बिहार की राजधानी पटना से करीब 30 किलोमीटर दूर फतुहा नगर परिषद का वार्ड नंबर 6, जो गोविंदपुर गांव के नाम से जाना जाता है, इन दिनों सुर्खियों में है। दरअसल, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक महीने पहले एक नोटिस जारी कर 21 डिसमिल जमीन पर दावा ठोकते हुए इस पर बने 15 मकानों को खाली करने का नोटिस जारी किया था।
लेकिन, कुछ दक्षिणपंथी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों ने सोशल मीडिया पर इस बाबत सनसनीखेज पोस्ट डाला था, जिसमें कहा था कि वक्फ बोर्ड ने पूरे गांव पर अपना दावा ठोका है और गांव में रहने वाले परिवारों को जल्द से जल्द मकान खाली करने का आदेश जारी किया है।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) हूं जुड़े पांचजन्य पत्रिका ने अपने X अकाउंट पर लिखा, “वक्फ बोर्ड का दावा, सारा गांव हमारा। वक्फ बोर्ड की मनमानी एक बार फिर सामने आई है। वक्फ बोर्ड ने पटना जिले के एक हिंदू गांव को अपना बताया है। जब उच्च न्यायालय ने बोर्ड से कागज मांगे तो कहा कि नहीं है। वक्फ बोर्ड ने एक महीने के अंदर गांव को खाली करने का नोटिस भी दे दिया है… विष्णु भगवान या गोविंद के नाम पर बसे इस गांव पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि गांव हमारा है।”
वक्फ बोर्ड का दावा, सारा गांव हमारा
वक्फ बोर्ड की मनमानी एक बार फिर सामने आई है।
वक़्फ़ बोर्ड ने पटना जिले के एक हिंदू गांव को अपना बताया है।
जब उच्च न्यायालय ने बोर्ड से कागज मांगे तो कहा कि नहीं है।
वक़्फ़ बोर्ड ने एक महीने के अंदर गांव को खाली करने का नोटिस भी दे दिया है।… pic.twitter.com/AQL97bs030
— Panchjanya (@epanchjanya) August 25, 2024
ऐसा ही दावा अन्य पोस्ट्स में भी किया गया।
सोशल मीडिया पर डाले गये ये पोस्ट वायरल हो गये और फिर मीडिया का जमावड़ा लगने लगा। ग्रामीणों के मुताबिक, पिछले चार-पांच दिनों से गांव में लगातार मीडियाकर्मी पहुंच रहे हैं।
क्या है पूरा मामला, हाईकोर्ट ने क्या कहा
बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड ने वर्ष 2023 में गांव में बनी एक मजार की जमीन पर एक बड़ा-सा बोर्ड लगाया था (जो अब भी लगा हुआ है)। बोर्ड में खसरा और खाता संख्या दर्ज करते हुए लिखा गया है कि गोविंदपुर कुर्था मौजा की खाता संख्या 128 और 130 तथा खसरा संख्या 199, 219 और 217 की जमीन वक्क बोर्ड की है और वक्फ संपत्ति की खरीद-बिक्री या किसी तरह का अतिक्रमण वक्फ अधिनियम 1995 (2013 में संशोधन) की धारा 52 (ए)(2) के तहत गैर-जमानती अपराध है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, जिस मजार की जमीन पर बोर्ड लगाया गया है, वह काफी पुराना है।
गौरतलब हो कि जिस खाता और खसरा संख्या का जिक्र वक्फ बोर्ड ने किया है, उसके अधीन 21 डिसमिल जमीन आती है, जिस पर 15 परिवार बसे हुए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, इनमें में मुस्लिम समुदाय के 4-5 परिवार शामिल हैं और बाकी परिवार हिन्दू हैं।
बोर्ड लगाने के बाद वक्फ बोर्ड की तरफ से इन परिवारों को घर खाली करने का नोटिस जारी किया गया। नोटिस में कहा गया, “ऐसी जानकारी मिली है कि वक्फ बोर्ड की जमीन का अतिक्रमण किया गया है, ऐसे में अतिक्रमणकारी निर्धारित समय पर आकर अपना पक्ष रखें और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो वक्फ अधिनियम के तहत आगे की कार्रवाई की जाएगी।”
इस आदेश से डरे परिवारों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। वक्फ बोर्ड के दावा क्षेत्र में आने वाले 15 घरों में से 7 घरों के मालिकों ने इस संबंध में सितंबर, 2013 में पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। याचिका पर सुनवाई करते हुए इसी साल 20 अप्रैल को पटना हाईकोर्ट ने अंतिम आदेश जारी किया।
अपने आदेश में पटना हाईकोर्ट ने सीओ व अन्य पार्टियों द्वारा जमा किये गये दस्तावेजों का जिक्र करते हुए बताया कि जिस जमीन पर वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है, उसके समर्थन में उसकी तरफ से कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि तथ्य के विवादित सवालों पर निर्णय केवल सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा ही लिया जा सकता है और पक्षकार कानून के अनुसार उचित उपाय का लाभ उठा सकते हैं। यानी कि वक्फ बोर्ड अपने दावे के लिए सिविल कोर्ट जा सकता है।
कोर्ट के इस आदेश के बाद वक्फ ने पिछले महीने दोबारा नोटिस जारी कर दिया और 15 दिनों के भीतर जमीन खाली करने को कहा। नोटिस में जमीन खाली करने की आखिरी तिथि खत्म हो चुकी है।
डीएम ने बताया वक्फ संपत्ति, फिर आदेश वापस लिया
इस पूरे मामले में एक बड़ा विवाद तब पैदा हुआ जब पटना के डीएम कार्यालय से दिसम्बर 2023 में एक आदेश जारी हुआ, जिसमें कहा गया कि उक्त खाता संख्या 130 (जिस पर वक्फ बोर्ड का दावा है) की 1.19 डिसमिल (7 धुर) जमीन वक्फ बोर्ड की है जिसका नाम दरगाह इमामबाड़ा, गोविंदपुर फतुहा है और इसका रजिस्ट्रेशन 21 जुलाई 1959 को हुआ था।
आदेश के मुताबिक, उक्त जमीन को श्री जय सिंह यादव नाम के व्यक्ति ने संदीप कुमार को बेच दिया। संदीप कुमार, ब्रज बल्लभ प्रसाद के पुत्र हैं, जो पटना हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले 7 परिवारों में से एक हैं।
डीएम कार्यालय से जारी उक्त आदेश में आगे लिखा गया था कि वक्फ बोर्ड अधिनियम 1959 (2013) की धारा 52(2) के तहत अवैध कब्जा हटाने के लिए उपरोक्त व्यक्तियों को नोटिस तामील कराते हुए 30 दिसंबर, 2023 तक उपरोक्त भूखंड को अवैध कब्जा मुक्त कर वक्फ बोर्ड को वापस किया जाए।
इसी आदेश के आलोक में अनुमंडल पदाधिकारी ने फतुहा थाने को पत्र लिखकर जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने को कहा था।
हालांकि, पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद 4 जुलाई, 2024 को डीएम कार्यालय ने एक और आदेश जारी करते हुए अपने पूर्व (दिसंबर 2023) के आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया।
21 डिसमिल जमीन का असली मालिक कौन
दरअसल, 21 डिसमिल में फैली जिस जमीन के टुकड़े पर वक्फ बोर्ड अपना दावा ठोक रहा है, खतियान के मुताबिक, वह जमीन तिनकौड़ी लाल की है। अंचल अधिकारी व अन्य अधिकारियों की तरफ से कोर्ट में पेश किये दस्तावेजों के हवाले से पटना हाईकोर्ट ने भी कहा है कि जमीन का मालिक तिनकौड़ी लाल हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि तिनकौड़ी लाल के रिश्तेदारों ने जमीन अन्य लोगों को बेच दी और खरीदारों ने वहां मकान बना लिया।
वक्फ बोर्ड के दावे वाली जमीन पर राजकिशोर मेहता का भी मकान है। उनका मकान 4 डिसमिल जमीन पर है। वह कहते हैं, “साल 2023 की बात है। एक रोज वक्फ वालों ने बोर्ड गाड़ दिया और उसमें मेरी जमीन का खसरा नंबर डाल दिया।”
“जब हमने इसकी शिकायत सर्किल अफसर से की तो उन्होंने बताया कि जमीन हमारी ही है और उसकी हम रसीद वगैरह भी कटवाते हैं। लेकिन, तब भी वक्फ नहीं माना तो हम लोग पटना हाईकोर्ट गये,” उन्होंने कहा।
पटना हाईकोर्ट ने इसी साल 3 जनवरी को वक्फ बोर्ड, सर्किल अफसर और डीएम को इस संबंध में दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा था।
वह कहते हैं, “वक्फ बोर्ड कोई दस्तावेज पेश नहीं कर सका। वहीं, डीएम और सीओ ने बताया कि जिस जमीन पर वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है, वो रैयती जमीन है।”
वह आगे कहते हैं कि 21 डिसमिल जमीन में से दो डिसमिल जमीन साल 1974 में सरकार ने बाजार समिति के लिए ली थी और इसका मुआवजा भी मिला था, लेकिन वक्फ उस जमीन पर भी दावा ठोक रहा है।
उन्होंने कहा, “पटना हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अब भी बोर्ड लगा हुआ है, जिससे हम लोग डरे हुए हैं और चाहते हैं कि बोर्ड को जल्द से जल्द हटाया जाए।”
इस पूरे विवाद में मो. हाशिम उर्फ बबलू की भी भूमिका नजर आती है। मो. हाशिम का नाम वक्फ बोर्ड की तरफ से लगाए गए बोर्ड पर मुतवल्ली के तौर पर दर्ज है। वह पूर्व में छह नंबर वार्ड के पार्षद भी रह चुके हैं। पिछले साल हुए चुनाव में भी वह वार्ड पार्षद उम्मीदवार थे, लेकिन चुनाव हार गये।
एक स्थानीय सूत्र ने दावा किया कि मो. हाशिम ने पूर्व में दूसरे की जमीन की रसीद अपने नाम कटवा ली थी। “उनकी जमीन 2 डिसमिल थी, लेकिन उन्होंने 3 डिसमिल जमीन की रसीद कटवा ली थी, तब स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था,” सूत्र ने बताया।
इस संबंध में मो. हाशिम से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा
हालांकि, बिहार स्टेट सुन्नी वक्फ बोर्ड अब भी अपने दावे पर कायम है। वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अलहाज मोहम्मद इर्शादुल्लाह का कहना है कि जमीन निश्चित तौर पर तिनकौड़ी प्रसाद की है, लेकिन उन्होंने ही जमीन वक्फ कर दी थी।
उन्होंने कहा कि यह जमीन 100 साल पहले से वक्फ के नाम है और 1959 में इसका रजिस्ट्रेशन हुआ था। “हमारे पास इससे संबंधित सभी दस्तावेज है,” अलहाज मोहम्मद इर्शादुल्लाह ने ‘मैं मीडिया’ से कहा।
कोर्ट के आदेश पर वह कहते हैं, “कोर्ट में हमलोग नहीं गये थे और कोर्ट ने मामले को लेकर सिविल कोर्ट में जाने को कहा है। हमलोग जमीन खाली करने को लेकर दोबारा नोटिस जारी करेंगे।”
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