मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 49 वर्षीय बेटे निशांत कुमार, जो पेशे से इंजीनियर हैं, लम्बे समय से राजनीति में आने के सवालों से इनकार करते रहे हैं, लेकिन 17 जनवरी को एक सरकारी कार्यक्रम में शामिल होकर उन्होंने राजनीति में आने का संकेत दे दिया और पार्टी के नेता भी कह रहे हैं कि जल्द ही निशांत कुमार जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो सकते हैं।
दरअसल, 17 जनवरी को नीतीश कुमार, सरकारी अधिकारियों के साथ एक राजकीय कार्यक्रम में नालंदा के बख्तियारपुर पहुंचे थे। वहां नीतीश कुमार ने अपने पिता स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय रामलखन सिंह वैद्य के साथ साथ पंडित शीलभद्र याजी, मोगल सिंह, नथुन सिंह यादव व डूमर सिंह की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया।
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इस राजकीय कार्यक्रम में निशांत कुमार भी मौजूद थे। निशांत कुमार सार्वजनिक तौर पर कभी कभार ही नजर आते हैं और आते भी हैं, तो मीडिया के सवालों का जवाब देने से भरसक बचते हैं। सरकारी कार्यक्रम में उनकी ये मौजूदगी रेयर ही थी। आखिरी बार निशांत कुमार ने जिस सरकारी कार्यक्रम में शिरकत की थी, वो कार्यक्रम था साल 2015 का नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री के रूप में शपथ-ग्रहण।
17 जनवरी के कार्यक्रम के उत्तरार्ध में उन्होंने मीडिया के सामने खुलकर बात की। निशांत ने कहा, “नये साल में वह पहली बार लोगों के सामने रूबरू हो रहे हैं। बिहार और देशवासियों को नववर्ष की शुभकामनाएं। मेरे दादाजी स्वतंत्र सेनानी रहे। वे आजादी के लिए जेल भी गये। इसी के उपलक्ष्य में पिताजी ने राजकीय समारोह का आयोजन किया है। नये साल में बिहारवासियों से अपील है कि हो सके तो पिताजी और उनकी पार्टी को वोट करें और फिर से सरकार में लायें। पिताजी अच्छा काम कर रहे हैं।”
निशांत के उक्त बयानों के बाद ही उनके जदयू में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई हैं। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इसको लेकर पार्टी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन मीडिया रपटों के मुताबिक, जदयू नेताओं ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा है कि वह संभवतः होली के बाद पार्टी में शामिल हो सकते हैं।
पूर्व में उत्तराधिकारी बनाने की तीन कोशिशें नाकाम
उल्लेखनीय हो कि जदयू के भीतर नीतीश से इतर अन्य जिस भी नेता को उनका उत्तराधिकारी बनाने की कोशिशें की गईं, वे बुरी तरह नाकाम रही हैं।
ताजा मिसाल पूर्व नौकरशाह व नीतीश कुमार के सजातीय (कुर्मी) मनीष वर्मा हैं, जो उनके ही गृह जिला नालंदा से आते हैं। वह लगातार दो साल तक मुख्यमंत्री के अतिरिक्त परामर्शी थे।
वह यूं तो लोकसभा चुनाव के समय से ही सक्रिय हो गये थे और जदयू की राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रहे थे, लेकिन लोकसभा चुनाव खत्म होने के दो महीने के भीतर उन्हें पार्टी में शामिल कराया गया और महज दो दिनों के भीतर उन्हें पार्टी का महासचिव नियुक्त कर दिया गया। महासचिव नियुक्त होने के कुछ दिनों तक वह बेहद सक्रिय रहे, लेकिन अब लगभग नेपथ्य में चले गये हैं।
मनीष वर्मा से पहले नीतीश कुमार अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तलाशने की दो और कोशिशें कर चुके हैं, लेकिन दोनों ही कोशिशें विफल रही हैं।
पहली कोशिश के तहत उन्होंने आरसीपी सिंह को वर्ष 2010 में पार्टी में शामिल कराया था। पूर्व नौकरशाह आरसीपी सिंह भी नालंदा से आते हैं और नीतीश कुमार की ही तरह कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। आरसीपी सिंह को पार्टी में नीतीश कुमार के बाद नंबर दो माना जाता था। उन्हें नीतीश कुमार ने राज्यसभा सांसद बनाया।
वह केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे, लेकिन दिल्ली में मंत्रालय संभालते हुए भाजपा के बेहद करीब पहुंच गये, तो उन्हें धीरे धीरे पार्टी में किनारे कर दिया गया। बाद में उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर लिया। उस वक्त नीतीश कुमार महागठबंधन का हिस्सा थे, तो भाजपा ने आरसीपी सिंह के जरिए नीतीश कुमार पर खूब जुबानी हमले कराये थे। एक वक्त ऐसा लग रहा था कि भाजपा, आरसीपी सिंह को बड़ी भूमिका दे सकती है। लेकिन, एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गये और भाजपा के साथ मिलकर दोबारा बिहार में सरकार बना ली। तब से आरसीपी सिंह गुमनाम हैं। हाल ही में उन्होंने भाजपा छोड़ दी और अपनी नई पार्टी बना ली है।
दूसरी कोशिश साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद शुरू हुई, जब चुनावी रणनीतिकार (फिलहाल राजनीतिज्ञ) प्रशांत किशोर को साल 2018 में जदयू ज्वाइन कराया गया और अहम जिम्मेवारी दी गई। पार्टी ज्वाइन करने पर नीतीश कुमार ने कहा था, “अब यही (पार्टी का) भविष्य हैं।” लेकिन, साल 2020 में सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) को लेकर पार्टी लाइन से इतर अपना स्टैंड जाहिर करने के कारण उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था।
निशांत को लेकर चर्चा क्यों
राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी है कि नीतीश कुमार बीमार चल रहे हैं, ऐसे में जदयू में नये नेतृत्व का उभरना बहुत जरूरी है इसलिए निशांत कुमार को जल्द से जल्द पार्टी में शामिल कराने की कवायद चल रही है।
जानकारों का कहना है कि अगर निशांत कुमार को पार्टी में शामिल करने की कोशिश हो रही है, तो इसकी वजह ये है कि नीतीश कुमार से इतर किसी भी बाहरी नेता को जदयू के शीर्ष नेता नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी मानने को तैयार नहीं हैं। सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर एक गुट ऐसा है, जो नहीं चाहता है कि पार्टी के बाहर से कोई नया नवेला नेता आए और नीतीश कुमार की जगह ले ले।
मनीष वर्मा ने ऐसी ही कोशिश की थी। पार्टी का महासचिव बनने के बाद उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से संपर्क स्थापित करने के लिए पिछले साल 27 सितंबर से कार्यकर्ता समागम कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम के तहत उनका लक्ष्य लगातार चार महीने तक सभी जिलों की सघन यात्रा कर जदयू कार्यकर्ताओं से मुलाकात करना था और कार्यक्रम का अवसान नालंदा में होना था। ये कार्यक्रम मुश्किल से 10 रोज भी नहीं चल पाया कि अचानक से इसे स्थगित कर दिया गया, लेकिन दो अन्य कार्यक्रम – जिला कार्यकर्ता सम्मेलन व एनडीए की जिलावार बैठक को संचालित करते रहने का निर्देश दिया गया। पार्टी सूत्रों ने बताया कि जदयू में शामिल होने के साथ ही महासचिव का पद मिल जाना और फिर उनका कार्यकर्या समागम जैसा सघन कार्यक्रम करना पार्टी के कुछ प्रभावशाली नेताओं को रास नहीं आया, इसलिए उनका कार्यक्रम स्थगित करवाया गया।
आशंका ये भी है कि नीतीश कुमार अगर सक्रिय राजनीति से अलग हो जाते हैं और पार्टी के किसी अन्य नेता को कमान देते हैं, तो पार्टी के भीतर की गुटबाजी सतह पर आएगी और पार्टी में बिखराव होगा, इसलिए नीतीश कुमार के कुनबे के निशांत कुमार को राजनीति में लाने की कवायद हो रही है।
राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, “जदयू के जो शीर्ष नेता हैं, मसलन कि ललन सिंह, संजय झा, विजय चौधरी, अशोक चौधरी आदि, उनका कोई अपना आधार वोट नहीं है इसलिए अगर इन नेताओं में किसी को नेतृत्व मिलता है तो बैकफायर कर जाएगा, ऐसे में निशांत में ही एक उम्मीद दिखती है।”
इधर, निशांत कुमार के जदयू में शामिल होने की चर्चाओं के बीच जदयू नेताओं की तरफ से भी उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं, जिससे लगता है कि वे निशांत के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार हैं।
जदयू नेताओं के बयानों से भी लगता है कि उन्हें निशांत कुमार के नेतृत्व से कोई दिक्कत नहीं। जदयू नेता श्रवण कुमार से जब पूछा गया कि क्या निशांत को राजनीति ज्वाइन करनी चाहिए, तो उन्होंने कहा, “बिल्कुल। ऐसे प्रगतिशील विचार वाले युवा का राजनीति में स्वागत है। इस पर निर्णय सही वक्त पर लिया जाएगा।”
जदयू के एक अन्य नेता मदन साहनी ने मीडिया से कहा कि निशांत कुमार को सक्रिय राजनीति में आना चाहिए। “हमलोग चाहते हैं, बिहार चाहता है कि वह सक्रिय राजनीति में आएं… उनके पुत्र बहुत योग्य हैं। जल्द आएं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो विकास किया है, उस कड़ी को आगे बढ़ाएं। निशांत के राजनीति में आने से जदयू को मजबूती मिलेगी,” उन्होंने कहा।
राजनीतिक विश्लेषक सुरूर अहमद का मानना है कि निशांत को पार्टी में शामिल कराने से पहले इसे सार्वजनिक पटल लाकर पार्टी संभवतः ये देखने की कोशिश कर रही है कि पार्टी के भीतर और साथ साथ आम लोगों में किस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। अगर सकारात्मक प्रतिक्रिया आती है, तो उन्हें पार्टी में शामिल कराया जाएगा।
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