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LJP ‘बंगले’ का मालिक कौन? चिराग़ या चचा पारस?

लॉकडाउन के बाद बिहार में गजब का राजनीतिक तमाशा देखने को मिल रहा है। लोजपा में उठा बगावत का बवंडर अब चाचा-भतीजे के बीच आर-पार की लड़ाई में तब्दील हो चुका है।

Reported By Raj Mohan Singh |
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लॉकडाउन के बाद बिहार में गजब का राजनीतिक तमाशा देखने को मिल रहा है। लोजपा में उठा बगावत का बवंडर अब चाचा-भतीजे के बीच आर-पार की लड़ाई में तब्दील हो चुका है। दिवंगत नेता रामविलास पासवान ने जिस पार्टी की स्थापना की थी उसकी कमान को लेकर चाचा और भतीजे में जंग छिड़ गई है।

भतीजे ने अब अपनी वो चाल चल दी है जो चाचा को बेनकाब कर देगी। चाचा ने भले ही तानाशाह बता दिया हो, भतीजे के लिए घर और दिल दोनों के दरवाजें बंद कर दिए हो। लेकिन ये भतीजा इस राजनीतिक महाभारत में अपने चाचा पर सीधे अटैक नहीं करेगा और न ही अब तक किया है। जी हां ये चिराग भतीजा बहुत ही चालाक है, लोक जनशक्ति पार्टी के भीतर जारी आधिपत्य की लड़ाई अब चुनाव आयोग के साथ-साथ बिहार की सड़कों पर भी लड़ी जाएगी। चाचा की बगावत को भतीजा चिराग पासवान अब सीधे जनता के दरबार में ले जाएंगे। इसके लिए उन्होंने अगले महीने की 5 तारीख़ से यात्रा निकालने का एलान किया है।

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लोजपा के चिराग पासवान गुट ने रविवार को दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की। बैठक में चिराग पासवान का शक्ति प्रदर्शन देखने को मिला। चिराग की इस मीटिंग में मीडिया के कैमरों को भी पूरी छूट दी गई थी। बैठक के बाद चिराग ने साफ कर दिया कि पार्टी के 90 फीसदी पदाधिकारी और कार्यकर्ता उनके साथ हैं। इसी बैठक में चाचा पशुपति पारस की बग़ावत को एक साज़िश क़रार देते हुए फ़ैसला किया गया कि चिराग पासवान 5 जुलाई से बिहार में ‘आशीर्वाद यात्रा’ की शुरुआत करेंगे। 5 जुलाई को चिराग के पिता दिवंगत रामविलास पासवान की जयंती है। रोचक बात ये है कि यात्रा की शुरुआत हाजीपुर से होगी जो पशुपति पारस का लोकसभा क्षेत्र है। वैसे हाजीपुर रामविलास पासवान की कर्मभूमि भी रही है। रामविलास पासवान हाजीपुर से आठ बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं।


अपनों से धोखा खाए चिराग़ पासवान लगातार इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं। कुछ दिन पहले ही चाचा की हरकत को लेकर चिराग ने कहा था कि पिता की मौत के बाद वह अनाथ नहीं हुए थे, लेकिन चाचा के साथ छोड़ने के बाद वो अनाथ हो गए। अब चिराग पासवान ने पूरे बिहार में 5 जुलाई से आशीर्वाद यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है। खास बात ये कि ये घोषणा करते वक्त भी चिराग ने साफ-साफ कहा कि उनके भाई और चाचा ने चाहे उनके साथ जितना बुरा कर दिया हो वो बगैर किसी कटुता के कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और जनता के बीच जाकर समर्थन हासिल करेंगे।

रामविलास पासवान के सपनों के बंगले में अब तक के सबसे बड़े विद्रोह का सूत्रधार जेडीयू और खासकर नीतीश कुमार को माना जा रहा है। इस बीच चाचा-भतीजे की जंग चुनाव आयोग तक पहुंच चुकी है। इसके साथ ही पार्टी पर कब्जे की लड़ाई में कई दिलचस्प मोड़ भी आ चुके हैं। बंगले में बगावत और चाचा-भतीजे की लड़ाई की शुरुआत हुई रविवार, 13 जून की रात से। रविवार तक चिराग 6 लोकसभा सांसदों वाली लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल के नेता और पार्टी के राष्ठ्रीय अध्यक्ष भी थे। फिर पांच सांसदों ने चाचा पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में उनके खिलाफ बगावत कर दी। सबसे पहले उन्हें एलजेपी संसदीय दल के नेता के पद से हटाया गया। इसे लोकसभा सचिवालय की मंजूरी भी मिल गई। फिर मंगलवार, 15 जून को बागी सांसदों ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की आपातकालीन बैठक बुलाकर संविधान का हवाला देते हुए उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया। उस दौरान सूरजभान सिंह को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की बात कही गई। लोजपा में हुए नए अध्यक्ष का चुनाव उनकी देख-रेख में हुआ। पारस गुट ने 17 जून को पारस को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी घोषित कर दिया।

वैसे, एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चिराग ने भी बुलाई थी जिसमें पार्टी के उन पांच सांसदों को निष्कासित करने का फैसला किया गया जिन्होंने चिराग के खिलाफ बगावत की थी। अब यह देखना रोचक होगा कि किस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पर कानूनी मंजूरी मिलती है।

एलजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति पारस मौजूदा समय में दलित सेना अध्यक्ष, संसदीय दल का नेता, राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वहीं, मंत्री पद के लिए दावेदारी पेश करने की फिराक में हैं। जबकि एलजेपी पार्टी संविधान में ये नियम है कि एक व्यक्ति, एक ही पद पर आसीन हो सकता है। दिलचस्प बात ये है कि इसी नियम का हवाला देकर पशुपति पारस ने चिराग पासवान के अध्यक्ष पद से हटाए जाने को उचित ठहराया था।

इधर चिराग पासवान अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए चुनाव आयोग से लेकर लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला तक से मुलाकात कर चुके हैं। चिराग ने रविवार को दिल्ली स्थित अपने आवास पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित कर दावा किया उनके चाचा पारस की ओर से किए गए दावे पूरी तरह गलत और निराधार हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहुमत उनके साथ है और वे अभी भी पार्टी के राष्ट्रींय अध्यरक्ष और संसदीय बोर्ड के चेयरमैन बने हुए हैं। इससे पहले लोजपा के पारस गुट ने शनिवार को नया दांव चलते हुए लोजपा के राष्ट्रीय एवं प्रदेश के विभिन्न प्रकोष्ठों की कमेटियों को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया था। पशुपति कुमार पारस ने बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय, प्रदेश एवं विभिन्न प्रकोष्ठों की कमेटियों की घोषणा जल्द की जाएगी। चिराग गुट द्वारा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाए जाने पर पारस ने कहा कि चिराग को यह बैठक बुलाने का अधिकार नहीं है। पार्टी संविधान के मुताबिक वही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

दूसरी तरफ चिराग गुट का दावा है कि कार्यकारिणी सदस्यं चिराग पासवान के साथ हैं। चिराग गुट के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी का दावा है कि पार्टी से निष्कासित पशुपति कुमार पारस को अधिकार नहीं है कि वे कार्यकारिणी या प्रकोष्ठों को भंग करें। पारस गुट द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रदेश की कार्यकारिणी और विभिन्न प्रकोष्ठों को भंग किया जाने को हास्यास्पद बताया जा रहा है।

यानि चाचा-भतीजे के बीच की जंग जबर्दश्त सस्पेंस थ्रिलर वाली वेब सीरीज बन चुकी है। जिसमें लगातार ट्विस्ट और टर्न आ रहे हैं। हांलाकि चिराग पासवान ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात को कुबूल किया था कि उन्हें लड़ाई लंबी लड़नी होगी। लेकिन वो तैयार हैं।

बिहार में राजनीतिक तख्तापलट का नया अध्याय लिखा जा चुका है। कल तक जो एक राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष था, उसे चंद लम्हों में पैदल कर दिया गया। यूं कह लीजिए कि सियासी चालों ने उसे ‘राजा’ से ‘रंक’ बना दिया। लेकिन चिराग पासवान उस रामविलास पासवान का बेटा है, जिन्हें भारतीय राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था। जिन्हें सियासी मिजाज भांपने में माहिर माना जाता था।

फिर क्या हुआ जो उनका बेटा ही अपनों की नाराजगी को समझ नहीं पाया? राजनीतिक बयानबाजी और सियासी दांव-पेचों में चिराग भी कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं है क्योंकि 2014 के पहले लोजपा के एनडीए में शामिल कराने का क्रेडिट भी चिराग को ही जाता है। यही वजह है कि LJP में चल रहे मौजूदा सियासी संकट के बीच चिराग पासवान ने बिहार की नीतीश सरकार को लेकर बड़ी भविष्यवाणी कर दी है जिसपर सियासत गरमा गई है।

चिराग ने दावा किया है कि बिहार में विधानसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव के पहले हो जाएगा। इस भविष्यवाणी के साथ ही चिराग ने ये भी साफ कर दिया है कि इस बार वो अकेले चुनाव नहीं लड़ेगे बल्कि गठबंधन का फैसला सही समय पर ले लेंगे। जिसके बाद से महागठबंधन की तरफ से चिराग को ऑफर मिल रहे हैं। उधर चिराग और तेजस्वी के साथ आ जाने के बाद के समीकरणों के जोड़-घटाव से सत्ताधारी पार्टियों में बेचैनी बढ़ने के आसार नजर आने लगे हैं।

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