विगत 21 अगस्त को मिथिला स्टूडेंट यूनियन नामक संगठन के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया और अलग मिथिला राज्य की मांग रखी।
प्रदर्शन करनेवाले कार्यकर्ताओं का कहना था कि उत्तर बिहार के सामाजिक और सांस्कृतिक बहुलता वाले इस क्षेत्र की लगातार अनदेखी हुई है।
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मिथिला स्टूडेंट यूनियन के संस्थापक अनूप मैथिल ने प्रदर्शन के दौरान मीडिया से कहा था, “मिथिला की उपेक्षा आज किसी से छिपी नहीं है। आज मिथिला में एक भी उद्योग नहीं है। जो पुराने उद्योग थे, चाहे वह चीनी मिल हो, जूट मिल हो, सभी को बंद कर दिया गया है। आज मिथिला की पहचान देश के दूसरे हिस्सों के लिए मजदूर उपलब्ध कराना रह गया है। देश के किसी भी हिस्से में सबसे ज्यादा पलायन मिथिला से ही हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह मिथिला में रोजगार की कमी है। इसलिए हमारी मांग है कि हमें अलग राज्य का दर्जा देकर हमारा भी विकास किया जाए।”

मिथिला स्टूडेंट यूनियन पिछले 4-5 वर्षों से मिथिला राज्य की मांग को लेकर सक्रिय है और इन वर्षों में अलग अलग प्लेटफॉर्म के जरिए अलग राज्य की मांग को उठाता रहा है। कई दफे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर भी यह मांग ट्रेंड हुई है।
इस साल दिसम्बर में मिथिला स्टूडेंट यूनियन (एमएसयू) पटना में भी दिल्ली जैसा ही प्रदर्शन करने की योजना बना रहा है और इससे पहले संगठन के कार्यकर्ता प्रस्तावित मिथिला क्षेत्र में पदयात्रा करने की तैयारी में हैं।
एमएसयू के अध्यक्ष आदित्य मोहन ने कहा, “नवम्बर से हम पूरे मिथिला क्षेत्र में यात्राएं निकालेंगे। यह यात्रा छह महीने तक चलेगी।”
बिहार में पृथक मिथिला राज्य की मांग कोई नई बहस नहीं है। कहा जाता है कि मिथिला राज्य की मांग 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध से चली आ रही है, लेकिन उस वक्त यह मांग अलग संस्कृति और भाषा के आधार पर की गई थी, लेकिन यह आंदोलन ज्यादा दिनों तक प्रभावी नहीं रह पाया। लेकिन अब रोजगार, विकास और कल-कारखानों के मुद्दे जोड़कर दोबारा आंदोलन को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है।
मिथिला आंदोलन के समर्थक भवनाथ झा मिथिला राज्य की जरूरत पर अलग अलग जगहों पर दर्जनों लेख लिख चुके हैं। मिथिला गोवा दर्पण नामक स्मारिका में एक लेख में वह स्पष्ट रूप से लिखते हैं, “मिथिला का स्वतंत्र अस्तित्व था। राजनीतिक कारणों से हमें बिहार नामक एक कोलाज संस्कृति और भाषा वाले राज्यों में शामिल कर लिया गया, लेकिन हम सब जानते हैं कि प्राचीन काल से ही विदेह जनपद के रूप में हम स्वतंत्र थे।”
यानी कि मिथिला को वह एक स्वतंत्र संस्कृति और भाषा वाला क्षेत्र मानते हैं और पृथक राज्य की मांग के मूल में यही है।
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर उदय नारायण सिंह ने मैथिली भाषा को लेकर अपने एक शोधपत्र में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के हवाले से लिखा है कि 20वीं शताब्दी में पूरी दरभंगा और भागलपुर जिले में मैथिली भाषा बोली जाती थी। इसके अलावा उन्होंने यह भी लिखा है कि मुजफ्फरपुर, मुंगेर, पूर्णिया और संथाल परगना की एक बड़ी आबादी मैथिली बोलती थी।
उक्त शोधपत्र में वह आगे बताते हैं, “साल 1980 में जब बिहार के बड़े जिलों को काटकर कुल 31 जिले बनाये गये, तो हमने एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार की जिसमें बताया कि 31 में से 10 जिलों को मैथिली बोलचाल वाले जिलों में शामिल किया जाना चाहिए।” उन्होंने इन 10 जिलों में भागलपुर, कटिहार, पूर्णिया, सहरसा, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और वैशाली को शामिल किया।
मगर, एमएसयू की तरफ से प्रस्तावित मिथिला राज्य का जो मानचित्र पेश किया जाता रहा है, उसमें बिहार के 24 जिले – मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, दरभंगा, पूर्वी चम्पारण, सहरसा, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, मुंगेर, बेगूसराय, शिवहर, समस्तीपुर, भागलपुर, अररिया, किशनगंज, कटिहार, सुपौल, पश्चिम चम्पारण, बांका, शेखपुरा, जमूई, लखीसराय और खगड़िया तथा झारखंड के छह जिले साहेबगंज, गोड्डा, पाकुर, दुमका, देवघर और जामतारा शामिल हैं।
इस मानचित्र को लेकर विरोध भी होता रहा है। लोगों का कहना है कि वे खुद को मिथिला का हिस्सा नहीं मानते हैं क्योंकि वे मैथिली नहीं बोलते। साथ ही वे यह भी मानते हैं कि उनकी संस्कृति मिथिला से भिन्न है।
विरोध का यह सुर किसी एक कोने से नहीं उठ रहा है। प्रस्तावित मिथिला राज्य के मानचित्र में शामिल जिलों में से कई ऐसे जिले हैं, जहां के लोग खुद को मिथिला संस्कृति और भाषा से अलग मानते हैं। मसलन जिन जिलों में बज्जिका और अंगिका बोली जाती है, वहां के लोग मिथिला राज्य के आंदोलन से खुद को अलग किए हुए हैं और बिहार नाम व राज्य के साथ हैं।
लेकिन, मिथिला आंदोलन करने वाले खुद को बिहारी की जगह मैथिली कहलाना पसंद करते हैं। उनका नारा है – हम बिहारी नई, हम मैथिल छी (हम बिहार नहीं, हम मैथिल हैं)।
हालांकि, बिहारी व मैथिली पहचान को लेकर पूर्व में भी काफी विवाद हो चुका है। ग्रियर्सन ने अपनी किताब में मैथिली, भोजपुरी और मगही तीनों भाषाओं को बिहारी भाषा कहा था। और इसके पीछे कुछ वजहें बताई थीं। मसलन पंजाबी, बंगाली की तरह यह स्थानीय नाम है और पूर्वी भारत के सभी डायलेक्ट के लिए एक नाम रखना महाराष्ट्र की बोलियों के लिए मराठी का इस्तेमाल रखने के बराबर है। तीसरी वजह यह बताई गई थी कि बिहारी शब्द का ऐतिहासिक संदर्भ भी है। ऐतिहासिक संदर्भ यह है कि बिहार नाम बौद्ध विहार के विहार से आया है।
हालांकि, ग्रियर्सन की इस परिभाषा की बाद के लेखकों ने आलोचना की। साल 1969 में आई ‘द केस ऑफ मैथिली’ नामक किताब में लिखा गया है, “बिहारी नाम की कोई भाषा न पूर्व में थी और न अब है। किसी भी साहित्य, दस्तावेज या रिकॉर्ड में बिहार का जिक्र नहीं है। कोई एक व्यक्ति नहीं है, जो ग्रियर्सन द्वारा परिभाषित बिहारी भाषा में बोलता हो। इसकी कोई स्क्रिप्ट नहीं है, कोई साहित्य नहीं है और न ही इसका कोई अस्तित्व है। यह ग्रियर्सन के दिमाग की उपज है।”
मिथिला राज्य के आंदोलन को अगर बारीकी से देखा जाए, तो इसमें बुनियादी सवालों को जरूर उठाया जा रहा है, लेकिन इसके मूल में भाषा और संस्कृति अब भी बनी हुई है।
आदित्य मोहन स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि वह अंगिका और बज्जिका को मैथिली की ही बोलियां मानते हैं।
वह कहते हैं, “वज्जि एक गणराज्य हुआ करता था, उसके नाम पर बज्जिका भाषा बना दी गई। इसी तरह अंग एक राज्य था, तो इसके नाम पर अंगिका भाषा बन गई, जबकि ये भाषाएं नहीं बोलियां हैं। मैथिली जब अंग क्षेत्र में बोली जाती है, तो अलग होती है और वज्जि क्षेत्र में बोली जाती है, तो अलग होती है। ये दोनों मैथिली ही हैं, बस अलग अलग बोलियां हैं। भोजपुरी शाहाबाद में अलग बोली जाती है, काशी में अलग तरह से बोली जाती है, तो क्या वे अलग भाषाएं हो गईं?”
अंगिका भाषी का विरोध
अंगिका को लेकर समर्पित एक वेबसाइट अंगिका.कॉम में अंगिका को एक भाषा मानते हुए लिखा गया है कि 28 जिलों में यह भाषा बोली जाती है जिनमें 11 जिले झारखंड और पश्चिम बंगाल के तथा 17 जिले बिहार के हैं।

डॉ. अमरेंद्र भागलपुर के रहने वाले हैं और लम्बे समय से अंगिका पर काम कर रहे हैं। वह अंगिका में कई साहित्यिक पुस्तकें लिख चुके हैं।
वह मिथिला राज्य के आंदोलन से इत्तेफाक न रखते हुए कहते हैं, “दरअसल बिहार के ज्यादातर मुख्यमंत्री मैथिली बोलने वाले हुए, तो मैथिली भाषा को राजनीतिक संरक्षण मिल गया। जो भाषा राजनीतिक रूप से जीत जाती है, वह भाषा हो जाती है और जो राजनीतिक रूप से पिछड़ जाती है, वह दरअसल बोली हो जाती है। मैथिली, अंगिका और बज्जिका के साथ भी यही हुआ। मैथिली राजनीतिक रूप से जीत गई जबकि अंगिका और बज्जिका पिछड़ गई।”
“अंग, वज्जि और मगध तीन महाजनपद हुए। अंगिका, बज्जिका और मगही इनकी भाषाएं रहीं। मैथिली बोलने वालों ने इन भाषाओं को हड़पने की कोशिश की और कर रहे हैं। चूंकि, इन तीनों क्षेत्र के लोगों ने भाषाओं पर काम नहीं किया, तो ये भाषाएं उपेक्षित रहीं,” डॉ अमरेंद्र कहते हैं।
वह आगे कहते हैं, “अंगिका की ही बात करें, तो वृहत्तर क्षेत्र में यह भाषा बोली जाती है। फणीश्वरनाथ रेणु अंगिका के आंदोलन में शामिल थे। कटिहार के अनूप लाल मंडल ने अंगिका का पहला उपन्यास लिखा। मैथिली वाले कैसे ले लेंगे हमारे क्षेत्र को? ऐसा करना ठीक वैसा ही है, जैसा गांव में किसी की जमीन खाली पड़ी हो, और कोई और उसे हड़प ले। हमलोग ऐसा नहीं होने देंगे।”
वहीं, प्रस्तावित मिथिला राज्य के नक्शे में भागलपुर समेत अंगिका बोलने वाले अन्य जिलों को शामिल करने के सवाल पर वह कहते हैं, “इन नक्शों का क्या है। चीन भी तो भारत के बहुत बड़े हिस्से को अपने देश में शामिल कर लेता है। पाकिस्तान भी भारत के बड़े भूभाग को अपने मानचित्र में मिला लेता है। सच यह है कि कोई भी समझदार आदमी उनके आंदोलन के साथ नहीं होगा।”
बज्जिकांचल राज्य की अलग मांग
मिथिला राज्य की मांग के इस आंदोलन से न केवल अंगिका बोलने वाले छिटके हुए हैं बल्कि बज्जिका भाषी लोग भी खुद की पहचान मैथिल के रूप में नहीं देते हैं।
बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली और उससे सटे जिलों में बज्जिका बोली जाती है। अखिल भारतीय बज्जिका सम्मलेन की तरफ से प्रकाशित बज्जिका माधुरी पत्रिका पर छपे मानचित्र में बताया गया है कि मुजफ्फरपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, पूर्वी चम्पारण, मधुबनी और दरभंगा के कुछ हिस्सों में बज्जिका बोली जाती है और इन सभी क्षेत्रों को बज्जिकांचल नाम दिया गया है। वहीं, बिहार सरकार की वेबसाइट में दिए गए मानचित्र में पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, वैशाली और समस्तीपुर में बज्जिका बोली जाती है।

बज्जिका की पहचान एक भाषा या बोली के रूप में है, इसको लेकर द बज्जिका लैंग्वेज एंड स्पीच कम्युनिटी नाम से छपे एक शोधपत्र में हांगकांग पोलिटेक्निक यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग से जुड़े अभिषेक कुमार कश्यप लिखते हैं, “हाल तक मैथिली को हिन्दी या बांग्ला की बोली का दर्जा मिला हुआ था, लेकिन मैथिली के लिए लड़ने वाले लोगों ने भारतीय संविधान में भाषा का दर्जा दिलवा दिया। बज्जिका को लेकर भी बोली बनाम भाषा की एक लड़ाई 1960 में शुरू हुई थी। साल 1972 में अरुण अवधेश्वर ने बज्जिका, भोजपुरी और हिन्दी का तुलनात्मक अध्ययन में लिखा था कि बज्जिका किसी भाषा की बोली नहीं बल्कि एक अलग भाषा है।”
मुजफ्फरपुर में बज्जिकांचल विकास पार्टी नाम से एक राजनीतिक संगठन कुछ सालों से सक्रिय है। यह पार्टी चुनाव भी लड़ा करती है। यह पार्टी पृथक बज्जिकांचल की मांग करती रही है, हालांकि बज्जिकांचल का आंदोलन कभी मुखरता से नहीं दिखा।
पार्टी के संस्थापक देवेंद्र राकेश कहते हैं, “बज्जिकांचल में 21 जिले शामिल हैं। ये वे जिले हैं, जो दुनिया के पहले लोकतंत्र वज्जि-लिच्छवी गणराज्य की चौहद्दी में आते हैं। हम इन 21 जिलों को ऐतिहासिकता के आधार पर अलग राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं।” इन 21 जिलों दरभंगा और मधुबनी भी शामिल है, जो मिथिला राज्य की मांग को लेकर हो रहे आंदोलन का केंद्र बिंदू हैं।
देवेंद्र राकेश इस बात पर आपत्ति दर्ज कराते हैं कि मिथिला की भाषा व संस्कृति और वज्जि की भाषा व संस्कृति एक है। “मिथिला राज्य की जो लोग मांग कर रहे हैं, वे पाग और मखान को अपनी पहचान बताते हैं। लेकिन मुझे बताइए कि मैथिल ब्राह्मण को छोड़कर, निचली जातियां क्या पाग पहनती हैं?”
“मेरी मांग है कि उत्तर बिहार के 21 जिलों को अलग राज्य का दर्जा मिले और उसका नाम बज्जिकांचल, वैशाली या कुछ और हो सकता है, जो यह बताए कि दुनिया का पहला लोकतंत्र यहीं पैदा हुआ था। लेकिन, इसका नाम मिथिला राज्य हो, यह कतई स्वीकार्य नहीं है। मिथिला राज्य का मतलब है मैथिल ब्राह्मणों का राज,” देवेंद्र कहते हैं।
मुजफ्फरपुर के युवक दिव्य प्रकाश ठाकुर कहते हैं, “मिथिला राज्य के लिए आंदोलन करने वाले केवल दरभंगा और मधुबनी के बारे में सोचते हैं। पिछले दिनों जब मोतियाबिंद के ऑपरेशन के दौरान दर्जनों लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी, तो मैंने उनसे कहा था कि इसको लेकर आवाज उठाएं, लेकिन उन्होंने कोई सहयोग नहीं दिया। यही नहीं, मुजफ्फरपुर में एयरपोर्ट बनने को लेकर जब हमलोग सोशल मीडिया पर ट्रेड कराना चाहते हैं, तो एमएसयू का सहयोग नहीं मिलता है। कोई ऐसा बिंदू नहीं है, जो हमें मैथिली से जोड़ता हो, इसलिए इस आंदोलन का समर्थन करने का सवाल ही नहीं है।”
क्या सोचते हैं सुरजापुरी बोलने वाले
एमएसयू के प्रस्तावित मानचित्र में किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया भी शामिल हैं, जिन्हें सीमांचल कहा जाता है। इन चार जिलों में मुस्लिम आबादी तुलनात्मक तौर पर ज्यादा है। इस क्षेत्र में भी मिथिला राज्य को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है बल्कि यहां के लोग भी खुद को मिथिला से नहीं जोड़ते हैं।
डॉ सजल प्रसाद मारवाड़ी कॉलेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हैं। वह कहते हैं, “पूर्णिया और अररिया के कुछ हिस्से में भी मैथिली बोली जाती है, लेकिन सीमांचल के बाकी हिस्से में सुरजापुरी बोली जाती है। किशनगंज में तो बड़ी आबादी सुरजापुरी बोलती है। सुरजापुरी का इलाका बहुत बड़ा है। सीमांचल के जिलों के अलावा पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर में भी सुरजापुरी बोली जाती है।”

“सुरजापुरी में मैथिली, अंगिका, बांग्ला समेत अन्य भाषाओं के शब्द शामिल हैं और हिन्दू तथा मुसलमान समान रूप से इस भाषा में बात करते हैं,” वह कहते हैं।
“मिथिला राज्य का समर्थन इस तरफ नहीं है, बल्कि सीमांचल राज्य की मांग उठी थी तसलीमुद्दीन जी के जमाने में। बाद में उन्होंने सीमांचल विकास मोर्चा भी बनाया था। उन्होंने अलग राज्य की मांग नहीं उठाई, लेकिन वह विशेष ध्यान देने की बात करते रहे,” उन्होंने कहा।
गैर मिथिल भाषी लोगों से बतचीत में जो बातें निकल कर सामने आईं, वे ये थीं कि मिथिला राज्य की मांग मुख्य रूप से मैथिल ब्राह्मणों की मांग है और चूंकि दरभंगा और मधुबनी में मैथिल ब्राह्मणों की तादाद अधिक है, इसलिए उनकी ज्यादातर मांगें इन्हीं दो जिलों तक सीमित हैं।
“हम सत्ता के विकेंद्रीकरण के पक्षधर”
इस संबंध में ‘मैं मीडिया’ ने अनूप मैथिल से बात की। बातचीत में अनूप मैथिल ने स्वीकार किया कि उनका आंदोलन अन्य जिलों में उतना मजबूत नहीं है जितना दरभंगा व मधुबनी में है।
“किसी भी आंदोलन को चलाने के लिए कोष की जरूरत होती है। मिथिला क्षेत्र में इतनी विपन्नता है कि हमने सबसे पहले रोजीरोटी पर ध्यान दिया है, लेकिन आंदोलन अब पूर्णिया, सहरसा, सुपौल में मजबूत हो रहा है। संसाधन के अभाव के बावजूद हमने दो जिलों से पांच छह जिलों में फैलाया है। आने वाले एक दो साल में 5-6 और जिलों में हम संगठन बढ़ाएंगे,” उन्होंने कहा।
वहीं, राज्य का नाम मिथिला ही रखने के सवाल पर उन्होंने कहा, “हमारे पास अंग प्रदेश या बज्ज क्षेत्र नाम रखने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं आया है। अलबत्ता जनकी प्रदेश, जनक प्रदेश, तिरहुत नाम हो, ऐसी बात होती रही है। मिथिला नाम जो रखा गया है, वह दरभंगा या मधुबनी नाम पर नहीं रखा गया है बल्कि जानकी के नाम पर रखा गया है। सीताजी का नाम भी मैथिली है। उन्हीं के नाम पर इस क्षेत्र को मिथिला रखा गया है। हम लोग ये बातें लोगों को समझा रहे हैं।”
यह पूछने पर कि मिथिला राज्य बन जाने पर क्या सत्ता का केंद्र दरभंगा व मधुबनी नहीं हो जाएगा, उन्होंने कहा, “लोगों में डर है कि मिथिला राज्य बनने पर दरभंगा व मधुबनी वाले इस पर नियंत्रण रखेंगे। उनका शासन आ जाएगा। उनको हम यह कहते हैं कि प्रस्तावित मिथिला क्षेत्र में 100 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से महज 20 सीटें ही दरभंगा और मधुबनी में हैं। क्या बाकी क्षेत्रों के 80 विधायक ऐसा होने देंगे? अगर राज्य बनेगा, तो हमलोग मिल बैठकर बात करेंगे।”
“हमारा विजन है कि अगर मिथिला राज्य बनता है, तो हम बिहार वाला सिस्टम नहीं रखेंगे। हमारा यह है कि राज्य बनने पर हाईकोर्ट का दो बेंच होगा। दो राजधानी बनेगी। मिथिला राज्य में यह सुनिश्चित करेंगे कि कम से कम चार सेंटर हों, जहां सारी सुविधाएं हों, ताकि लोगों को ज्यादा दूरी तय नहीं करना पड़े। शक्ति का विकेंद्रीकरण करेंगे हमलोग।”
उन्होंने इस आरोप को भी खारिज किया कि मैथिली भाषी लोग अंगिका व वज्जिका को हथियाने के लिए उन्हें मैथिली की बोलियां कहते हैं। सिर्फ मधुबनी और दरभंगा के लिए बुनियादी सुविधाओं की मांग पर आंदोलन करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह आरोप गलत है। “हम पूर्णिया में एयरपोर्ट, पूर्णिया में ही फणीश्वरनाथ रेणु के नाम पर विश्वविद्यालय, सीतामढ़ी में सीता के नाम पर जानकी महिला केंद्रीय विश्वविद्यालय, बेगूसराय में दिनकर विश्वविद्यालय आदि बनाने की भी मांग कर रहे हैं,” अनूप मैथिल कहते हैं।
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