Main Media

Get Latest Hindi News (हिंदी न्यूज़), Hindi Samachar

Support Us

शराबबंदी कानून पर पटना हाईकोर्ट ने क्यों की सख्त टिप्पणी?

जस्टिस पूर्णेन्दु सिंह ने ये भी कहा कि शराब पीने वाले गरीबों और अवैध शराब त्रासदी के शिकार हुए गरीब लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों के मुकाबले सरगना/सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या बहुत कम है।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
why did patna high court make strict comment on the prohibition law

“शराबबंदी ने असल में शराब और अन्य प्रतिबंधित चीजों के अवैध व्यापार को बढ़ावा दिया है।”


“एक्ट के कठोर प्रावधान पुलिस के लिए उपयोगी हो गए हैं, जो शराब तस्करों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। कानून लागू करने वाली एजेंसियों को धोखा देने के लिए नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं, ताकि तस्करी के सामान को पहुंचाया जा सके। न केवल पुलिस और आबकारी अधिकारी, बल्कि राज्य एक्साइज विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी को पसंद करते हैं, क्योंकि उनके लिए इसका मतलब मोटी कमाई है।”

Also Read Story

असर: पटना हाइकोर्ट ने शराब के साथ जब्त 2.24 लाख रुपये आरोपी को लौटाने का दिया आदेश

पटना हाईकोर्ट ने दी जमानत, मगर आदेश छह महीने बाद लागू!

शराब मिली 600 एमएल, जुर्माना लगाया 8 लाख रुपये!

किशनगंज में एएसआई ने होमगार्ड जवान से की हाथापाई, जवानों ने की कार्रवाई की मांग

शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ा रहे पुलिस और आबकारी पदाधिकारी

कानून में प्रावधान नहीं फिर भी शराब मामले में नकदी जब्त, अब कोर्ट सुन रहा, न डीएम-एसपी

“SSB ने पीटा, कैम्प ले जाकर शराब पिलाई” – मृत शहबाज के परिजनों का आरोप

बिहार में शराबबंदी इफेक्ट – एक्सीडेंट के मामलों में आई चौकाने वाली रिपोर्ट

ऊपर दिये गये बयान पढ़कर ऐसा लग सकता है कि बिहार के किसी सामाजिक कार्यकर्ता या विपक्षी राजनीतिक पार्टी के नेताओं ने बिहार में शराबबंदी कानून की विफलता पर टिप्पणी की होगी। लेकिन, ये तीखी टिप्पणी किसी नेता या सामाजिक कार्यकर्ता की नहीं बल्कि पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पूर्णेन्दु सिंह की है। ये आदेश अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में आया था लेकिन आदेश की प्रति इसी महीने अपलोड की गई।


उन्होंने आगे कहा, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 में राज्य का कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वह लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाए और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाए, और इस तरह राज्य सरकार ने उक्त उद्देश्य के साथ बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया, लेकिन कई कारणों से यह खुद को इतिहास के गलत पक्ष में पाता है।”

जस्टिस पूर्णेन्दु सिंह ने ये भी कहा कि शराब पीने वाले गरीबों और अवैध शराब त्रासदी के शिकार हुए गरीब लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों के मुकाबले सरगना/सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या बहुत कम है।

“राज्य के गरीब तबके के अधिकांश लोग जो इस कानून का दंश झेल रहे हैं, वे दिहाड़ी मजदूर हैं जो अपने परिवार के कमाने वाले एकमात्र सदस्य हैं। जांच अधिकारी जानबूझकर अभियोजन पक्ष के मामले में लगाए गए आरोपों को किसी भी कानूनी दस्तावेज से पुष्ट नहीं करते हैं और ऐसी खामियां छोड़ दी जाती हैं और कानून के अनुसार तलाशी, जब्ती और जांच न करके सबूतों के अभाव में माफिया को खुला छोड़ दिया जाता है,” जस्टिस ने कहा।

कोर्ट की ये टिप्पणी शराबबंदी कानून से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आई, जिसमें शराब बरामदगी पर स्थानीय थाने के एसएचओ का प्रमोशन रोकने और तनख्वाह में कटौती का आदेश सरकार ने दिया था।

मामला क्या था, जिस पर आई ये टिप्पणी?

मुकेश कुमार पासवान, वर्ष 2021 में पटना के बाईपास थाने के एसएचओ थे। उसी दौरान उत्पाद विभाग ने थाने से महज 500 मीटर दूर स्थित एक गोदाम में छापेमारी कर 4 लाख रुपये की अवैध विदेशी शराब जब्त की थी।

चूंकि गोदाम बाईपास थाने के करीब था, तो उत्पाद विभाग ने आरोप लगाया कि मुकेश पासवान, थाने के ही चौकीदार लालू पासवान के साथ अवैध शराब की बिक्री में शामिल हो सकते हैं।

इस आरोप के चलते मुकेश कुमार पासवान को फरवरी 2021 में निलंबित करते हुए और कारण बताओ नोटिस जारी किया गया कि क्यों न उन्हें उत्पाद व मद्य निषेध कानून के क्रियान्वयन में लापरवाही बरतने के लिए दोषी माना जाए। मुकेश ने सभी आरोपों से इनकार करते हुए मार्च 2021 में अपना विस्तृत जवाब दिया। जवाब से असंतुष्ट सरकार ने उनके खिलाफ जांच शुरू की और इस नतीजे पर पहुंची कि सजा के तौर पर उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए। साथ ही दस साल तक उन्हें किसी जिम्मेदार पद पर न रखने का आदेश भी सुनाया गया। इसके साथ साथ उनके वेतन में भी कटौती की गई।

सरकारी आदेश में कहा गया, “बर्खास्त होने की तारीख से 10 साल तक प्रभारी अधिकारी या किसी जिम्मेदार पद पर उन्हें तैनात नहीं किया जाएगा।”

सरकारी आदेश के खिलाफ मुकेश कुमार पासवान पटना हाईकोर्ट चले गए।

मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कार्रवाई के पक्ष में दलील देते हुए कहा कि पुलिस महानिदेशक ने अपने आदेशात्मक पत्र में स्पष्ट किया है कि थाने के पास अवैध शराब की बरामदगी पर संबंधित थाना प्रभारी (एसएचओ) सुधारात्मक उपाय नहीं करने और आवश्यक कार्रवाई नहीं करने के लिए दोषी माने जाएंगे, जिसके लिए उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। सरकारी वकील ने अपनी दलील को आगे बढ़ाते हुए ये भी कहा कि निषेध व आबकारी विभाग के निर्देश का याचिकाकर्ता द्वारा पालन नहीं किया गया है और वे अपने अधिकार क्षेत्र में अवैध शराब की बिक्री की जांच करने में सफल नहीं रहे हैं, जो उनके लापरवाह रवैये को दर्शाता है।

मुकेश कुमार पासवान के वकील ने पूरी विभागीय जांच को पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताया और कहा कि इसी पूर्वाग्रह के चलते उनके खिलाफ बड़ा जुर्माना लगाया गया, जिससे न्याय में विफलता हुई।

वकील ने आगे कहा कि भले ही बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियमावली, 2005 (जिसे आगे ‘नियम, 2005’ कहा जाएगा) के नियम 17 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के लिए कहा गया हो, लेकिन ये (कार्रवाई) महज एक औपचारिकता माना जाएगा जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि उनके मुवक्किल के खिलाफ कार्रवाई के आदेश के विषय-वस्तु से यह पता चलता है कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी शुरू से ही याचिकाकर्ता को दंडित करने का मन बना चुका था।

दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता को दी जाने वाली सजा पहले से तय थी और कहा, “मैं निलंबन आदेश और दंड आदेश को रद्द करता हूं।”

“हमलोग जो बात लम्बे समय से कह रहे, वो अब कोर्ट ने कहा”

सामाजिक कार्यकर्ताओं और शराबबंदी से जुड़े केस देख रहे वकीलों ने शराबबंदी कानून की विफलता और दुरुपयोग को लेकर पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी पर कहा कि ये बातें वे लोग लम्बे समय से कहते आ रहे हैं और कोर्ट ने भी कह दिया है।

जहानाबाद कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वकील संजीव शर्मा शराबबंदी कानून से जुड़े कई मामले देख चुके हैं। वह कहते हैं, “कोर्ट ने जो बातें कही हैं, वे फैक्ट हैं।पुलिस की कार्रवाई सिर्फ गरीबों, बेसहारा लोगों पर हो रही है। मुसहर समुदाय तो इससे सबसे ज्यादा पीड़ित है। एक एक मुसहर व्यक्ति पर तीन-तीन, चार-चार केस लाद दिया गया है। मुसहर समुदाय के मोहल्ले पुलिस के लिए आसान टारगेट हो गये हैं। अक्सर पुलिस इन मोहल्लों में रेड मारती है और निर्दोष लोगों को भी जेल में डाल देती है।”

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से लेकर मई 2023 तक 8,70,906 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। इनमें से 2,49,030 लोगों को सजा मिल चुकी है।

लम्बे समय तक मुसहरों के बीच काम कर चुके महेंद्र सुमन, जो सबाल्टर्न पत्रिका के संपादक हैं, भी शराबबंदी कानून का सबसे बड़ा शिकार गरीबों पिछड़ों को बताते हैं और शराबबंदी कानून पर ही सवाल उठाते हैं।

“शराब पीना बुरी लत है लेकिन यह चोरी-डकैती और हत्या जैसा कोई आपराधिक कर्म नहीं है। शराबबंदी कानून इसे अपराध कर्म ठहराकर समाज का एक तरह से अपराधीकरण कर रहा है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने आगे कहा, “शराबबंदी कानून के बावजूद जिस भारी मात्रा में शराब उपलब्ध है, उससे तो साफ है कि यह कानून पूरी तरह विफल है और मूल बात यह भी है कि यह कानून अपने मूल चरित्र में धुर गरीब-विरोधी है।”

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

चचरी के सहारे सहरसा का हाटी घाट – ‘हमको लगता है विधायक मर गया है’

अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर प्रदर्शन – सिर्फ 400 रुपया पेंशन में क्या होगा?

फिजिकल टेस्ट की तैयारी छोड़ कांस्टेबल अभ्यर्थी क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?

बिहार में पैक्स अपनी ज़िम्मेदारियों को निभा पाने में कितना सफल है?

अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती किशनगंज की रमज़ान नदी