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पटना विवि छात्र संघ के चुनाव परिणाम के राजनीतिक मायने क्या हैं?

अव्वल तो पटना विश्वविद्यालय के इतिहास में लगभग 100 वर्षों के बाद छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर महिला ने जीत दर्ज की और दूसरा ये कि सेंट्रल पैनल से लेकर काउंसिल मेंबर के पदों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले अधिक रही।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
what is the political significance of the election results of patna university students union

निर्धारित समय से 6 महीने देर से हुए पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव परिणाम कई मायनों में चौंकाने वाले रहे हैं।


अव्वल तो पटना विश्वविद्यालय के इतिहास में लगभग 100 वर्षों के बाद छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर महिला ने जीत दर्ज की और दूसरा ये कि सेंट्रल पैनल से लेकर काउंसिल मेंबर के पदों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले अधिक रही।

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इस बार पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ी मैथिली मृणालिनी ने जीत हासिल की है। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के मनोरंजन कुमार को 603 वोटों के अंतर से हराया।


मूल रूप से मुंगेर की रहने वाली मृणालिनी ने 10वीं तक की पढ़ाई पटना से और 12वीं तक की पढ़ाई राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ से की। वनस्थली विद्यापीठ में पढ़ते हुए उन्हें भूगोल और अर्थशास्त्र विषय में गोल्ड मैडल हासिल किया। वह ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट भी हैं एनसीसी से भी जुड़ी रही हैं। फिलहाल, मृणालिनी पटना विमेंस कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की छात्रा हैं।

हालांकि, अध्यक्ष पद के अलावा एबीवीपी किसी अन्य सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाया।

छात्र संघ के उपाध्यक्ष पद से निर्दलीय उम्मीदवार धीरज कुमार ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एनएसयूआई के प्रकाश कुमार को 220 वोटों को अंतर से हराकर जीत हासिल की। महासचिव के पद पर सलोनी राज ने 2375 वोटों के अंतर से एबीवीपी उम्मीदवार अंकित कुमार को हराया। संयुक्त सचिव के पद पर एनएसयूआई उम्मीदवार रोहन कुमार ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनसुराज पार्टी की अन्नू कुमारी को हराकर जीत हासिल की। ट्रेजरर पद पर भी एनएसयूआई ने ही कब्जा जमाया। एनएसयूआई की उम्मीदवार सौम्या श्रीवास्तव ने 401 वोटों के अंतर से एबीवीपी उम्मीदवार ओमजय कुमार को हराकर जीत का परचम लहराया।

पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत मगध महिला कॉलेज, पटना विमेन्स कॉलेज, बीएन कॉलेज, पटना लॉ कॉलेज समेत एक दर्जन कॉलेज आते हैं, जिन्हें मिलाकर कुल 19050 वोट थे। 29 मार्च को हुई वोटिंग में 8600 छात्र वोटरों ने वोट डाले, जो कुल वोटरों का लगभग 47.64 प्रतिशत रहा।

मैथिली मृणालिनी ने कहा कि उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है, लेकिन कोविड के दौरान टीवी डिबेट्स देखते हुए उन्हें राजनीति में आने का खयाल आया। उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश रहेगी कि वो पद की गरिमा को बरकरार रखते हुए काम करें।

छात्र राजद व वामदल का बुरा हाल

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में सबसे खराब स्थिति छात्र राजद (राष्ट्रीय जनता दल), भाकपा (माले) लिबरेशन की छात्र इकाई ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) और भाकपा की छात्र इकाई ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) की रही।

बिहार की राजनीति का महत्वपूर्ण ध्रुव राजद की छात्र इकाई इस चुनाव में दूसरा स्थान भी हासिल नहीं कर पाया। अध्यक्ष पद पर खड़े छात्र राजद के उम्मीदवार को महज 1047 वोट मिले और वह दूसरे स्थान पर रहा।

वहीं, उपाध्यक्ष के पद पर खड़े पार्टी के उम्मीदवार को महज 562 वोट मिले, जो हारने वाले एक निर्दलीय उम्मीदवार के वोट का एक तिहाई था। महासचिव के पद पर खड़े छात्र राजद के उम्मीदवार को महज 449 वोट मिले, जो नई नवेली जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार को मिले कुल वोट का करीब 20 प्रतिशत है। इसी तरह ट्रेजरर पद पर छात्र राजद के उम्मीदवार को 568 वोट ही मिल सके।

लेकिन, एनएसयूआई, जो कांग्रेस की छात्र इकाई है, ने बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि बिहार में कांग्रेस अपनी सबसे कमजोर स्थिति में है।

ऐसे में सवाल ये है कि छात्र राजद व वामदलों का प्रदर्शन इतना लचर कैसे रहा?

दरअसल, बिहार में कांग्रेस, राजद व वामदल गठबंधन में हैं, लेकिन पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव उन्हें अलग अलग लड़ा, जिससे वोटों का बंटवारा हुआ।

अध्यक्ष पद के लिए हुई वोटिंग के आंकड़ों को देखें, तो साफ पता चलता है कि अगर राजद, कांग्रेस व वामदलों ने साथ लड़ा होता, तो अध्यक्ष पद पर भी उनकी जीत होती। एबीवीपी उम्मीदवार मैथिली मृणालिनी ने एनएसयूआई उम्मीदवार से 603 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी, जबकि इसी पद पर छात्र राजद के उम्मीदवार को कुल 1047 वोट मिले थे। इसी तरह उपाध्यक्ष पद पर निर्दलीय उम्मीदवार ने 220 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की जबकि इसी पद पर खड़े छात्र राजद के उम्मीदवार को 582 वोट हासिल हुए थे।

भाकपा (माले) लिबरेशन की छात्र इकाई ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) से जुड़े कुमार दिव्यम ने कहा, “हमलोगों ने साथ चुनाव लड़ने के लिए छात्र राजद के नेताओं से बातचीत की थी, लेकिन वे लोग इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि वे अकेले चुनाव लड़ेंगे।”

एनएसयूआई से जुड़े एक छात्र नेता ने कहा, “ये चुनाव परिणाम इस बात की ओर इशारा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को एक साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए, वरना ऐसा ही चुनाव परिणाम आएगा।”

इस संबंध में छात्र राजद से प्रतिक्रिया लेने के लिए पार्टी नेता विनीत कुमार से संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

जनसुराज की नामांकन वापसी और मृणालिनी की जीत

पटना यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति को नजदीक से देखने वालों का कहना है कि एबीवीपी का प्रभाव पटना यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति में कम है, लेकिन इसके बावजूद वर्ष 2012 में चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की थी और इस बार भी पार्टी ने अध्यम पद अपने नाम किया। हालांकि, अन्य सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा।

दरअसल, कई चीजें एबीवीपी के पक्ष में रही हैं इसबार, यही वजह है कि पार्टी ने जीत दर्ज कर ली। अव्वल तो एबीवीपी की उम्मीदवार मैथिली मृणालिनी, ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखती हैं और दूसरा यहां के वोटरों में ब्राह्मण व भूमिहारों की आबादी ठीकठाक है व उन्होंने एबीवीपी को जमकर वोट दिया। साथ ही मृणालिनी पटना विमेंस कॉलेज की छात्रा हैं, तो यहां की छात्राओं के लिए ये एक मौका भी था कि इस कॉलेज से कोई अध्यक्ष चुना जाए और उन्होंने विचारधारा से ऊपर उठकर उन्हें वोट दिया। यही वजह रही कि पटना विमेंस कॉलेज से ज्यादा वोटिंग हुई। इस बार जदयू की छात्र इकाई चुनाव में नहीं उतरी थी और पार्टी ने एबीवीपी उम्मीदवारों को अपना समर्थन दिया, तो इसका भी फायदा एबीवीपी उम्मीदवार को मिला।

मृणालिनी के खिलाफ छात्र राजद और एनएसयूआई ने यादव उम्मीदवारों को उतारा था, जिसके चलते यादव वोट बंट गये।

प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने अध्यक्ष पद के लिए भूमिहार उम्मीदवार दिवेश दीनू को मैदान में उतारा था, लेकिन सूत्र बताते हैं कि भूमिहार लॉबी के जबरदस्त दबाव के चलते उक्त उम्मीदवार को नामांकन वापस लेना पड़ा। एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि दिवेश दीनू पर भूमिहार लॉबी की तरफ से जबरदस्त दबाव बनाया गया था नामांकन वापस लेने के लिए, इसलिए उन्होंने नामांकन वापस लिया।

हालांकि, जन सुराज पार्टी की तरफ से कहा गया कि उनकी उम्मीदवारी इसलिए वापस ली गई क्योंकि उन्हें आर्थिक घपले व अनैतिक कृत्यों में लिप्त पाया गया था। जनसुराज ने चुनाव एएसयूआई के उम्मीवार को समर्थन देने का ऐलान किया था।

अकादमिक सत्र खत्म होने और रमजान का असर

पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के इस चुनाव परिणाम पर अकादमिक सत्र का खत्म होना और रमजान का भी असर रहा।

छात्र संघ का चुनाव अगस्त सितम्बर में हो जाना चाहिए था, लेकिन लगभग छह महीने देर से चुनाव हुआ और वह भी तब जब अकादमिक सत्र खत्म हो चुका था और लोग अपने अपने घरों को जा चुके थे। उनके लिए गांव से सिर्फ वोट देने के लिए पटना आना मुश्किल था, इस वजह से इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग हुई।

साथ ही रमजान चल रहा था और ईद भी करीब थी, तो अधिकांश मुस्लिम छात्र गांव चले गये थे। इस वजह से छात्र राजद व एनसयूआई उम्मीदवारों को मुस्लिम छात्रों का कम वोट मिला। बताया जाता है कि यहां 5-6 हजार मुस्लिम वोटर हैं, मगर इकबाल हॉस्टल जहां मुस्लिम छात्र रहते हैं, में सन्नाटा रहा।

इस चुनाव की दिलचस्प बात ये भी रही कि पांच पदों में से दो पदों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। उपाध्यक्ष पद पर निर्दलीय उम्मीदवार धीरज कुमार ने जीत दर्ज की, तो वहीं महासचिव के पद पर छात्र नेता ओसामा खुर्शीद समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सलोनी राज ने भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की।

ओसामा खुर्शीद ने कहा, “हमलोग करीब डेढ़ साल से ही इस चुनाव की तैयारी कर रहे थे। हमलोगों ने छात्रों को जोड़ने के लिए कई तरह के कार्यक्रम किये, उनसे जनसंपर्क मजबूत किया। चुनाव के पहले कई राजनीतिक पार्टियों की तरफ से हमारे पास उनके उम्मीदवार को समर्थन देने का प्रस्ताव आया, लेकिन हमलोगों ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया।” “चुनाव देर से हुआ है, तो छात्र संघ का कार्यकाल मुश्किल से 4-5 महीने का ही है। ऐसे में हमलोग अपने स्तर से छात्रों के हित में विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने अपनी मांगें रखेंगें। इनमें पटना विश्वविद्यालय का बंद छात्रावास खुलवाना, कैम्पस में हिंसक घटनाओं पर लगाम लगाना और छात्रों के लिए पढ़ाई से इतर खेल व अन्य गतिविधियों में इंगेज रखने के लिए कदम उठाना आदि शामिल हैं,” ओसामा खुर्शीद ने कहा।

कुमार दिव्यम ने मैथिली मृणालिनी की जीत को बड़ी उपलब्धि मानते हुए उनके सामने मौजूद चुनौतियों का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा, “मृणालिनी जिस महिला विमेंस कॉलेज से आती हैं, वहां राजनीतिक गतिविधियों पर सख्त लगाम है और लोकतंत्र लगभग नहीं बराबर है। छात्राएं शाम के बाद हॉस्टल से बाहर नहीं निकल सकती हैं। ऐसे में देखना होगा कि बतौर अध्यक्ष वह अपने कॉलेज कैम्पस को कितना लोकतांत्रिक बना पाती हैं।”

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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