Main Media

Get Latest Hindi News (हिंदी न्यूज़), Hindi Samachar

Support Us

वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए क्या कर रही बिहार सरकार?

बिहार के नालंदा ज़िले के रहने वाले निशि चंद्रा सोलर से आटा चक्की मिल चलाते हैं। गांवों में पावर कट, लो वोल्टेज और बिजली चोरी की समस्या को देखते हुए उन्होंने पांच वर्ष पूर्व रूफटॉप सोलर पैनल लगवाया था।

rishikesh arya Reported By Rishikesh Arya |
Published On :
what is bihar government doing to increase alternative energy production
आटा चक्की मालिक निशि चंद्रा

बिहार के नालंदा ज़िले के रहने वाले निशि चंद्रा सोलर से आटा चक्की मिल चलाते हैं। गांवों में पावर कट, लो वोल्टेज और बिजली चोरी की समस्या को देखते हुए उन्होंने पांच वर्ष पूर्व रूफटॉप सोलर पैनल लगवाया था।


बरहारी गांव निवासी निशि ने ‘मैं मीडिया’ से बातचीत में बताया कि आटा चक्की पर काम करने वाले कर्मी पूरी तरह बिजली पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में बिजली न होने पर उन्हें खाली बैठना पड़ता है। “हमने सोलर लगवाया तो इसका फायदा ये हुआ कि सालभर में करीब 300 दिन लगातार धूप मिलती है, जिससे निर्बाध बिजली आपूर्ति हो जाती है,” उन्होंने कहा।

Also Read Story

बिहार के शहरों में क्यों बढ़ रहा बेतहाशा प्रदूषण

किशनगंज समेत बिहार के 16 सबस्टेशनों पर लगेंगे सोलर बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम

बिहार में चरम मौसमी घटनाओं में बढ़ोतरी से जान माल को भारी नुकसान

पूर्णिया: नदी कटाव से दर्जनों घर तबाह, सड़क किनारे रहने पर मजबूर ग्रामीण

बिहार में राज्य जलवायु वित्त प्रकोष्ठ बनेगा, नवीकरणीय ऊर्जा नीति शुरू होगी

क्या बायोगैस बिहार में नवीकरणीय ऊर्जा का समाधान हो सकता है?

बिहार में बनेंगे पांच और बराज, क्या इससे होगा बाढ़ का समाधान?

भारत में आकाशीय बिजली गिरने का सबसे अधिक असर किसानों पर क्यों पड़ता है?

अररिया में मूसलाधार बारिश के बाद नदियों का जलस्तर बढ़ा

वह आगे कहते हैं, “डीजल जेनरेटर अधिक महंगा पड़ता है। एक घंटे में ₹100 प्रति लीटर की दर से चलाने पर बड़ा खर्च आ जाता है, जिसमें 50% केवल डीजल पर खर्च हो जाता है। सोलर लगाने से 2-3 साल में पूरी लागत वसूल हो जाती है। सोलर पैनल की लाइफ 20-25 साल होती है, जिससे अगले 20-25 साल तक होनेवाली आमदनी सीधे जेब में जाती है।”


निशि ने निजी स्तर पर यह सोलर पैनल लगवाया है। इस समय करीब 25 किलोवाट का सिस्टम स्थापित है, जिसमें 590 वाट क्षमता वाले लूम सोलर पैनल का उपयोग किया गया है। कुल 45 सोलर पैनल लगाए गए हैं, जिससे आटा चक्की, तेल मिल और आइसक्रीम का उत्पादन बिना किसी रुकावट के हो रहा है।

बिहार की तेजी से बढ़ती आबादी और औद्योगीकरण के कारण ऊर्जा की मांग में भारी वृद्धि हो रही है।

बिहार सरकार के ऊर्जा विभाग के आकड़े बताते हैं कि राज्य में घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के मुक़ाबले औद्योगिक उपभोक्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2018 में राज्य की बिजली खपत का सिर्फ 7.5% औद्योगिक था, जो 2021-22 में बढ़कर 10.4% और 2023-24 में 12.5% हो गया है।

domestic versus commercial consumers

ऐसे में निशि जैसे व्यापारियों की मांग है कि सरकार औद्योगिक उपभोक्ताओं को भी सोलर सब्सिडी दे।

“डिमांड तो बना दिया गया है, लेकिन सोलर प्लांट लगाने के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं है। हर मिल मालिक सोलर लगाना चाहता है, लेकिन अग्रिम लागत बहुत ज्यादा है। अगर किसी जगह ₹3-4 लाख का खर्च आ रहा है, तो लोग सोचते हैं कि इससे बेहतर है कि जमीन ही खरीद ले। हमने 5-6 साल पहले सोलर लगवाया था, अब तक हमारी लागत पूरी हो चुकी है और मुनाफा होना शुरू हो गया है,” आटा चक्की मालिक निशि चंद्रा बोले।

बोधि केंद्र के निदेशक डॉ. शशिधर के. झा इस बिंदु पर सहमति जताते हुए कहते हैं, “वित्तीय संस्थानों को कम ब्याज दर पर ऋण, क्रेडिट गारंटी योजनाएँ और सोलर फाइनेंसिंग विकल्प उपलब्ध कराने होंगे, जिससे छोटे और मध्यम व्यवसायों तथा घरेलू उपभोक्ताओं को सौर ऊर्जा अपनाने में आसानी हो।”

बिहार में नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत क्यों?

राज्य की बिजली खपत 2015 में 3,631 मेगावाट थी, जो 2024 में बढ़कर 7,909 मेगावाट तक पहुंच गई है। इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता अधिक है। रिपोर्ट ऑन रिसोर्स एडिक्वेसी प्लान फॉर बिहार के अनुसार, 31 मार्च 2023 तक बिहार की अनुबंधित बिजली क्षमता 9,002 मेगावाट है। इसमें कोयले की हिस्सेदारी लगभग 72% है जबकि सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी क्रमशः 10% और 8% है। कोयला जलाना प्रदूषण का एक बड़ा कारण माना जाता है।

हाल ही में प्रकाशित वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में भागलपुर, अररिया, पटना, हाजीपुर और छपरा समेत बिहार के 14 शहर शामिल हैं। इन शहरों में प्रदूषण का बड़ा कारण पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी है।

बिहार की आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार ने 2018 में ही 100% घरों में विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया। आंकड़े ये भी बताते हैं कि राज्य में कुल बिजली उपभोक्ताओं की संख्या 2.12 करोड़ है। वहीं, आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में भी इजाफा हो रहा है। साल 2012-13 में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 134 किलोवाट प्रतिघंटा से बढ़कर 2023-24 में 363 किलोवाट प्रतिघंटा हो गई है। आने वाले समय में प्रति व्यक्ति बिजली खपत और बढ़ने का अनुमान है, जिसके लिए बिहार को और अधिक बिजली उत्पादन करना होगा। ऐसे में अगर राज्य सरकार पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का सहारा लेती है, तो प्रदूषण और बढ़ेगा। ऐसी सूरत में नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना एक महत्वपूर्ण समाधान हो सकता है।

इसके अलावा बिहार के लिए अपनी ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़ाना, आर्थिक लिहाज से भी जरूरी है क्योंकि फिलहाल राज्य को ऊंची दर पर अन्य राज्यों से बिजली लेनी पडती है और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को सब्सिडी देनी पड़ती है जिससे बिजली वितरण कंपनियों पर वित्तीय दबाव बढ़ता जा रहा है। बिहार की दोनों डिस्कॉम्स उत्तर बिहार विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड (एनबीपीडीसीएस) और साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एसबीपीडीसीएल) 2022-23 में 19,322 करोड़ के घाटे में रहीं।

बिहार में जलविद्युत उत्पादन की संभावना बहुत ज्यादा नहीं है क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति और मौसम इसके अनुकूल नहीं है। उत्तर बिहार की नदियों का प्रवाह बार-बार बदलता रहता है और बाढ़ की समस्या बनी रहती है, जिससे बड़े जलविद्युत संयंत्र बनाना मुश्किल हो जाता है। वहीं, दक्षिण बिहार की नदियों में पानी का प्रवाह और ऊंचाई कम होने के कारण वहां भी बड़े संयंत्र लगाना आसान नहीं है।

इसके बावजूद, राज्य सरकार छोटे स्तर पर जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। फिलहाल, राज्य में 13 जलविद्युत परियोजनाएं चल रही हैं, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 54.3 मेगावाट है। इसके अलावा, 9.3 मेगावाट क्षमता वाली नई परियोजनाओं का निर्माण जारी है।

राज्य सरकार ने महानंदा, बूढ़ी गंडक और गंडक नदी के इलाकों में जलविद्युत संयंत्रों की संभावनाएं तलाशने के लिए सर्वेक्षण करवाया है। रिपोर्ट के अनुसार, इन नदियों में जलविद्युत संयंत्र लगाने के लिए उपयुक्त जगहों की पहचान कर ली गई है और इनकी कुल संभावित क्षमता 160.1 मेगावाट आंकी गई है।

कृषि और सोलर लाइट

समस्तीपुर के किसान संजीत कुमार सिंह ने 2019 में बिहार रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) के माध्यम से 3 किलोवाट का पैनल लगवाया था।

बिहार सरकार इसके लिए मुख्यमंत्री नवीन एवं नवीकरणीय सौर पंप योजना चलाती है, जिसके तहत जिन खेतों में बिजली न पहुंची हो, वहाँ अधिकतम 3 किलोवाट का पैनल लगाया जाता है। इसके लिए सरकार 40% सब्सिडी देती है।

सौर जल पंप फोटोवोल्टाइक तकनीक पर आधारित होते हैं, जो पारंपरिक डीजल पंपों के स्थान पर अधिक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करते हैं। बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, इस योजना के तहत 12 जनवरी, 2025 तक ₹77.16 करोड़ की लागत से कुल 2,771 सौर जल पंप लगाए जा चुके हैं।

पिछले चार वर्षों में राज्य के कृषि बिजली उपभोक्ताओं की संख्या में 289% वृद्धि हुई है। साल 2018-19 में कृषि बिजली उपभोक्ताओं की संख्या 2.28 लाख से बढ़कर 2023-24 में 6.61 लाख हो गई।

संजीत कुमार सिंह ने बताया कि सोलर पैनल लगाने के 2 वर्ष बाद उनके गांव में बिजली आ गई थी। ऐसे में उन्होंने पंप के लिए बिजली का प्रयोग करना शुरू किया क्योंकि सोलर के मुकाबले बिजली वाला एसी पंप ज्यादा किफायती और अधिक क्षमता वाला होता है।

उनकी मांग है कि सरकार पंप के लिए डीसी की जगह एसी मोटर लगाए ताकि बेहतर तरीके से पानी आये और सिंचाई हो। जहां बिजली पहुँच चुकी है वहां नेट मीटरींग कर दे।

“राजस्थान जैसे राज्य ऐसे कनेक्शन दे रहे हैं। वहां ऑटोमैटिक सोलर ट्रैकिंग सिस्टम लगा हुआ है, लेकिन बिहार में नहीं है। यहां भी होना चाहिए,” संजीत कुमार ने कहा।

2020 के चुनावी घोषणा पत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर पंचायत में सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने का वादा किया था, जिसे अब लागू किया जा रहा है। बिहार की ऊर्जा नीति में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं।

solar street lights not working
खराब स्ट्रीट लाइट

किशनगंज जिले के पोठिया प्रखंड स्थित महिषमारा पंचायत निवासी इंतखाब आलम ने बताया कि उनकी पंचायत के 4 वार्डों में सोलर स्ट्रीट लाइट लगाई गई थी। हर वार्ड में सार्वजनिक जगहों पर दस सोलर लाइटें लगाई गईं। लेकिन, लगाने के एक सप्ताह के अंदर ही लगभग आधी स्ट्रीट लाइटें खराब हो गईं। संबंधित अधिकारियों को लिखित शिकायत देने पर मिस्त्री बुलाकर ठीक कराने का प्रयास किया गया, लेकिन लाइटें सही नहीं हो सकीं।

“एक भी लाइट ठीक नहीं हो सकी। टेंडर वाला अपना रुपया लेकर भाग गया,” इंतखाब आलम बोले।

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर क़दम

केंद्र सरकार के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आकड़ों के अनुसार, 2019 में बिहार 6,390 मेगावाट ऊर्जा के लिए कोयले पर निर्भर था, जबकि केवल 341.25 मेगावाट (5.06%) ऊर्जा नवीकरणीय थी। 2020 में नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भरता घटकर 4.43% हो गयी। वहीं, 2024 में 9,060 मेगावाट आपूर्ति कोयले से हुई, वहीं 477.92 मेगावाट (5.01%) ऊर्जा नवीकरणीय रही।

bihar renewal energy share

2024 में हुए बिहार बिजनेस कनेक्ट में कुल ₹1.8 लाख करोड़ के ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिनमें से 90,734 करोड़ नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े थे।

bihar business connect 2024 investments

इस क्षेत्र में निवेश करने वाली कंपनियों में सन पेट्रोकेमिकल्स, अडानी ग्रुप, एनटीपीसी ग्रीन, एसजेवीएन और एनएचपीसी जैसी बड़ी कंपनियां शामिल थीं।

वर्तमान में, बिहार में सौर ऊर्जा की कुल क्षमता 890 मेगावाट है और पवन ऊर्जा का योगदान 699 मेगावाट है। राज्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरी तरह से नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करने के लिए राज्य सरकार आने वाले वर्षों में इन ऊर्जा स्रोतों की क्षमता को बढ़ाकर 25% तक पहुंचाना चाहती है।

इसके साथ ही, बिहार में ऊर्जा की आपूर्ति में सुधार के लिए सौर ऊर्जा के साथ-साथ अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे बायोमास और हाइड्रो पावर का भी उपयोग किया जा रहा है। इस प्रयास में राज्य सरकार ने कई छोटी परियोजनाओं की शुरुआत की है जो स्थानीय समुदायों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति करती हैं।

लखीसराय के कजरा में 185 मेगावाट क्षमता वाली सौर ऊर्जा संयंत्र और बैटरी भंडारण प्रणाली बनाई जा रही है। इसमें 254 मेगावाट-आवर की भंडारण क्षमता होगी, जिससे दिन में बनी 20% सौर ऊर्जा बैटरियों में संग्रहित होगी। यह ऊर्जा सूर्यास्त के बाद बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वितरित की जाएगी। लार्सन एंड टुब्रो को यह परियोजना सौंपी गई है, जो दिसंबर 2025 तक पूरी होने की उम्मीद है।

डॉ. झा इस तरह के प्रयासों की सराहना करते हुए कहते हैं, “बिहार में बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) और विकेन्द्रीकृत सौर समाधान (Decentralized Solar Solutions) के उपयोग से बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता और ग्रिड स्थिरता में सुधार किया जा सकता है। सौर ऊर्जा का उत्पादन दिन के समय होता है, जबकि बिजली की मांग कई बार रात में अधिक होती है। BESS का उपयोग करके अतिरिक्त सौर ऊर्जा को संचित किया जा सकता है।

जल निकायों पर सौर विद्युत परियोजनाएँ

बिहार, सीमित भूमि संसाधनों के बावजूद, सौर ऊर्जा उत्पादन की व्यापक संभावनाओं वाला राज्य है। इसी को ध्यान में रखते हुए, सरकार और संबंधित कंपनियों ने नहरों, बांधों और जलाशयों पर सौर ऊर्जा उत्पादन के नए विकल्प तलाशे हैं।

बिहार में कुल ऊर्जा उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदरी 2021-22 में 32.8% थी जिसे 2025-26 तक बढ़ाकर 33.4% करने की योजना है। इसके लिए कई परियोजनाओं पर काम हो रहा है।

पटना के विक्रम प्रखंड में 2 मेगावाट के सौर विद्युत संयंत्र के क्रियान्वयन और संचालन के लिए नव धर्म इनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के साथ विद्युत क्रय समझौता किया गया है। यह परियोजना के मार्च 2025 तक पूरी होने की उम्मीद है।

जलाशयों और नहरों पर 20 मेगावाट की सौर परियोजना के लिए बिहार के विभिन्न जिलों में जल निकायों का उपयोग कर सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए 5 स्थानों को चिन्हित किया गया है।

फुलवरिया डैम (नवादा) और दुर्गावती डैम में 10-10 मेगावाट के फ्लोटिंग सौर संयंत्र बनाए जा रहे हैं। ये परियोजनाएं जल की सतह पर सौर ऊर्जा उत्पादन के साथ जलजीवों के पोषण को भी बढ़ावा देंगी।

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में फ्लोटिंग सौर विद्युत संयंत्र एक अत्याधुनिक तकनीक के रूप में उभर रहे हैं। इस प्रणाली में सौर पैनलों को जल निकायों की सतह पर स्थापित किया जाता है। बिहार सरकार ने इस तकनीक को अपनाते हुए ‘नीचे मछली, ऊपर बिजली’ अवधारणा के तहत सुपौल और दरभंगा जिलों में तैरते सौर विद्युत संयंत्र स्थापित किए हैं।

सुपौल के राजापोखर में ₹3.00 करोड़ की लागत से 525 किलोवाट पीक क्षमता का फ्लोटिंग सौर विद्युत संयंत्र और दरभंगा में ₹8.55 करोड़ की लागत से 1,600 किलोवाट पीक का फ्लोटिंग सौर विद्युत संयंत्र 2022 से काम कर रहा है।

राज्य सरकार ने जल-जीवन-हरियाली मिशन के तहत कुछ प्रमुख शहरों को बिजली के मामले में ग्रीन सीटी बनाने का निर्णय लिया है। इसके तहत राजगीर, बोधगया और पटना के कुछ हिस्सों को चिन्हित किया गया है, जहां 24 घंटे नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति की जाएगी।

भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) के साथ समझौते के तहत इन शहरों को 210 मेगावाट हरित बिजली मिलेगी। दिन में सौर ऊर्जा और रात में पंप-भंडारण संयंत्र से बिजली की आपूर्ति होगी।

राज्य में सोलर एनर्जी यूनिट्स के माध्यम से बिजली उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ बिजली वितरण कंपनियों ने यह व्यवस्था की है कि इन संयंत्रों से उत्पादित बिजली अगले 25 सालों तक बिजली कंपनियों द्वारा खरीदी जाएगी।

डॉ. झा का मानना है कि इन प्रयासों को सफल बनाने के लिए, “राज्य सरकार सिंगल-विंडो क्लीयरेंस प्रणाली और तेजी से स्वीकृति प्रक्रिया से निवेशकों को आकर्षित कर सकती है। सौर ऊर्जा क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए हरित बॉन्ड (Green Bonds) और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को अपनाया जा सकता है।” उनके मुताबिक, यदि ये कदम उठाए जाएँ, तो बिहार नवीकरणीय ऊर्जा में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकता है।

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

ऋषिकेश आर्य एक पत्रकार हैं, जो बिहार में हो रहे विकास कार्यों को डेटा-संचालित रिपोर्टिंग के माध्यम से उजागर कर रहे हैं। उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची से बी.कॉम किया है और IIMC से अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की है। उनके लेख मुख्य रूप से बिहार के बुनियादी ढांचे, नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में हो रही प्रगति पर केंद्रित होते हैं।

Related News

किशनगंज: कनकई और बूढ़ी कनकई नदी के उफान से दिघलबैंक में बाढ़, लोगों का पलायन जारी

किशनगंज में भारी बारिश से नदियां उफान पर, ग्रामीण नदी कटाव से परेशान

नेपाल में भारी बारिश से कोशी, गंडक और महानंदा नदियों में जलस्तर बढ़ने की संभावना, अलर्ट जारी

कटिहार की मधुरा पंचायत में बाढ़ का कहर, घरों में घुसा पानी, लोग फंसे

पूर्णिया: बायसी में नदी कटाव का कहर, देखते ही देखते नदी में समाया मकान

कटिहार में गंगा और कोसी के बढ़ते जलस्तर से बाढ़ का कहर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

वर्षों से पुल के इंतजार में कटिहार का कोल्हा घाट

किशनगंज ईदगाह विवाद: किसने फैलाई बिहार बनाम बंगाल की अफवाह?

दशकों के इंतज़ार के बाद बन रही रोड, अब अनियमितता से परेशान ग्रामीण

बिहार में सिर्फ कागज़ों पर चल रहे शिक्षा सेवक और तालीमी मरकज़ केंद्र?

दशकों से एक पुराने टूटे पुल के निर्माण की राह तकता किशनगंज का गाँव