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सुपौल: क्यों कम हो रहा पिपरा के खाजा का क्रेज

आजादी से पहले पिपरा में खाजा बनाने की शुरुआत की गई थी। स्वर्गीय गौनी शाह ने यहां खाजा के कारोबार की शुरुआत की थी।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
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“रोज हमारी दुकान से लगभग आधा क्विंटल खाजा की बिक्री हो जाती हैं। सुपौल के अन्य इलाकों के अलावा सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया और नेपाल के कई जगहों के व्यापारी यहां से खाजा खरीद कर अपने क्षेत्र में बेचते हैं,” पिपरा बाजार स्थित स्वीट्स कॉर्नर के मालिक जवाहर शाह बताते है।

जवाहर शाह तीन तरह का खाजा बेचते हैं। एक शुद्ध घी वाला, दूसरा रिफाइन वाला और तीसरा बिना कोई रंग दिया हुआ खाजा। शुद्ध घी का खाजा 250-300 रुपए किलो, रिफाइन वाला खाजा 120-150 रुपए किलो और बिना रंग वाला खाजा 100-120 रुपए बिकता है।

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जवाहर शाह ने अपनी दुकान में दो लोगों को रखा हुआ है, जिन्हें वह 10000 रुपए प्रति महीना तनख्वाह देते हैं। “इसी दुकान और खासकर खाजा की बिक्री से ही मेरा पूरा परिवार चल रहा है,” उन्होंने कहा।


 

सुपौल जिले के सुपौल शहर से पिपरा बाजार की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। इस बाजार में मिठाई की दुकान अधिक मिलती है। इस बाजार में लगभग 50 से ज्यादा मिठाई की दुकानें हैं और चूंकि पिपरा बाजार खाजा के लिए मशहूर है, तो यहां कमोबेश सभी दुकानों में खाजा बिकता है।

लेकिन, खाजा को लेकर पहले जैसा क्रेज अब नहीं दिखता है। इस वजह से मिठाई के
बाजार में पहले जैसी रौनक भी नजर नहीं आती।

पिपरा के खाजा की शुरुआत

यहां के स्थानीय निवासियों के मुताबिक, आजादी से पहले यहां खाजा बनाने की शुरुआत की गई थी। स्वर्गीय गौनी शाह ने यहां खाजा के कारोबार की शुरुआत की थी। इसलिए स्वर्गीय गौनी साह को पिपरा के खाजा का आविष्कारक माना जाता है। स्थानीय खाजा व्यवसायी अमर शाह के मुताबिक, शुरू में खाजा गोल गोल और बहुत ही खस्ता बनाया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे ग्राहकों की मांग पर खाजा लंबा और कड़ा बनाया जाने लगा।

स्थानीय व्यवसायियों के मुताबिक, प्रतिदिन यहां 10 क्विंटल से ज्यादा खाजा की बिक्री होती है। पर्व त्यौहार में इसकी बिक्री दोगुनी हो जाती है।

बिहार का खाजा पुराण

भागलपुर स्थित वरिष्ठ लेखक और पत्रकार आत्मेश्वर झा बताते हैं, “बिहार स्थित राजगीर और नालंदा के बीच स्थित सिलाव नामक स्थान है। इस स्थान पर 2018 को खाजा की मिठाई को भौगोलिक संकेत (GI) दिया गया। सिलाव का खाजा 52 परतों में बनाया जाता है। आटा, मैदा,चीनी तथा इलायची के प्रयोग से बनाया जाने वाली यह मिठाई पेटिस जैसी होती है, लेकिन स्वाद में मीठी होती है।”

close up look of khaja of pipra supaul

“वहीं पटना और आसपास के इलाके में मिलने वाले खाजे की परतें इतनी पतली होती हैं कि मुंह में रखते ही घुल जाये।
पिपरा का खाजा लंबा होता है। पिपरा के खाजा का स्वाद आंध्र प्रदेश के काकीनाडा जैसा होता है। हालांकि, काकीनाडा का खाजा आकार में लगभग गोल होता है। ओडिशा के पुरी का खाजा भी पिपरा के खाजा जैसा है, मगर आकार में थोड़ा छोटा है।”

गुणवत्ता में कमी

सुपौल के बीना बभनगामा के रहने वाले विपुल झा से पटना यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम इंटरव्यू में पूछा गया था कि आपके क्षेत्र की प्रसिद्ध चीज क्या है। इस पर उन्होंने कहा कोसी ब्रिज, गणपतगंज और सिंघेश्वर मंदिर। इस पर इंटरव्यू लेने वाले प्रोफेसर ने कहा कि नहीं! आपके क्षेत्र की सबसे प्रसिद्ध चीज है पिपरा का खाजा।

लेकिन, बदलते दौर में पिपरा के खाजा की गुणवत्ता में बहुत कमी आई है। सुपौल के आलोक झा रेलवे में कार्यरत हैं। वह बताते हैं, “अभी आपको सुपौल के कई क्षेत्रों में पिपरा जैसा खाजा मिल जाएगा। मधेपुरा के कॉलेज चौक पर एसबीआई एटीएम की दूसरी तरफ पिपरा से अच्छा खाजा मिल जायेगा आपको। एक समय था जब 30 किलोमीटर दूर पिपरा बाजार हम सिर्फ खाजा खरीदने जाते थे। लेकिन, अब पिपरा के खाजा की गुणवत्ता में बहुत कमी आई है। लेकिन, पुराने दिनों को याद करने के लिए एक बार खाने को तो मन करता ही है।”

गुणवत्ता में कमी आई है, यह वहां के स्थानीय दुकानदार और व्यापारी भी मानते हैं। पिपरा बाजार के स्थानीय मिठाई दुकानदार हरिहर शाह बताते हैं,”पहले शुद्ध घी में बनता था यहां पर पूरा खाजा, अब रिफाइंड और डालडा में बनता है। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि कहिए मत! शुद्ध घी भी उपलब्ध नहीं मिलता है। अब शुद्ध मैदा भी नहीं मिलता है। कारीगर की भी कमी है, इसलिए यहां के खाजा की गुणवत्ता में कमी आई है। पहले ठंडा और मुलायम खाजे की डिमांड थी। अभी गर्म और कड़ा खाजा का डिमांड रहता है। अभी तक सरकार के किसी भी नियम और सुविधा से हम लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ है। पहले जैसी आमदनी भी नहीं है, इसलिए मैं नहीं चाहता हूं कि मेरा बच्चा यही काम करे।”

सरकारी प्रयास

केंद्र सरकार की वोकल फॉर लोकल नीति के तहत रेलवे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक स्टेशन एक उत्पाद योजना चला रहा है। इसके तहत सुपौल स्टेशन पर पिपरा खाजा को रखा गया है। शाहनवाज हुसैन जब बिहार में उद्योग उद्योग मंत्री थे, तो उन्होंने पिछले साल मार्च में पिपरा के खाजा को उद्योग से जोड़ने की घोषणा की थी।

वहीं, जून 2022 में तत्कालीन कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने भी कहा था कि पिपरा के खाजा को जीआई टैग दिलाने का प्रयास सरकार के द्वारा किया जाएगा। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

बिहार के सबसे बड़े सोनपुर मेले में पिपरा के खाजा की सिर्फ एक दुकान लगाई गई थी। इसके अलावा पटना के शायद ही किसी सरकारी बाजार में आपको पिपरा के खाजा की दुकान देखने को मिलेगी। पिपरा स्थित अंशु जीविका स्वयं सहायता समूह की खाजा दुकान में काम करने वाले अनिल बताते हैं, “पूरे सोनपुर मेले में सिर्फ मेरी ही एक दुकान थी।”

Khaja shop at sonepur mela

अपनी मौजूदा दुकान के बारे में वह कहते हैं, “भीड़ इतनी ज्यादा रहती है कि ठीक ठाक बिक्री हो जाती है। लेकिन सिर्फ सुपौल और कोसी क्षेत्र के ही लोग दुकान पर उत्साहित होकर आते हैं। बाकी लोग मिठाई के तौर पर खाजा खरीदते हैं। यहां आने वाले ज्यादातर ग्राहकों को खाजा के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। आपको विश्वास नहीं होगा कि खाने के बाद वह घर के लिए भी पैक कराते हैं। अगर पिपरा के खाजा का प्रचार प्रसार बेहतरीन तरीके से हो और लोगों को बताया जाए तो खाजा का बाजार पूरे बिहार में फैल सकता है।”

“पटना में ज्ञान भवन में सरस मेला आयोजित हुआ था, तो पिपरा के खाजा की दुकान देखने को मिला था। सिलाव ब्रांड खाजा कभी भी घी वाला नहीं खाने को मिला है, जबकि पिपरा का खाजा घी में तैयार भी मिल जाता है। इसके बावजूद बिहार के बड़े शहरों में सिलाव ब्रांड खाजा की कई दुकानें मिलेंगी, लेकिन पिपरा के खाजा की एक भी नहीं। सरकार अपने स्तर पर कोशिश करे तो पिपरा के खाजा का बढ़िया मार्केटिंग हो सकता है,” उन्होंने कहा।

सुपौल के स्थानीय वेब पोर्टल पत्रकार विमलेंद्र सिंह बताते हैं, “बिहार सरकार के सूचना विभाग और टूरिज्म विभाग के द्वारा सिलाव के खाजा का प्रचार-प्रसार खूब किया जाता है, लेकिन, पिपरा के खाजा का नहीं। राजधानी पटना में पिपरा के खाजा की एक भी दुकान नहीं मिलेगी। शायद ही किसी सरकारी मेले में आपको एकाध स्टॉल दिख जाए।”

वह सरकार पर कोसी को लेकर दोहरी नीति अपनाने का आरोप भी लगाते हैं। “सिर्फ कोसी क्षेत्र के साथ नहीं, बल्कि यहां की हर चीज के साथ दो नीति अपनाती है सरकार। स्टेट और नेशनल मार्केट लिंकेज तो दूर, सरकार पिपरा खाजा को क्षेत्रीय मार्केट में भी पहचान दिलाने में मदद नहीं कर रही है। अगर सरकार चाहे तो, खाजा लोकल इकोनामी के लिए वरदान बन सकती है,” उन्होंने कहा।

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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