सिक्किम और पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में आतंक मचाने के बाद नैरोबी मक्खी ने बिहार के सीमांचल के ज़िलों में पैर पसारना शुरू कर दिया है।
5 जून को पूर्वी सिक्किम के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लगभग 100 छात्रों के नैरोबी मक्खियों के संपर्क में आने के बाद त्वचा में संक्रमण की सूचना मिली।
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पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर में कई मामले आये, हालांकि फिलहाल हालात काबू में हैं।
वहीं, 6 जुलाई को बिहार के किशनगंज में एक मामला आया। किशनगंज शहर की रहने वाली एक महिला इस एसिड फ्लाई का शिकार हुई। किशनगंज सिविल सर्जन कौशल किशोर प्रसाद ने पुष्टि कर कहा कि सदर अस्पताल में इसके इलाज के लिए समुचित व्यवस्था है। महिला ने बताया कि पहले तो खुजली हुई, उसके बाद त्वचा में आधे इंच का घाव हुआ, फिर यह दूसरे दिन बढ़ने और फैलने लगा। साथ ही दर्द और जलन होने लगा, जब इलाज के लिए सदर अस्पताल पहुंची तो चिकित्सकों ने इसे एसिड फ्लाई मक्खी का अटैक बताया।
अररिया के फारबिसगंज में भी एक युवक को इस मक्खी के काटने की जानकारी मिली है। जानकारी के अनुसार युवक के सीने के पास मक्खी ने काट लिया, युवक ने मक्खी को मार कर उसकी तस्वीर खींच ली। मारी गयी मक्खी नैरोबी फ्लाई से मिलती जुलती है।
वहीं पूर्णिया प्रशासन ने भी नैरोबी मक्खी को लेकर एक एडवाइजरी जारी की है।
लेकिन, यह नैरोबी मक्खी है क्या?
नैरोबी मक्खी, जिसे केन्याई मक्खी या ड्रैगन बग भी कहा जाता है, छोटे, भृंग जैसा कीड़ा है जो नारंगी और काले रंग का होता है। यह उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में पनपता है, जैसा कि पिछले कुछ हफ्तों में सिक्किम और पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी शहर और बिहार के किशनगंज में देखा गया है।
बता दें कि केन्या और पूर्वी अफ्रीका के अन्य हिस्सों में पहले भी इसके भारी प्रकोप देखे जा चुके हैं। साल 1998 में, असामान्य रूप से भारी बारिश के कारण इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में ये कीड़े आए थे। अफ्रीका के बाहर, अतीत में जापान, इजराइल, पराग्वे और भारत में भी इसका प्रकोप हो चुका है।
यहां यह भी बता दें कि यह मक्खी फसलों में लगने वाले कीड़ों को अपना शिकार बनाती है, इस लिहाज से यह किसानों के लिए फायदेमंद है लेकिन जब यह मनुष्य के संपर्क में आती है तो लोगों को संक्रमित कर देती है।
जहरीला तरल पदार्थ छोड़ती है नैरोबी मक्खी
ये मक्खी काटती नहीं है, बल्कि शरीर पर बैठकर जहरीला तरल पदार्थ छोड़ती है जिससे लोगो की त्वचा में जलन और जगह जगह इंफेक्शन हो जाता है। साथ ही सूजन और जख्म के निशान बन जाते हैं। इस जख्म के भरने में कम से कम एक हफ्ता लगता है।

त्वचा में सूजन की गंभीरता, संक्रमित होने वाले लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, पेडरिन की खुराक और संपर्क की अवधि पर निर्भर करती है। त्वचा में सूजन के हल्के मामलों में, त्वचा में हल्की लालिमा आती है। मध्यम मामलों में लगभग 24 घंटों के बाद खुजली शुरू हो जाती है और लगभग 48 घंटों में फफोले विकसित होते हैं, जो आमतौर पर सूख जाते हैं और निशान नहीं छोड़ते हैं। अधिक गंभीर मामले तब हो सकते हैं, जब विष शरीर में अधिक व्यापक हो और बुखार, नसों में दर्द, जोड़ों में दर्द या उल्टी होने लगे।
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चिकित्सकों का कहना है कि अगर मक्खी शरीर पर बैठे या चिपके तो उसे छूना नहीं चाहिए। छूने पर या इसे मसलने से यह एसिड जैसा जहरीला पदार्थ छोड़ती है, जिसे पेडरिन नाम से जाना जाता है। पेडरिन के त्वचा के सम्पर्क में आने से यह रसायन जलन पैदा करता है। आंखों को मसलते वक्त अगर यह खतरनाक पेडरिन आंखों तक पहुंच जाए, तो कुछ देर के लिए संक्रमित व्यक्ति अंधेपन में भी जा सकता है।
इन भृंगों से किसी भी बीमारी का कारण बनने से बचने के लिए कुछ सामान्य सावधानियां बरती जा सकती है, जैसे मच्छरदानी के नीचे सोना फायदेमंद हो सकता है।
यदि कोई मक्खी मानव शरीर पर बैठती है, तो उसे धीरे से ब्रश किया जाना चाहिए। रासायनिक-पेडेरिन रिलीज की संभावना को सीमित करने के लिए उसे परेशान करने या छूने से बचना चाहिए।
जिस जगह पर मक्खी बैठी हो, उस जगह को साबुन और पानी से धोएं।
यदि उनके साथ छेड़खानी की जाती है और त्वचा पर वे खतरनाक पेडरिन पदार्थ छोड़ जाते हैं, तो उस स्थान को धोए बिना शरीर के अन्य भाग, विशेष रूप से आंखों के संपर्क में न लाएं।
सिलीगुड़ी में नैरोबी मक्खी का आतंक, किशनगंज में भी खतरा
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