केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के महत्वाकांक्षी और बहुप्रतीक्षीत कोसी-मेची लिंक परियोजना (Kosi-Mechi Link Project) समेत कई अन्य प्रोजेक्ट्स के लिये बजट में 11,500 करोड़ रुपये की घोषणा की। बजट भाषण के दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा कि बिहार हमेशा से सैलाब का दंश झेलता रहा है और सैलाब से मुक्ति दिलाने के लिये केंद्र सरकार आर्थिक रूप से बिहार का मदद करने के लिये प्रतिबद्ध है।
कोसी-मेची लिंक प्रोजेक्ट के तहत, कोसी नदी के अतिरिक्त पानी को महानंदा की सहायक मेची नदी में छोड़ा जायेगा। सरकार का दावा है कि इससे सीमांचल के किसानों को सिंचाई का लाभ मिलेगा। ख़रीफ़ फसल लगाने के दौरान सीमांचल के किसान इस अतिरिक्त पानी का इस्तेमाल कर सकेंगे।
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क्या है कोसी-मेची लिंक परियोजना?
दरअसल, उत्तर बिहार को बाढ़ की तबाही से बचाने के लिये केन्द्र सरकार ने कोसी-मेची नदी लिंक परियोजना को मंज़ूरी दी थी। इसके तहत, कोसी नदी को नहर के ज़रिये महानंदा की सहायक नदी मेची से जोड़ा जायेगा। इससे नेपाल की तराई क्षेत्रों में होने वाली लगातार बारिश से जो सैलाब की स्थिति उत्पन्न होती है, उससे बिहार को बचाया जा जायेगा।
सरकार की मानें तो ख़रीफ़ सीज़न के दौरान इस प्रोजेक्ट से सीमांचल के चारों ज़िले – पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया के लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी, जिससे पैदावार में इज़ाफ़ होगा।
कोसी-मेची लिंक नहर भारत-नेपाल सीमा के क़रीब मौजूदा हनुमान नगर बैराज के बाएं हेड रेगुलेटर से निकलेगी। बैराज के बायें हेड रेगुलेटर को लिंक नहर के 573 क्यूसेक (क्यूबिक सेन्टीमीटर) पानी के संपूर्ण डिस्चार्ज को मोड़ने के लिए ठीक स्थिति में पाया गया है, इसलिए, हेड रेगुलेटर की रीमॉडलिंग की आवश्यकता नहीं है।
कोसी-मेची लिंक नहर की कुल लंबाई 117.50 किमी है। इसमें 41.3 किलोमीटर लंबा पूर्वी कोसी मुख्य नहर भी शामिल है, जो पहले से ही निर्मित है। इस हिसाब से मौजूदा प्रोजेक्ट की लंबाई 76.2 किलोमीटर है। इसमें 9 नहर साइफन, 14 साइफन एक्वाडक्ट, 42 सड़क पुल, 9 पाइप कल्वर्ट, 28 हेड रेगुलेटर और 9 क्रॉस रेगुलेटर का निर्माण होगा।
साइफन एक्वाडक्ट एक हाइड्रोलिक संरचना है जिसका इस्तेमाल पानी को नदी या नहर के एक तरफ से दूसरी तरफ पहुंचाने के लिए किया जाता है।
बताते चलें कि कोसी तिब्बत से निकलने वाली एक अंतर्राष्ट्रीय नदी है, जो नेपाल से गुज़रते हुए उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों के निचले हिस्से में बहती है। कोसी नदी को “बिहार का शोक” कहा जाता है, क्योंकि हर साल इस नदी की वजह से आने वाली बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित होते हैं। सैलाब से बिहार में सैकड़ों जानें जाती है और हज़ारों घर तबाह होते हैं।
इस रूट से गुज़रेगी कोसी-मेची लिंक नहर
कोसी-मेची लिंक नहर पूर्वी कोसी मुख्य नहर से निकल कर बिहार के सुपौल, अररिया से गुज़रते हुए किशनगंज में महानंदा नदी बेसिन में आकर गिरेगी। इस बीच यह नहर कई छोटी-छोटी नदियां जैसे टेहरी, लोहन्द्रा, बलुआ, परमान, बकरा, घागी, पहाड़ा, नोना, रतुआ, कनकई और सौरा को पार करते हुए मेची तक पहुंचेगी।
पूर्वी कोसी मुख्य नहर से निकल कर सुनमानी और खेसरोइल गांव होते हुए यह नहर अररिया में कुर्साकांटा के पास अररिया-कुआरी रोड को क्रॉस करेगी। उसके बाद अररिया के चरबना गांव के पास जोकीहाट-टेढ़ागाछ रोड को क्रॉस करेगी। सुइहा गांव से होकर बहादुरगंज का लौचा गांव के क़रीब कनकई नदी क्रॉस करेगी।
फिर वहां से बहादुरगंज-समेसर रोड और अररिया-गलगलिया एनएच को क्रॉस करते हुए भ्रदहार गांव के पास बूढ़ी कनकई नदी क्रॉस करेगी। डाला गांव के क़रीब एक बार फिर कनकई नदी को क्रॉस करते हुए महानंदा बेसिन से डेढ़ किलोमीटर पहले किशनगंज के मखनपुर गांव के क़रीब मेची नदी में गिर जायेगी।
कई दशक पुरानी है यह परियोजना
कोसी-मेची लिंक परियोजना कई दशक पुरानी है। कोसी नदी की शिफ्टिंग की समस्या के साथ-साथ भारी तलछट भार और बिहार के लोगों को सैलाब से बचाने के लिये तत्कालीन नेपाली राजशाही और भारत सरकार ने कोसी परियोजना के क्रियान्वयन के लिये 25 अप्रैल 1954 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था।
समझौते के तहत, भारत-नेपाल सीमा के करीब हनुमान नगर में कोसी नदी पर बैराज का निर्माण, नहर हेडवर्क्स का निर्माण, नेपाल में पश्चिमी कोसी मुख्य नहर (डब्ल्यूकेएमसी) प्रणाली और भारत में पूर्वी कोसी मुख्य नहर (ईकेएमसी) प्रणाली को विकसित करना था। वर्तमान प्रोजेक्ट इसी पूर्वी कोसी मुख्य नहर का मेची नदी तक विस्तार है।
पूर्वी कोसी मुख्य नहर के मेची नदी तक विस्तार का उद्देश्य मुख्य रूप से ख़रीफ़ सीज़न के दौरान पानी की कमी वाले महानंदा बेसिन क्षेत्र यानी कि सीमांचल के ज़िलों – अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार को सिंचाई लाभ प्रदान करना है। सरकार की मानें तो कोसी-मेची लिंक नहर से महानंदा बेसिन के कुल क्षेत्र 4,45,000 हेक्टेयर में से 2.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो सकेगी।
हालांकि, यहां के किसानों को कितना लाभ मिलेगा, यह हनुमान नगर बैराज में उपलब्ध पानी पर निर्भर करेगा। यद्यपि वर्तमान में इस अंतर्राज्यीय लिंक नहर में कोई बैकअप भंडारण योजना नहीं है। लेकिन, बाद में इसे प्रस्तावित कोसी हाई डैम तक जोड़ा जा सकता है। नेपाल और भारत सरकार द्वारा संयुक्त सर्वेक्षण के बाद इस हाई डैम के निर्माण की संभावना है।
क्यों हो रहा कोसी-मेची परियोजना का विरोध
कोसी-मेची परियोजना के विरोध में आवाज़ उठना शुरु हो गया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण पर जवाब देते हुए किशनगंज सांसद डॉ. मो. जावेद ने लोकसभा में कहा कि इस परियोजना को तत्काल रद्द किया जाना चाहिये, क्योंकि इससे सीमांचल में रहने वाली बड़ी आबादी सैलाब से प्रभावित होगी।
“हर साल बिहार में और ख़ासरकर नॉर्थ बिहार में सीमांचल के पूर्णिया, अररिया और किशनगंज में बाढ़ आती है। बाढ़ के अलावा कटाव भी होता है, जिसमें हज़ारों घर, सैकड़ों गांव कट जाता है। मेरी सरकार से गुज़ारिश है कि इसको (सीमांचल को) सालाना 25 हज़ार करोड़ रुपये दिया जाये, ताकि नदी के दोनों किनारे कंक्रीट वॉल बने, बॉल्डर पिचिंग बने,” उन्होंने कहा।
कांग्रेस सांसद ने आगे कहा, “महानंदा बेसिन को जल्द से जल्द चालू किया जाये और जो लेक सिच्वेशन हो जाती है, उसको रोकना चाहिये। मेची को जोड़ा जा रहा है कोसी का पानी लाकर। अगर ऐसा हुआ तो ऑलरेडी जो लेक है वो बहुत बड़ा हो जायेगा। मेरी गुज़ारिश है कि अगर इंटरलिंकिंग करना है तो नॉर्थ बिहार के पानी को साउथ बिहार में भेजा जाये। इस प्रोजेक्टे (कोसी-मेची लिंक प्रोजेक्ट) को इमिडियटली रद्द किया जाये।”
“झूठे आंकड़ों पर आधारित है परियोजना”
सामाजिक संस्था ‘कोसी नवनिर्माण मंच’ के फाउंडर सदस्य महेन्द्र यादव जिन्होंने लगातार इस परियोजना के विरोध में आवाज़ उठाया है, ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि कोसी-मेची लिंक परियोजना पूरी तरह से झूठे आंकड़ों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि पूर्वी कोसी नहर सिंचाई परियोजना जो कि एक विफल परियोजना थी, उसी में थोड़ा सा बदलाव कर सरकार यह परियोजना लाई है।
महेन्द्र यादव ने कहा कि पूर्वी कोसी मुख्य नहर सिंचाई परियोजना का लक्ष्य 7 लाख 12 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का लाभ पहुंचाना था, लेकिन, कभी भी यह परियोजना लक्ष्य के 20 फीसद से ज़्यादा पानी दे नहीं पाया। उन्होंने आगे कहा कि इस वजह से 1975 में सिंचाई का लक्ष्य घटाकर 3 लाख 74 हज़ार हेक्टेयर कर दिया गया, लेकिन, उसके बावजूद सरकार पूरा पानी देने में विफल रही है।
“पूर्वी कोसी मुख्य नहर जो कि सिंचाई की एक विफल परियोजना थी, उसी में थोड़ा सा रिमॉडिलंग कर सरकार एक नई नहर परियोजना ला रही है। यह सीमांचल को उस समय पानी देगी जब दोनों तरफ़ यानी कि कोसी बेसिन और महानन्दा बेसिन में मॉनसून बरस रहा होगा। उस समय ख़रीफ़ फसल में सिंचाई के लिये पानी देने की बात की जा रही है, जिस समय सीमांचल में भी पानी मौजूद होगा” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “सरकार द्वारा झूठे आंकड़ों को परोसा जा रहा है… यह पूरी तरह से झूठ पर आधारित परियोजना है। इस झूठ पर आधारित परियोजना को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। मुझे अंदेशा है कि इसके कंस्ट्रक्शन में जो लोग होंगे, उसके सत्ताधारी लोगों से संबंध होंगे। इस्टिमेट को बढ़ा-चढ़ा कर इस तरह बनाया जायेगा ताकि यह पैसा चुनाव में फ़ायदा करे।”
क्या इस परियोजना से बिहार में बाढ़ की समस्या ख़त्म हो जायेगी, इसके जवाब में यादव कहते हैं कि इस परियोजना से कोसी तटबंध के भीतर बाढ़ की समस्या खत्म हो जाएगी इस तरह का बयान सत्ताधारी नेताओं द्वारा दिया जा रहा है, लेकिन, यह भी एक झूठ है, क्योंकि इस परियोजना से कोसी में बहुत ज़्यादा पानी कम नहीं हो जायेगा।
“इतना पानी निकलने से कोसी के बाढ़ का दशांश (दसवां हिस्सा) भी कम नही होगा। इतना ही नही जब पानी ज्यादा आता है, तो बैराज पर नहरों में निस्तारण (पानी छोड़ना) बंद कर दिया जाता है। ऐसा तटबंध के भीतर की जनता को सब्जबाग दिखाकर वोट लेने के लिए किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।
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