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मुस्लिम CM बनाने की जिद पर अड़े दलित नेता राम विलास पासवान

2005 में बिहार में दो विधानसभा चुनाव हुए। पहला चुनाव फ़रवरी में हुआ। तब पासवान ने मुस्लिम मुख्यमंत्री का ऐसा कार्ड चला, जिसकी काट लालू के पास नहीं थी। साथ ही पासवान ने लालू के मुस्लिम मसीहा बनाम परिवारवाद की परीक्षा भी ले ली।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
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बिहार में अब तक सिर्फ़ एक मुस्लिम मुख्यमंत्री हुए हैं। दूसरे भी हो सकते थे। अगर 2005 में लालू प्रसाद यादव राम विलास पासवान की बात मान लेते।

2005 में बिहार में दो विधानसभा चुनाव हुए। पहला चुनाव फ़रवरी में हुआ। तब पासवान ने मुस्लिम मुख्यमंत्री का ऐसा कार्ड चला, जिसकी काट लालू के पास नहीं थी। साथ ही पासवान ने लालू के मुस्लिम मसीहा बनाम परिवारवाद की परीक्षा भी ले ली।

2004 लोकसभा चुनाव बिहार में राजद, लोजपा, और कांग्रेस मिल कर लड़ी और दमदार प्रदर्शन रहा, केंद्र में UPA की सरकार बनी, लालू यादव और रामविलास पासवान दोनों को मंत्री बनाया गया।


2005 के फरवरी में बिहार में चुनाव हुए। रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के लिए ये पहला विधानसभा चुनाव था। उन्होंने अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी, यानी कि केंद्र में लालू के साथ सरकार का हिस्सा रहे, लेकिन बिहार में राजद के खिलाफ ही अपना उम्मीदवार उतारे। लोजपा ने कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे। जी हाँ आपने बिलकुल सही समझा, जो अभी नीतीश कुमार के साथ हो रहा है, वो 15 साल पहले लालू यादव के साथ लोजपा कर चुकी है।

लोजपा 178 सीटों पर चुनाव लड़ी, जबकि राजद 210 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी, कांग्रेस ने 84 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।

फ़रवरी 2005 चुनाव में रामविलास पासवान का नारा था, ‘No BJP, No RJD and Muslim CM only’

लालू यादव के M-Y समीकरण के तरह राम विलास पासवान खुद को दलित-मुस्लिम नेता के तौर पर उभारना चाहते थे, बिहार में दलितों और मुस्लिमों का वोट जोड़ कर लगभग 36% हो जाता है, जो M-Y समीकरण से ज़्यादा है.

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27 फरवरी 2005 को चुनाव के नतीजे आए, RJD को 75 सीटें हासिल हुई, कांग्रेस 10 सीटें जीती, BJP को 37 और जदयू को 55 सीटें मिलीं, पासवान 29 सीट जीतकर किंगमेकर बने।

अगर पासवान लालू को समर्थन देते तो आरजेडी लेफ्ट कांग्रेस और निर्दलीय के साथ मिलकर सरकार बना सकती थी,

जब पासवान के पास RJD को समर्थन देने का प्रस्ताव लाया गया, तो उन्होंने मुस्लिम मुख्यमंत्री का शर्त रख दिया। इस प्रस्ताव ने लालू यादव को संकट में डाल दिया। लालू अपने परिवार से आगे नहीं सोच सके, राबड़ी देवी के अलावा किसी को CM बनाने के लिए लालू तैयार नहीं हुए।

मई 2005 में विधान सभा भंग होने के बाद एक इंटरव्यू में रामविलास पासवान कहते हैं, “मैं पटना में मुस्लिम मुख्यमंत्री के साथ सरकार बनाना चाहता था, राजद या कांग्रेस या एनसीपी के तारिक़ अनवर को भी मुख्यमंत्री बनाने से मुझे कोई गुरेज नहीं था, लेकिन लालू यादव राबड़ी देवी के नाम पर ही अड़े रहे और दूसरे दल के लोग हॉर्स ट्रेडिंग पर उतर आए, तो केंद्र सरकार राज्यपाल बूटा सिंह की राष्ट्रपति शासन लगाने वाली बात मानने पर मजबूर हो गई”

 

“मैंने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, गृह मंत्री शिवराज पाटिल और अहमद पटेल के सामने मुख्यमंत्री पद के लिए जाबिर हुसैन का नाम पेश किया था, लेकिन लालू यादव सिर्फ राबड़ी देवी को ही CM बनाना चाहते थे”

 

वो आगे बताते है के ‘अगर मैं नीतीश कुमार के साथ चला जाता, तो वो मेरे भाई को उपमुख्यमंत्री बना देते, लेकिन लालू यादव एक मुस्लिम को उप-मुख्यमंत्री भी बनाने को तैयार नहीं हुए”

हालाँकि राम विलास पासवान का दलित और मुस्लिम वोट एकजुट करके बिहार का किंग बनने का सपना अक्टूबर 2005 के चुनाव में टूट गया। अक्टूबर में हुए चुनाव में लोजपा 203 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 10 सीट ही जीत पायी, उनकी पार्टी को इस चुनाव में लगभग 11 प्रतिशत वोट ही मिले, जबकि फ़रवरी में 12.62 प्रतिशत वोट मिले थे। राम विलास के उम्मीदों के उलट मुस्लिम वोट लोजपा के बजाये जदयू में शिफ्ट हो गया। हालांकि राम विलास पासवान लालू यादव को बिहार की सत्ता से दूर करने में कामयाब रहे।

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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