“कौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ,
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ !
– #NO2AFTARPARTY”
पिछले 2 दिनों से सोशल मीडिया पर इस तरह के कई पोस्ट किए जा रहे हैं। बिहार में सत्ताधारी सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल 9 अप्रैल को पटना में एक इफ़्तार पार्टी आयोजित करने वाली है। इसी को लेकर राजद के कई नेताओं ने शुक्रवार को अपने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के माध्यम से इफ़्तार पार्टी के लिए दावत पत्र पोस्ट किया। इफ़्तार पार्टी के इस आयोजन पर बिहार के सोशल मीडिया यूज़रों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। देखते-देखते सोशल मीडिया पर “बॉयकॉट इफ्तार पार्टी” का हैशटैग चलने लगा।
सोशल मीडिया पर कई लोग राजद की इस इफ़्तार पार्टी का बहिष्कार रहे हैं और इसकी वजह है पिछले दिनों बिहारशरीफ और सासाराम में हुए दंगे। लोगों का कहना है कि राज्य में हुए दंगे बिहार सरकार और प्रशासन की अनदेखी का नतीजा थे। सोशल मीडया पर “इफ़्तार नहीं इंसाफ चाहिए” के नारे लग रहे हैं और बॉयकॉट इफ्तार पार्टी की फोटो व्हाट्सप्प और फेसबुक पर खूब प्रसारित हो रही हैं।
राजद नेताओं की पोस्ट पर दिखा लोगों का ग़ुस्सा
किशनगंज के ठाकुरगंज से विधायक सऊद आलम ने अपने फेसबुक अकॉउंट पर इफ़्तार पार्टी की दावत दी जिसके बाद लोगों ने उनकी जमकर आलोचना की। एक यूजर ने लिखा, “सबसे बड़ा बीजेपी, आरजेडी है”, एक और यूजर ने लिखा, “इफ़्तार पार्टी से काम नहीं चलने वाला है, बिहार शरीफ जाकर जाएज़ा लीजिये और मुआवज़ा दिलवाइये।” राजद विद्यायक सऊद आलम के इस पोस्ट पर इस तरह के दर्जनों कमेंट हैं।
उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के ट्विटर पोस्ट पर भी बॉयकॉट इफ़्तार पार्टी के कई कमेंट किए गए। उनके ट्वीट को कोट कर पत्रकार पूजा माथुर ने लिखा, “किस के हाथ पे अपना लहू तलाश करें, तमाम शहर ने पहने हुए हैं दस्ताने। ऐ काश के इंसाफ का दावतनामा बिहार शरीफ के उन मज़लूमों को दे आते जिनकी दुकानों को जला दिया गया।”
बॉयकॉट इफ़्तार पार्टी ट्रेंड चलाने वालों ने क्या कहा
सोशल मीडिया पर बॉयकॉट इफ्तार पार्टी का हैशटैग का इस्तेमाल कर रहे कुछ लोगों से ‘मैं मीडिया’ ने बात की। उन्होंने कहा कि बिहार शरीफ में हुए दंगों के बाद सरकार की चुप्पी और ढिलाई निराशाजनक है। इसके विरुद्ध हम आवाज़ उठाना चाहते हैं। उमर अशरफ़ बिहार के इतिहास और बिहार में मुस्लिमों के इतिहास पर गहन शोध करते हैं। वह उन लोगों में से हैं जिन्होंने सोशल मीडिया पर मुखर होकर इफ़्तार पार्टी के बहिष्कार की बात की।
उमर ने ‘मैं मीडिया’ से कहा कि गठबंधन की सरकार बिहार में हुए हिंसा पर न तो किसी तरह का बयान देने को तैयार है, न इनका प्रतिनिधि घटनास्थल पर पहुंचा है। “सरकार इस पर कुछ नहीं बोल रही है, ले दे कर ये लोग भाजपा के ऊपर डाल देते हैं चीज़ों को। सरकार आपकी है, ज़िम्मेदार आप हैं तो इसको रोकेगा कौन? कम से कम मानिए तो सही कि यह आपकी विफलता है और आप से ग़लती हुई है। बस इसका बैलेंस बनाने के लिए इफ्तार पार्टी रख देते हैं ये लोग। इफ्तार पार्टी करना था तो बिहारशरीफ में जाकर करते दोनों समुदाय को लेकर, तो हो सकता था कि दोनों समुदायों में जो दूरी पैदा हुई है वो कम हो जाती,” उमर ने कहा।
उन्होंने आगे कहा कि इफ़्तार पार्टी का बहिष्कार करना एक प्रतीकात्मक कार्य है और यह आम लोग कर रहे हैं। यह विरोध कोई राजनीतिक स्टंट नहीं है।
उन्होंने कहा, “इसमें ज़्यादातर लोग वे हैं जो किसी पार्टी से जुड़े हुए नहीं हैं। जब इन लोगों ने पोस्ट डाला तो इनको राजनैतिक लोगों ने उन पर दबाव डाला कि यह क्या कर रहे हो। किसी को आरजेडी जिला अध्यक्ष कॉल कर रहा है किसी को कोई और मंत्री कॉल कर मना कर रहा है। इस ट्रेंड में अधिकतर लोग गैर राजनीतिक हैं। यह विरोध सिम्बॉलिक है। बॉयकॉट का मतलब यह नहीं है कि जो इफ़्तार पार्टी में जाएगा हम उसे ट्रोल करेंगे। हमारी मांग है कि जो इन दंगों में गुनहगार हैं उन्हें पकड़ा जाए और पीड़ित को इन्साफ मिले और सरकार उनके नुकसान की भरपाई करे। दंगों में दोनों पक्षों को नुकसान होता है, जो लोग भी ज़िम्मेदार हैं चाहे जिस समुदाय से हों उनको सजा मिलनी चाहिए।”
उमर अशरफ़ का कहना है कि इस इफ़्तार पार्टी का बहिष्कार किसी तरह से योजनाबद्ध नहीं था। किसी ने एक पोस्ट लिखा जिस पर लोगों को लगा कि इसपर आवाज़ उठानी चाहिए।
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आरजेडी के इफ़्तार पार्टी में नियमित रूप से शामिल होने वाले राजनीतिक कार्यकर्त्ता तारिक़ अनवर चंपारणी भी इस इफ्तार पार्टी के बहिष्कार के नारे बुलंद कर रहे हैं। उन्होंने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि वह लंबे समय से आरजेडी के लिए चुनावी कैंपेन में भाग लेते रहे हैं लेकिन वह इस बार राजद की इफ़्तार पार्टी का विरोध कर रहे हैं।
“इफ़्तार पार्टी एक संस्कृति है, यह होना चाहिए। इससे हमको कोई दिक्कत नहीं है। इस बार जो बॉयकॉट का मामला चल रहा है उसका कारण यह है कि इतने बड़े पैमाने पर बिहार में दंगा हुआ, सासाराम से लेकर बिहार शरीफ तक बिहार जलता रहा, हमारे मुख्यमंत्री भी नालंदा के रहने वाले हैं, वहीं इतना बड़ा दंगा हो गया, मगर कोई भी बिहार सरकार का मंत्री वहां नहीं पहुंचा। अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमैन हो या वक्फ बोर्ड या मदरसा बोर्ड का चेयरमैन हो कोई भी वहां नहीं पहुंचा है। अजिजिया मदरसा सरकारी मदरसा है और वक्फ़ बोर्ड के अंदर आता है,” तारिक ने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दंगों के दिनों में दिल्ली में बैठे रहे। एक राज्य के लीडर होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी है कि अगर एक घटना हो गई है, तो आप पीड़ित के पास जाइए। यह सब तो नहीं हो रहा है, बस इफ़्तार पार्टी कराकर मुसलामानों को यह संदेश दिया जा रहा है कि हम तो मुसलमानों के नेता है, मुसलमानों को सुरक्षा देते हैं, यह तुष्टिकरण वाली बात है। जब दो समुदायों के बीच इतना तनाव है ऐसे में आपको मध्यस्थ की भूमिका निभानी थी, तो आप ग़ायब हैं। इनके मंत्री को पीड़ितों से मिलना चाहिए था, लेकिन एक हफ्ते बाद भी कोई नहीं आया है।”
इस इफ़्तार पार्टी का बहिष्कार कर रहे एक और व्यक्ति मुस्तक़ीम सिद्दीक़ी कहते हैं कि रामनवमी के शुभ दिवस पर हिंसा होना और गठबंधन की सरकार का अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हटना दुर्भाग्यपूर्ण है।
“अप्रैल 2017 में नवादा में दंगे हुए थे, उस समय भी महागठबंधन की सरकार थी। इस बार फिर इन्हीं की सरकार है। अगर बीजेपी की सरकार होती तो हम कहते कि बीजेपी ने पुलिस की मदद से दंगे को बढ़ावा दिया। अब तो आपकी सरकार है आप ने क्या किया? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान आया कि इसे पुलिस और प्रशासन की विफलता नहीं कहेंगे। अगर आप इसे पुलिस और प्रसाशन की विफलता नहीं कहते हैं तो कौन ज़िम्मेदार है? अगर प्रसाशन की विफलता नहीं है तो सरकार की विफलता है। दावत ए इफ़्तार कर बोला जा रहा है कि (जो हुआ) भूल जाइये इसको। जो लोग हिंसा के शिकार हुए जाकर उनके साथ इफ़्तार करना चाहिए था और जो लाइब्रेरी जली है, उसकी मरम्मत करानी चाहिए थी।” मुस्तक़ीम ने कहा।
नालंदा के बिहारशरीफ में हुई हिंसा में अब तक लगभग 150 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इस हिंसा में ऐतिहासिक मदरसा अजीजिया और उसकी लाइब्रेरी को जला दिया गया और दोनों समुदायों के एक दर्जन से ज्यादा दुकानों, गोदामों को भारी नुकसान पहुंचाया गया।
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