर बन गया। जो प्रशांत किशोर ने किया है, वो बिहार की दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया,” उन्होंने कहा।

जातिगत राजनीति पर भी बदला स्टैंड

यह पहली बार नहीं है, जब उन्होंने अपना पुराना स्टैंड बदला है। इससे पहले जातिगत राजनीति को लेकर भी उनकी राय अलग थी, लेकिन अब वह खुद राजनीति में जाति की बात जोरशोर से करने लगे हैं।

2 अक्टूबर 2022 से जब प्रशांत किशोर ने जनसुराज अभियान के तहत पदयात्रा की थी, तो शुरुआती चरणों में वह बिहार की आर्थिक व शैक्षणिक बदहाली पर ही बात करते थे और जातीय समीकरणों को साधते हुए राजनीति करने वाली सियासी पार्टियों की तीखी आलोचना करते थे।

मगर, जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि जाति की बात किये बिना राजनीति नहीं की जा सकती है। फिर जनसुराज के लोगो में बदलाव हुआ। अब लोगो में गांधी के साथ डॉ भीमराव अंबेडकर की भी तस्वीर है। जन सुराज पार्टी के सूत्र बताते हैं कि इसी दौरान दलितों तक पहुंच बनाने के लिए अंबेडकर वाहिनी और अतिपिछड़ों तक पहुंचने के लिए कर्पूरी वाहिनी का गठन किया गया।

प्रशांत किशोर खुद सार्वजनिक मंचों से ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी’ की बात करने लगे और ऐसा नहीं करने वाली पार्टियों की आलोचना कर रहे हैं।

पदयात्रा के शुरुआती चरणों में उन्होंने कहा था कि विचारधारा के आधार पर अंबेडकर को मानने वालों, कम्युनिस्ट को मानने वालों, समाजवाद को मानने वालों व गांधी की विचारधारा को मानने वालों को एक साथ लाने का प्रयास किया जाएगा ताकि ताकि बिहार में एक बेहतर विकल्प लाया जा सके। मगर, 2 अक्टूबर 2024 को पार्टी की स्थापना के मौके पर उन्होंने इन विचारधाराओं के साथ साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआएसएस) के स्वयंसेवकों तक को पार्टी में शामिल होने का आह्वान कर दिया।

यही नहीं, प्रशांत किशोर यह भी कहा करते थे कि वह साफ-सुथरी छवि वाले और काबिल लोगों को राजनीति में लाएंगे। मगर हाल ही में बिहार की चार विधानसभी सीटो के लिए हुए उपचुनाव में पार्टी ने जिन चार उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, उनमें से तीन के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।

वह नेताओं की शैक्षणिक योग्यता को लेकर भी तीखी टिप्पणी किया करते थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि समाज के प्रबुद्ध लोग अगर लोकतंत्र में भागीदार नहीं बनेंगे, तो मूर्ख लोग ही शासन करते रहेंगे। मगर, प्रशांत किशोर ने जिन चार उम्मीदवारों को टिकट दिया था, उनमे दो महज मैट्रिक पास थे और दो इंटरपास।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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