आधुनिकता की तरफ तेज़ी से भागते पूर्णिया शहर से महज 13 किलोमीटर दूर स्थित रानीपतरा इलाके में एक आदिवासी गाँव है टेटगामा। प्रशासनिक लिहाज़ से ये गाँव ज़िले के पूर्णिया पूर्व प्रखंड अंतर्गत रजीगंज पंचायत का हिस्सा है। गाँव में वैसे तो पक्की सड़क आ चुकी है। लेकिन बाबू लाल उरांव के घर तक आते आते पक्की सड़क ने दम तोड़ दिया है। ऊबड़-खाबड़ एक कच्ची सड़क है जो उनके घर तक जाती है। बुरी नजर से बचने के लिए गाँव में जगह-जगह नजरबट्टू लटके नज़र आते हैं। इसी गांव के एक झोपड़ीनुमा घर, जिसमें पक्के मकान के लिए सिर्फ दीवारें खड़ी हैं, दरवाज़े पर पानी की टंकी से एक जूता झूल रहा है, जो बुरी नजर से घर को बचाने के लिए टांगा गया होगा। आँगन में तुलसी का एक पेड़ है।
ये घर उसी बाबू लाल उरांव का है जिन्हें बीते 6 जुलाई, 2025 को डायन के संदेह में परिवार के साथ ज़िंदा जला दिया गया। तीन महिलाओं सहित उसके परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी गई। मृतकों में एक नवविवाहित जोड़ा भी है।
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बाबू लाल के अलावा मृतकों में सीता देवी, मंजीत उरांव, रानी देवी और काकतो मसोमास थे। पांचों के शव बिसारिया बहियार से बरामद किये गए।
पूर्णिया के डीएम अंशुल कुमार ने बताया कि शवों को बरामद कर पोस्टमार्टम करा लिया गया है और शवों का अंतिम संस्कार भी हो चुका है।
उन्होंने जानकारी दी कि इस केस में 23 नामजद और 150-200 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। इस केस के मुख्य आरोपी समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया चुका है, जिनमें एक नाबालिग है।
इस जघन्य हत्या की वजह डायन का संदेह है। उस रोज की घटना को याद करते हुए बाबू लाल के भाई सिहर उठते हैं और उनके भीतर डर भर जाता है। वह बताते हैं कि 150 लोगों की भीड़ थी, जो लाठी, डंडे, तलवार, सरिया और दतिया से लैस थी। उन्होंने परिवार को बचाना चाहा, मगर भीड़ की जानलेवा धमकी के सामने हथियार डाल दिये।
उनके परिजन कुचुम लाल उरांव, बाबू लाल उरांव से अपनी यारी को याद कर रोने लगते हैं। वह कहते हैं कि आते-जाते जब भी मुलाकात होती, तो वह उन्हें समधी कहकर बुलाते थे। उन्होंने कहा कि एक खानदान के पांच आदमी को मारकर घर सूना कर दिया, ये अच्छी बात नहीं है।
बताया जाता है कि पड़ोस के रामदेव उरांव के घर के एक बच्चे की मौत हो गई थी, जिसका आरोप बाबू लाल के परिवार पर लगाया गया। कहा गया कि उन्होंने ही जादू टोना कर दिया जिससे बच्चे की मृत्यु हो गई।
बाबू लाल के परिवार पर पहले से ही इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगते रहे हैं। बाबू लाल के भाई बताते हैं कि उनकी मां पर भी बस्ती के लोग डायन होने का आरोप लगाते रहते थे। 10 साल पहले जब ऐसा ही आरोप लगा, तो बाबू लाल की मां को गाँव वाले ओझा के पास ले गए थे, जिसने ऐसे आरोपों को खारिज कर दिया था।
गांव के लोगों से बातचीत से पता चलता है कि भूत-प्रेत का अंधविश्वास यहां गहरे धंसा हुआ है। परिजनों का कहना है कि बिना सत्यतता प्रमाणित हुए इस तरह हत्या करना अपराध है, लेकिन वे डायन जैसी चीजों के अस्तित्व से इनकार नहीं करते। वे कहते हैं कि अगर जांच पड़ताल में डायन निकलती तो पुलिस-कोर्ट में जाना चाहिए था।
बिहार में डायन के संदेह में हत्याएं कोई नई बात नहीं है। बिहार में ये वारदातें इतनी अधिक थीं कि बिहार पहला सूबा बना था जहां डायन-हत्या के खिलाफ 1999 में ही कानून बनाया गया था।
इस कानून के अनुसार, न केवल किसी व्यक्ति को डायन के रूप में पहचानना एक आपराधिक अपराध है, बल्कि किसी महिला को झाड़फूंक या टोटका (अनुष्ठान) करके ठीक करना और उसे शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाना, डायन की पहचान में मदद करना, ये सभी दंडनीय हैं। लेकिन यह कानून इतना कमजोर है कि इसका जमीनी स्तर पर बहुत कम या कोई असर नहीं है। इस कानून में सभी अपराधों के लिए तीन महीने से एक साल तक की जेल या 1,000 से 2,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। कमजोर कानून की वजह से डायन के संदेह में हत्या की घटनाएं बदस्तूर जारी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2020 में बिहार में जादू-टोना के संदेह में चार मौतें हुईं. 2021 में भी यही आंकड़ा दर्ज किया गया।
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