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कांग्रेस ने चमार समुदाय के राजेश कुमार क्यों बनाया प्रदेश अध्यक्ष

माना जा रहा है कि राजेश कुमार की नियुक्ति के जरिए पार्टी का पहला लक्ष्य विरोधी दलों का मुंह बंद करना है, जो कांग्रेस पर लगातार ये आरोप लगा रहे हैं कि सामाजिक न्याय की वकालत करने वाले राहुंल गांधी अपनी पार्टी में ही अहम पदों पर वंचित समुदायों को नियुक्त नहीं कर रहे हैं।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
why did congress make rajesh kumar of chamar community the state president

बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने बिहार में एक दलित चेहरे को अहम पद सौंपा है। पार्टी ने भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर उनकी जगह चमार समुदाय से आने वाले औरंगाबाद जिले के ओबरा निवासी 60 वर्षीय राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।


राजेश कुमार, औरंगाबाद जिले के कुटुंबा विधानसभा सीट से विधायक हैं और राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता दिलकेश्वर राम भी कांग्रेस नेता और बिहार में कांग्रेस की सरकार के दौरान मंत्री रह चुके हैं। राजेश कुमार फिलहाल कुटुंबा विधानसभा सीट से विधायक हैं। इसी सीट से उन्होंने साल 2015 के विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की थी। पूर्व में वह पार्टी के अनुसूचित जाति-जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रह चुके हैं।

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राज्य अध्यक्ष बनाये जाने के बाद उन्होंने गुरुवार को दिल्ली में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की। बाद में मीडिया के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, “बिहार चुनाव के संदर्भ में ये मुलाकात थी। हमलोगों को बिहार में पूरी शक्ति के साथ काम करना होगा। बिहार की वर्तमान सरकार जनहित के मुद्दों पर कोई काम नहीं कर रही है। हमें रोजगार, पलायन के मुद्दों पर काम करना है…ये नई जिम्मेवारी है…कम समय में हमें अधिक काम करना है।”


राजेश कुमार को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने पर पार्टी के राज्यस्तरीय नेताओं में मिश्रित प्रतिक्रिया है।

पार्टी से जुड़े एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर ‘मैं मीडिया’ को बताया, “निश्चित तौर पर राहुल गांधी के इशारे पर उनकी नियुक्ति की गई है। राजेश कुमार जमीनी नेता हैं और उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में बिहार में पार्टी बेहतर काम करेगी।”

“पहले जो अध्यक्ष थे, वे राज्यसभा सांसद भी थे और पार्टी में उन्हें और भी जिम्मेवारी मिली हुई थी, इसलिए वे बिहार में लगातार काम नहीं कर पा रहे थे। दूसरी बात ये थी कि उन तक हमलोगों की सीधी पहुंच भी नहीं थी। मगर राजेश जी जमीन से उठे हुए नेता हैं, तो उम्मीद है कि हम जैसे नेताओं की बातें सुनी जाएंगी,” उक्त नेता ने कहा।

पदभार मिलने पर राजेश कुमार ने मीडिया के साथ बातचीत में कहा कि उन्हें राज्य अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी ने बिहार में सामाजिक न्याय की विचारधारा शुरू की है और पार्टी राज्य में 23 प्रतिशत की राजनीति करने जा रही है। हालांकि, उन्होंने 23 प्रतिशत को लेकर स्पष्ट कुछ नहीं कहा।

कांग्रेस के एक अन्य नेता ने कहा, “राजेश कुमार, बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि से गहराई से परिचित हैं और पार्टी में कार्यकर्ताओं की भूमिका को वह जानते हैं इसलिए हम लोगों को विश्वास है कि वे पार्टी के जमीनी वर्करों की बातें सुनेंगे और उनमें नई ऊर्जा का संचार करेंगे जिससे पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होगा।”

rajesh kumar with rahul gandhi and kharge

पार्टी के 50 पदों पर आरक्षण का वादा

बता दें कि साल 2023 में रायपुर में आयोजित 85वें अधिवेशन में कांग्रेस ने अपना संविधान बदलते हुए पार्टी की वर्किंग कमेटी व पार्टी के अन्य पदों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), महिला, युवा व अल्पसंख्यकों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया था और तभी से पार्टी पर दबाव था कि वह इस वादे को पूरा करे।

माना जा रहा है कि राजेश कुमार की नियुक्ति के जरिए पार्टी का पहला लक्ष्य विरोधी दलों का मुंह बंद करना है, जो कांग्रेस पर लगातार ये आरोप लगा रहे हैं कि सामाजिक न्याय की वकालत करने वाले राहुंल गांधी अपनी पार्टी में ही अहम पदों पर वंचित समुदायों को नियुक्त नहीं कर रहे हैं।

पिछले दिनों ओडिशा और झारखंड में भी पार्टी ने पिछले समुदायों के नेताओं को अहम जिम्मेवारी दी थी।

गौरतलब हो कि बिहार जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार की कुल आबादी में अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 19.65 प्रतिशत है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव से पहले से जातियों की बातें करते रहे हैं। जातियों की असल आबादी का पता लगाने के लिए वे लगातार केंद्र सरकार से जाति जगणना करवाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में राजेश कुमार की नियुक्ति में राहुल गांधी की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।

अनुसूचित से आने वाले नेता की पार्टी के राज्य अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति कांग्रेस के लिए कोई पहली घटना नहीं है। अलबत्ता ये जरूर है कि लगभग एक दशक के बाद इस पद पर दलित की वापसी हुई है। उनसे पहले वर्ष 2013 में अशोक चौधरी, जो अनुसूचित जाति से आते हैं, कांग्रेस के बिहार अध्यक्ष बने थे। फिलहाल वह जनता दल (यूनाइटेड) से जुड़े हुए हैं। पूर्व में पार्टी के राज्य अध्यक्ष रहे मुंगेरी लाल और डुमरलाल बैठा भी दलित समाज से आते थे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौकब कादरी, इस नियुक्ति को जाति की नजर से नहीं देखते।

उन्होंने कहा, “हमारा देश जिस तरह संविधान से चलता है, कांग्रेस भी उसी ढांचे के तहत चलती है। ऐसा नहीं है कि इससे पहले कोई दलित नेता पार्टी का राज्य अध्यक्ष नहीं बना है। पार्टी अभी बदलाव के दौर में है और नये चेहरों को सामने ला रही है, इसी कड़ी में राजेश कुमार को पार्टी का राज्य अध्यक्ष बनाया गया है।”

“हम कांग्रेस की विचारधारा को मानने वाले लोग हैं। जब पार्टी महात्मा गांधी के नेतृत्व में थी, तो सबका यही सोचना था कि पार्टी में अनेकता कायम रहेगी। इसी अनेकता को लेकर कांग्रेस आज भी आगे बढ़ रही है। राजेश कुमार की नियुक्ति उसी का हिस्सा है,” उन्होंने कहा।

अखिलेश प्रसाद सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे हैं, ऐसे में उनको हटाकर राजेश कुमार की नियुक्ति को बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए अधिक से अधिक टिकट लेने की कवायद से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस के एक अन्य नेता ने कहा कि टिकट के मामले में कांग्रेस इस बार किसी तरह के समझौते नहीं करेगी। “इस बार हमलोग ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे,” उक्त नेता ने कहा।

90 के दशक के वोट बैंक की वापसी की चाह?

उल्लेखनीय हो कि 90 के दशक तक कांग्रेस के पास मुस्लिम, अगड़ी जातियों व दलितों को मिलाकर एक बड़ा वोट बैंक था, जो अब बिखर चुका है। यही वजह है कि पिछले तीन दशकों में विधानसभा चुनावों पर कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। चुनावी आंकड़ों को देखे, तो साल दर साल कांग्रेस के वोट बैंक में गिरावट ही आई है। चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1995 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 16.3 प्रतिशत वोट मिले थे और पार्टी महज 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी, साल 2000 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर 6.47 पर आ गया था और पार्टी महज 21 सीटें ही जीत पाई थी। इसके बाद से लेकर साल 2015 के चुनाव तक कांग्रेस का वोट 9 प्रतिशत से नीचे ही रहा। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने जरूर 9.48 प्रतिशत वोट लाया, लेकिन सीटों की बात करें, तो 70 सीटों पर टिकट पाकर पार्टी 19 सीटें ही जीत पाई।

माना जा रहा है कि कांग्रेस, मुस्लिम-अगड़ी जाति-दलित वोट बैंक को फिर से खड़ा करने के लिए ये कवायद कर रही है। संभवतः यही वजह है कि कुछ दिन पहले ही कांग्रेस ने कन्हैया कुमार, जो भूमिहार समुदाय से आते हैं, को बिहार में लॉन्च किया। कांग्रेस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में कन्हैया कुमार ने मार्च के दूसरे हफ्ते से ‘पलायन रोको नौकरी दो’ पदयात्रा शुरू की और अब दलित समुदाय के राजेश राम को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस के विधायक दल के नेता शकील अहमद खान हैं ही। यानी कि तीनों वोट बैंक को साधने की कोशिश हो रही है।

पटना के वरिष्ठ पत्रकार दीपक मिश्रा कहते हैं, “कांग्रेस के पास नब्बे के दशक तक मुस्लिम, ऊंची जातियों व दलितों का वोट था, लेकिन अब पार्टी के पास इनमें से कोई भी नहीं है। पूर्व में पार्टी ने अगड़ी जातियों पर दांव आजमाया, लेकिन ये भी विफल रहा, ऐसे में वह अब दलित वोट बैंक पर ध्यान दे रही है।”

लेकिन, बिहार में कांग्रेस पार्टी बेहद कमजोर है और उसे पटरी पर लौटने में काफी वक्त लगेगा। बिहार में पार्टी के पास युवा कार्यकर्ता नहीं हैं। “आप गांवों में जाइए, तो पार्टी के बुजुर्ग नेता मिल जाएंगे, लेकिन उनके बच्चे कांग्रेस में नहीं हैं। वे राजद, भाजपा या जदयू में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में पार्टी को युवा कार्यकर्ताओं को नये सिरे से जोड़ना और उन्हें सक्रिय करना होगा, जो काफी चुनौतीपूर्ण काम है। इसके अलावा पार्टी के पास बिहार में कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है,” मिश्रा ने कहा।

हालांकि, कांग्रेस की इस कोशिश का बहुत फायदा होगा, ऐसा लगता नहीं है क्योंकि जिन तीन तबकों को कांग्रेस साधने की कोशिश कर रही है, वे दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं।

राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, “बिहार में कांग्रेस 35 सालों से हाशिये पर है, ऐसे में अगर वह सोचती है कि छह महीने में अपना पुराना वोट बैंक हासिल कर लेगी, तो ये नामुमकिन है। दूसरी तरफ, पार्टी के साथ ये दिक्कत भी है वह अब भी यही सोच रही है कि जो समाज उसका वोट बैंक था, वो समाज अब भी वहीं ठहरा हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं है।”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बदलते समय में कांग्रेस को नये वोट बैंक की तरफ देखना चाहिए न कि पुराने वोट बैंक को हासिल करना चाहिए। महेंद्र सुमन कहते हैं, “उसे ईबीसी और गैर यादव ओबीसी की तरफ ध्यान चाहिए था क्योंकि ईबीसी काफी चंचल वोट बैंक है और इस समुदाय में अभी नेतृत्व को लेकर अकुलाहट है, जिसे कांग्रेस किसी लोकप्रिय अतिपिछड़ा वर्ग के नेता को आगे कर भुना सकती है। लेकिन, पार्टी सामाजिक न्याय के बारे में सोचते हुए 90 के दशक के समीकरण से ऊपर नहीं उठ पा रही है।”

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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