“मेरा घर परिवार भूखा है। 4 महीने से वेतन नहीं मिला। आखिर क्या करें हमलोग? मर जाएं? मर ही तो रहे हैं। तीन महीने से बच्चे की स्कूल फीस नहीं भर पा रहे हैं, उसको स्कूल वाला स्कूल आने से मना कर दिया है,” यह कहते हुए सुनील कुमार भावुक हो जाते हैं और उनकी आंखों में आंसु आ जाते हैं। वह अररिया सदर अस्पताल में डायल 102 के एंबुलेंस कर्मचारी हैं।
सुनील कुमार आगे कहते हैं कि वे लोग 2012 से ही स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। “हम लोगों ने यहां अपनी जिंदगी गुजार दी, लेकिन आज हमारा कोई सुनने वाला नहीं।”
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“उधार के वजह से अब तो दुकानदार ने राशन देने से मना कर दिया है। हम एंबुलेंस ड्राइवर दूसरों की जिंदगी बचाते हैं लेकिन आज हमारी और हमारे बच्चों की जिंदगी बचाने वाला कोई नहीं। यहां हमारे वरीय पदाधिकारी दुत्कारते हैं और घर में परिवार के सामने शर्मिंदा होते हैं,” सुनील कुमार ने कहा।
अररिया के सदर अस्पताल में बीते 21 अक्टूबर से डायल 102 एंबुलेंस कर्मचारी और ड्राइवर अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। ये हड़ताल सिर्फ अररिया में नहीं चल रही, बल्कि बिहार के लगभग सभी जिलों में एंबुलेंस कर्मचारी हड़ताल कर रहे हैं।
पूरे बिहार में एंबुलेंस कर्मी हड़ताल पर
बिहार राज्य 102 एंबुलेंस कर्मचारी संघ इंटक के बैनर तले डायल 102 एंबुलेंस के चालक चार महीने के बकाया वेतन भुगतान और अपनी विभिन्न मांगों को लेकर कई दिनों से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं।
बिहार में एंबुलेंस सेवा बिहार सरकार नहीं देती है, बल्कि बिहार सरकार की तरफ से कंपनियों को इसका ठेका दिया जाता है। एक दशक से ज्यादा समय में अलग-अलग कंपनियां आती रहीं और जाती रहीं, लेकिन एंबुलेंस कर्मचारी की दशा एक जैसी रही।
अररिया सदर अस्पताल में धरना पर बैठे एंबुलेंस कर्मी चंदन कुमार ने स्वास्थ्य विभाग के प्रति नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि कोरोना महामारी के समय में वह कोरोना पॉजिटिव हो गये थे, इसके बावजूद उन्होंने काम किया। कोरोना के समय में अस्पताल प्रभारी के द्वारा बताया गया था कि एंबुलेंस कर्मचारी को इस महामारी में काम करने के बदले बोनस दिया जाएगा।”
“महामारी बीतने के बाद सरकारी कर्मचारियों को बोनस दिया गया लेकिन 102 एंबुलेंस सेवा वालों को ठग लिया गया। हम लोगों को बोनस तो क्या वाजिब वेतन भी नहीं मिल रहा है। मेरे घर में ठीक से खाना भी नहीं बन रहा है। वरीय पदाधिकारियों के आफिस में जाने पर भगा दिया जाता है,” चंदन कुमार ने कहा।
एंबुलेंस चालक और कर्मियों की मांगें
हड़ताल पर गए बिहार 102 एंबुलेंस कर्मचारी संघ की कुछ प्रमुख मांगों में पहली मांग यह है कि बकाया भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा का पूरा अंशदान जमा किया जाए और इसके बाद ही नई एजेंसी को कार्यभार सौंपा जाए। इसके साथ ही ईपीएफ की बकाया राशि का भुगतान किया जाए।
उनकी दूसरी मांग यह है कि श्रम क़ानून के तहत कार्य लिया जाए तथा कुशल कर्मियों के अनुसार पेमेंट का निर्धारण एवं जिले में नियुक्ति पत्र प्रदान किया जाए। एंबुलेंस चालकों का न्यूनतम वेतन 21,000 रुपये मासिक किया जाए।
उनकी तीसरी मांग यह है कि सभी कर्मचारियों को श्रम अधिनियम के तहत नई कंपनी में समायोजन किया जाए किसी को नौकरी से न निकाला जाए। वे एंबुलेंस कर्मियों का दुर्घटना बीमा की मांग भी कर रहे हैं।
इसके अलावा एंबुलेंस परिचालन के लिए ठेका प्रथा बंद करना और सभी एंबुलेंस को सही समय पर मरम्मत कराने की भी मांगें शामिल हैं।
सरकारी दावे और आश्वासन सिर्फ जुमलेबाज़ी
बीते 21 सितंबर को पटना के स्वास्थ्य भवन के सभागार कक्ष में आयोजित राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मार्गदर्शन में राज्य की जनता को सुलभ, गुणवत्तापूर्ण और त्वरित स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकता है।
लेकिन उसके कुछ दिनों बाद ही पटना से सटे जिलों में एंबुलेंस कर्मी हड़ताल पर चले गए।
पूर्णिया जिले में एम्बुलेंस कर्मियों की हड़़ताल लगभग बीते एक सप्ताह पहले शुरू हुई थी। स्वास्थ्य केन्द्रों तक पहुंचाने के लिए बीमार अथवा जरूरतमंद मरीजों को मिलने वाली इस सरकारी सुविधा के बाधित हो जाने से उनकी परेशानियां बढ़़ गई हैं। हालांकि, पूर्णिया में अन्य कार्यों के लिए प्रदत्त सरकारी वाहनों का इस्तेमाल मरीजों की आपात स्थिति में करने के लिए निर्देशित कर दिया गया है।
बीते गुरुवार को पूर्णिया सदर विधायक विजय खेमका ने हड़़ताल कर रहे एम्बुलेंस कर्मियों से मुलाकात की। उन्होंने एम्बुलेंस सेवा को अति आवश्यक व मानव जीवन रक्षा से जोड़़ते हुए जल्द ही समाधान का रास्ता निकालने का सभी को भरोसा दिलाया था। लेकिन, अब तक कुछ नहीं हुआ।
दीपावली रहेगी फीकी
बीते सोमवार से कटिहार सदर अस्पताल में भी 102 एम्बुलेंस कर्मचारी संघ इंटक कटिहार शाखा के बैनर तले जिले के सभी प्रखंड के एंबुलेंस चालक अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठे हैं।
अनिश्चितकालीन हड़़ताल पर बैठे एम्बुलेंस चालक संघ के अध्यक्ष अमर सिंह ने कहा, “अभी दीपावली और छठ महापर्व है। सभी लोग इसे मनाएंगे लेकिन हमलोग नहीं मना पाएंगे क्योंकि 4 महीने से वेतन नहीं मिला है। हमलोग पर्व त्योहार के मौके पर भी मरीजों को अस्पताल पहुंचाते हैं लेकिन अब वेतन नहीं मिलने से हमलोगों के घरों में दीपावली फीकी रहेगी।”
आगे उन्होंने कहा, “हमलोगों का मात्र दस हज़ार रुपए वेतन है, इसके बावजूद कंपनी मनमाना रवैया अख़्तियार करती है। कुछ दिनों में नई कंपनी आ रही है, अगर समय रहते तत्कालीन कंपनी से हम लोगों को वेतन नहीं मिला तो तो हम लोगों को डर है कि हमारा 4 महीने का वेतन डूब जाएगा।”
ज्ञात हो कि 2014 में एक कंपनी ने एंबुलेंस कर्मियों के 6 महीने का वेतन वर्षों तक बकाया रखा और अधिकारियों से सिर्फ मौखिक आश्वासन ही मिला। अब नई कंपनी के आने से कर्मचारियों को चिंता है कि उन्हें बकाया वेतन मिलेगा या नहीं और नई कंपनी उन्हें काम पर रखेगी या नहीं। हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि जल्द मांगें नहीं मानी गईं, तो वे भूख हड़ताल पर जा सकते हैं।
किशनगंज के सभी 22 एम्बुलेंस के 88 कर्मचारी हड़ताल पर
बिहार के किशनगंज जिले में भी 28 अक्टूबर से एंबुलेंस कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी है। जिले के सभी 22 एम्बुलेंस के 88 कर्मचारी हड़ताल पर हैं। कोचाधामन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के एंबुलेंस कर्मी मनोज कुमार ‘मैं मीडिया’ को बताते हैं, “हाल ही में दशहरा गुज़रा, दीपावली आ गई और छठ आने वाला है। लेकिन, इतने महत्वपूर्ण त्यौहारों में हम लोगों को वेतन नहीं मिला। इसकी वजह से हम लोग घर नहीं जा पा रहे हैं। दुर्गा पूजा में इस वर्ष बच्चों के लिए कपड़ा नहीं खरीद पाए।”
आगे मनोज कुमार भावुक होकर कहते हैं, “बच्चा पूछता है कि घर कब आइएगा? इस पर मेरे पास कोई जवाब नहीं रहता। आखिर कब तक इस तरह की स्थिति 102 एंबुलेंस कर्मचारियों की रहेगी। हर परिस्थिति में 24 घंटे बिना छुट्टी लिए हम लोग काम करते हैं लेकिन हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। क्या बिहार के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को यह दिखाई नहीं देता?”
इस मामले में किशनगंज के सिविल सर्जन डॉक्टर राजेश कुमार ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि हम लोग इस मामले में सरकार से बात कर रहे हैं, जैसा हमें निर्देश मिलेगा वैसा हमलोग काम करेंगे।
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