बिहार में पंचायती राज विभाग के एक नए फैसले से त्रिस्तरीय जन प्रतिनिधियों में खासी नाराज़गी देखी जा रही है। फैसले के मुताबिक़, अब पंचायत स्तर की सभी योजनाओं का कार्य टेंडर के माध्यम से होगा। इस फैसले पर त्रिस्तरीय जनप्रतिनिधियों ने नाराज़गी जताते हुए जल्द से जल्द इस फैसले को वापस लेने की मांग की है।
दरअसल, अभी तक राज्य में सिर्फ 15 लाख रुपये से अधिक राशि के विकास कार्यों के लिये टेंडर निकलता था। 15 लाख रुपये से कम के विकास कार्य ग्राम पंचायत जनप्रतिनिध अपने स्तर से ही कराते थे। लेकिन, अब सरकार ने इस प्रक्रिया को बदलने का फैसला लिया है।
इसी क्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में 19 जुलाई को हुई कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि ग्राम पंचायतों में 15 लाख रुपये से कम लागत वाले विकास कार्यों के लिये भी टेंडर प्रक्रिया अपनाई जायेगी। इसके लिये पंचायत स्तर पर ठेकेदारों का पैनल तैयार किया जायेगा, जो विकास कार्यों को अंजाम देंगे।
बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ ने बताया था कि वर्तमान में ग्राम पंचायतों में निर्माण और विकास कार्यों को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं है, जिसको लेकर कई बार अनियमितता से संबधित शिकायत भी प्राप्त होती है, इसलिये कैबिनेट ने ‘पंचायत निर्माण कार्य मैन्युअल’ को मंजूरी दी है, जिसके तहत 15 लाख रुपये से कम के विकास कार्यों में भी टेंडर निकाला जायेगा।
बताते चलें कि त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और ज़िला परिषद शामिल हैं। मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य, प्रखंड प्रमुख, जिला परिषद सदस्य और जिला परिषद अध्यक्ष इनका प्रतिनिधित्व करते हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार में 8,053 ग्राम पंचायत हैं। वहीं, वार्ड सदस्यों की तादाद 1,01,268 है।
जनप्रतिनिधियों ने बताया – “निराशाजनक फैसला”
त्रिस्तरीय पंचायत जनप्रतिनिधियों ने सरकार के इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया है। उन्होंने इसे निराशाजनक बताया है। उनका कहना है कि यह पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि की शक्तियों को खत्म करने की कोशिश है।
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सरकार के इस नये फैसले को लेकर पूर्णिया ज़िला परिषद अध्यक्ष प्रतिनिधि ग़ुलाम सरवर ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि सरकार अनियमितता का आधार बनाकर पंचायतों के विकास कार्यों के लिये टेंडर प्रक्रिया अपनाने की वकालत कर रही है, लेकिन, सभी जानते हैं कि जो काम टेंडर से हो रहा है, उसमें भी भारी अनियमितता हो रही है।
“हमलोग सरकार के इस फैसले का विरोध करते हैं। यह निराशाजनक फैसला है सरकार का। इसे जल्द से जल्द वापस लिया जाए। जिस चीज को आधार बनाकर इस कानून को लाया गया है कि शिकायत मिल रही है और कार्यों में अनियमितता हो रही है। पहले उन कामों का भी जायज़ा लिया जाए जो काम टेंडर से हो रहा है।”
उन्होंने आगे कहा, “मुख्यमंत्री खुद से इसका सर्वे करवा लें। जितना काम पंचायतों में टेंडर के जरिए हुआ है, चाहे वह नल-जल-योजना हो, स्ट्रीट लाइट हो, या फिर स्वच्छता हो, उसे एक बार देख लिया जाए। 50 रुपये की बाल्टी 500 रुपये में खरीदी जा रही है। स्ट्रीट लाइट सिर्फ 10% ही कारगर साबित हुए हैं। सात निश्चय की जल-नल योजना पूरी तरह से फेल है।”
ग़ुलाम सरवर ने कहा कि पंचायतों में जो कार्य टेंडर से हो रहा है, उसे सुधारने की बजाए जो काम जनप्रतिनिधियों द्वारा बेहतर तरीक़े से किया जा रहा है, उसे डिस्टर्ब करने के लिए यह फैसला लिया गया है, जो कि सरासर गलत है।
“अगर जिला परिषद की ही बात करें तो यहां सारी राशि बची हुई है। यहां अफसरशाही है, कोई काम होने नहीं देते हैं। सरकार की मंशा ही नहीं है कि राज्य का भला हो और यहां काम हो…इसलिये हमलोग इसका घोर विरोध करते हैं। माननीय मुख्यमंत्री जी से मांग करते हैं कि अभी ऐसा कोई फ़ैसला नहीं लीजये, वरना जो भी काम हो रहा है आपका वो डिस्टर्ब हो जायेगा,” उन्होंने कहा।
“टेंडर प्रक्रिया से भ्रष्टाचार और फैलेगा”
अररिया के कुसियार गांव पंचायत के मुखिया मानिक चंद सिंह ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि सरकार का यह फैसला पंचायती राज व्यवस्था का खुला उल्लंघन है और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंचायती राज व्यवस्था का जो सपना देखा था, उस सपने के भी ख़िलाफ़ है।
“इस फैसले से जनता का क्या फायदा होगा? इस टेंडर प्रक्रिया से भ्रष्टाचार और फैलेगा। मुखिया तो समाज में रहता है, इसलिये वो देख कर काम करता है। लेकिन, टेंडर का मतलब है कार्यक्षेत्र जितना बड़ा होगा, उतनी ही लूट बढ़ेगी। यह फैसला ग़लत है। लगता है नीतीश जी आंख बंद कर फैसला करते हैं। हमलोग पूरी तरीक़े से इस फैसले के ख़िलाफ हैं,” उन्होंने कहा।
पूर्णिया के डगरुआ प्रखंड स्थित टोली पंचायत के मुखिया और मुखिया संघ के प्रखंड अध्यक्ष शमशाद आलम ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि सभी त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि सरकार के इस फैसले के ख़िलाफ़ हैं और सरकार ने जो फैसला लिया है वो कहीं से भी प्रतिनिधियों के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि पंचायत में जो काम टेंडर से हो रहे हैं, उनमें भी काफी भ्रष्टाचार हो रहा है।
“सबसे बड़ा घोटाला अगर कोई है तो वो नल-जल योजना है। सात निश्चय के तहत इनको लिया गया था। सरकार ने कहा कि पंचायत के जनप्रतिनिधि सही से काम नहीं करते हैं, इसलिये इसको टेंडर में दे दिया गया। नतीजा क्या हुआ। आज तक सबसे ज़्यादा राशि अगर ग्राम पंचायत को मिला तो वो नल-जल योजना में ही मिला,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “नल-जल योजना का सारा काम टेंडर के माध्यम से हुआ। एक-एक पंचायत में 60-70 लाख रुपये की लागत से काम हुआ, लेकिन पंचायत के दस नलों में भी ठीक से पानी नहीं आ रहा है। इसी तरह ब्रेडा लाइट (स्ट्रीट लाइट) योजना में भी 50-55 लाख रुपये की लागत से काम हुआ। लेकिन, 10 प्रतिशत लाइट भी काम नहीं कर रहा है।”
‘टेंडर से विकास कार्य में लगेगा अधिक समय’
जन प्रतिनिधियों का मानना है कि ग्राम पंचायत में टेंडर प्रक्रिया अपनाने से विकास कार्यों में अधिक समय लगेगा, जिससे गांवों के विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी।
अररिया ज़िले के अररिया प्रखंड स्थित अररिया बस्ती पंचायत के मुखिया और मुखिया संघ के ज़िलाध्यक्ष शाद अहमद ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि ग्राम पंचायत का मतलब ही है कि गावों की योजना के बारे में ग्राम पंचायत के लोग बैठ कर तय करें कि कहां क्या विकास कार्य करना है।
“कभी-कभी हम मुखिया लोग ग्रामीणों को मना कर निजी ज़मीन भी रास्ते के लिये ले लेते हैं और सड़क बना देते हैं। एक हज़ार रुपये के स्टाम्प पर लिखवा कर ले लेते हैं कि उन्होंने यह रास्ता दिया। लोगों की आबादी बढ़ रही है, उसी हिसाब से जगह भी चाहिये रहने के लिये। नयी-नयी जगह पर घर बनाते हैं लोग। वहां पर सड़क के लिये बिहार सरकार की ज़मीन है ही नहीं,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “अभी भी तो हमलोग स्टाम्प पर लिखवा कर ज़मीन ले लेते हैं रास्ते के लिये। टेंडर प्रक्रिया जब होगा तो उसमें कहा जायेगा कि आप बिहार सरकार की ज़मीन पर ही काम कर सकते हैं। वैसे हालात में हमलोग क्या कर पायंगे? हम आशा करेंगे सरकार से कि हमलोगों के पास जो शक्ति पहले से थी, उसको उसी हालत में रहने दी जाये।”
पूर्णिया ज़िला परिषद अध्यक्ष प्रतिनिधि ग़ुलाम सरवर भी मानते हैं कि टेंडर प्रक्रिया से पंचायत के कामों में अधिक देरी लगेगी। उन्होंने ज़िला परिषद का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें किसी भी टेंडर में प्रॉफिट का मामला रहता है, लेकिन, इस राशि को भुगतान करने का कोई सिस्टम नहीं बनाया गया है, जिससे विकास कार्यों में देरी होती है।
“अभी हमारे यहां (पूर्णिया) ज़िला परिषद से कुछ काम टेंडर हुआ। ठीक है आप ने चिट्ठी दिया और हमलोगों ने टेंडर करवा दिया, लेकिन, (टेंडर प्रक्रिया में) बारह-पंद्रह महीने से पहले भुगतान नहीं हो पाता है। जब पूछा जाता है तो कहता है कि यहां पोर्टल से भुगतान होता है। पोर्टल पर केवल लेबर पेमेंट और भाउचर पेमेंट होता है। किसी भी टेंडर में टेंडर के प्रॉफिट का मामला रहता है, दस से पंद्रह परसेंट। उस राशि को भुगतान करने का कोई सिस्टम नहीं बनाया गया है, जिसके वजह से बहुत से लोग कोर्ट जा रहे हैं पेमेंट को लेकर,” उन्होंने कहा।
हमारी शक्तियों को छीनने की है कोशिश: मुखिया संघ
बिहार के मुखिया संघ भी सरकार के इस फैसले के विरोध में उतर चुके हैं। संघ का मानना है कि सरकार का यह क़दम त्रिस्तरीय पंचायती जनप्रतिनिधियों के शक्तियों को छीनने की कोशिश है।
मुखिया संघ के प्रदेश अध्यक्ष मिथिलेश कुमार राय ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि पूरे देश में कहीं भी ग्राम पंचायत में छोटे-छोटे कामों के लिये टेंडर प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है और इस प्रक्रिया को अपनाने से ग्राम पंचायत की व्यवस्थाएं कमज़ोर होंगी।
“संविधान के 73वें संशोधन के मुताबिक़ पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम सभा का काफ़ी महत्व है। ग्राम पंचायत की योजनाओं के लिये पूरे देश में निविदा प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है। हमारा स्पष्ट मानना है कि इससे ग्राम पंचायत की व्यवस्थाएं कमज़ोर होंगी। टेंडर प्रक्रिया से काम कराने में महीनों लग सकते हैं,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “इसलिये ग्राम पंचायतों के विकास के लिये जो यह नियमावली बनाई गई है, वो न्यायोचित नहीं है। हमारे आन्दोलन के बाद सरकार ने इसपर पुनर्विचार करने का फैसला लिया है। इसे वापस लेना ही होगा। यह हमारी शक्तियों को पूरी तरह छीनने की कोशिश है अधिकारियों के द्वारा।”
फैसले पर होगा पूनर्विचार: पंचायती राज मंत्री
त्रिस्तरीय पंचायत जनप्रतिनिधियों के विरोध के बाद बिहार के पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता ने कहा कि सरकार फैसले पर पुनर्विचार करेगी।
“त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं द्वारा योजनाओं का क्रियान्वन निविदा के माध्यम से कराने संबंधित पंचायत निर्माण कार्य मैन्युअल की स्वीकृति दी गई थी। पंचायत जनप्रतिनिधियों के असंतोष के कारण उक्त प्रस्ताव पर पुनर्विचार हेतु संचिक मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजी गई है। समीक्षा उपरांत ही इस विषय पर अग्रेतर कार्रवाई की जायेगी,” उन्होंने कहा।
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