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बिहार की ममता कर्मी क्यों कर रही हैं प्रदर्शन?

बीते 16 दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र में बिहार के सासाराम लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस सांसद मनोज कुमार ने शून्यकाल में ममता कर्मियों मांगों को सदन में उठाया।

Aaquil Jawed Reported By Aaquil Jawed |
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why are mamta workers of bihar protesting

बुलबुली देवी लगभग 11 वर्षों से कटिहार जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आजमनगर में ममता कर्मी के रूप में सेवाएं दे रही हैं। ममता कर्मी के रूप में उनका मुख्य काम गर्भवती महिलाओं के प्रसव में मदद करना और प्रसव के बाद महिला के घर लौटने तक देखभाल करना है। इस काम में उनका काफी वक्त चला जाता है, लेकिन मेहनत के मुताबिक उन्हें पैसा नहीं मिलता।


बुलबुली देवी कहती हैं, “हर एक दिन बाद उनकी ड्यूटी अस्पताल में होती है। शुरुआत में प्रति प्रसव मात्र ₹100 मिलते थे। अब ₹300 प्रति प्रसव दिया जाता है। लेकिन, महंगाई के दौर में सिर्फ 300 रुपये काफी कम है। जिस दिन अस्पताल में प्रसव का कोई मरीज नहीं होता है, उस दिन कोई पैसा नहीं मिलता है।”

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मेहनताना में बढ़ोतरी बुलबुल देवी और उनकी जैसे हजारों ममता कर्मियों की इकलौती मांग नहीं है। उनकी और भी कई मांगें हैं और बीते एक सप्ताह से पूरे बिहार में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रही हैं।


पूर्णिया में बीते बुधवार को प्रदर्शन करते हुए ममता संघ के जिलाध्यक्ष भवतारिणी शरण ने कड़े शब्दों में नीतीश सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि एक तरफ मुख्यमंत्री, बिहार सरकार के द्वारा महिलाओं से संवाद कर समस्याओं को समझने के लिए यात्रा की व्यवस्था की गई है, तो दूसरी तरफ रविदास परिवार की महादलित महिलाओं की वर्ष 2023 व वर्ष 2024 की अल्प प्रोत्साहन राशि का भुगतान नहीं होना सरकार के दोहरे चरित्र को उजागर करता है।

वहीं, कटिहार जिले के सदर अस्पताल में बीते बुधवार को बिहार राज्य ममता कार्यकर्ता संघ के तत्वाधान में प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे सुभाष चंद्र महतो ने बताया कि यहां 9 सूत्री मांगों को लेकर प्रदर्शन किया गया है, जिसमें जिले के लगभग सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडलीय अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की ममता कर्मियों ने भाग लिया।

ममता कर्मी की सेवाएं

गौरतलब हो कि बिहार में ममता कर्मियों की बहाली 21 अगस्त 2008 को की गई थी। उस समय उन्हें प्रति प्रसव पर 100 रुपए दिये जाते थे, जिसे बढ़ाकर अब 300 रुपए किया गया है।

ये महिलाएं महादलित पृष्ठभूमि से आती हैं और वर्षों से स्वास्थ्य विभाग की महत्वपूर्ण इकाई के रूप में काम कर रही हैं। ये सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रसव के बाद नवजात शिशु और मां की देख-भाल के लिए सेवाएं देती हैं।

ममता कर्मी, सरकारी अस्पतालों में प्रसव के लिए आई प्रसूताओं को अस्पताल में आने से लेकर उनके प्रसव के बाद जाने तक एक सहयोगी के रूप में उनके साथ रहकर हर तरह से देखभाल करती हैं।

ममता कर्मी का मुख्य कार्य नवजात शिशु का जन्म होने के बाद वजन मापना, जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराना, प्रसूति की साफ-सफाई, नवजात शिशु के रोगों के लक्षण की पहचान कर संबंधित चिकित्सक व नर्स को बताना है।

इसके अलावा वे टीकाकरण, हाइपरथर्मिया, कम वजन के शिशुओं की देखभाल, कंगारु केयर व परिवार नियोजन के बारे में समुचित सलाह आदि देती हैं।

ममता कर्मियों की मांगें

प्रदर्शन कर रही ममता कर्मियों की कई मांगें हैं जिसमें बकाया प्रोत्साहन राशि का अविलंब भुगतान करना, हर माह निर्धारित तिथि पर भुगतान, ममता कार्यकर्ताओं को सरकारी सेवक घोषित करना, 45वें और 46वें श्रम सम्मेलन की अनुशंसा के आलोक में न्यूनतम 26 हज़ार रुपये का भुगतान, ममता कर्मियों को ड्रेस और पहचान पत्र उपलब्ध कराना, सेवानिवृत्ति के बाद ममता कर्मी को 10 हज़ार रुपये पेंशन, प्रति प्रसव 300 रुपये देने की जगह मासिक मानदेय, ममता कर्मियों के बैठने के लिए अस्पताल में अलग कमरे की व्यवस्था और बाकी कर्मियों की तरह अन्य सेवाओं का लाभ आदि शामिल हैं।

मीना कुमारी, आरती देवी, रंजीता देवी और मंदिरा देवी कटिहार जिले के अनुमंडलीय अस्पताल बारसोई में ममता कर्मी के रूप में काम कर रही हैं।

मीना कुमारी ने ‘मैं मीडिया’ से बातचीत करते हुए कहा कि एक ममता कर्मी को 8 घंटे अस्पताल में रहना पड़ता है, लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि अस्पताल में प्रसव होने पर ही राशि मिलती है। “जिस दिन कोई प्रसव नहीं होता उस दिन कोई राशि नहीं मिलती, जबकि अस्पताल में 8 घंटे उपलब्ध रहना ही पड़ता है। कोई अगर 8 घंटे अस्पताल में रहे तो उसे भी कुछ राशि तो मिलनी चाहिए,” उन्होंने कहा।

सभी ममता कर्मी महादलित

ममता कर्मी आरती देवी ने बताया कि यहां कार्यरत सभी महिलाएं महादलित परिवार से आती हैं और सरकारी अस्पताल में जच्चा-बच्चा सुरक्षा अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। “हमारे पति मजदूरी करते हैं, लेकिन समय पर भुगतान नहीं मिलने से घर परिवार चलाने में काफ़ी परेशानी हो रही है। इस वर्ष के ज्यादातर त्यौहारों में हमारा घर सूना रहा,” उन्होंने कहा।

अनुमंडलीय अस्पताल बारसोई में सभी ममता कर्मियों का नेतृत्व करने वाली रंजीता देवी ने बताया कि बिहार में ममता कर्मियों को मानदेय के अलावा और भी कई जरूरी मुद्दे हैं।

वह कहती हैं, “हमलोग ममता कर्मी के रूप में वर्षों से अस्पताल में सेवाएं दें रहे हैं, लेकिन किसी भी ममता कर्मी के पास उनके ममता कर्मी होने का कोई सबूत नहीं है। हमें पहचान पत्र भी नहीं मिला है। इसके अलावा ममता कर्मियों को अस्पताल में बैठने के लिए न तो कोई कमरा है और न ही कोई चिन्हित जगह। अस्पताल में 8 घंटे की ड्यूटी के दौरान ममता कर्मी मरीज़ के परिजनों के बैठने वाली बैंच या खाली पड़े बेड पर बैठती हैं, जबकि अस्पताल के बाकी कर्मियों को कमरा मिला हुआ है।”

आगे रंजीता देवी बताती हैं, “ममता कर्मियों का कोई ड्रेस भी नहीं है, जबकि नर्स और डॉक्टर अपने ड्रेस में आते हैं। हम सभी आम पहनावा पहन कर काम करते हैं, जिससे हम खुद को अस्पताल के कर्मियों से अलग महसूस करते हैं। हमें भी मौसम के अनुरूप ड्रेस और अन्य सुविधाएं मिले, सरकार को यह ध्यान देना चाहिए।”

उल्लेखनीय हो कि बीते 16 दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र में बिहार के सासाराम लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस सांसद मनोज कुमार ने शून्यकाल में ममता कर्मियों मांगों को सदन में उठाया। हालांकि, इस पर बिहार सरकार की प्रतिक्रिया आनी अभी बाकी है।

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Aaquil Jawed is the founder of The Loudspeaker Group, known for organising Open Mic events and news related activities in Seemanchal area, primarily in Katihar district of Bihar. He writes on issues in and around his village.

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